सोमवार, 2 जून 2014

अब अच्छे दिनों की जुगत में भाजपा नेता!

प्रदेशाध्यक्ष,संगठन महामंत्री,राज्यसभा सांसद,राज्यपाल बनने की जुगत में जुटे नेता
भोपाल। केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के साथ ही कार्यकर्ताओं की उम्मीद अच्छे दिनों की बन चुकी हैं। नरेंद्र सिंह तोमर के केंद्रीय मंत्री बनने के साथ ही प्रदेश भाजपा संगठन में फेरबदल की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। वहीं नया संगठन महामंत्री की भी तलाश शुरू होने वाली है। राज्यसभा की सीट खाली हो रही है जिसकी दावेदारी भी तेज हो गई है। वहीं बहोरीबंद और विजयराघवगढ़ विधानसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवारी के लिए नेताओं की दौड़ शुरू हो गई है। मझौले स्तर के कार्यकर्ता केन्द्रीय समितियों में पद हासिल करने की संभावनाओं को तलाश रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए दर्जन भर दावेदार
भाजपा के भीतर इन दिनों कार्यकर्ताओं की उम्मीद सातवें आसमान पर है। एक दशक बाद सत्ता में लौटी पार्टी के सिपाही भी अब अच्छे दिन देखने के लिए तैयारी कर रहे हैं। हर कोई अपनी योग्यता और अनुभव के दम पर पद हासिल करने में लगा है। नरेंद्र सिंह तोमर के केंद्रीय मंत्री बनने के साथ ही प्रदेश भाजपा संगठन में फेरबदल की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा,नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, महिला बाल विकास मंत्री माया सिंह और परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह के साथ प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते,डॉ सत्यनारायण जटिया,जयभान सिंह पवैया,प्रदेश महासचिव नंदकुमार सिंह चौहान और विनोद गोटिया के नाम अगले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के लिए चर्चा में हैं। इनमें से प्रभात झा की चर्चा जोरों पर है। क्योंकि शपथ ग्रहण के दिन राजघाट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा की मौजूदगी से प्रदेश में नए समीकरण की आशा व्यक्त की जा रही है। मोदी और झा को साथ देख कर भाजपा नेताओं के बीच चर्चा है कि अगले प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति सहित प्रदेश संगठन से जुड़े अन्य मामलों में उनकी राय महत्वपूर्ण होगी। उधर,प्रदेश की राजनीति में संघ का दखल हमेशा से रहा है। नए प्रदेशाध्यक्ष को चुनने में भी संघ की भूमिका रहेगी। सीएम शिवराज सिंह चौहान की पसंद का ख्याल रखा जाएगा। यह जोर रहेगा कि नया प्रदेशाध्यक्ष लो-प्रोफाइल हो ताकि सत्ता और संगठन में समन्वय बना रहें। इसके पहले प्रभात झा के प्रदेशाध्यक्ष रहते सत्ता-संगठन में समन्वय नहीं रह पाया था।
उल्लेखनीय है कि झा ने अपने पूर्व कालकाल में प्रदेश संगठन को इतना मजबुत और सक्रिय कर दिया था कि विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में पार्टी को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। उन्होंने प्रदेश भाजपा कार्यालय से लेकर ब्लॉक स्तर तक के पदाधिकारियों को एक सूत्र में पिरोया। यही नहीं उन्होंने आदिवासी और अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में खुद डेरा डाल कर उन्हें भाजपा से जोड़ा। झा के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में की गई मेहनत और अनुभव को देखते हुए पार्टी आलाकमान उन्हें पुन: प्रदेशाध्यक्ष बना सकता है। इनके अलावा कैलाश विजयवर्गीय भी प्रदेश अध्यक्ष के प्रबल दावेदार हैं। उनकी मोदी से भी अच्छी ट्यूनिंग है। लोकसभा चुनाव में मालवा से कांग्रेस का सफाया करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन आगामी सिंहस्थ को देखते हुए मुख्यमंत्री उन्हें अपनी कैबिनेट में रखना चाहेंगे।
उधर,खबर यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अगले प्रदेशाध्यक्ष के लिए महिला बाल विकास मंत्री माया सिंह का नाम आगे बढ़ाया है। यदि माया सिंह प्रदेशाध्यक्ष बनीं तो यह लगातार चौथी बार होगा कि प्रदेशाध्यक्ष का पद ग्वालियर के खाते में जाएगा। परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री की पसंद बताया जा रहा है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि भूपेंद्र मंत्री पद छोडऩे के मूड में नहीं हैं। प्रदेश महासचिव विनोद गोटिया को संगठन महामंत्री अरविंद मेनन की पसंद बताया जाता है। वहीं, प्रदेश महासचिव नंदकुमार सिंह चौहान भी प्रदेशाध्यक्ष पद के दावेदार के रूप में उभरे हैं। वे प्रदेश भाजपा के सभी गुटों की पसंद हैं।
संगठन महामंत्री के लिए विष्णुदत्त शर्मा का नाम चर्चा में
वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा में आए विष्णुदत्त शर्मा अब नए ठौर की तलाश में हैं। पांच महीने पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनकी सेवाएं भाजपा को सौंपी थीं। देश में चुनाव की प्रक्रिया संपन्न होते ही संघ और भाजपा इस बारे में अहम् फैसला करने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा में आने के बाद वीडी शर्मा को पार्टी ने पहला टारगेट झारखंड जाकर चुनावी मैनेजमेंट संभालने का दिया था। वहां पार्टी को मिली जीत के बाद संगठन शर्मा को बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहता है। अगले पखवाड़े तक इनकी भाजपा में नई भूमिका तय होने की संभावना है। भाजपा की दिल्ली में संपन्न राष्ट्रीय परिषद के दौरान संघ ने मप्र के वीडी शर्मा की सेवाएं भाजपा को सौंपने का फैसला किया था। शुरुआती कुछ दिन शर्मा को छत्तीसगढ़ के संगठन महामंत्री रामप्रताप के साथ सहयोगी की भूमिका में रखा गया। इसके बाद उनकी तैनाती लोकसभा चुनाव में झारखंड कर दी गई। उन्हें झारखंड में बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की जमावट और चुनावी रणनीति बनाकर राज्य की 15 सीटों में से अधिक से अधिक सीटों पर कमल खिलाने की चुनौती दी गई थी। शर्मा ने संगठन के अन्य पदाधिकारियों के साथ मिलकर भाजपा को 12 सीटों पर जीत दिलाई है। अब बेहतर चुनावी नतीजों से उनके नए कार्यक्षेत्र का रास्ता प्रशस्त होगा। संघ और संगठन अब वीडी शर्मा की नई जवाबदारी के बारे में निर्णय करेगा। लंबे समय तक अभाविप में क्षेत्रीय संगठन मंत्री के बतौर कार्यरत रहे शर्मा के नए ठौर का फैसला संघ की ओर से भाजपा का काम देख रहे सह सर कार्यवाह भैयाजी जोशी एवं सुरेश सोनी की सलाह पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और संगठन महामंत्री रामलाल करेंगे। जिन राज्यों के संगठन महामंत्रियों की भूमिकाओं में बदलाव की संभावना है उनमें उप्र, बिहार, राजस्थान, झारखंड, दिल्ली और मप्र का भी जिक्र किया जा रहा है। हालांकि मप्र में अरविंद मेनन को संगठन महामंत्री बने करीब साढ़े तीन साल हो चुके हैं। उनका परफार्मेंस भी काफी सराहा जा चुका है। मेनन 2008 के विधानसभा एवं 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन संगठन महामंत्री माखन सिंह के साथ बतौर सह संगठन महामंत्री के रूप में कार्यरत थे। उनके अलावा भगवत शरण माथुर भी सह संगठन महामंत्री के रूप में यहां तैनात थे। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मप्र में 165 और लोकसभा चुनाव में 27 सीटें जीत कर सभी को चौंका दिया। इस उपलब्धि में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और अरविंद मेनन की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। अब भाजपा को केंद्रीय नेतृत्व चाहता है की मेनन की सेवाएं मुख्य संगठन में लिया जाए। ऐसे में मप्र की राजनीति को भलीभंाति समझने वाले शर्मा को प्रदेश संगठन महामंत्री बनाया जा सकता है। प्रदेश संगठन का कार्यकाल 3 महीने बाद तीन साल होने पर खत्म होना है। ऐसे में तोमर को बरकरार रखा जा सकता है। पार्टी के संविधान के मुताबिक तोमर अपनी जगह कार्यकारी अध्यक्ष बना सकते हैं। इस बीच नगरीय निकाय चुनाव भी हो जाएंगे। अभी नया अध्यक्ष बनाने पर 6 महीने बाद वापस से चुनने की प्रक्रिया अपनानी होगी।
राज्यसभा के लिए दावेदारी मंडला में फग्गन सिंह कुलस्ते के सांसद बनने के बाद प्रदेश से राज्यसभा की एक सीट खाली हो रही है। जिसके लिए प्रदेशभर से दावेदार हाईकमान की शरण में पहुंच चुके हैं। पूर्व सांसद कैलाश जोशी,रघुनंदन शर्मा, अनुसुइया उइके,भाजपा के प्रदेश महामंत्री विनोद गोटिया और जबलपुर से अजय विश्नोई भी इस दौड़ में है। जोशी के नाम की संभावना इस खाली सीट को भरने के लिए सर्वाधिक जताई है। इसके पीछे पार्टी नेताओं की दलील है कि भोपाल से लोकसभा का चुनाव इस बार कैलाश जोशी ने संगठन के कहने पर नहीं लड़ा। इसलिए राज्यसभा भेजकर इनको नवाजा जा सकता है। इसके अलावा रघुनंदन शर्मा का भी राज्यसभा की इस खाली सीट के वास्ते लिया जा रहा है। इस मामले में पार्टी नेताओं का कहना है कि रघुनंदन शर्मा का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने पर दोबारा यह कहकर राज्यसभा नहीं भेजा था कि उनको मंदसौर से पार्टी लोकसभा का चुनाव लड़वा सकता है। शर्मा लोकसभा का चुनाव लडऩे की इच्छा जताई थी, लेकिन पार्टी ने मंदसौर सीट पर लोकसभा चुनाव में रघुनंदन शर्मा को उम्मीदवार नहीं बनाया। इस वजह से राज्यसभा में दोबारा भेजकर उनकी नाराजगी को दूर किया जा सकता है। विनोद गोठिया प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन के करीबी माने जाते हैं, इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि राज्यसभा के लिए इनकी भी लॉटरी लग सकती है। इधर छिंदवाड़ा की अनुसुइया उइके पहले भी राज्यसभा सदस्य रह चुकी हैं। इसलिए इनका नाम भी इस बार राज्यसभा की इस खाली सीट को भरने के वास्ते लिया जा रहा है। पार्टी नेताओं का कहना है कि किसी बड़े नेता को संगठन बाहर से लाकर राज्यसभा की इस खाली सीट को भरवा सकता है। हालांकि इसकी संभावना कम है, लेकिन पार्टी के नेता इस आशंका से भी भयभीत हैं।
विधानसभा की तीन सीटों पर दावेदारों की सक्रियता प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों पर आसन्न उपचुनाव को लेकर भाजपा में सुगबुगाहट शुरू होने लगी है। लोकसभा चुनाव के दौरान विजयराघौगढ़ से कांग्रेस विधायक संजय पाठक ने भाजपा की सदस्यता लेकर विधानसभा सीट छोड़ दी थी, जबकि बहोरीबंद की सीट भाजपा विधायक प्रभात पाण्डे के असमय निधन से रिक्त हुई है। आगर से भाजपा विधायक मनोहर ऊंटवाल अब देवास शाजापुर सीट से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। इसलिए इन तीनों सीटों पर उपचुनाव की स्थिति बन गई है। मैहर से कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी और जतारा के दिनेश अहिरवार भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने का ऐलान कर चुके हंै लेकिन दोनों ने ही विधानसभा की सदस्यता नहीं छोड़ी है। इन सीटों के बारे में अभी निर्णय होना बाकी है। पांडे के पुत्र का नाम बहोरीबंद में पार्टी के सामने दिवंगत विधायक प्रभात पांडे के पुत्र प्रणय पांडे का नाम विचार में है। पांडे के पुत्र को लेकर पार्टी में यह माना जा रहा है कि क्षेत्र में उसके प्रति संवेदना का भाव है। फिलहाल जबलपुर जिले में चुनाव हार चुके अजय विश्रोई भी बहोरीबंद के लिए लॉबिंग कर रहे हंै। सत्ता और संगठन स्तर पर वह अपने नाम पर विचार करने का आग्रह कर चुके हंै। उनके अलावा विनोद गोंटिया भी दावेदारी रख रहे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अभी इस दिशा में विचार विमर्श होना बाकी है। विजयराघौगढ़ के लिए भी भाजपा में क्षेत्रीय नेता दावेदारी जता रहे हैं। इस बात की संभावना है कि वहां संजय पाठक ही भाजपा के स्वाभाविक प्रत्याशी होंगे। उधर लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही आगर क्षेत्र के अनेक नेता अपने स्तर पर सक्रिय हो गए हंै।
बुजुर्ग लीडर बनाए जाएंगे राज्यपाल कांग्रेस नेतृत्व की कृपा के कारण राजभवन में पदस्थ आधा दर्जन से ज्यादा राज्यपालों को जाना पड़ सकता है। उनके स्थान पर भाजपा के कुछ बुजुर्ग नेताओं के साथ-साथ पुराने नौकरशाहों को जगह मिल सकती है। ऐसे मोदी लहर में किनारे कर दिए गए कई बुजुर्ग नेताओं को भी अपनी सरकार बनने का फायदा मिलने की उम्मीद है। इसमें मप्र के दो पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी और सुन्दरलाल पटवा का नाम सबसे ऊपर है इनके अलावा कैलाश सारंग,विक्रम वर्मा और लक्ष्मीनारायण पांडे का नाम चर्चा में है। वहीं अन्य राज्यों से कल्याण सिंह, विजय कुमार मल्होत्रा, यशवंत सिन्हा, लालजी टंडन समेत कई अन्य नेता शामिल हो सकते हैं। सरकार में परिवर्तन के साथ यूं तो अलग-अलग राज्यों के राजभवन में भी बदलाव होता रहा है। इस बार भी कई राज्यपाल पहले से ही इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के लिए उन्हें हटाने की जहमत नहीं उठानी होगी। खबर है कि लगभग आठ राज्यपाल जल्द ही बदले जा सकते हैं। जिन राज्यों के राज्यपाल बदले जाएंगे पार्टी वहां अपने नेताओं को एडजस्ट करेगी। सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा के कुछ बुजुर्ग नेता राज्यसभा में जाने का मन बनाए हुए हैं। जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां इस बार एक ही सीट खाली है। और उसके लिए दर्जन भर नेता लॉबिंग कर रहे हैं। इसलिए पार्टी बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बनाकर उनको सम्मान देना चाहती है।
केन्द्रीय समितियों के लिए सिफारिश केन्द्र की ओर से कई समितियों में स्थानीय नेताओं को नियुक्त किया जाता है। रेलवे, बीएसएनएल, रक्षा, यूजीसी, तकनीकी संस्थान आदि में सलाहकार सदस्यों की नियुक्ति होती है। मंत्रालय स्थानीय लोगों को इसमें शामिल करता है। भाजपा के कई नेता अब अपने आकाओं के पास समितियों में जगह पाने के लिए पहुंच रहे हैं। हर कोई किसी न किसी पद को हासिल कर अपनी निष्ठा का ईनाम हासिल करना चाहता है। एटॉर्नी जनरल, सॉलीसिटर जनरल, एडीशनल सॉलीसिटर, असिस्टेंट सॉलीसिटर और केन्द्र की स्टेंडिंग काउसिंल में जाने के लिए जमीन तैयार की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों से संघ और पार्टी से जुड़े कई वरिष्ठ वकील इस संबंध में मंत्रणा भी कर रहे हैं।
ललचा रहे सत्ता-संगठन के खाली पद लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के बाद अब मप्र में सत्ता-संगठन के खाली पदों को लेकर नेताओं की गणेश परिक्रमा शुरू हो गई है। संगठन में उपाध्यक्ष और महामंत्री सहित 7 वरिष्ठ पदाधिकारियों के पद रिक्त पड़े हैं। शिवराज कैबिनेट में भी 11 मंत्रियों के लिए जगह है। प्रदेश में आसन्न सहकारिता एवं नगरीय निकाय चुनाव के मद्देनजर संगठन की नियुक्तियां जल्दी होने की संभावना है। पार्टी में तीन उपाध्यक्ष एवं दो महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं। इनमें उपाध्यक्ष यशोधरा राजे सिंधिया, महामंत्रीद्वय माया सिंह व लालसिंह आर्य ग्वालियर-चंबल संभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए पार्टी का प्रयास है कि इन पदों पर उसी क्षेत्र के वरिष्ठ भाजपाइयों की ताजपोशी कर दी जाए। इसी तरह उपाध्यक्षद्वय भूपेन्द्र सिंह एवं डॉ. गौरीशंकर शेजवार के सत्ता में शामिल हो जाने की वजह से उनके स्थान पर बुंदेलखंड एवं भोपाल संभाग को प्रतिनिधित्व मिलने की संभावना है। उधर शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी भी पार्टी के युवा एवं खेल प्रकोष्ठ के संयोजक हैं, इस प्रकोष्ठ में भी किसी नए ऊर्जावान युवा को बिठाने की तलाश चल रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि मौजूदा पदाधिकारियों के क्षेत्र से निर्वाचित विधायक, सांसद एवं वरिष्ठ भाजपाइयों को एडजस्ट किए जाने की संभावना है। सितंबर-अक्टूबर में सहकारिता एवं नवंबर-दिसंबर तक नगरीय निकायों के चुनाव होने की संभावना है। इसलिए लोकसभा चुनाव से फारिग होते ही भाजपा स्थानीय चुनावों के लिए तैयारी करेगी। इसके पहले ही संगठन के खाली पदों के लिए नए नेताओं का मनोनयन किए जाने के संकेत हैं। इसलिए इन क्षेत्रों के दिग्गज नेताओं ने अपने लिए लॉबिंग शुरू भी कर दी है। कई नेता तो लोकसभा चुनाव के दौरान लखनऊ, बनारस एवं झांसी तक की फेरी लगाकर वरिष्ठ नेताओं के सामने अपनी-अपनी हसरत जता चुके हैं। मंत्रिमंडल में जगह इसी तरह शिवराज मंत्रिमंडल में 10-11 नए लोगों की संभावना देख अनेक विधायक जोड़-तोड़ में जुट गए हैं। हालांकि मंत्रिमंडल के विस्तार की अभी जल्दी ही संभावना नहीं है लेकिन दावेदार अभी से गणेश परिक्रमा में जुट गए हैं।

