जुगलबंदी वाले होंगे सत्ता से बाहर
एक तो करौला ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत इन दिनों मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के मंत्रियों पर खरी उतर रही है। यानी पहले से ही विवादित (करैलानुमा) कुछ मंत्रियों को ऐसे अफसरों (नीमनुमा )का साथ मिल गया है जिससे सरकार की छवि दागदार हो रही है। इससे भाजपा में शुद्धिकरण के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। ऐसा भी नहीं की इसकी भनक सरकार और संगठन को नहीं है। अपने कदावर मंत्रियों की करतूते जानने के बाद भी सरकार मजबूर है लेकिन संगठन ने शुद्धिकरण के लिए किसी भी हद तक जाने का मन बना लिया है।
सत्ता पाते ही राम को धोखा देने वाले भाजपाईयों की लूटखसोट को लेकर अब पार्टी के सत्ता वाले प्रदेशों में चल रहे गफलत को लेकर पार्टी हाईकमान न केवल चिंतित है बल्कि कड़ाई बरतने का संकेत दिया है। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में इन दिनों मंत्रियों कि करतूतों को लेकर उच्च स्तर पर जबरदस्त बवाल मचा है। ्रसूत्र बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नई तिकड़ी इस मामले में परफार्मेंस और पार्टी के प्रति निष्ठा को आधार बनाकर बड़े निर्णय ले सकती है। भारत-श्रीलंका के बीच हुए क्रिकेट विश्व कप फाइनल के दौरान तीनों नेताओं की एक साथ उपस्थिति से अटकलों का बाजार गर्म है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल कर या उनके विभाग बदल कर इन विवादित मंत्रियों को सबक सिखाया जा सकता है ताकि मंत्रियों और अधिकारियों की जुगलबंदी से निजात मिल सके। सत्ता और संगठन की बक्र दृष्टि जिन मंत्रियों पर पडऩे की संभावना व्यक्त की जा रही है उनमें रामकृष्ण कुसमरिया, राजेंद्र शुक्ला, रंजना बघेल,जगदीश देवड़ा,पारस जैन और करण सिंह वर्मा का नाम शामिल है।
शिवराज सिंह चौहान सरकार पर मंत्रियों के विभाग और की निजी स्थापना में पदस्थ अधिकारी भारी पड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि उनकी कैबिनेट के तीन सहयोगियों के विशेष सहायकों के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जांच कर रहा है। इस स्वीकारोक्ति के बाद भी ये अधिकारी मंत्रियों के खासमखास बने हुए हैं। सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और स्वच्छता की वकालत के बीच मंत्रियों के निज सचिव, निज सहायक और विशेष सहायक जब-तब भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। इस मामले में दो मंत्रियों के विशेष सहायकों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद पहल कर हटवाना भी पड़ा था। भाजपा संगठन की नजर भी इस मामले में कुछ विशेष सहायकों पर टेढ़ी थी, लेकिन अभी भी तीन मंत्रियों के विशेष सहायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज है।
प्रदेश में दूसरी बार भाजपा की सरकार बनने के बाद मंत्रियों के निजी स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बारे में संगठन ने गाइडलाइन जारी की थी। पचमढ़ी में हुए मंत्रियों के चिंतन शिविर में मंत्री स्टाफ को प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया गया था, लेकिन उस पर अमल नहीं हो सका। अपने पीए की कारगुजारियों के कारण जो मंत्री सरकार के लिए संकट खड़ा कर रहे हैं उनमें रामकृष्ण कुसमरिया, राजेंद्र शुक्ला, जगदीश देवड़ा, रंजना बघेल के काम-काज की भी संगठन अपने स्तर पर जांच करा चुका है और इन मंत्रियों को सफाई देने के लिए प्रदेश अध्यक्ष के दरबार में जाना पड़ा। विवादित बयानों और अक्षम कार्यशैली के चलते कृषि मंत्री कुसमरिया पहले से ही किसान संघ के सीधे निशाने पर हैं।
विवादित जोडिय़ां———-
रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा-
अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए बदनाम रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा की जोड़ी हमेशा विवादों में रहती है। बाबाजी के नाम से जाने वाले कुसमरिया अपने पीए के कारण बदनामी और तमाम आरोप झेल रहे हैं। उन पर पीए के माध्यम से वसूली के आरोप हैं। पशुपालन मंत्री रहते हुए मछली ठेके गलत तरीके से दिए, जिस पर विवाद हुआ। इसी वजह से उनसे विभाग छिना। पिछले दो साल से जैविक नीति का राग अलाप रहे हैं, लेकिन आज तक नीति का अता-पता नहीं। मंत्री से पहले जब सांसद थे, तब मिस्टर टेन परसेंट कहलाते थे। मंत्री के रूप में भी यही पहचान। अधिकारियों में नूरा-कुश्ती कराने में माहिर।
