शुक्रवार, 14 मार्च 2014

राजनीति में दस फीसदी भी नहीं ‘आधी आबादी’

देश के 4896 एमपी और एमएलए में सिर्फ 418 महिलाएं
हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भारत में महिलाओं की हर क्षेत्र में भागीदारी की बात कही जाती है। सालों से कुछ राजनैतिक पार्टियां ‘आधी आबादी’ को राजनीति में आधा हिस्सा देने की बात कहती रही हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। भारत में महिलाओं की स्थिति और नीति नियामक संस्थाओं में उनके प्रतिनिधित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में कुल 4896 सांसदों और विधायकों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या मात्र 418 है, यानी सिर्फ नौ फीसदी। भारत निर्वाचन आयोग के आंकडों के अनुसार, सांसदों की श्रेणी में वर्तमान लोकसभा के 543 सदस्यों में 59 महिला सदस्य (11 फीसदी) और राज्यसभा में दस फीसदी यानी 23 महिला सदस्य हैं। ऊपरी सदन के कुल 233 सदस्यों में 23 महिलाएं हैं। राज्य विधानसभाओं पर नजर डालें तो पश्चिम बंगाल में 294 विधायकों में 34 महिलाएं, बिहार में 243 में से 34 और आंध्र प्रदेश में 294 में से 34 महिला विधायक हैं। इन राज्यों में महिला प्रतिनिधियों का आंकडा दूसरे राज्यों से अधिक है। इसके बाद उत्तर प्रदेश और राजस्थान का स्थान आता है, जहां क्रमश: 403 में से 32 और 200 में से 28 महिला विधायक हैं। जम्मू कश्मीर, मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय में महिला प्रतिनिधियों की संख्या सबसे कम है।
विश्व में भारत 111वें नंबर पर
संसद में महिला प्रतिनिधियों की संख्या के आधार पर राष्ट्रों का रैंक तय करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा तैयार की गई सूची में 189 देशों में भारत का 111वां स्थान है। संसदों के अंतरराष्ट्रीय संगठन अंतर संसदीय संघ (आईपीयू) ने अपने वार्षिक विश्लेषण में कहा है कि दुनियाभर में अधिक संख्या में महिलाओं को संसद के लिए चुना गया है और यदि मौजूदा चलन जारी रहता है तो एक पीढ़ी से भी कम समय में लैंगिक समानता के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। आईपीयू ने संसद में महिलाओं की संख्या के आधार पर देशों की रैंकिंग की है। निचले सदन लोकसभा में 62 महिलाओं की मौजूदगी के साथ भारत को 111वें नंबर पर रखा गया है, जो कुल 545 सांसदों का लगभग 11 फीसदी है। ऊपरी सदन में 245 सांसदों में 28 महिलाएं हैं।
रवांडा सबसे आगे
आईपीयू महासचिव एंडर्स जानसन ने बताया कि 189 देशों की सूची में रवांडा शीर्ष पर है, जहां उसके निचले सदन में 60 फीसदी महिलाएं हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि संसद तक महिलाओं की पहुंच कई कारणों से होती है, जिसमें आरक्षण मुख्य माध्यम है।
होता है भेदभाव
संयुक्त राष्ट्र महिला मामलों की कार्यकारी निदेशक फुमजिले मलाम्बो नागकुका ने लैंगिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा, ‘दुनियाभर में, महिलाओं को भेदभाव, हिंसा, पार्टियों के ढांचे, गरीबी और धन की कमी के चलते संसदों से दूर रखा जाता है।’ ये आंकडे राष्ट्रीय संसदों द्वारा एक जनवरी 2014 तक उपलब्ध कराई गई सूचना पर आधारित हैं।
अमेरिका और कनाडा की स्थिति इस सूची में क्रमश: 83वें और 54वें नंबर पर है। हालांकि चीन में दो फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। दक्षिण एशिया में नेपाल में महिला सांसदों का प्रतिशत सर्वाधिक है, लेकिन इसके बावजूद यह 30 फीसदी से नीचे है। इस सूची में शीर्ष दस देशों में चार अफ्रीका महाद्वीप से हैं।

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