शनिवार, 31 मई 2014

झा प्रदेश अध्यक्ष तो बीडी को बनाया जा सकता है महामंत्री

तोमर के केंद्र में मंत्री बनते ही शुरू हुई़ अटकलें भाजपा। आज मोदी सरकार के गठन के साथ ही अब भाजपा अपने संगठन में भी फेरबदल की तैयारी में जुट जाएगी। केंद्रीय संगठन के साथ ही प्रदेश संगठन में भी बदलाव किया जाएगा। केंद्र में मप्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्रसिंह तोमर को मंत्री बनाए जाने के साथ ही नए प्रदेशाध्यक्ष के रूप में प्रभात झा का नाम सामने आ गया है। वहीं अब संगठन महामंत्री अरविंद मेनन को भी बदला जाएगा। मेनन को केंद्रीय संगठन में या फिर किसी अन्य प्रांत में जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। संभवत: विष्णु दत्त शर्मा(वीडी शर्मा) को मप्र भाजपा का नया संगठन मंत्री बनाया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो मप्र में झा और वीडी पर नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का जीता कर कांग्रेस का प्रदेश से पूरी तरह सफाया करने की जिम्मेदारी होगी। उल्लेखनीय है कि झा ने अपने पूर्व कालकाल में प्रदेश संगठन को इतना मजबुत और सक्रिय कर दिया था कि विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में पार्टी को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। उन्होंने प्रदेश भाजपा कार्यालय से लेकर ब्लॉक स्तर तक के पदाधिकारियों को एक सूत्र में पिरोया। यही नहीं उन्होंने आदिवासी और अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में खुद डेरा डाल कर उन्हें भाजपा से जोड़ा। झा के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में की गई मेहनत और अनुभव को देखते हुए पार्टी आलाकमान उन्हें पुन: प्रदेशाध्यक्ष बना सकता है। वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा में आए विष्णु दत्त शर्मा अब नए ठौर की तलाश में हैं। पांच महीने पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनकी सेवाएं भाजपा को सौंपी थीं। देश में चुनाव की प्रक्रिया संपन्न होते ही संघ और भाजपा इस बारे में अहम् फैसला करने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा में आने के बाद वीडी शर्मा को पार्टी ने पहला टारगेट झारखंड जाकर चुनावी मैनेजमेंट संभालने का दिया था। वहां पार्टी को मिली जीत के बाद संगठन शर्मा को बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहता है। अगले पखवाड़े तक इनकी भाजपा में नई भूमिका तय होने की संभावना है। भाजपा की दिल्ली में संपन्न राष्ट्रीय परिषद के दौरान संघ ने मप्र के वीडी शर्मा की सेवाएं भाजपा को सौंपने का फैसला किया था। शुरुआती कुछ दिन शर्मा को छत्तीसगढ़ के संगठन महामंत्री रामप्रताप के साथ सहयोगी की भूमिका में रखा गया। इसके बाद उनकी तैनाती लोकसभा चुनाव में झारखंड कर दी गई। उन्हें झारखंड में बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की जमावट और चुनावी रणनीति बनाकर राज्य की 15 सीटों में से अधिक से अधिक सीटों पर कमल खिलाने की चुनौती दी गई थी। शर्मा ने संगठन के अन्य पदाधिकारियों के साथ मिलकर भाजपा को 12 सीटों पर जीत दिलाई है। अब बेहतर चुनावी नतीजों से उनके नए कार्यक्षेत्र का रास्ता प्रशस्त होगा। संघ और संगठन अब वीडी शर्मा की नई जवाबदारी के बारे में निर्णय करेगा। लंबे समय तक अभाविप में क्षेत्रीय संगठन मंत्री के बतौर कार्यरत रहे शर्मा के नए ठौर का फैसला संघ की ओर से भाजपा का काम देख रहे सह सर कार्यवाह भैयाजी जोशी एवं सुरेश सोनी की सलाह पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और संगठन महामंत्री रामलाल करेंगे। जिन राज्यों के संगठन महामंत्रियों की भूमिकाओं में बदलाव की संभावना है उनमें उप्र, बिहार, राजस्थान, झारखंड, दिल्ली और मप्र का भी जिक्र किया जा रहा है। हालांकि मप्र में अरविंद मेनन को संगठन महामंत्री बने करीब साढ़े तीन साल हो चुके हैं। उनका परफार्मेंस भी काफी सराहा जा चुका है। मेनन 2008 के विधानसभा एवं 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन संगठन महामंत्री माखन सिंह के साथ बतौर सह संगठन महामंत्री के रूप में कार्यरत थे। उनके अलावा भगवत शरण माथुर भी सह संगठन महामंत्री के रूप में यहां तैनात थे। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मप्र में 165 और लोकसभा चुनाव में 27 सीटें जीत कर सभी को चौंका दिया। इस उपलब्धि में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और अरविंद मेनन की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। अब भाजपा को केंद्रीय नेतृत्व चाहता है की मेनन की सेवाएं मुख्य संगठन में लिया जाए। ऐसे में मप्र की राजनीति को भलीभंाति समझने वाले शर्मा को प्रदेश संगठन महामंत्री बनाया जा सकता है। नए प्रदेश प्रभारी की भी तलाश संगठन में बदलाव के साथ ही भाजपा मप्र में प्रदेश प्रभारी भी बदलने की तैयारी कर रही है। क्योंकि मप्र के प्रभारी महासचिव अनंत कुमार को भी मंत्री बना दिया गया है। आठ साल से मप्र के प्रभारी महासचिव अनंत कुमार बैंगलुरू दक्षिण सीट से पांचवी बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। इस बार उनकी जीत काफी अहम रही क्योंकि उन्होंने नंदन नीलेकणि को पराजित किया है,जो कांगे्रस की ओर से प्रधानमंत्री पद के रूप में एक चर्चित चेहरे के तौर पर कहे जा रहे थे। आडवाणी कैम्प के करीबी कहलाने वाले अनंत कुमार की नजदीकियां मोदी से बहुत गहरी तो नहीं हैं,लेकिन संघ की सिफारिश पर उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया है। अब इस सूरत में प्रदेश भाजपा के लिए नए प्रभारी की जरूरत है। इसके लिए संगठन कुछ पूर्व प्रदेश प्रभारियों के साथ ही नए नामों पर भी विचार करेगा।

बुजुर्ग लीडर बनाए जाएंगे राज्यपाल

पटवा, जोशी,वर्मा और सारंग का हो सकता है कि पुर्नवास
कांग्रेस नेतृत्व की कृपा के कारण राजभवन में पदस्थ आधा दर्जन से ज्यादा राज्यपालों को जाना पड़ सकता है। उनके स्थान पर भाजपा के कुछ बुजुर्ग नेताओं के साथ-साथ पुराने नौकरशाहों को जगह मिल सकती है। ऐसे मोदी लहर में किनारे कर दिए गए कई बुजुर्ग नेताओं को भी अपनी सरकार बनने का फायदा मिलने की उम्मीद है। इसमें मप्र के दो पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी और सुन्दरलाल पटवा का नाम सबसे ऊपर है इनके अलावा कैलाश सारंग,विक्रम वर्मा और लक्ष्मीनारायण पांडे का नाम चर्चा में है। वहीं अन्य राज्यों से कल्याण सिंह, विजय कुमार मल्होत्रा, यशवंत सिन्हा, लालजी टंडन समेत कई अन्य नेता शामिल हो सकते हैं। सरकार में परिवर्तन के साथ यूं तो अलग-अलग राज्यों के राजभवन में भी बदलाव होता रहा है। इस बार भी कई राज्यपाल पहले से ही इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के लिए उन्हें हटाने की जहमत नहीं उठानी होगी। खबर है कि लगभग आठ राज्यपाल जल्द ही बदले जा सकते हैं। जिन राज्यों के राज्यपाल बदले जाएंगे पार्टी वहां अपने नेताओं को एडजस्ट करेगी। सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा के कुछ बुजुर्ग नेता राज्यसभा में जाने का मन बनाए हुए हैं। जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां इस बार एक ही सीट खाली है। और उसके लिए दर्जन भर नेता लॉबिंग कर रहे हैं। इसलिए पार्टी बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बनाकर उनको सम्मान देना चाहती है। सूत्रों के अनुसार कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज, केरल में नवनियुक्त शीला दीक्षित, राजस्थान में लंबे समय से पदस्थ मार्गेट अल्वा और उत्तराखंड के अजीज कुरैशी ने तो कांग्रेस आलाकमान से पहले ही पद से हटने की इच्छा जता दी है। यूं तो इस्तीफा राष्ट्रपति को भेजा जाता है, बताते हैं कि इन राज्यपालों ने कांग्रेस नेतृत्व से इस बाबत बात की है। माना जा रहा है कि इनके अलावा बिहार, पंजाब, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, गुजरात में भी बदलाव हो सकता है। गौरतलब है कि शीला दीक्षित को हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद केरल में राज्यपाल नियुक्त किया गया था। भाजपा की ओर से आरोप लगता रहा है कि कामनवेल्थ घोटाला मामले में शीला को जांच से बचाने के लिए ही उन्हें राज्यपाल बनाया गया था। हंसराज भारद्वाज की भाजपा की पुरानी राज्य सरकार से ठनी रहा करती थी। उनकी शिकायत भाजपा राष्ट्रपति तक से कर चुकी थी। पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल ने गृहमंत्री रहते एक साथ चार राज्यपालों को इस आरोप के साथ हटाया था कि वह संघ की विचारधारा से प्रेरित हैं। गुजरात में कमला बेनीवाल और खुद मोदी सरकार के बीच कई विवाद रहे हैं। भाजपा इन राज्यपालों के कामकाज और दखलअंदाजी को लेकर सवाल उठाती रही है। अब बदलाव की तैयारी है। शुरुआत में करीब आठ राज्यपाल बदले जाएंगे। सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा के दिग्गज व वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह, मल्होत्रा, टंडन समेत, हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं में से किसी एक को राज्यपाल बनाने की बात हो रही है। वैसे कल्याण का मन राज्यसभा में आने का है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह राजभवन जाएंगे। उत्तर प्रदेश से ही आने वाले भाजपा के केंद्रीय स्तर के एक वरिष्ठ नेता को भी राज्यपाल बनाए जाने का संकेत है। अगर ऐसा होता है तो टंडन का नाम रुक सकता है। इसके अलावा पुराने नौकरशाहों व पुलिस अधिकारियों के भी नाम खंगाले जा रहे हैं। उन्हें उनके कद के मुताबिक राज्य दिए जाएंगे।