वहीं उनके पीए उमेश शर्मा मूलत डीएसपी हैं, लेकिन किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया उन्हें अपना विशेष सहायक बनाए हुए हैं। कहा जाता है कि कृषि विभाग में शर्मा की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं खड़कता। उन्हें विशेष सहायक बनाने का मामला खासा चर्चित रहा था, लेकिन अंतत: कुसमरिया की जिद मानी गई। शर्मा के खिलाफ 18 जून 1010 को ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज हुआ।
राजेंद्र शुक्ल और रमेश पाल
खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ल और रमेश पाल की जोड़ी भी खुब चर्चा में हैं। मंत्री पर खनिज माफिया को संरक्षण देने का आरोप है। अपने गृह जिले रीवा के पड़ोसी जिले सतना में समर्थकों को खनिज लूट की खुली छूट दी। कटनी और अन्य स्थानों पर खनिज चोरी पर आंखें बंद किए हुए हैं। बताया जाता है को मंत्री को यह सब आईडिया उनके पीए रमेश पाल ने ही दिए हैं। ये महाशय एडीशनल कलेक्टर कटनी के पद पर पदस्थ थे। इससे पहले मंत्रालय में नगरीय प्रशासन विभाग के उपसचिव जैसे मलाईदार पद पर रहे हैं। मंत्री की निजी पदस्थापना के लिए सरकार ने बातें तो बड़ी-बड़ी की, लेकिन विभागीय जांच से घिरे होने के बावजूद पाल को मंत्री का विशेष सहायक बना दिया गया। अपर कलेक्टर स्तर के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रमेश पाल को भी खनिज एवं ऊर्जा राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल तमाम आरोपों के बावजूद अपना विशेष सहायक बनाए हुए हैं। पाल के खिलाफ छह दिसंबर 2010 को लोकायुक्त संगठन और 18 अगस्त 2010 को ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज हुआ। कहा जाता है कि खनिज विभाग में कोई भी निर्णय उनकी सहमति के बिना नहीं होता।
रंजना बघेल और अरूण निगम
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही संगठन ने मंत्रियों के निज स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों के कार्यों की जांच कराने के बाद ही इन्हें रखने के निर्देश दिए थे। खासकर कुछ मंत्रियों के स्टाफ में संघ से जुडे कार्यकर्ताओं को भी निज सहायक एवं निज सचिव बनाया गया है, लेकिन महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार श्रीमती रंजना बघेल एक ऐसे शिक्षक को पाल रही हैं जो कि भष्टाचार के मामले में गले-गले फंसे हुए हैं। वहीं रंजना बघेल पर कुपोषण के कलंक से परेशान सरकार ने पूरा भरोसा जताया,लेकिन धांधली के एक नहीं दर्जनों आरोप उन पर हैं। आरोप है कि विभाग को उनके पीए अरूण निगम चला रहे हैं। अधिकारियों की पोस्टिंग विभाग का सबसे अहम काम बना हुआ है। पोषण आहार सप्लाई के ठेके में भारी भ्रष्टाचार। अपने गृह जिले धार के ठेकेदारों को ही सर्वाधिक ठेके देने के आरोप उन पर हैं। कुपोषण के निपटने के तमाम प्रयास विफल हुए। अब अटल बाल आरोग्य मिशन में कुपोषण से निपटने के तरीकों से बजट खर्च करने की योजना पर ध्यान है। महिला एवं बाल विकास मंत्री रंजना बघेल के पीए अरुण निगम शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अफसरों की सूची में शामिल रहे हैं। इन पर स्कूलों में होने वाले नलकूप खनन में लाखों रुपए की हेराफेरी के आरोप लगे हैं। इनकी शिकायत खरगोन के पूर्व सांसद इंदौर के मेयर कृष्णमुरारी मोघे ने इंदौर संभागायुक्त से की थी। बीते साल इंदौर संभागायुक्त ने निगम को तत्काल सेवा से बर्खास्त करने के लिए कलेक्टर खरगोन को सिफारिश भेजी थी। इनके खिलाफ पुलिस प्रकरण दर्ज करने के भी निर्देश दिए गए। मामला अदालत भी पहुंचा। अदालत ने संभागायुक्त के फैसले को सही ठहराया पर निगम सुरक्षित स्थान पर पहुंच ही गए हैं। भष्टाचार के आरोप में फंसे महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती रंजना बघेल के निज सहायक की विभागीय जांच शुरू हो गई है।
जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र सिंह
जेल मंत्री जगदीश देवड़ा के विशेष सहायक राजेंद्र सिंह गुर्जर को सीएम के निर्देश पर पिछले साल ही पद से हटा कर मूल विभाग भेजा गया है। देवड़ा के साथ बीते छह-सात साल से जुड़े रहे राजेंद्र को हटाने की वजह खाचरौद जेल से सिमी के कार्यकर्ताओं को रिहा करने में उनकी भूमिका थी। लेकिन बताया जाता है कि इनको हटाने के लिए मंत्री पर पहले से ही दबाव था। वैसे तो राजेन्द्र सिंह कुछ समय पहले ही पदोन्नत होकर राजपत्रित हुए हैं, लेकिन देवड़ा जी के यहां ये ही सर्वशक्तिमान थे। इनके हाल ये थे कि मंत्री जी के निर्देशों का भी इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। परिवहन विभाग में एक साल में जितने लोग डेपुटेशन पर गए, उनके लिए लाइजनींग इन्होंने ही की थी।
पारस जैन और राजेंद्र भूतड़ा
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री पारस जैन शकर एवं दाल खरीदी के मामले के बाद अब फोर्टिफाइड आटे को लेकर गंभीर आरोपों से घिरे हैं। इनके विशेष सहायक राजेंद्र भूतड़ा ने मंत्री जी के नाम पर ठेकेदारों और अफसरों से जमकर वसूली की है। एक खाद्य निरीक्षक द्वारा आत्महत्या किए जाने को लेकर उसकी पत्नी ने भूतड़ा पर तबादले के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे। इंस्पेक्टर के परिजनों ने मंत्री पर अरोप लगाए। लेकिन भूतड़ा को कुछ माह पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर हटाया गया था।
करण सिंह वर्मा अजय कुमार शर्मां
ईमानदारी के लिए मिसाल के तौर पर पहचाने जाने वाले राजस्व एवं पुनर्वास राज्यमंत्री करण सिंह वर्मा ने अजय कुमार शर्मां अपना विशेष सहायक बना रखा है। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शर्मा के खिलाफ 12 जनवरी 2009 को लोकायुक्त संगठन में प्रकरण दर्ज हुआ और जांच चल रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर पर एक बार फिर दबाव बनाया जा रहा है कि नगरीय प्रशासन विभाग छोड़ें, लेकिन गौर हर पखवाड़े केंद्रीय नेताओं से मिलकर अपना दबदबा जाहिर करते रहे हैं। दूसरी ओर अंत्योदय मेले के दौरान जिन राज्यमंत्रियों ने शिवराज सिंह का दिल जीता है उन्हें पदोन्नति का इंतजार है। इस सूची में बृजेंद्र प्रताप सिंह और हरिशंकर खटीक का नाम सबसे ऊपर है। यही नहीं, अजय विश्नोई के लिए भी कई केंद्रीय नेताओं का दबाव है। ग्वालियर का प्रतिनिधित्व करने वाले अनूप मिश्रा की वापसी के लिए मैदानी फील्ंिडग जम चुकी है, लेकिन राह में रोड़े अटकाने वालों की भी कमी नहीं है। मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक अनूप के प्रति सहानुभूति जता चुके हैं, लेकिन लंबे समय से अधर में है।
बुधवार, 20 अप्रैल 2011
मध्य प्रदेश में बे-पटरी होती भाजपा
भारतीय जनता पार्टी अगर किसी राज्य में सबसे अधिक एकजुट है तो वह है मध्य प्रदेश। यहां सत्ता और संगठन में जितनी पटती है उतनी किसी अन्य राज्य में नहीं। यही कारण है कि हर कभी संगठन के पदाधिकारी यहां के मंत्रियों का कान उमेठ जाते हैं और ताकतवर होते हुए भी मंत्री को सब कुछ सहना पड़ता है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से यहां के भाजपाईयों को भी कांग्रेस का रोग लग गया है।
इस रोग यानी अपनी ढ़पली अपना राग की शुरूआत हुई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनशन एपिसोड के साथ। अनशन एपिसोड के दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच पैदा हुए मनभेद शांत हो गया था, लेकिन मध्य प्रदेश भाजपा के नए संगठन महामंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद मेनन के आते ही एक बार फिर से भाजपा बे-पटरी होती नजर आ रही है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के बीच एक बार फिर से मतभेद शुरू हो गए हैं। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा विधानसभा में दिए गए एक उत्तर में प्रभात झा की बात को पूरी तरह खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री अनशन के स्थल से ही अस्थाई सचिवालय चलेगा। केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के साथ भेदभाव के विरोध में मुख्यमंत्री ने 13 फरवरी को सविनय आग्रह उपवास प्रारंभ की घोषणा की थी। हालांकि राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर के सुझाव के बाद मुख्यमंत्री ने उपवास का विचार त्याग दिया था। केन्द्र के खिलाफ इस लड़ाई को भाजपा ने अपने हाथ में लेते हुए उपवास को खूब प्रचारित किया। प्रदेशभर से पार्टी कार्यकर्ता उपवास स्थल पर आए। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने उस दौरान घोषणा की थी कि उपवास स्थल से मुख्यमंत्री सचिवालय चलेगा। कैबिनेट बैठक भी उपवास स्थल पर ही होगी। इसके लिए कैबिनेट कक्ष सचिव अधिकारियों को बैठने की व्यवस्था भी की गई थी। मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारी भी उपवास स्थल का निरीक्षण करने गए। उन्होंने कैबिनेट कक्ष सहित अधिकारियों की बैठक व्यवस्था का भी जायजा लिया था। कांग्रेस के आरिफ अकील के सवाल पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिए लिखित जवाब में कहा कि उपवास स्थल पर पर कैबिनेट बैठक व्यवस्था नहीं की गई थी। मुख्यमंत्री के इस जवाब से प्रभात झा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
प्रदेश भाजपा कार्यसमिति में राज्य के साथ केंद्र सरकार के सौतेलेपन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के रवैये में जो विरोधाभाष उभरकर सामने आया उसने एक बार फिर सत्ता और संगठन के मुखियाओं के बीच मतभेद को हवा दे दी। शिवराज सिंह ने उज्जैन में इस मुद्दे पर सीधे पीएम को घेरने में कोताही बरती, लेकिन प्रभात झा ने पीएम के नाम खुली चि_ी जारी कर यह जता दिया कि सरकार की भले ही सीमाएं हों, लेकिन केंद्र को सबक सिखाने के लिए पूरी पार्टी इकाई दिल्ली जाकर हल्ला बोल सकती है।
उज्जैन कार्यसमिति में अनंत कुमार के सुर बदलने और अरुण जेटली के सत्ता और संगठन में जोश भरने के बावजूद केंद्र से मध्यप्रदेश की अपेक्षाओं को लेकर शिवराज-प्रभात की राह तथा रणनीति जुदा नजर आई। यूं तो उपवास के उपहास एपीसोड के समय शिवराज सिंह और प्रभात झा के बीच समन्वय-सामंजस्य को लेकर सवाल उठे थे, लेकिन उस वक्त शीर्ष नेताओं के हस्तक्षेप के बाद बात आई-गई हो गई थी। दोनों ने पार्टी को सर्वोपरि मानते हुए कुक्षी और सोनकच्छ की जीत के जश्न की आड़ में 'हम एक हैंÓ का नारा देकर मतभेदों को नकार दिया था। इस बार उज्जैन कार्यसमिति में बाकी सभी मुद्दों पर केन्द्र के प्रति सरकार और संगठन के रुख में मतभिन्नता नजर आई।
विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के कार्यक्षेत्र और उनकी भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा था कि दोनों किसी दल तक सीमित नहीं रहते हैं। शिवराज सिंह को उपवास से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भले ही शिकायतें रहीं और विभिन्न मंचों पर वे भेदभाव और सौतेलेपन के आरोप लगाते रहे, लेकिन विधानसभा में उन्होंने जो कुछ कहा उसका यही अर्थ निकाला गया कि पिछले प्रधानमंत्रियों की तरह मनमोहन सिंह भी दृष्टि दलीय नहीं है। उज्जैन कार्यसमिति के दौरान पीएम पर सीधा निशाना न साधकर उन्होंने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। कारण साफ है कि ऐनटाइम पर शिवराज सिंह के उपवास का इरादा टालने के पीछे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बड़ी भूमिका रही, जिन्होंने राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद शिवराज सिंह को छोटे भाई का सम्मान दिया था। लेकिन कार्यसमिति में ही प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के तेवर जिस तरह एक बार फिर तीखे नजर आए और उन्होंने प्रदेश सरकार के प्रति केंद्र को घेरने की चेतावनी दी उसने भाजपा में एक नई बहस जरूर छेड़ दी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को लिखी चि_ी में उन सारी योजनाओं का बिन्दुवार ब्योरा दिया है, जिनको लेकर शिवराज सिंह स्वयं प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मंत्रियों से मुलाकात कर कई बार रिमाइंडर भी दे चुके हैं। प्रधानमंत्री और उनकी केंद्र सरकार को विभिन्न मंचों से आरोपों के कटघरे में खड़ा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह नरम रुख अपनाया और उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने सख्त चेतावनी दी, वह आपसी मतभेद की बजाय भाजपा की सोची-समझी राजनीति का हिस्सा भी हो सकती है।
