राहुल भी...लेकिन यह परेशानी राहुल भी यह रास्ता अख्तियार तो करते हैं, लेकिन दिक्कत है, राहुल के लिए सर्वेक्षण या अध्ययन करने वाले लोगों में अधिकतर कांग्रेस से जुड़े लोग रहते हैं और वे पहचान छिपाने या गुपचुप जुटाने में पिछड़ जाते हैं। राहुल जिन लोगों को इस तरह का काम असाइन करते हैं, वे लोग सीधे उन्हें ही रिपोर्ट करते हैं। इनकी रिपोर्ट के आधार पर टिकट भी तय होते हैं।
मंगलवार, 18 मार्च 2014
अपनों से जासूसी करा रहे राहुल-मोदी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा की ओर से पीएम पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी सिर्फ अपनी-अपनी पार्टी के फीडबैक से संतुष्ट नहीं होते। जमीनी स्थिति का पता करने के लिए उन लोगों ने अपने "जासूस" छोड़ रखे हैं। यह दरअसल क्रॉसचेक करने और समस्या गंभीर होने से पहले ही उसका समाधान करने के लिए है।
मोदी हमेशा एडवांस
इसमें मोदी आगे चलते हैं। अभी दिसंबर में जब सभी लोग पांच राज्यों के विस चुनावों के परिणाम की बाट जोह रहे थे, मोदी की टीम मप्र, छग़, राजस्थान समेत विभिन्न राज्यों में लोस चुनाव को लेकर आकलन करने में लगी थी। इसमें भाजपा नेतृत्व या संगठन की भूमिका नहीं थी। बल्कि पार्टी ने संभावित प्रत्याशियों और जमीनी स्थिति वगैरह को लेकर सर्वेक्षण वगैरह बाद में शुरू किए। इसी कारण माना जाता है, मोदी एडवांस चलते हैं। मोदी अपने जुटाए आंकड़ों को पार्टी की तरफ से आए फीडबैक से मिलाते जरूर हैं। उनकी टीम इस आधार पर ही कोई रिपोर्ट उनके सामने पेश करती है। माना जाता है पिछले साल हुए विस चुनावों की रणनीति में इस आधार पर कई बदलाव हुए और शायद एक कारण है कि भाजपा के हक में नतीजे अनुमान से कहीं बेहतर रहे।
मोदी ठकुरसुहाती या चेहरा देखकर मनमाफिक बात करने वालों से बचकर रहते हैं। वे जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ प्रोफेशनल्स से भी यह काम कराते हैं। कई बार तो यह होता है सर्वेक्षण करने वाले को पता नहीं होता वह किस व्यक्ति के लिए काम कर रहा क्योंकि यह मार्केटिंग सर्वे एजेंसियों के जरिये भी कराया जाता है।
मतलब यह संभवतः आपके यहां टूथपेस्ट या वाशिंग मशीन को लेकर सर्वे करने आया व्यक्ति कई तरह के सवाल पूछे और इसमें से कुछ डाटा का उपयोग मोदी की टीम करे।
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