रामनरेश यादव की हो सकती है विदाई

केंद्र में भाजपा की सरकार के आते ही दांव पर लगा कई राज्यपालों का भविष्य भोपाल। केंद्र में भाजपा सरकार आने के साथ ही करीब दर्जनभर राज्यों में राज्यपालों को बदलने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इनमें मप्र के राज्यपाल रामनरेश यादव का नाम भी शामिल है। हालांकि, यादव का प्रदेश सरकार से तालमेल अच्छा रहा है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार यह नहीं चाहेगी कि भाजपा शासित राज्यों में कोई कांगे्रसी राज्यपाल रहे। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नई व्यवस्था में नए लोगों को ही बैठाया जाएगा। हालांकि, कांग्रेस की इस परंपरा के पार जाकर भी कोई फैसला हो सकता है। उल्लेखनीय है कि अपनी आक्रामक छवि के लिए जाने जाने वाले रामनरेश यादव को कांग्रेस ने बड़ी उम्मीदों के साथ मप्र का राज्यपाल बनाया था। प्रदेश में आते ही उन्होंने अपनी आक्रामकता का प्रदर्शन भी किया था, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के सौहार्दपूर्ण व्यवहार के कारण वे आगे अधिक आक्रामक नहीं हो सके। उन्होंने अपने कार्यकाल में सरकार के साथ मिलकर काम किया। यही कारण है कि जहां कांग्रेस संगठन उनके कार्यकाल से संतुष्ट नजर नहीं आया, वहीं भाजपा सरकार में उनकी हर जगह पूछ-परख होती रही। राज्यपाल ने भी अपने व्यवहार से सरकार के साथ हमेशा समन्वय बनाकर रखा। उन्होंने कभी भी संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग नहीं किया। इसलिए प्रदेश भाजपा सरकार तो नहीं चाहेगी कि असमय ही उन्हें बदला जाए। हालांकि जो संकेत मिल रहे हैं, उससे उम्मीद है कि राज्यपाल को बदला जा सकता है। संभावना जताई जा रही है कि आज कार्यभार संभाल रही नरेंद्र मोदी सरकार बड़े पैमाने पर राज्यपालों को शायद ही हटाएगी, लेकिन इस तरह की पूरी संभावना है कि उनमें से कुछ को शालीनता से अपना इस्तीफा देने के लिए कहा जा सकता है, जिससे कि नयी नियुक्तियों का रास्ता साफ हो। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि यह सामान्य चीज है कि नई सरकार राजभवन में जमे कुछ राज्यपालों से इस्तीफा देने को कहे, क्योंकि हो सकता है कि शायद उनके खाके में वे फिट नहीं होते हों। उल्लेखनीय है कि कुछ राज्यपालों का कार्यकाल तीन-चार महिना तो कुछ का आठ महिना है। ऐसे में केंद्र सरकार शायद की इन्हें हटाने की कोशिश करे। राज्यपालों में भारद्वाज (कर्नाटक), जगन्नाथ पहाडिय़ा (हरियाणा), देवानंद कुंअर (त्रिपुरा) और मारग्रेट आल्वा (राजस्थान) के पांच साल का कार्यकाल अगले तीन-चार महीने में पूरा होगा। अगले छह से आठ महीने में जिनका कार्यकाल पूरा होगा, उनमें कमला बेनीवाल (गुजरात), एमके नारायणन (पश्चिम बंगाल), जेबी पटनायक (असम), पाटिल (पंजाब) और उर्मिला सिंह (हिमाचल प्रदेश) का नाम है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की नियुक्ति इस साल मार्च में केरल के राज्यपाल के तौर पर हुई। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा को अप्रैल 2013 में दूसरा कार्यकाल दिया गया। पूर्व गृह सचिव वीके दुग्गल को दिसंबर 2013 में मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। नयी राजग सरकार की समीक्षा के दायरे में अन्य जो राज्यपाल आ सकते हैं उनमें बीएल जोशी (उत्तर प्रदेश) अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं, बीवी वांचू (गोवा), के. शंकरनारायणन (महाराष्ट्र में अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं), के रोसैया (तमिलनाडु),डीवाई पाटिल (बिहार), श्रीनिवास दादासाहेब पाटिल (सिक्किम), अजीज कुरैशी (उत्तराखंड), वकोम पुरूषोत्तम (मिजोरम) और सैयद अहमद (झारखंड) का नाम है। छत्तीसगढ के राज्यपाल शेखर दत्त, अरुणाचल प्रदेश के लेफ्टिनेंट जनरल (अवकाशप्राप्त) निर्भय शर्मा, नगालैंड के अश्विनी कुमार और मेघालय के केके पॉल भी नयी सरकार की समीक्षा के दायरे में आ सकते हैं।

हार के लिए युवा कांग्रेस-एनएसयूआई भी जिम्मेदार !

प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी को भेजा पत्र
भोपाल। प्रदेश में कांग्रेस की करारी हार के लिए युवा कांग्रेस और एनएसयूआई को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कुछ पदाधिकारियों का कहना है कि जब से दोनों संगठनों में चुनाव की प्रक्रिया लागू हुई है तब से कांग्रेस को कोई फायदा मिला हो ऐसा नजर नहीं आया। पहले इन संगठनों में मनोनयन के आधार पर नियुक्तियां होती थी जो उचित थी, लेकिन अब चुनाव की वजह से ऐसे नेता चुनकर आने लगे जिनका जमीनी आधार कमजोर है। इसलिए पार्टी के कुछ नेताओं ने दोनों संगठन में चुनाव के संबंध में वे अपनी आपत्ति कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के समक्ष पत्र लिखकर दर्ज कराया है। वैसे तो किसी भी चुनाव में जीत और हार के कई कारण शामिल रहते हैं, लेकिन जब कोई पराजित होता है तो पार्टीजनों के सहयोग न मिलने व भितरघात को एक प्रमुख कारण मानता ही है, लेकिन पार्टी के कुछ नेता विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस की पराजय की एक वजह एनएसयूआई और युकां के चुनाव को भी मानते हैं। नेताओं का कहना है कि दो साल पहले जब चुनाव हुए थे तब यह लगा था कि जो नेता चुनकर आए हैं वे कुछ कर दिखाएंगे लेकिन गांव और ब्लाक स्तर पर पैठ जमाने के दावे हवा हो गए। धीरे-धीरे यह भी साफ हो गया कि लोगों को सदस्य बनाकर चुनाव लडऩे वाले नेता जमीनी नहीं थे। फिलहाल इन दोनों संगठनों में चुनाव की हलचल तेज हो गई है। दिल्ली में युकां और एनएसयूआई की बैठकों का दौर चल रहा है। एनएसयूआई के चुनाव तो नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव से ही पहले ही हो जाने थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के हो जाने के बाद भी चुनाव नहीं हो पाए हैं। फिलहाल दोनों संगठनों के नेता चुनाव संबंधी गतिविधियों के चलते कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। युकां नेताओं में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मंशा चुनाव कराने की ही है, लेकिन प्रदेश में चुनाव के विरोध को देखते हुए युकां व एनएसयूआई का चुनाव होगा या नहीं इसे लेकर गतिरोध कायम हो सकता है। मनोनयन होना चाहिए कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि एक बार राहुल गांधी के समक्ष युकां और एनएसयूआई चुनाव को लेकर कुछ नेताओं ने अपनी आपत्ति जताई थी। उनका कहना है कि जो साधन-संपन्न है वे चुनाव जीतकर नेता तो बन जाते हैं लेकिन असली नेता वही होता है जो जनता के बीच से चुना जाता है। अब तक नहीं दिखा फायदा चुनाव में जीतकर आने वाले नेताओं से पार्टी को कोई फायदा मिला हो ऐसा अब तक तो नजर नहीं आया है। पहले युवा कांग्रेस और एनएसयूआई से जुड़े लोग जनहित से जुड़ी समस्याओं को लेकर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करते थे तो विसंगतियों के खिलाफ एक माहौल तैयार हो जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता। जो लोग अपने प्रबंधन से चुनाव जीतकर नेता बनते हैं उनमें संघर्ष का माद्दा ही कमजोर होता है। इनका कहना है -युकां के चुनाव होने से जमीनी और मेहनती कार्यकर्ता को अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला है। प्रदेश में युकां ने हर स्तर पर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करके सरकार के खिलाफ अभियान चलाया है। कुणाल चौधरी,प्रदेशाध्यक्ष युकां -चुनाव होने से संगठन में ताकत आई है। एनएसयूआई ने अपने स्तर पर खुब काम किया है। विपिन वानखेड़े,प्रदेशाध्यक्ष भाराछासं