बड़ा सवाल यह है कि क्या संवैधानिक दायित्व से बंधे होने के कारण शिवराज सिंह ने अपने कदम पीछे खींचकर संगठन को आगे आने के लिए प्रेरित किया है या फिर पार्टी ने सरकार पर चाबुक चलाते हुए स्वयं फ्रंट फुट पर आकर केंद्र को घेरने की रणनीति बनाई है? सवाल यह भी है कि क्या उपवास के तौर-तरीकों को लेकर संगठन की कसक बरकरार है और उसने पार्टी को सर्वोपरि बताते हुए सरकार को बाध्य किया है कि वह अपनी सोच भले ही बदल दे, लेकिन संगठन इस लड़ाई को जनता के हक के लिए मुकाम तक ले जाएगा। लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या बतौर प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सलाहकारों को यह संदेश दे दिया है कि उपवास के दौरान जिस तरह संगठन की उपेक्षा हुई उसे पार्टी हित में भले ही उस वक्त नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन संगठन बढ़ते हुए कदमों को पीछे खींचने को तैयार नहीं है? यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र के खिलाफ दिल्ली में हल्ला बोल की रणनीति भाजपा की कितनी और कब तक कारगर होती है तथा इससे शिवराज-प्रभात में से राजनीतिक कद किसका बढ़ता है?
ऐसे में प्रदेश भाजपा के नए संगठन महामंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद मेनन के सामने चुनौती बाहर से ही नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर से भी है। चुनौती यदि कांग्रेस को लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर रखने के लिए संगठन को मजबूत कर उसे संघ की विचारधारा के तहत आगे बढ़ाने की है तो भाजपा में अपनी स्वीकायर्ता बढ़ाने के साथ-साथ सत्ता और संगठन में बेहतर समन्वय बनाने की भी है।
मेनन के पास संगठन का दीर्घ अनुभव है तो पार्टी में उनके शुभचिंतक की भी ऐसी लंबी फेहरिस्त है, जिनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं आपस में टकराती रहीं और विशेष मौकों पर एक-दूसरे के पूरक साबित होते रहे। अरविंद मेनन के संगठन महामंत्री बनने के बाद यह तय हो गया है कि विभाग और जिला स्तर पर संघ की पृष्ठभूमि वाले संगठन मंत्रियों की भूमिका भी आने वाले समय में बदलेगी। मेनन नीचे से सफलता की पायदान चढ़ते हुए उस मुकाम पर पहुंचे हैं, जहां पहुंचने के सपने हर कोई देखता है। उन्होंने मालवा, महाकौशल के साथ प्रदेश के पूरे जिलों की भाजपा की राजनीति को संघ के आईने से देखा है। फेरबदल से पहले कई संगठन मंत्री उनके भरोसेमंद समर्थक रहे तो इस महत्वपूर्ण दायित्व को निभा रहे कई संगठन मंत्रियों की निष्ठा भाजपा से ज्यादा माखन और माथुर के प्रति भी रही है। नई भूमिका में मेनन को इनकी योग्यता और अनुभव कितना भाएगा, कहना जल्दबाजी होगी। बनते-बिगड़ते नए समीकरणों के बीच कुछ संगठन मंत्री उनके निशाने पर जरूर आ गए होंगे।
अरविंद मेनन के सामने बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा दोनों को संतुष्ट करना ही नहीं, उनके बीच समन्वय बनाना भी है। जिसके बाद ही कांग्रेस को मात देने और भाजपा के तीसरी बार सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसा नहीं है कि सत्ता और संगठन में समन्वय नहीं है, लेकिन बड़ा सच यह भी है कि दोनों एक-दूसरे की कार्यप्रणाली पर पर्दे के पीछे ही सही उंगली उठाते रहे हैं। भाजपा में बदल रहे समीकरणों के बीच मेनन की नई भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। उनके सामने चुनौती संघ की उस लाइन को आगे बढ़ाने की भी है, जो समिधा से निकलती है। संघ के क्षेत्रीय और प्रांत प्रचारक की भूमिका भी उसकी होली वार्षिक बैठक के बाद नए सिरे से तय की जा सकती है। संघ के इन नेताओं ने मेनन को प्रचारक घोषित कराने में छह माह पहले ही निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसके बाद उनके संगठन महामंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अरविंद मेनन के शुभचिंतकों की कमी नहीं है। वे शिवराज सिंह चौहान के सबसे विश्वसनीय होकर उभरे हों, लेकिन सरकार में नंबर दो पर अपना दबदबा साबित करते रहे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से अरविंद मेनन की निकटता जगजाहिर है। ऐसे में मेनन के लिए बड़ी चुनौती दोनों को विश्वास में लेने के साथ उन्हें संतुष्ट करने की भी होगी।