शनिवार, 3 मई 2014

इस बार किसी को बहुमत नहीं

सर्वे: सभी एजेंसियों के आखिरी सर्वे का औसत निकालकर कुछ यूं नजर आ रहा है पार्टियों का हाल
एनडीए 234 तो यूपीए को 112 सीटें मिलने का आसार
272 प्लस के लक्ष्य को साधे आगे बढ़ती भाजपा और कांग्रेस में मतगणना बाद मचेगी भगदड़
भोपाल। 16वीं लोकसभा का गणित पूर्व सर्वेक्षणों के नतीजे में बुरी तरह उलझता दिखाई दे रहा है। गुजरे महिने में सर्वे एजेंसियां कई बार मतदाताओं के मन की थाह लेने उनके दरवाजे पहुंची। अलग-अलग राउंड में नतीजे भी अलग-अलग निकले। मान लिया जाए की फाइनल राउंड में एजेंसियां वोटरों का मूड भापने में कामयाब रही है। तो भी इतना ही साफ होता है की 2014 के समर में भाजपा अपने सहयोगी दलो के साथ सबसे बड़ा गठबंधन बन कर उबरेगी। लेकिन उसके भी सरकार बनाने की बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती। विभिन्न सर्वे के नतीजे यही बताते हें कि कोई भी गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगा। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि चुनाव परिणाम सामने आने के बाद नेताओं के पाला बदलने का नया दौर फिर से शुरू होगा। जिसमें बाजी किसके हाथ लगेगी यह समय ही बतलाएगाा। नतीजे यह भी बताएंगे की सर्वे कितने सटिक हैं। अभी तक सभी एजेंसियों के सर्वे का औसत निकालने पर हम पाते हैं कि अपने-अपने गठबंधन के साथ भी न तो भाजपा और न ही कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में है। इस बार एनडीए को 234 तो यूपीए को 112 सीटें मिलती नजर आ रही हैं जबकि अन्य को 197।
भाजपा को 205...तो कांग्रेस को 95 ही लोकसभा के चुनाव परिणाम आने में अभी एक माह का समय बाकी है। ऐसे में मतदाताओं का मूड कब किस ओर पलट जाएगा,यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन अभी तक हुए सभी सर्वे का औसत निकाला जाए तो भाजपा को 205 और कांग्रेस को 95 सीटें मिलने की संभावना है। सर्वे में तृणमूल को 26 और वामदलों को 21 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। सर्वे में कहा गया है कि जयललिता की अन्नाद्रमुक 24 सीटों पर कब्जा कर सकती है। इसी तरह सपा 15,बसपा 16,बीजेडी 15,जदयू 5 और वाईएसआर को 13 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। लोकसभा चुनाव की तारिखों के ऐलान के बाद ताजा चुनावी सर्वे में साफ हो देश में भजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर है। चुनावी सर्वे में एनडीए की लहर साफ दिखाई दे रही हैं, पर सर्वेक्षण के अनुसार मोदी की लोकप्रियता घटी है। सर्वे में एनडीए बहुमत के आंकड़े के करीब पहुंचा दिखाया गया है। हलांकि ये बात भी साफ तौर पर बताई गई है कि भाजपा अकेले दम पर सरकार नहीं बना सकती है। सरकार बनाने के लिए एनडीए को क्षेत्रीय दलों की जरूरत पड़ेगी। दूसरी तरफ यूपीए 100 सीटों के आसपास ही सिमटती दिखाई दे रही हैं। अब तक सत्ता पर बैठी कांग्रेस को 100 सीटों का भारी नुकसान हो सकता है। 17 से 23 फरवरी के बीच देश के कुल छह राज्यों में सर्वे किया गया। कुल 138 लोकसभा क्षेत्र, 148 विधानसभा क्षेत्र और 512 पोलिंग स्टेशन में कुल 9104 लोगों से बातचीत की गई। सर्वे के नतीजों के मुताबिक भाजपा और साथियों को 212 से 232 सीट मिलने की उम्मीद है, जबकि यूपीए गठभंधन को 119 से 139 सीट मिलने के आसार हैं। आम आदमी पार्टी को भी 1 से 5 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं 20 से 28 सीट जीत कर टीएमसी सबसे बड़ा क्षेत्रीय दल बन सकता है। अभी के सर्वे के मुताबिक किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि एनडीए सरकार बनाने के सबसे करीब होगी। भाजपा ने लगभग दो वर्ष पूर्व से 272 प्लस पर कार्य प्रारंभ कर दिया था। जब तक कांग्रेस या उसके सहयोगी समझ पाते भाजपा काफी निकल चुकी थी। भारतीय राजनीति के जानकारों के अनुसार राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी की जिस दमदारी से धमाकेदार इंट्री हुई है उससे भाजपा का ग्राफ एकाएक बढ़ा है। मोदी की लोकप्रियता से एक बार फिर से भाजपा को केंद्र में सरकार बनाने की आस जगी है। इतिहास की ओर नजर डालें तो देश की लगभग तीन सैकड़ा के करीब लोकसभा की ऐसी सीटें हैं जिन पर भाजपा अपनी जीत का परचम कभी न कभी लहरा चुकी है। जाहिर सी बात है कि वहां पार्टी का जनाधार तो है और ऐसी सीटों को लक्ष्य मानकर उसने अपना कार्य प्रारंभ कर दिया है। सरकार बनाने के लिए 272 का आंकड़ा पाने के लिए नरेंद्र मोदी ने समस्त वर्गों तक पहुंचने के लिए 200 दिनों का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वे लगातार सभाएं कर रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर की माने तो भाजपा का लक्ष्य अकेले 272 से अधिक सीटें हासिल करने का है।
मोदी बने प्रधान मंत्री में पहली पसंद प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को देखने वालों की संख्या सबसे ज्यादा बतलाए जाते हैं। अगर सीधा चुनाव हो जाए तो मोदी को सर्वाधिक मत होंगे। 18 प्रदेशों में कराए गए नेशनल ट्रैकर सर्वे में प्रधानमंत्री के रूप में भी नरेंद्र मोदी लोगों की पहली पसंद हैं। आंकडों के अनुसार नरेंद्र मोदी 34 प्रतिशत जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी 15 प्रतिशत, सोनिया गांधी 5 प्रतिशत लोगों की पसंद हैं। उक्त सर्वे में भाजपा का गढ़ माने जाने वाले गुजरात में 26 में से 20 से 25 सीटें मिल रही हैं, कांग्रेस को 1 से 4 सीटें, जबकि अन्य के खाते में 2 सीटें जा सकती हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा को 23 से 27 सीटें और कांग्रेस को 2 से 5 सीटें मिल रही हैं। महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगियों को 25 से 33 सीटें मिल रही हैं, जबकि कांग्रेस को 12 से 20 सीटें और अन्य को 1 से 5 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है।
अब मोदी लहर और भाजपा लहर के बीच छिड़ी रार चुनावी जंग दिलचस्प मोड़ पर। लोकसभा चुनाव की जंग दिन प्रतिदिन दिलचस्प होती जा रही है। कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दलों के बीच छिड़ी लड़ाई अब पार्टी के अंदर की लड़ाई में केंद्रित होती जा रही है। सरकार किसकी बनेगी अभी किसी को नहीं पता पर भाजपा में सत्ता के लिए जंग ठन गई है। भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर आगे किया तो चहुंओर मोदी लहर की चर्चा होने लगी। लेकिन जैसे ही चर्चा परवान पर चढ़ी भाजपा के अंदर से ही मोदी लहर की काट की आवाज आनी शुरू हो गई। पार्टी के वरिष्ठ नेता अब मोदी लहर की जगह भाजपा लहर की बात कहने लगे है। भाजपा में पहले तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर खींचतान मची। संघ के हस्तक्षेप के बाद जब मामला ठंढा हुआ तो मोदी को इसका दावेदार घोषित किया गया। हालांकि दबे स्वरों में मोदी का विरोध होता रहा। फिर भी मन मारकर मोदी के विरोध करने वाले नेता सत्ता में आने की प्रतीक्षा करने लगे। चार चरणों के चुनाव समाप्त होने के बाद कांग्रेस को बुरी तरह से पिछड़ता देख भाजपा में सत्ता की आस तेज पकड़ ली है। सत्ता की संभावना को देख पार्टी में फिर से जूतमपैजार आरंभ हो गई हैं। बनारस से उम्मीदवारी का दावा छोड़ कानपुर से चुनाव लड़ रहे मुरली मनोहर जोशी ने मौका देख चैका जड़ दिया है। जोशी ने कह दिया कि मोदी लहर नहीं बल्कि भाजपा की लहर चल रही है। मोदी इस लहर का ही एक भाग है। भाजपा की लहर की वजह से ही पार्टी की चर्चा चहुंओर हो रही हैं और उम्मीदवारों को इसका फायदा मिल रहा है। जोशी इतना पर ही नहीं रूके, उन्होंने गुजरात मॉडल को भी नकार दिया। उन्होंने कहा कि एनडीए मॉडल ही सर्वोपरि है।
बेटिंग मशीन एनडीए के फेवर में! सट्टेबाजों की मानें तो इस बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने जा रही है। जिस तरह की बेटिंग वे कर रहे हैं, उसके मुताबिक एनडीए को 230 के आसपास सीटें मिल सकती हैं। ज्यादातर चुनाव सर्वेक्षणों में भी एनडीए की संभावित सीटों की ऊपरी लिमिट इसी के करीब है। बुकीज के मुताबिक, दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल इस खेल में शाहिद अफरीदी सरीखे दिख रहे हैं यानी ऐसा प्लेयर जो हारी हुई बाजी को पलटने का दम रखता हो। केजरीवाल के पीएम बनने की संभावना पर अगर कोई 1 लाख रुपए का दांव लगाए और ऐसा हो जाए तो उसे 1 करोड़ रुपए मिलेंगे। वहीं, सांसद और पीएम बनने के मामले में मोदी बुकीज के फेवरिट दिख रहे हैं। उनके पीएम बनने पर एक लाख रुपए के दांव का रिटर्न 25,000 रुपए मिलेगा।
मप्र में भाजपा का झंडा बुलंद लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में भाजपा का झंडा बुलंद रहने की संभावना है। प्रदेश में शिवराज सरकार की हैट्रिक ने इस झंडे को ऊंचा रखा। सर्वेक्षण में पता चला है कि मध्यप्रदेश में भाजपा को 51 फीसदी वोट (7 फीसदी का फायदा), कांग्रेस को 34 (8 फीसदी का नुकसान) फीसदी वोट और बसपा को 5 फीसदी (1 फीसदी का नुकसान) वोट मिलेंगे। सर्वेक्षण में आश्चर्यजनक रूप से शिवराज सिंह चौहान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से कहीं ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। चौहान को 76 फीसदी लोगों में लोकप्रिय नेता है जबकि मोदी 24 फीसदी लोगों की पसंद है। हंसा रिसर्च ग्रुप के सर्वे में पाया गया है कि मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 24 सीटें भाजपा को मिलने जा रही है जबकि कांग्रेस को 4 और बहुजन समाज पार्टी को 1 सीट मिलेगी। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटों के लिए किए गए सर्वेक्षण में 9 सीटों पर भाजपा और 2 सीटों पर कांग्रेस के काबिज होने की बात कही जा रही है।
क्या रहा था 2009 का चुनावी परिणाम- कुल सीटें 543 पार्टी का नाम लोकसभा में सीटें कांग्रेस 206 भाजपा 116 सपा 23 बसपा 21 तृणमूल 19 द्रमुक 18 जद (यू) 20 माकपा 16 बीजद 13 शिवसेना 11 अन्नाद्रमुक 9 एनसीपी 9 अकाली 4 अन्य 58 ......... 2009 में गठबंधन की स्थिति- गठबंधन सीटें यूपीए 262 एनडीए 160 अन्य 121 ............... विभिन्न सर्वे में 2014 में पार्टियों की स्थिति टाइम्स नॉउ और सी-वोटर अप्रैल 2013 जुलाई 2013 फरवरी 2014 एनडीए 184 156 227 यूपीए 113 136 101 अन्य 89 251 215 भाजपा 141 131 202 कांग्रेस 113 119 89 एसपी 35 33 20 बीएसपी 26 28 21 टीएमसी 27 22 24 ्रएआईडीएमके 27 29 27 लेफ्ट फ्रंट 26 33 23 बीजेडी 13 12 12 वाईएसआर कांग्रेस 12 14 13 ...... सीएनएन-आईबीएन-लोकनीति-सीएसयूएस जुलाई 2013 फरवरी 2013 मार्च 2014 एनडीए 172-180 212-232 234-246 यूपीए 149-157 119-139 111-123 अन्य 147-155 192-212 बीजेपी 156-164 193-213 206-218 कांग्रेस 131-139 94-110 94-106 एसपी 17-21 11-17 11-17 बीएसपी 15-19 8-14 10-16 टीएमसी 23-27 20-28 23-29 ्रएआईडीएमके 16-20 16-20 15-21 लेफ्ट फ्रंट 22-28 1-23 14-20 बीजेडी 12-15 10-16 10-16 वाईएसआर कांग्रेस 11-15 11-17 9-15 ................. एबीपी न्यूज-निलसन पोल जनवरी 2014 फरवरी 2014 मार्च 2014 एनडीए 226 236 233 यूपीए 101 92 119 अन्य 216 215 191 बीजेपी 210 217 209 कांग्रेस 81 73 91 एसपी - 14 12 बीएसपी - 13 17 टीएमसी - 29 28 ्रएआईडीएमके - 19 21 लेफ्ट - 29 15 बीजेडी - 16 17 वाईएसआर कांग्रेस - 17 - ......... एनडीटीवी फोर कास्ट जनवरी 2014 मार्च 2014 एनडीए 229 239 यूपीए 129 123 अन्य 185 161 बीजेपी 195 214 कांग्रेस 105 104 एसपी - 13 13 बीएसपी - 16 07 टीएमसी - 32 28 ्रएआईडीएमके - 27 25 लेफ्ट - 29 22 बीजेडी - 17 18 वाईएसआर कांग्रेस - 19 10 .............. इंडिया टुडे - जनवरी 2014 एनडीए 212 यूपीए 103 अन्य 228 बीजेपी 188 कांग्रेस 91 एसपी 20 बीएसपी 25 टीएमसी 23 ्रएआईएडीएमके 29 लेफ्ट फ्रंट 27 बीजेडी 13

543 सीटों पर खर्च होगी 70 अरब की ब्लैक मनी!

मप्र की 10 सीटों पर कालाधन तो 11 पर बंदूक के बल पर होगा मतदान
रोजाना जब्त हो रहा है 6 करोड़ का कालाधन
29 दलों से जुड़े 2200 नेताओं के खातों की हो रही पड़ताल
भोपाल। लोकसभा चुनाव में ब्लैक मनी की रोकथाम में लगी फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट ( चुनाव आयोग के निर्देश पर ये फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट-एफआईयू-बनी है) की माने तो इस बार देश की 543 सीटों पर करीब 70 अरब रुपए का कालाधन इस्तेमाल होने वाला है। जहां देश में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 20 अरब तो मप्र में आयोग की तमाम सख्ती के बावजूद चुनाव में 240 करोड़ रुपए का कालाधन इस्तेमाल किए जाने की आशंका जताई गई है। एफआईयू के अनुसार,यह सारी रकम केवल प्रचार-प्रसार पर ही खर्च नहीं होगी बल्कि इनका इस्तेमाल प्रोपर्टी खरीदने में भी हो रहा है। उधर,मप्र की 10 सीटों पर जहां कालेधन से तो 11 सीटों पर बाहुबल से मतदान कराए जाने की आशंका व्यक्त की गई है। इसको देखते हुए जांच एजेंसियों से लेकर सुरक्षा एजेंसियों ने देशभर में अपना जाल बिछाया हुआ है और रोजाना करीब 6 करोड़ की ब्लैकमनी जब्त की जा रही है।
पिछले छह महीने के ट्रांजेक्शन का लेखाजोखा तैयार
चुनाव आयोग के निर्देश पर फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट यानि एफआईयू ने नेताओं के पिछले छह महीने के ट्रांजेक्शन का लेखा जोखा निकाल लिया है, जिसका आकलन करने के बाद कालेधन के इस्तेमाल की आशंका जताई गई है। एफआईयू ने पिछले साल सितंबर से फरवरी के दौरान बैंक खातों की लेन देन की सघन जांच की है। सूत्रों के मुताबिक जिन खातों की जांच की गई उनमें से अधिकतर विभिन्न दलों से जुड़े नेताओं के थे। इस जांच में कई हैरान कर देने वाली जानकारी मिली। एफआईयू की जांच में पता चला कि सितंबर 2013 से फरवरी 2014 तक मप्र में बड़ी संख्या में वाहन और संपत्ति की खरीद फरोख्त हुई। आमतौर पर प्रदेश में बैंकों से हर रोज 5 अरब की रकम निकाली जाती है और 4.50 अरब की रकम जमा की जाती है। लेकिन सितंबर 2013 से 28 फरवरी 2014 तक औसतन 7 अरब की रकम निकाली गई और 7.70 अरब रुपए की रकम जमा की गई। वहीं उतर प्रदेश में हर रोज 19 अरब निकाला जाता है और 10.50 अरब की रकम जमा की जाती है। लेकिन इस दौरान 24 अरब की रकम निकाली गई और 23.50 अरब रुपए की रकम जमा की गई। इसके बाद बैंको का कारोबार अचानक स्थिर हो गया। जब जांच हुई तो पता चला कि देश में 84.12 लाख लोगों के एक से अधिक खाते हैं। बैंकों के कारोबार में आए अचानक बदलाव के बारे में एफआईयू ने गहनता से जांच शुरू कर दी। ऐसे खातेदारों के नाम निकाले जाने लगे तो एक और हैरान कर देने वाली जानकारी सामने थी। जांच के दौरान 29 दलों से जुड़े करीब 2200 नेताओं के खातों से किए गए लेन देन संदेह पैदा कर रहे हैं। वजह ये कि इन खास खातों में सितंबर से फरवरी के बीच हुई लेन देन की जानकारी आयकर रिटर्न में नहीं दी गई थी। कई मामलों में तो खातों की ही जानकारी आयकर रिटर्न से गायब थी। एफआईयू के लिए ये चौंकाने वाली जानकारी थी जिसके बाद उसने अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग को दी। आयोग ने इस संबंध में आरबीआई को पत्र लिख कर ऐसे खातों के बारे में जानकारी मांगी है। संदिग्ध लोगों को जल्द ही आयकर का नोटिस भी मिल सकता है। रोजाना जब्त हो रहा है 6 करोड़ चुनाव आयोग के तलाशी दस्ते हर रोज तकरीबन 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का कालाधन जब्त कर रहे हैं। आयोग की तमाम सख्ती के बावजूद चुनाव में कालाधन इस्तेमाल किए जाने की आशंका जताई गई है। आयोग के आंकड़े के मुताबिक चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद से 25 मार्च तक तकरीबन 120 करोड़ रुपए जब्त किए गए हैं जिनका कोई हिसाब किताब नहीं मिला है। जांच एजेंसियों के मुताबिक शेयर बाजार के जरिए भारी मात्रा में चुनावों मे इस्तेमाल करने के लिए कालाधन भारत आ चुका है। इस साल अब तक भारत में 15,000 करोड़ रुपए तक कालाधन आया है। वहीं चुनाव खत्म होने तक 45,000 से 55,000 करोड़ रुपए तक का कालाधन भारत में आने की आशंका है। विदेशों से आ रहा यह कालाधन एफआईआई के पार्टिसिपेटरी नोट्स के जरिए भारत में लाया गया है। मप्र में पकड़ाया 15 करोड़ का कालाधन आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक मप्र में करीब 15 करोड़ रुपए की सामग्री और नकदी बरामद हो चुकी है। जिसमें विदेशी मुद्रा भी है। भोपाल के राजा भोज विमानतल पर तैनात आयकर इंटेलीजेंस यूनिट ने 6 अपै्रल को एयर कार्गो के जरिए आ रही 1 करोड़ 40 लाख रुपए मूल्य की विदेशी मुद्रा पकड़ी है। यह करेंसी इस व्यवसाय से जुड़े एक कारोबारी की बताई गई है जो कि एयर कार्गो के जरिए दिल्ली से भोपाल लाई गई थी। आयकर विभाग ने मामले की पड़ताल शुरू कर दी है मुद्रा कारोबारी का नाम अभी उजागर नहीं किया गया है। इसके अलावा एयर कार्गों से आ रहा 80 तोला सोना भी बरामद किया है। यह सोना बंगलुरु से दिल्ली के रास्ते भोपाल पहुंचाया गया है। 60,000 करोड़ रुपए के नकली नोट चुनाव में नकली नोटों का इस्तेमाल रोकने के लिए नेशनल इंवेस्टिगेटिव एजेंसी (एनआईए) ने अपनी निगरानी बढ़ा दी है। एनआईए के ताजा आंकड़ों के अनुसार, करीब 60,000 करोड़ रुपए के नकली नोट भारत आ चुके हैं। चुनाव में बड़े पैमाने पर नकली नोट का इस्तेमाल होने की आशंका है। वहीं पकड़े जाने के डर से 500 और 1000 के नकली नोट की आवक कम हो रही है, लेकिन 10, 20 और 50 के नकली नोट बाजार में लाए गए हैं। चुनाव पर खर्च होंगे 50 हजार करोड़ फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट शोध संस्था सीएमएस के अनुसार चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है। इस बार के लोकसभा चुनाव भी इससे अलग नहीं दिख रहे। इस बार चुनाव के दौरान होने वाले अनुमानित 50 हजार करोड़ रुपए खर्च की एक तिहाई से अधिक की राशि काला धन हो सकता है। 50 हजार करोड़ रुपए की यह राशि भारत में किसी भी चुनाव में सर्वाधिक है। शोध संस्था सीएमएस के अध्ययन के अनुसार विभिन्न राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों द्वारा लोकसभा चुनाव में 15 से 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान है। उम्मीदवार निजी रूप से 10 हजार से 15 हजार करोड़ रुपए खर्च कर सकते हैं। इन आंकड़ों में आधिकारिक और बिना लेखा के होने वाला खर्च शामिल है। अगर फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट और सीएमएस के आंकड़ों को मिलाएं तो करीब 69.50 अरब रूपए प्रोपर्टी और अन्य संसाधन खरीदने पर खर्च किए जाएंगे। इनमें से अधिकांश वह रकम होगी,जो विदेशों से भारत लाई जा रही है। प्रति मतदाता खर्च होंगे 400 रुपए सीएमएस के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने कहा कि चुनाव में खर्च होने वाली राशि में से करीब एक तिहाई काला धन है। इनमें से बड़ी राशि 'नोट के बदले वोटÓ में इस्तेमाल की जा सकती है। लोकसभा चुनाव में इस बार करीब 81.4 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 30 हजार करोड़ रुपए की राशि को खर्च करने पर यह प्रति मतदाता 400 रुपए आता है। अध्ययन में कहा गया है कि इसमें मीडिया अभियान का खर्च करीब 25 प्रतिशत है। सख्ती के बावजूद नहीं कर रहे परहेज चुनाव आयोग की सख्ती के बावजूद उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में कालेधन का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। हाल यह है कि चुनाव की घोषणा होने के बाद पहले बीस दिन में ही चुनाव आयोग ने रोजाना छह करोड़ रुपए से अधिक की राशि जब्त की है। आयकर विभाग ने कसी कमर लोकसभा चुनाव में कालेधन की आवाजाही रोकने आयकर विभाग ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में व्यापक स्तर पर तैयारी की है। दोनों राज्यों के प्रमुख नगरों और सीमावर्ती जिलों में अफसरों की टीम तैनात की गई है। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और रायपुर से हवाला कारोबारियों के अहम सुराग मिले हैं। इनमें इंदौर व रायपुर ज्यादा संवेदनशील माने गए हैं, यहां नकदी का सर्वाधिक फ्लो बताया गया है। बड़े लेन-देन की जानकारियां भी विभिन्न एजेंसियों के जरिए मंगाई जा रही है। हवाला करोबारी हैं निशाने पर चुनाव के मद्देनजर आयकर विभाग ने विभिन्न जांच एजेंसियों की मदद से हवाला कारोबारियों को निशाने पर लिया है। हाल ही में अफसरों की टीम ने ग्वालियर और छत्तीसगढ़ में दो-तीन ऐसे मामलों का खुलासा किया है जो हवाला कारोबार से संबद्ध बताए जा रहे हैं। दोनों ही राज्यों की कुल 40 लोकसभा सीटों पर विभाग की टीमें उम्मीदवारों द्वारा किए जा रहे खर्च का ब्यौरा एकत्र करने के साथ ही कालेधन की आवाजाही पर भी नजर रखे हुए है। जुटाई जा रही जानकारियां विभाग ने खर्च के लिहाज से ऐसी सीटें भी चिह्नित की हैं जहां पैसा पानी की तरह बहने की संभावना है इसलिए हवाला कारोबारियों के बारे में जानकारियां जुटाई जा रही हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि चुनाव के दौरान बड़ी मात्रा में कालाधन यहां से वहां भेजा जाता है। यह पैसा प्राय: हवाला कारोबारी ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते हैं। इसमें पैसे को यहां से वहां नहीं ले जाया जाता बल्कि हवाला कारोबारी अपने संपर्क के जरिए कमीशन लेकर देश के किसी भी कोने में पैसा भेज देते हैं। मप्र में 240 करोड़ का खेल मप्र में वैसे तो हर सीट पर ब्लैकमनी लगाई जा रही है,जो करीब 240 करोड़ हो सकती है। लेकिन चुनाव आयोग ने 29 में से 10 सीटों पर कालेधन के सर्वाधिक इस्तेमाल की आशंका जताई है। प्रदेश में इंदौर,गुना,सागर,खजुराहो,सतना,जबलपुर,छिंदवाड़ा,विदिशा,मंदसौर और रतलाम संसदीय सीट पर सर्वाधिक ब्लैकमनी लगाई जाएगी। इसमें इन क्षेत्रों के व्यापारी,उद्योगपति,माफिया नेताओं का सहयोग कर रहे हैं। वहीं 11 सीटों पर बाहुबल से चुनाव प्रभावित किए जाने की खबर है। प्रदेश में बालाघाट के साथ भिंड, मुरैना और ग्वालियर सीटों को चुनाव आयोग ने कानून व्यवस्था के नजरिए से अति संवेदनशील माना है, लेकिन पुलिस प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में 11 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर बाहुबलियों, नक्सलियों और डकैतों का प्रभाव है। इनमें से अधिकांश सीटें उत्तरप्रदेश की सीमा से लगी हुई हैं, जहां उत्तरप्रदेश से होने वाली घुसपैठ के कारण बाहुबल से चुनाव लडऩे की परंपरा बन गई है।उत्तरप्रदेश और मप्र के सीमावर्ती जिलों में लोगों की आपस में रिश्तेदारियां हैं। ऐसे में चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की मदद के लिए लोगों की आवाजाही होती है। इस कारण सीधी, सतना, रीवा, टीकमगढ़, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, शहडोल में उत्तरप्रदेश के बाहुबल और डकैतों का असर पड़ता है। वहीं मंडला, बालाघाट में नक्सलियों का और इंदौर में स्थानीय बाहुबलियों का प्रभाव दिखाई देता है। अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव के अनुसार, मप्र के लिए उप्र संवेदनशील तो है। इसी के चलते कलेक्टरों को बॉर्डर सील करने के लिए कहा गया है। साथ ही विशेष चौकसी बरतने के भी निर्देश दिए गए हैं। चुनाव आयोग के लिए उत्तरप्रदेश की सीमा से सटी मप्र की लोकसभा सीटों पर बाहुबलियों से निपटना सिरदर्द बन गया है। इसकी वजह दोनों राज्यों में चुनाव की तारीखें अलग-अलग होना हैं। ऐसे में आशंका बनी हुई है कि यूपी से बाहुबली घुसपैठ कर प्रदेश में चुनाव प्रभावित कर सकते हैं। प्रदेश की 11 संसदीय सीटों पर 10 और 17 अप्रैल को मतदान होना है, वहीं प्रदेश से लगी यूपी की लोकसभा सीटों पर 24 और 30 अप्रैल को चुनाव हैं। इन हालात में प्रदेश के पहले और दूसरे चरण में होने वाले मतदान में बाहुबलियों की घुसपैठ की आशंका बनी हुई है। वहीं मंदसौर लोकसभा सीट पर धन-बल के उपयोग की आशंका है। 20 कंपनियां करेंगी नक्सलियों से सुरक्षा लोकसभा चुनाव से पूर्व जिले में 20 सशस्त्र सुरक्षा कंपनी ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र के जंगलों में सर्चिंग शुरू कर दी है। सीआरपीएफ, हार्क फोर्स, बीएसएफ, सीआईएसएफ सहित अन्य सुरक्षा कंपनी जंगल के चप्पे-चप्पे की खाक छानने में लगेंगी। बालाघाट के एसपी गौरव तिवारी के अनुसार वर्तमान समय में भी सर्चिंग आपरेशन चलाए जा रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में यह रूटीन वर्क की तरह होता है। छग-महाराष्ट्र की सीमा सील लोकसभा चुनाव की तैयारी के तहत पड़ोसी राज्य छत्तीगसढ़ और महाराष्ट्र की सीमा को सील कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ की सीमा जिले के लंाजी, बैहर, बिरसा तहसील से लगी हुई है। पूर्व से ही मध्य प्रदेश को शरर्णीथली मनाने वाले नक्सली छग में चले सर्चिंग अभियान के दौरान नक्सलियों की भारी खेप जिले के सीमा के भीतर प्रवेश कर सकती है। ऐसे में चुनाव की तारीख नजदीक आने से पूर्व आपरेशन सर्चिग चलाए जाना शांति पूर्ण चुनाव करवाने की दुष्टि से बहुत अधिक महत्पूर्ण माना जा रहा है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में नक्सली गतिविधि और बालाघाट के सीमावर्ती होने और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए एसपी गौरव तिवारी ने पहले ही 50 कम्पनी (5 हजार जवान) और 2 हैलीकाप्टर की मांग चुनाव आयोग से की थी। इसी के तहत अब तक 20 कपंनी उपलब्ध हो चुकी हंै। चुनाव से 20 दिन पहले सुरक्षा की दृष्टि से इसे बेहतर माना जा रहा है। नक्सलियों से बूथ केप्चरिंग का खतरा लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान नक्सली समूह सीमावर्ती इलाकों के मतदान केंद्रों पर बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं। इसके लिए नए समूह बनाए जा रहे हैं जबकि बड़ी मात्रा में असलहा भी जुटाया जा चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ये सूचना मध्यप्रदेश शासन पुलिस मुख्यालय को भेजते हुए एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं।केंद्रीय खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा राज्य सरकारों से कहा गया है कि आम चुनाव के दौरान प्रभावित इलाकों में कई चरणों में सुरक्षा पुख्ता की जाए। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने अंदेशा जताया है कि चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने के लिए नक्सलियों ने बड़ी संख्या में असलहा जुटाया है और सघन जंगली इलाकों में ट्रेनिंग केंप चलाए जा रहे हैं। नक्सलियों का ऐसा ही एक केंप बालाघाट पुलिस ने हाल ही में ध्वस्त किया था। इस दौरान पुलिस ने बड़ी मात्रा में नक्सलियों का असलहा और बारूदी सुरंग बिछाने का सामान बरामद किया था। रीवा,सतना और चंबल में सक्रिस हुए डकैत मप्र के दस्यु प्रभावित क्षेत्रों के जंगलों में डकैतों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सुगबुगाहट का अंदाजा रीवा,सतना और चंबल क्षेत्र में डकैतों द्वारा कुछ दिनों से की जा रही घटनाओं से लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश से लगी सीमा मानिकपुर व मझगवां के बीच रह-रहकर बलखडिय़ा गिरोह की मूवमेंट न केवल देखने को मिल रही है बल्कि उनके द्वारा दहशत फैलाने की नीयत से विगत एक महीने के अंदर तीन से अधिक वारदात को अंजाम भी दिया जा चुका है। चुनाव में जहां वैलेट को सजातीय नेताओं के पक्ष में लाने के लिए बुलेट का इस्तेमाल गिरोह द्वारा किया जा सकता है। पुलिस एम्बुस लगाकर जंगल सर्चिंग करने की बात करती है। सर्चिंग सिवाय सड़कों के अलाव कहीं भी होती नहीं दिखाई देती है। तराई अंचल के 29 फीसदी मतों बुलट का साया पड़ता है। स्वदेश सिंह बलखडिय़ा पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 लाख एवं मप्र सरकार ने 1 लाख का दांव लगाया है। कहने के लिए तो उत्तर प्रदेश की एसटीएफ टीम उक्त डकैत के इनकाउण्टर के लिए मोर्चा सम्हाल रखी है। उधर,रीवा रेंज के आईजी पवन श्रीवास्तव कहते हैं कि डकैत चुनाव को प्रभावित न करें इसके लिए दिशा-निर्देश दिए जा चुके हैं। सर्चिंग जारी है और लगातार तराई अंचल पर नजर बनी हुई है। मुखबिरों को और टटस करने का काम किया जा रहा है। अगर सटीक सूचना हाथ लगी तो इनकाउंटर से भी इंकार नहीं किया जा सकता। उधर,सदियों तक डकैतों के गढ़ रहे चंबल के बीहड़ों में चुनाव भी बस एक मौसम की मानिंद है। भिंड-मुरैना के बदनाम बीहड़ों में एक बार फिर डकैत सक्रिय हो गए हैं। हालांकि इन इलाकों में प्रशासन ऐसा मानता है डकैतों का वजूद अब नहीं है,लेकिन चंबल में बंदूकें अब भी गूंजती है। चुनाव आते ही छोटे-छोटे गिरोह सक्रिय हो जाते हैं और अपने सरपरस्त नेता को जिताने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। इन तमाम विषम परिस्थियों के बीच चुनाव आयोग निष्पक्ष और विवादरहित चुनाव संपन्न कराने के लिए रात-दिन तैयारी कर रहा है। ----------------