संगठन महामंत्री रहते कप्तान सिंह के साथ मेनन ने लंबे समय तक काम किया और उन्हें वे बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते रहे। कप्तान सिंह का खुला समर्थन कैलाश विजयवर्गीय को हमेशा रहा है, जबकि परिस्थितियों ने उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर होने को मजबूर कर दिया था, बदली भूमिका में कप्तान और कैलाश की जुगलबंदी प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को कितना भाएगी, कहना कठिन है। मेनन ने सह संगठन महामंत्री रहते तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ भी काम किया है, जिनकी गिनती शिवराज के करीबी लोगों में होती है। ऐसे में प्रभात और शिवराज के बीच समन्वय बनाने में जुटे मेनन के लिए बड़ी चुनौती नरेन्द्र के अस्तित्व को भी सम्मान देने की होगी। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने अरविन्द मेनन के लिए प्रदेश की राजनीति में रोड़ा साबित होने वाले उनके वरिष्ठ माखन सिंह और भगवतशरण माथुर को राज्य से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है, जबकि मेनन की गिनती पर्दे के पीछे सक्रिय पूर्व संगठन महामंत्री संजय जोशी के करीबी में होती है। जोशी और रामलाल को संतुष्ट करना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
इस रोग यानी अपनी ढ़पली अपना राग की शुरूआत हुई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनशन एपिसोड के साथ। अनशन एपिसोड के दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच पैदा हुए मनभेद शांत हो गया था, लेकिन मध्य प्रदेश भाजपा के नए संगठन महामंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद मेनन के आते ही एक बार फिर से भाजपा बे-पटरी होती नजर आ रही है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के बीच एक बार फिर से मतभेद शुरू हो गए हैं। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा विधानसभा में दिए गए एक उत्तर में प्रभात झा की बात को पूरी तरह खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री अनशन के स्थल से ही अस्थाई सचिवालय चलेगा। केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के साथ भेदभाव के विरोध में मुख्यमंत्री ने 13 फरवरी को सविनय आग्रह उपवास प्रारंभ की घोषणा की थी। हालांकि राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर के सुझाव के बाद मुख्यमंत्री ने उपवास का विचार त्याग दिया था। केन्द्र के खिलाफ इस लड़ाई को भाजपा ने अपने हाथ में लेते हुए उपवास को खूब प्रचारित किया। प्रदेशभर से पार्टी कार्यकर्ता उपवास स्थल पर आए। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने उस दौरान घोषणा की थी कि उपवास स्थल से मुख्यमंत्री सचिवालय चलेगा। कैबिनेट बैठक भी उपवास स्थल पर ही होगी। इसके लिए कैबिनेट कक्ष सचिव अधिकारियों को बैठने की व्यवस्था भी की गई थी। मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारी भी उपवास स्थल का निरीक्षण करने गए। उन्होंने कैबिनेट कक्ष सहित अधिकारियों की बैठक व्यवस्था का भी जायजा लिया था। कांग्रेस के आरिफ अकील के सवाल पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिए लिखित जवाब में कहा कि उपवास स्थल पर पर कैबिनेट बैठक व्यवस्था नहीं की गई थी। मुख्यमंत्री के इस जवाब से प्रभात झा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