कसौटी पर मोदी-शिवराज फैक्टर

मप्र के चुनावी घमासान में कई दिग्गजों का राजनीतिक कैरियर दाव पर
भोपाल। मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटों पर तीन चरण में मतदान हो चुका है और सभी 378 प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम में बंद हो गया है। प्रदेश में सभी सीटों को जीतने का मिशन तथा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लेकर भाजपा ने युद्ध की तरह यह चुनाव लड़ा है। यह चुनाव भाजपा के लिए कितनी अहमियत रखता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 28 दिनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां धुंआधार 159 सभाएं की। वहीं मोदी ने करीब 14 संभाएं की। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि चुनाव पूरी तरह मोदी-शिवराज के इर्दगिर्द के घूमता नजर आया। इसलिए इस बार मोदी-शिवराज फैक्टर कसौटी पर है और अब सभी को मतगणना का यानी 16 मई का इंतजार है। संभवत: देश में यह पहला लोकसभा चुनाव है,जो आम जनता के सरोकारों से दूर पार्टी तथा नेताओं की चाल,चेहरा और चरित्र को केंद्रित कर लड़ा जा रहा है। भाजपा जहां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी,उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनके परिवार के चरित्र पर कीचड़ उछाल कर वाह-वाही लूटने में लगी हुई है,वहीं कांग्रेस भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के चेहरे और चरित्र पर प्रहार कर रही है। मप्र की 29 लोकसभा सीटों पर भी जितनी संभाएं हुई वहां भी यही नजारा दिखा। लेकिन इसके साथ ही मोदी के गुजरात और शिवराज के मप्र में कराए गए विकास कार्यो में देश के विकास की तस्वीर दिखाई गई। इसलिए लोकसभा चुनावों में भाजपा को गुजरात के बाद सबसे ज्यादा उम्मीद मध्य प्रदेश से है। नतीजों के मामले में मध्यप्रदेश गुजरात से आगे निकल सकता है। यहां मोदी लहर से ज्यादा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रभाव है। शिवराज सिंह चौहान की तीन जीतों के बाद भाजपा का गढ़ बन चुके मध्यप्रदेश में उनका जादू बरकरार है और यही कारण है कि यहां उत्तर प्रदेश के बाद पार्टी को सबसे ज्यादा सीटों की उम्मीद है। देश की 543 लोकसभा सीटों में 29 मध्यप्रदेश में हैं। जिनमें से 9 सीट आरक्षित है, जबकि 20 सामान्य। आरक्षित सीटों में अनुसूचित जाति के लिए 4 और अनुसूचित जनजाति के लिए 5 है। पिछली लोकसभा में प्रदेश में भाजपा को 16, कांग्रेस को 12 और बसपा का 1 सीट मिली थी। 16 वीं लोकसभा की सूची बहुत बदली हुई होगी। प्रदेश में भले ही मोदी और शिवराज फैक्टर हावी दिख रहा है,लेकिन भाजपा द्वारा सक्रिय और दमदार नेताओं को दरकिनार कर जिस तरह कुछ अंजान और बाहरी चेहरों को टिकट दिया गया उससे पार्टी में असंतोष दिखा। टिकट से वंचित नेता और उनके समर्थकों ने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ अंदरूनी तौर पर खुब काम किया है। इसी तरह कांग्रेस में भी काम हुआ है।
कांग्रेस को लगे कई झटके 29 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अंदरूनी कलह और गुटबाजी के चलते पूरे चुनाव के दौरान कमजोर नजर आई। हालांकि कांग्रेस कड़े मुकाबले का दावा जरूर कर रही है, लेकिन उसके नेता और कार्यकर्ता मनौवैज्ञानिक दबाव में हैं। विधानसभा की करारी हार से उनके लिए उबर पाना इतना आसान नहीं है। कांग्रेस के कई दिग्गज भाजपा के पाले में आ चुके हैं। कांग्रेसी नेताओं के पाला बदलने का जो सिलसिला विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष चैधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी से शुरू हुआ था वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। विधानसभा चुनाव के दिनों में ही होशंगाबाद के कांग्रेसी सांसद राव उदय प्रताप ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। वे होशंगाबाद से भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने पूर्व प्रशासनिक अधिकारी डा. भागीरथ प्रसाद को भिंड से टिकट दिया। वे पिछले चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार थे। लेकिन इस बार टिकट मिलने के एक दिन बाद ही वे भाजपा के सदस्य बन गये और आज वे भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस का नेतृत्व राजनीतिक सदमे से उबर पाता इसके पहले ही उसके दो और विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस में अविश्वास, परस्पर शंका और संदेह का माहौल है। कांग्रेस के दिग्गज हैरान हैं, परेशान हैं। कांग्रेस का कौन नेता पिछले दरवाजे से, कौन सामने के दरवाजे से और कौन खिड़की से भाजपा के दर पर चला जाएगा अनुमान लगाना कठिन है।
दिग्गजों का भविष्य दाव पर मध्यप्रदेश में 29 सीटों के लिए तीन चरणों में मतदान हुआ। बालाघाट, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, जबलपुर, मंडला, रीवा, सतना, शहडोल और सीधी में 10 अप्रैल को तो 17 अप्रैल को भिंड, भोपाल, दमोह, गुना, ग्वालियर, खजुराहो, मुरैना, राजगढ़, सागर और टीकमगढ़ में तथा 24 अप्रैल को वहीं बैतूल, देवास, धार, इंदौर, खंडवा, खरगोन और मंदसौर, रतलाम, उज्जैन, और विदिशा में मतदान हुआ। लेकिन बिना मुद्दे और आपसी कलह के बीच हुए इस चुनाव में कई दिग्गजों का भविष्य दाव पर है। मतदाताओं की चुप्पी अंत तक रही। इसलिए इस बार कोई भी नेता अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है। अगर राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सीटों की बात की जाय तो प्रथम चरण में होने वाले मतदान में जहां छिंदवाड़ा में कांग्रेस के दिग्गज केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के भविष्य का फैसला होना है, वहीं दूसरे चरण में दमोह से भाजपा के उम्मीदवार और पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, ग्वालियर में मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और गुना से केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर है। तीसरे चरण में हुए मतदान में इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन, खंडवा से मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरूण यादव, रतलाम से मध्यप्रदेश के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और विदिशा से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का राजनीतिक भविष्य दाव पर है। बहरहाल, चाहे चुनावी सर्वेक्षणों के आधार पर आंकलन करें या बीते चुनावी परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकालें, एक बात साफ है कि 16 मई को भाजपा लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगी। कांग्रेस दूसरे नंबर पर रहेगी। यही स्थिति मध्यप्रदेश में भी रहने वाला है। हालांकि भाजपा पर कमजोर उम्मीदवार देने का आरोप लग रहा है, लेकिन मतदान के वक्त मोदी लहर पर सवारी कर भाजपा 16 से अधिक सीटें जीतने कामयाब हो जाएगी यह भाजपा को भरोसा है। विधानसभा चुनाव में बसपा, सपा जैसे अन्य दलों को उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल पाई। राजनीतिक विश्लेषक आम आदमी पार्टी को कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे। आम आदमी पार्टी के उम्मदवारों में अधिकतर एनजीओ पृष्ठभूमि के ही हैं। मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी जितना भी वोट प्राप्त करेगी उससे कांग्रेस का ही नुकसान होने की संभावना है। टिकट तय करने में देरी। कुछके सांसदों को टिकट काटना और कुुछ सांसदों का क्षेत्र बदलना भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है। हालांकि इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खुलकर मैदान में होने का लाभ भाजपा को जरूर मिलेगा। संघ ने भले ही खुलकर किसी के पक्ष में प्रचार नहीं किया लेकिन अधिकतम मतदान के लिए चलाए गए अभियान का लाभ भी भाजपा उम्मीदवारों को ही मिलना है। स्थानीय भाजपा नेता मोदी फैक्टर के साथ ही शिवराज फैक्टर का भी हवाला दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा के अव्वल प्रदर्शन से भाजपा कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। विधानसभा चुनाव में प्राप्त मत और सीटों के आधार पर भाजपा 29 में से 20 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही है। कांग्रेस कोई बड़ी दावेदारी तो नहीं कर रही है, लेकिन उसके नेता यह मानकर चल रहे हैं कि लोकसभा में उनका प्रदर्शन विधानसभा से बेहतर होगा।
कांग्रेसी गुटबाजी भाजपा के लिए वरदान प्रदेश में कमजोर उम्मीदवारों को उतारकर बैकफूट पर आ गई भाजपा का रास्ता कांग्रेस के नेताओं ने ही आसान कर दिया। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नेताओं में आपसी तालमेल की भारी कमी रही। कार्यकत्र्ता और उम्मीदवार भी गुटों में विभाजित हैं जिसका बुरा असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ रहा है। कांग्रेसी गुटबाजी के अलावा केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा भी राज्य में पार्टी के लिए मददगार नहीं है। भिंड से कांग्रेस उम्मीदवार बनाये गए भागीरथ प्रसाद उम्मीदवारी की घोषणा के दूसरे ही दिन भाजपा में शामिल हो गए जिससे पार्टी को भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। इसके अलावा कई दूसरे नेता भी पार्टी छोड़ कर भाजपा या आप में शामिल हो रहे हैं। भाजपा की चुनौती के बावजूद छिंदवाड़ा से कमलनाथ और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता के चलते फिर से संसद पहुंच सकते हैं। मंदसौर से पार्टी की प्रत्याशी और राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन क्षेत्र में अपनी सक्रियता के बावजूद यूपीए सरकार की नाकामियों की शिकार बन सकती हैं।
आप और बसपा भी मैदान में आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में लाखों सदस्य बनाए हैं। इस पार्टी के प्रति लोगों में जिज्ञासा भी है, लेकिन पिछले दो महीने में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों के चलते यहां उसकी चुनावी संभावनाएं काफी धूमिल रही। पार्टी के सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल प्रचार के लिए नहीं आ पाए। इसके बावजूद कुछ जगहों पर आप की उपस्थिति कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही नुकसान पहुंचाएगी। बसपा राज्य में तीसरी ताकत के रूप में रही है। दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा ने लोकसभा में अपना खाता 1991 में मध्यप्रदेश की एक सामान्य सीट से ही खोला था। बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश की कुछ सीटों पर इस बार बसपा के उम्मीदवार अपना प्रभाव छोडऩे में कामयाब रहेंगे। दलित मतदाता पार्टी से तो प्रभावित हैं लेकिन बहुत असरदार प्रत्याशी के न होने से जीत की संभावना कम है।
अल्पसंख्यक मत बड़ा फैक्टर प्रदेश में कई सीटों पर अल्पसंख्यक मत भी परिणाम को प्रभावित करेंगे। इसमें मालवा निमाड़ की आठ सीट पर हार जीत का फैसला नए मतदाताओं व अल्पसंख्यक मतों के बीच से निकलता नजर आ रहा है। मतदान के बाद मोदी लहर, कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश और राहुल फैक्टर के बीच हार-जीत के समीकरण खंगाले जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव की तुलना में अल्पसंख्यकों का झुकाव इस बार भाजपा के प्रति कम दिखा पर इसकी पूर्ति नए मतदाताओं से होती दिख रही है। आप ने कांग्रेस व भाजपा दोनों के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई है। पहले दौर में कांग्रेस से आगे चल रही भाजपा बाद में अपने ही नेताओं के कारण पिछड़ गई। यहां संगठन का पूरा समय नेताओं के बीच तालमेल जमाने में निकल गया।
आखिर तक चुनाव रंगहीन हर बार की तरह इस चुनाव में भी मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच रहा। यहां चुनाव आखिर तक रंगहीन रहा। भाजपा उम्मीदवारों को संगठन के मजबूत नेटवर्क का फायदा मिला तो कांग्रेस प्रत्याशियों का पूरा चुनाव छिन्ना-भिन्न रहा। यहां का पूरा चुनाव मैनेजमेंट का रहा। जिसका मैनेजमेंट तगड़ा उसी की जीत मिलने की संभावना है। सभी पार्टियों ने चुनाव मैनेजमेंट पर ही जोर दिया और मीडिया के प्रभाव के चलते असल मुद्दों पर चर्चा कम ही हुई। स्थानीय मुद्दों से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित चुनाव के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों का मुद्दा छाया रहा। मार्च के पहले पखवाड़े में हुई बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने राज्य के किसानों पर जमकर कहर बरपाया। इससे रबी की तैयार फसल बर्बाद हो गई। किसानों के इस दर्द पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मरहम लगाने की रस्मी कोशिश की। प्रदेश में भूख और कुपोषण जैसे मुद्दों को जहां कांग्रेस ने उठाने की कोशिश की, वहीं यूपीए सरकार के घपलों-घोटालों को भाजपा अपना हथियार बनाया। वैसे भ्रष्टाचार के दाग प्रदेश में भाजपा की अपनी सरकार पर भी हैं। इसलिए दोनों प्रमुख पार्टियां ने नेतृत्व के मुद्दे पर ही जोर दिया। शहरी मतदाताओं के बीच नरेंद्र मोदी, अरविन्द केजरीवाल, राहुल गांधी और शिवराज सिंह चौहान की नेतृत्व क्षमता को लेकर चर्चा रही।
शिवराज ने की 159 चुनावी सभा! प्रदेश में सभी 29 सीटों को जीतने के संकल्प के साथ शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में तीनों चरणों में 159 सभाएं लेकर न सिर्फ विपक्ष; बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं को भी दांतों तले उंगली दबाने पर विवश कर दिया है। शिवराज सिंह ने तीनों चरणों में कुल 159 सभाएं लीं। इनमें सर्वाधिक विदिशा में यानी 17 हुईं। यहां से नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का मुकाबला लक्ष्मण सिंह से है। लक्ष्मण सिंह राजगढ़ संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद रहे हैं। शिवराज सिंह ने दूसरे नंबर पर छिंदवाड़ा में अपनी जादुई भाषा शैली का सबसे अधिक इस्तेमाल किया। यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ भाजपा प्रत्याशी चौधरी चंद्रभान सिंह के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। यहां शिवराज ने यहां 10 सभाएं लीं। शिवराज ने तीसरे क्रम पर ग्वालियर में ताकत झोंकी। यहां उन्होंने 8 सभाएं लीं। यहां से उनके सबसे करीबी और मप्र भाजपा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस ने यहां से अशोक सिंह को मैदान में उतारा था। चौथे क्रम पर शिवराज सिंह गुना में धड़ाधड़ बोले। यहां उन्होंने 7 सभाओं को संबोधित किया। यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया के लिए पहाड़ बने हुए हैं।
60 प्रत्याशी ही बचा सकेंगे जमानत मप्र की 29 लोकसभा सीटों पर तीन चरणों में मतदान संपन्न हो गया है। अब सभी की निगाह 16 मई को आने वाले चुनाव परिणाम की ओर है। इस बीच राजनीतिक समीक्षक प्रत्याशियों की हार-जीत के साथ ही इस बार चुनावी मैदान में उतरे 378 प्रत्याशियों के भाग्य का भी आंकलन कर रहे हैं। सभी 29 सीटों पर खड़े हुए प्रत्याशियों की सक्रियता,क्षेत्र में उनकी पकड़ और मतदाताओं के बीच उनकी पैठ के आंकलन पर एक बात सामने आई है कि इस बार मुश्किल से लगभग 60 प्रत्याशी ही अपनी जमानत बचाने में सफल होंगे। प्रदेश में 2009 में 29 लोकसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में विभिन्न राजनैतिक दलों की ओर से तथा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे 429 उम्मीदवारों में से 369 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इनमें सभी 214 निर्दलीय उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए। जबकि जमानत खोने वाले शेष प्रत्याशी विभिन्न राजनैतिक दलों के हैं। सबसे अधिक 28 उम्मीदवार छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में चुनाव मैदान में उतरे थे। जहां 26 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुईं, इनमें 20 निर्दलीय भी शामिल थे। यह संख्या अन्य संसदीय क्षेत्रों के मुकाबले सर्वाधिक थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में कुल 378 प्रत्याशी मैदान में हैं। तीन चरणों में हुए मतदान के तहत 10 अप्रैल को 9 सीटों पर हुए मतदान के दौरान 118 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। दूसरे चरण में 10 सीटों पर 142 प्रत्याशी खड़े हुए थे और वहां 17 अप्रैल को मतदान हुआ और तीसरे चरण में 24 मई को 10 सीटों पर मतदान हुआ। इन सीटों पर 118 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। प्रदेश के करीब 4 करोड़ मतदाताओं ने मतदान कर इन सभी प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम में कैद कर दिया है। अब मतदाताओं के साथ ही प्रत्याशियों को 16 मई का इंतजार है जब मतगणना होगी।
2009 में जमानत जब्त होने वाले उम्मीदवारों की संख्या सीट प्रत्याशी जमानत जप्त मुरैना 24 21 भिण्ड 13 11 ग्वालियर 23 21 गुना 18 16 सागर 12 10 टीकमगढ़ 17 15 दमोह 21 19 खजुराहो 15 13 सतना 21 18 रीवा 15 12 सीधी 11 9 शहडोल 8 6 जबलपुर 11 9 मण्डला 14 12 बालाघाट 18 16 छिंदवाड़ा 28 26 होशंगाबाद 10 8 विदिशा 8 7 भोपाल 23 21 राजगढ़ 9 7 देवास 10 8 उज्जैन 9 7 मंदसौर 12 10 रतलाम 10 8 धार 11 9 इन्दौर 18 16 खरगौन 11 9 खण्डवा 13 11 बैतूल 16 14 योग 429 369

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

कॉरपोरेट कल्चर में रंगना चाहते हैं माननीय

सुविधाओं की भरमार फिर भी सांसदों का दिल मांगे मोर
भोपाल। सुविधाभोगी हो चुके देश के माननीय कॉरपोरेट कल्चर में रंगते हुए वह तमाम सुविधाएं चाहते हैं,जो उन्हें सबसे अलग दर्शाए। इसका खुलासा सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा जुटाई गई जानकारियों में सामने आया है। हालांकि भारतीय सांसदों से हमेशा ही खास तरह का व्यवहार किया जाता रहा है, जिसे हम वीआईपी कल्चर के नाम से भी जानते हैं। उन्हें हर जगह विशेष सुविधाएं मिलती रही हैं। हाल ही में सांसदों ने मांग की है कि उनके साथ हवाई अड्डों पर भी विशेष व्यवहार हो। कानून बनाने वाले कुछ लोग निजी एयरलाइन द्वारा उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार से नाखुश हैं और चाहते हैं कि वह एयर इंडिया द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करें। लेकिन आम जनता के वोट से जीत कर संसद भवन पहुंचने वाले माननीय उनकी समस्याओं को भूल जाते हैं। अकेले मप्र में सांसदों की लापरवाही ने प्रदेश के विकास को चूना लगाया है। प्रदेश के हिस्से में लोकसभा और राज्यसभा का कुल मिलाकर करीब 954 करोड़ रूपए का हिस्सा बनता है, लेकिन सांसदों की ढील-पोल के चलते रिलीज हो पाया सिर्फ 380 करोड़। यानी सीधे-सीधे छह सौ करोड़ का चूना लग गया।
आरटीआई से भी हो चुका है खुलासा
सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा जुटाई गई जानकारियों से सांसदों को मिलने वाली कई विशेष सुविधाओं का पता चलता है। इसके तहत लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुखों द्वारा विवेकाधीन कोटा में की गई नियुक्तियों का भी खुलासा हुआ है। आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार इस तरह की 70 नियुक्तियां की गईं। कई मामलों में सांसद बिजली, पानी और टेलीफोन जैसी सुविधाओं का अधिकतम उपयोग सीमा से ज्यादा इस्तेमाल करते रहे हैं लेकिन उसके लिए उन्होंने कोई भुगतान नहीं किया। बिल का भुगतान नहीं करने पर आम आदमी का कनेक्शन तो काट दिया जाता है लेकिन सांसदों के साथ ऐसा व्यवहार कम ही देखने को मिलता है।
भारतीय सांसदों के वेतन और भत्ते मासिक वेतन 50,000 रुपए दैनिक भत्ता 2,000 रुपए (संसद या समिति की बैठक में शामिल होने के लिए) चुनाव क्षेत्र भत्ता 45,000 रुपए प्रतिमाह कार्यालयीन व्यय 45,000 रुपए प्रतिमाह (इनमें से 30,000 रुपए कर्मचारियों के वेतन के लिए) धुलाई भत्ता (सोफा कवर और परदों के लिए) तीन महीने में एक बार फर्नीचर भत्ता 75,000 रुपए वार्षिक ड्यूरेबल फर्नीचर के लिए और 15,000 रुपए वार्षिक नॉन ड्यूरेबल फर्नीचर के लिए पेंशन और अन्य सुविधाएं मासिक पेंशन 20,000 पेंशन हर अतिरिक्त वर्ष के लिए 1,500 वाहनों के लिए ब्याज मुक्त कर्ज 4,00,000 वाहनों के लिए रोड माइलेज रेट 16 प्रति किमी 1,50,000 मुफ्त टेलीफोन कॉल वार्षिक दिल्ली के लुटियन जोन में रहने के लिए बंगला 4,000 किलो लीटर पानी प्रतिवर्ष 50,000 यूनिट बिजली प्रतिवर्ष किचन और बाथरूम में टाइल्स की मरम्मत का खर्च 34जे क्लास के हवाई टिकट प्रतिवर्ष हवाई अड्डे से घर तक का यात्रा भत्ता (न्यूनतम 320 रुपए) प्रतिवर्ष चार संसद सत्रों के दौरान हवाई यात्रा के आठ टिकट (दिल्ली से या दिल्ली तक) सांसद के पति/पत्नी को भी आठ हवाई टिकट पाने का अधिकार संसद सदस्यों को रेलगाड़ी में वातानुकूलित प्रथम श्रेणी का पास और उनके पति/पत्नी को सांसद के साथ रेल पास पर असीमित यात्रा सांसद के साथ जाने वाले व्यक्ति (पति/पत्नी के अलावा) को यात्रा के लिए वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी का पास
दूसरे देशों के सांसदों के वेतन और भत्ता
ब्रिटिश सांसद वार्षिक वेतन 66,396 पाउंड (68,62,711 रुपए) आवास व्यय (लंदन के लिए) 20,100 पाउंड (20,77,849 रुपए) कार्यालयीन व्यय (लंदन के लिए) 25,350 पाउंड (26,20,321 रुपए)
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य वार्षिक वेतन 1,74,000 डॉलर (1,09,12,894 रुपए सदस्यों के प्रतिनिधित्व का वार्षिक भत्ता 12,43,560 डॉलर (7,79,83,087 रुपए)
लापरवाह सांसदों ने गंवाएं छह सौ करोड़...
प्रदेश के हिस्से में लोकसभा और राज्यसभा का कुल मिलाकर करीब 954 करोड़ रूपए का हिस्सा बनता है, लेकिन सांसदों की ढील-पोल के चलते रिलीज हो पाया सिर्फ 380 करोड़। यानी सीधे-सीधे छह सौ करोड़ का चूना लग गया। किस्मत मेहरबान थी, तभी दूसरे मदों से करीब 132 करोड़ रूपया और मिल गया, लेकिन यहां भी ढील-पोल जारी रही और कुल मिलाकर मिले 512 करोड़ रूपए में 213 करोड़ बिना खर्च हुए वापस सरकार के खजाने में चले गए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद अरूण यादव सबसे ज्यादा कंजूस निकले, वह अपने हिस्से के करीब 40 करोड़ रूपए खर्च ही नहीं कर पाए।
फिसड्डियों में अरूण यादव सबसे आगे
इसमें सबसे आगे सांसद अरूण यादव रहे। उन्हें खर्च करने के लिए चार साल में कुल 42.37 करोड़ रूपए मिले। लेकिन वह सिर्फ 2.9 करोड़ रूपए खर्च कर पाए और बाकी के 39.63 करोड़ रूपए लौट गए। यही हाल दूसरे सांसदों का भी रहा। इंदौर सांसद सुमित्रा महाजन करीब 7 करोड़ रूपए खर्च नहीं कर पाईं। वहीं राजेश नंदनी और गणेश सिंह आठ-आठ करोड़ रूपए खर्च नहीं कर पाए। राज्यसभा सांसद कप्तान सिंह सोलंकी और अनिल माधव दवे भी फिसड्डियों में शुमार हैं यह क्रमश: 17 करोड़ और 11 करोड़ रूपया खर्च नहीं कर पाए। जबकि नारायण सिंह केसरी आठ करोड़ और माया सिंह सात करोड़ रूपया खर्च नहीं कर पाई।
प्रदेश में किस सांसद ने कितना खर्च किया
लोकसभा सांसद - बची राशि सुषमा स्वराज - 1.39 प्रेमचंद गुड्डू - 4.36 गोविंदप्रसाद मिश्र - 6.35 कांतिलाल भूरिया - 5.33 सज्जन सिंह वर्मा - 1.41 राजेश नंदिनी सिंह - 8.09 गणेश सिंह - 8.11 भूपेंद्र सिंह - 3.87 देवराज सिंह पटेल - 1.00 नारायण सिंह - 1.82 नरेंद्रसिंह तोमर - 1.00 मीनाक्षी नटराजन - 4.93 बसोरीसिंह मसराम - 1.00 माखनसिंह सोलंकी - 7.52 अरूण यादव - 39.46 जितेंद्र सिंह बुंदेला - 3.44 वीरेंद्र कुमार - 1.00 राकेश सिंह - 6.09 सुमित्रा महाजन - 7.31 उदयप्रताप सिंह - 1.00 यशोधराराजे सिंधिया - 1.00 ज्योतिरादित्य सिंधिया - 2.09 गजेंद्र सिंह - 1.00 शिवराजसिंह लोधी - 2.09 कमलनाथ - 1.00 कैलाश जोशी - 0.00360 अशोक अर्गल - 1.00 ज्योति धुर्वे - 5.87 केडी देशमुख - 7.00
राज्यसभा सांसद - राशि
सत्यव्रत चतुर्वेदी - 0.00 नजमा हेपतुल्ला - 5.93 फग्गनसिंह कुलस्ते - 0.00 थावरचंद गेहलोद - 4.07 मेघराज जैन - 1.00 विजयलक्ष्मी साधौ - 6.56 चंदन मित्रा - 2.93 कप्तानसिंह सोलंकी - 18.17 अनिल माधव दवे - 12.55 रघुनंदन शर्मा - 5.81 प्रभात झा - 0.00 अनुसुइया उइके - 0.80 नारायणसिंह केसरी - 10.49 मायासिंह - 8.58 विक्रम वर्मा - 0.67
कॉरपोरेट जगत की तर्ज पर वेतन का सुझाव
इंसोफिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति का सुझाव है कि नेताओं को कॉरपोरेट जगत की तर्ज पर मोटा वेतन दिया जाए तो भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है। मूर्ति के मुताबिक, हम नेताओं से बेहद कड़े परिश्रम की मांग करते हैं, लेकिन उन्हें उतना वेतन या भत्ते नहीं देते, जिसकी जरूरत उन्हें होती है। इस तरह हम अनजाने में उन्हें गलत तरह से पैसे अर्जित करने की दिशा में धकेल देते हैं। मूर्ति ने यह प्रस्ताव भी दिया कि उनकी कंपनी मैसूर में युवा नेताओं को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार है। नेताओं को वहां आधुनिक सॉफ्टवेयर की मदद से अर्थशास्त्र की मूलभूत बातों, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों-व्यापार की जानकारी के अलावा बहुत ही चीजें सिखाई जाएंगी।
माननीयों की नई चाह हाल ही में सांसदों के लिए हवाई अड्डों पर उड़ान में देरी की पूर्व सूचना, चेक-इन में प्राथमिकता, बोर्डिंग, कॉम्प्लीमेंट्री लाउंज, प्रोटोकॉल अधिकारी और सुरक्षा में सुविधा व अतिरिक्त नाश्ते जैसी सुविधाएं चाही गई हैं। यह सुविधाएं एयर इंडिया द्वारा पहले से ही दी जा रही हैं। हालांकि जनभावना का ध्यान रखते हुए और वीआईपी संस्कृति पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के मद्देनजर केंद्र सरकार ने विशेष सुविधा की मांग को अस्वीकार कर दिया है।
विशेष सुविधाओं पर एतराज राजनीतिक तंत्र में सुधार की कोशिश करने वाले समाजसेवियों का कहना है कि सांसदों को उतनी सुविधाएं ही मिलनी चाहिए जितनी कानून बनाने के उनके काम के लिए जरूरी हो। इन लोगों का कहना है कि अतिरिक्त चाय और नाश्ते से सांसदों की कानून बनाने की क्षमता में कोई सुधार नहीं आ सकता। ऐसे में यह सारी सुविधाएं दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता।
वेतन में हो गई थी तीन गुना बढ़ोतरी
2010 में मुद्रास्फीर्ति ऊंचे स्तर पर थी और सरकार उसे कम करने की कवायद कर रही थी। तब भी सांसदों ने अपने वेतन और अन्य सुविधाओं को बढ़ा लिया था। तब वेतन में तीन गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी करते हुए उसे 16,000 रुपए से 50,000 रुपए कर दिया गया था। चुनाव क्षेत्र के खर्च को भी दोगुना करते हुए 45,000 कर दिया गया था।
इस मामले में भाजपा नेता और राज्यसभा सदस्य अनंत कुमार का कहना है कि जनप्रतिनिधियों को सिर्फ उतनी सुविधाएं मिलनी चाहिए जितनी उनके काम के अनुसार जरूरी हों। हालांकि कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित का कहना है कि हमारे वेतन में 5 वर्ष में एक बार बढ़ोतरी होती है। जबकि निजी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों का वेतन हर वर्ष बढ़ता है। ऐसे में मुझे समझ नहीं आता कि सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं को लोग विशेष व्यवहार क्यों कहते हैं।
फंड से नए प्रोजेक्ट बन सकते हैं, रिपेयर वर्क नहीं
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सांसद के फड से कौन कौन से काम हो सकते हैं, कहां वे अपना फंड इस्तेमाल कर सकते हैं या कहां नहीं कर सकते। अधिकतर वोटरों की इसकी जानकारी नहीं है। कई बार फंड को लेकर भी लोगों में बड़ा कंफ्यूजन रहता है। फंड को लेकर केंद्र सरकार की ओर से गाइड लाइंस भी जारी की गई हैं। सांसद अपने एरिया में किसी भी एजेंसी से कोई भी नया काम करा सकता है, लेकिन मेनटेनेंस और रिपेयर का काम सांसद के फंड से नहीं किया जा सकता है। केवल नए काम ही सांसद के फंड से कराए जा सकते हैं। सांसद फंड अवैध कॉलोनियों में नहीं लगाया जा सकता।
फंड के लिए गाइड लाइंस
सांसद फंड का इस्तेमाल अपने लोकसभा क्षेत्र में कहीं भी कर सकता है, जबकि राज्य सभा और लोकसभा में मनोनीत सदस्य पूरे देश में कहीं भी काम करा सकते हैं। सांसद को फंड का 15 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जातियों के रिहायशी क्षेत्र और 7.5 फीसदी हिस्सा (37.5 लाख) अनुसूचित जनजाति इलाकों में खर्च करना जरूरी है।
5 करोड़ का फंड सांसद भी लोगों के बीच रहता है और उनकी समस्याओं को सुनता है, इसलिए 1993 और 1994 में सांसद फंड की शुरूआत हुई। तब सांसद फंड केवल 5 लाख रुपए था। 1995-96 में यह फंड बढ़ाकर 1 करोड़ कर दिया गया। 1999-98 में 2 करोड़ और 2011-12 से इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया गया। फंड के खर्च, निगरानी व विभागों के बीच तालमेल करने के लिए एक नोडल ऑफिसर की अपॉइंटमेंट की गई है।
पार्क से ब्रिज तक इंटरनैशनल बॉर्डर से 8 किलोमीटर के भीतर के दायरे में किसी भी नदी से सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण की स्कीम के लिए भी सांसद फंड का इस्तेमाल किया जा सकता है। रेलवे हॉल्ट, पार्क, बारातघर, रेलवे अंडर ब्रिज, नई सड़क, जैसे काम भी सांसद फंड से कराए जा सकते हैं।
सबके काम का फंड
एमपी फंड के इस्तेमाल के लिए मिनिमम राशि 1 लाख से कम नहीं होनी चाहिए। विकलांग व्यक्तियों की सहायता के लिए एमपी फंड से 10 लाख रुपये तक मिल सकते हैं, लेकिन यह फंड उनके लिए तीन पहियों की साइकल (बैटरी चलित या मैनुअल) या कृत्रिम अंगों के लिए ही खर्च की जा सकती है। स्कूल, कॉलेजों और लाइब्रेरी में किताबें खरीदने के लिए 22 लाख तक की राशि एमपी फंड से इस्तेमाल हो सकती है। सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त एजुकेशन इंस्टिट्यूटों के लिए भी एमपी फंड खर्च किया जा सकता है।
आरटीआई का साथ
सांसद द्वारा तय किया गया कोई भी काम उसकी सहमति के बिना नहीं बदला जाएगा। अगर नोडल ऑफिसर को लगता है कि यह काम नहीं हो सकता तो उसे सांसद, केंद्र सरकार और राज्य सरकार को प्रस्ताव की तारीख के 45 दिन के अंदर यह बात बतानी होगी। अगर तय प्रस्तावों से ज्यादा प्रस्ताव कामों के आ जाते हैं तो पहले आओ पहले पाओ के नियम के तहत काम किए जाएंगे। एमपी फंड के इस्तेमाल की जानकारी आरटीआई के जरिए भी मांगी जा सकती है।
डिजास्टर में हेल्प
अगर प्राकृतिक आपदा आ जाती है जैसे तूफान, बाढ़, बादल फटना, भूकंप, ओला, हिमस्खलन, कीट हमला, भूस्खलन, तूफान, फायर, रेडियालॉजी खतरा होने पर एमपी अपने फंड से हर साल 10 लाख रुपए तक दे सकता है। देश के किसी भी हिस्से में गंभीर आपदा आने पर सांसद फंड से अधिकतम 50 लाख रुपये तक दे सकता है। एमपी फंड को इस्तेमाल करने के लिए ग्रामीण इलाकों में पंचायती राज संस्थाएं, शहर में नगर निगम, नगर पालिका जैसी एजेंसियां काम करती हैं।
कब मिलता है फंड 3 महीने तक सांसद को कोई भी राशि नहीं मिलती है। 9 महीने तक सालाना आवंटन की 50 फीसदी राशि मिलती है। 9 महीने के बाद सालाना आवंटन की 100 फीसदी राशि जारी की जाती है