प्रदेश भाजपा कार्यसमिति में राज्य के साथ केंद्र सरकार के सौतेलेपन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के रवैये में जो विरोधाभाष उभरकर सामने आया उसने एक बार फिर सत्ता और संगठन के मुखियाओं के बीच मतभेद को हवा दे दी। शिवराज सिंह ने उज्जैन में इस मुद्दे पर सीधे पीएम को घेरने में कोताही बरती, लेकिन प्रभात झा ने पीएम के नाम खुली चि_ी जारी कर यह जता दिया कि सरकार की भले ही सीमाएं हों, लेकिन केंद्र को सबक सिखाने के लिए पूरी पार्टी इकाई दिल्ली जाकर हल्ला बोल सकती है।
उज्जैन कार्यसमिति में अनंत कुमार के सुर बदलने और अरुण जेटली के सत्ता और संगठन में जोश भरने के बावजूद केंद्र से मध्यप्रदेश की अपेक्षाओं को लेकर शिवराज-प्रभात की राह तथा रणनीति जुदा नजर आई। यूं तो उपवास के उपहास एपीसोड के समय शिवराज सिंह और प्रभात झा के बीच समन्वय-सामंजस्य को लेकर सवाल उठे थे, लेकिन उस वक्त शीर्ष नेताओं के हस्तक्षेप के बाद बात आई-गई हो गई थी। दोनों ने पार्टी को सर्वोपरि मानते हुए कुक्षी और सोनकच्छ की जीत के जश्न की आड़ में 'हम एक हैंÓ का नारा देकर मतभेदों को नकार दिया था। इस बार उज्जैन कार्यसमिति में बाकी सभी मुद्दों पर केन्द्र के प्रति सरकार और संगठन के रुख में मतभिन्नता नजर आई।
विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के कार्यक्षेत्र और उनकी भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा था कि दोनों किसी दल तक सीमित नहीं रहते हैं। शिवराज सिंह को उपवास से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भले ही शिकायतें रहीं और विभिन्न मंचों पर वे भेदभाव और सौतेलेपन के आरोप लगाते रहे, लेकिन विधानसभा में उन्होंने जो कुछ कहा उसका यही अर्थ निकाला गया कि पिछले प्रधानमंत्रियों की तरह मनमोहन सिंह भी दृष्टि दलीय नहीं है। उज्जैन कार्यसमिति के दौरान पीएम पर सीधा निशाना न साधकर उन्होंने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। कारण साफ है कि ऐनटाइम पर शिवराज सिंह के उपवास का इरादा टालने के पीछे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बड़ी भूमिका रही, जिन्होंने राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद शिवराज सिंह को छोटे भाई का सम्मान दिया था। लेकिन कार्यसमिति में ही प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के तेवर जिस तरह एक बार फिर तीखे नजर आए और उन्होंने प्रदेश सरकार के प्रति केंद्र को घेरने की चेतावनी दी उसने भाजपा में एक नई बहस जरूर छेड़ दी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को लिखी चि_ी में उन सारी योजनाओं का बिन्दुवार ब्योरा दिया है, जिनको लेकर शिवराज सिंह स्वयं प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मंत्रियों से मुलाकात कर कई बार रिमाइंडर भी दे चुके हैं। प्रधानमंत्री और उनकी केंद्र सरकार को विभिन्न मंचों से आरोपों के कटघरे में खड़ा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह नरम रुख अपनाया और उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने सख्त चेतावनी दी, वह आपसी मतभेद की बजाय भाजपा की सोची-समझी राजनीति का हिस्सा भी हो सकती है।
बड़ा सवाल यह है कि क्या संवैधानिक दायित्व से बंधे होने के कारण शिवराज सिंह ने अपने कदम पीछे खींचकर संगठन को आगे आने के लिए प्रेरित किया है या फिर पार्टी ने सरकार पर चाबुक चलाते हुए स्वयं फ्रंट फुट पर आकर केंद्र को घेरने की रणनीति बनाई है? सवाल यह भी है कि क्या उपवास के तौर-तरीकों को लेकर संगठन की कसक बरकरार है और उसने पार्टी को सर्वोपरि बताते हुए सरकार को बाध्य किया है कि वह अपनी सोच भले ही बदल दे, लेकिन संगठन इस लड़ाई को जनता के हक के लिए मुकाम तक ले जाएगा। लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या बतौर प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सलाहकारों को यह संदेश दे दिया है कि उपवास के दौरान जिस तरह संगठन की उपेक्षा हुई उसे पार्टी हित में भले ही उस वक्त नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन संगठन बढ़ते हुए कदमों को पीछे खींचने को तैयार नहीं है? यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र के खिलाफ दिल्ली में हल्ला बोल की रणनीति भाजपा की कितनी और कब तक कारगर होती है तथा इससे शिवराज-प्रभात में से राजनीतिक कद किसका बढ़ता है?
ऐसे में प्रदेश भाजपा के नए संगठन महामंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद मेनन के सामने चुनौती बाहर से ही नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर से भी है। चुनौती यदि कांग्रेस को लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर रखने के लिए संगठन को मजबूत कर उसे संघ की विचारधारा के तहत आगे बढ़ाने की है तो भाजपा में अपनी स्वीकायर्ता बढ़ाने के साथ-साथ सत्ता और संगठन में बेहतर समन्वय बनाने की भी है।
मेनन के पास संगठन का दीर्घ अनुभव है तो पार्टी में उनके शुभचिंतक की भी ऐसी लंबी फेहरिस्त है, जिनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं आपस में टकराती रहीं और विशेष मौकों पर एक-दूसरे के पूरक साबित होते रहे। अरविंद मेनन के संगठन महामंत्री बनने के बाद यह तय हो गया है कि विभाग और जिला स्तर पर संघ की पृष्ठभूमि वाले संगठन मंत्रियों की भूमिका भी आने वाले समय में बदलेगी। मेनन नीचे से सफलता की पायदान चढ़ते हुए उस मुकाम पर पहुंचे हैं, जहां पहुंचने के सपने हर कोई देखता है। उन्होंने मालवा, महाकौशल के साथ प्रदेश के पूरे जिलों की भाजपा की राजनीति को संघ के आईने से देखा है। फेरबदल से पहले कई संगठन मंत्री उनके भरोसेमंद समर्थक रहे तो इस महत्वपूर्ण दायित्व को निभा रहे कई संगठन मंत्रियों की निष्ठा भाजपा से ज्यादा माखन और माथुर के प्रति भी रही है। नई भूमिका में मेनन को इनकी योग्यता और अनुभव कितना भाएगा, कहना जल्दबाजी होगी। बनते-बिगड़ते नए समीकरणों के बीच कुछ संगठन मंत्री उनके निशाने पर जरूर आ गए होंगे।
अरविंद मेनन के सामने बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा दोनों को संतुष्ट करना ही नहीं, उनके बीच समन्वय बनाना भी है। जिसके बाद ही कांग्रेस को मात देने और भाजपा के तीसरी बार सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसा नहीं है कि सत्ता और संगठन में समन्वय नहीं है, लेकिन बड़ा सच यह भी है कि दोनों एक-दूसरे की कार्यप्रणाली पर पर्दे के पीछे ही सही उंगली उठाते रहे हैं। भाजपा में बदल रहे समीकरणों के बीच मेनन की नई भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। उनके सामने चुनौती संघ की उस लाइन को आगे बढ़ाने की भी है, जो समिधा से निकलती है। संघ के क्षेत्रीय और प्रांत प्रचारक की भूमिका भी उसकी होली वार्षिक बैठक के बाद नए सिरे से तय की जा सकती है। संघ के इन नेताओं ने मेनन को प्रचारक घोषित कराने में छह माह पहले ही निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसके बाद उनके संगठन महामंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अरविंद मेनन के शुभचिंतकों की कमी नहीं है। वे शिवराज सिंह चौहान के सबसे विश्वसनीय होकर उभरे हों, लेकिन सरकार में नंबर दो पर अपना दबदबा साबित करते रहे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से अरविंद मेनन की निकटता जगजाहिर है। ऐसे में मेनन के लिए बड़ी चुनौती दोनों को विश्वास में लेने के साथ उन्हें संतुष्ट करने की भी होगी।
संगठन महामंत्री रहते कप्तान सिंह के साथ मेनन ने लंबे समय तक काम किया और उन्हें वे बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते रहे। कप्तान सिंह का खुला समर्थन कैलाश विजयवर्गीय को हमेशा रहा है, जबकि परिस्थितियों ने उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर होने को मजबूर कर दिया था, बदली भूमिका में कप्तान और कैलाश की जुगलबंदी प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को कितना भाएगी, कहना कठिन है। मेनन ने सह संगठन महामंत्री रहते तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ भी काम किया है, जिनकी गिनती शिवराज के करीबी लोगों में होती है। ऐसे में प्रभात और शिवराज के बीच समन्वय बनाने में जुटे मेनन के लिए बड़ी चुनौती नरेन्द्र के अस्तित्व को भी सम्मान देने की होगी। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने अरविन्द मेनन के लिए प्रदेश की राजनीति में रोड़ा साबित होने वाले उनके वरिष्ठ माखन सिंह और भगवतशरण माथुर को राज्य से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है, जबकि मेनन की गिनती पर्दे के पीछे सक्रिय पूर्व संगठन महामंत्री संजय जोशी के करीबी में होती है। जोशी और रामलाल को संतुष्ट करना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
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