543 सीटों पर खर्च होगी 70 अरब की ब्लैक मनी!

मप्र की 10 सीटों पर कालाधन तो 11 पर बंदूक के बल पर होगा मतदान
रोजाना जब्त हो रहा है 6 करोड़ का कालाधन
29 दलों से जुड़े 2200 नेताओं के खातों की हो रही पड़ताल
भोपाल। लोकसभा चुनाव में ब्लैक मनी की रोकथाम में लगी फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट ( चुनाव आयोग के निर्देश पर ये फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट-एफआईयू-बनी है) की माने तो इस बार देश की 543 सीटों पर करीब 70 अरब रुपए का कालाधन इस्तेमाल होने वाला है। जहां देश में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 20 अरब तो मप्र में आयोग की तमाम सख्ती के बावजूद चुनाव में 240 करोड़ रुपए का कालाधन इस्तेमाल किए जाने की आशंका जताई गई है। एफआईयू के अनुसार,यह सारी रकम केवल प्रचार-प्रसार पर ही खर्च नहीं होगी बल्कि इनका इस्तेमाल प्रोपर्टी खरीदने में भी हो रहा है। उधर,मप्र की 10 सीटों पर जहां कालेधन से तो 11 सीटों पर बाहुबल से मतदान कराए जाने की आशंका व्यक्त की गई है। इसको देखते हुए जांच एजेंसियों से लेकर सुरक्षा एजेंसियों ने देशभर में अपना जाल बिछाया हुआ है और रोजाना करीब 6 करोड़ की ब्लैकमनी जब्त की जा रही है।
पिछले छह महीने के ट्रांजेक्शन का लेखाजोखा तैयार
चुनाव आयोग के निर्देश पर फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट यानि एफआईयू ने नेताओं के पिछले छह महीने के ट्रांजेक्शन का लेखा जोखा निकाल लिया है, जिसका आकलन करने के बाद कालेधन के इस्तेमाल की आशंका जताई गई है। एफआईयू ने पिछले साल सितंबर से फरवरी के दौरान बैंक खातों की लेन देन की सघन जांच की है। सूत्रों के मुताबिक जिन खातों की जांच की गई उनमें से अधिकतर विभिन्न दलों से जुड़े नेताओं के थे। इस जांच में कई हैरान कर देने वाली जानकारी मिली। एफआईयू की जांच में पता चला कि सितंबर 2013 से फरवरी 2014 तक मप्र में बड़ी संख्या में वाहन और संपत्ति की खरीद फरोख्त हुई। आमतौर पर प्रदेश में बैंकों से हर रोज 5 अरब की रकम निकाली जाती है और 4.50 अरब की रकम जमा की जाती है। लेकिन सितंबर 2013 से 28 फरवरी 2014 तक औसतन 7 अरब की रकम निकाली गई और 7.70 अरब रुपए की रकम जमा की गई। वहीं उतर प्रदेश में हर रोज 19 अरब निकाला जाता है और 10.50 अरब की रकम जमा की जाती है। लेकिन इस दौरान 24 अरब की रकम निकाली गई और 23.50 अरब रुपए की रकम जमा की गई। इसके बाद बैंको का कारोबार अचानक स्थिर हो गया। जब जांच हुई तो पता चला कि देश में 84.12 लाख लोगों के एक से अधिक खाते हैं। बैंकों के कारोबार में आए अचानक बदलाव के बारे में एफआईयू ने गहनता से जांच शुरू कर दी। ऐसे खातेदारों के नाम निकाले जाने लगे तो एक और हैरान कर देने वाली जानकारी सामने थी। जांच के दौरान 29 दलों से जुड़े करीब 2200 नेताओं के खातों से किए गए लेन देन संदेह पैदा कर रहे हैं। वजह ये कि इन खास खातों में सितंबर से फरवरी के बीच हुई लेन देन की जानकारी आयकर रिटर्न में नहीं दी गई थी। कई मामलों में तो खातों की ही जानकारी आयकर रिटर्न से गायब थी। एफआईयू के लिए ये चौंकाने वाली जानकारी थी जिसके बाद उसने अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग को दी। आयोग ने इस संबंध में आरबीआई को पत्र लिख कर ऐसे खातों के बारे में जानकारी मांगी है। संदिग्ध लोगों को जल्द ही आयकर का नोटिस भी मिल सकता है।
रोजाना जब्त हो रहा है 6 करोड़
चुनाव आयोग के तलाशी दस्ते हर रोज तकरीबन 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का कालाधन जब्त कर रहे हैं। आयोग की तमाम सख्ती के बावजूद चुनाव में कालाधन इस्तेमाल किए जाने की आशंका जताई गई है। आयोग के आंकड़े के मुताबिक चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद से 25 मार्च तक तकरीबन 120 करोड़ रुपए जब्त किए गए हैं जिनका कोई हिसाब किताब नहीं मिला है। जांच एजेंसियों के मुताबिक शेयर बाजार के जरिए भारी मात्रा में चुनावों मे इस्तेमाल करने के लिए कालाधन भारत आ चुका है। इस साल अब तक भारत में 15,000 करोड़ रुपए तक कालाधन आया है। वहीं चुनाव खत्म होने तक 45,000 से 55,000 करोड़ रुपए तक का कालाधन भारत में आने की आशंका है। विदेशों से आ रहा यह कालाधन एफआईआई के पार्टिसिपेटरी नोट्स के जरिए भारत में लाया गया है।
मप्र में पकड़ाया 15 करोड़ का कालाधन
आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक मप्र में करीब 15 करोड़ रुपए की सामग्री और नकदी बरामद हो चुकी है। जिसमें विदेशी मुद्रा भी है। भोपाल के राजा भोज विमानतल पर तैनात आयकर इंटेलीजेंस यूनिट ने 6 अपै्रल को एयर कार्गो के जरिए आ रही 1 करोड़ 40 लाख रुपए मूल्य की विदेशी मुद्रा पकड़ी है। यह करेंसी इस व्यवसाय से जुड़े एक कारोबारी की बताई गई है जो कि एयर कार्गो के जरिए दिल्ली से भोपाल लाई गई थी। आयकर विभाग ने मामले की पड़ताल शुरू कर दी है मुद्रा कारोबारी का नाम अभी उजागर नहीं किया गया है। इसके अलावा एयर कार्गों से आ रहा 80 तोला सोना भी बरामद किया है। यह सोना बंगलुरु से दिल्ली के रास्ते भोपाल पहुंचाया गया है।
60,000 करोड़ रुपए के नकली नोट
चुनाव में नकली नोटों का इस्तेमाल रोकने के लिए नेशनल इंवेस्टिगेटिव एजेंसी (एनआईए) ने अपनी निगरानी बढ़ा दी है। एनआईए के ताजा आंकड़ों के अनुसार, करीब 60,000 करोड़ रुपए के नकली नोट भारत आ चुके हैं। चुनाव में बड़े पैमाने पर नकली नोट का इस्तेमाल होने की आशंका है। वहीं पकड़े जाने के डर से 500 और 1000 के नकली नोट की आवक कम हो रही है, लेकिन 10, 20 और 50 के नकली नोट बाजार में लाए गए हैं।
चुनाव पर खर्च होंगे 50 हजार करोड़
फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट शोध संस्था सीएमएस के अनुसार चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है। इस बार के लोकसभा चुनाव भी इससे अलग नहीं दिख रहे। इस बार चुनाव के दौरान होने वाले अनुमानित 50 हजार करोड़ रुपए खर्च की एक तिहाई से अधिक की राशि काला धन हो सकता है। 50 हजार करोड़ रुपए की यह राशि भारत में किसी भी चुनाव में सर्वाधिक है। शोध संस्था सीएमएस के अध्ययन के अनुसार विभिन्न राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों द्वारा लोकसभा चुनाव में 15 से 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान है। उम्मीदवार निजी रूप से 10 हजार से 15 हजार करोड़ रुपए खर्च कर सकते हैं। इन आंकड़ों में आधिकारिक और बिना लेखा के होने वाला खर्च शामिल है। अगर फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट और सीएमएस के आंकड़ों को मिलाएं तो करीब 69.50 अरब रूपए प्रोपर्टी और अन्य संसाधन खरीदने पर खर्च किए जाएंगे। इनमें से अधिकांश वह रकम होगी,जो विदेशों से भारत लाई जा रही है।
प्रति मतदाता खर्च होंगे 400 रुपए
सीएमएस के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने कहा कि चुनाव में खर्च होने वाली राशि में से करीब एक तिहाई काला धन है। इनमें से बड़ी राशि 'नोट के बदले वोटÓ में इस्तेमाल की जा सकती है। लोकसभा चुनाव में इस बार करीब 81.4 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 30 हजार करोड़ रुपए की राशि को खर्च करने पर यह प्रति मतदाता 400 रुपए आता है। अध्ययन में कहा गया है कि इसमें मीडिया अभियान का खर्च करीब 25 प्रतिशत है।
सख्ती के बावजूद नहीं कर रहे परहेज
चुनाव आयोग की सख्ती के बावजूद उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में कालेधन का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। हाल यह है कि चुनाव की घोषणा होने के बाद पहले बीस दिन में ही चुनाव आयोग ने रोजाना छह करोड़ रुपए से अधिक की राशि जब्त की है।
आयकर विभाग ने कसी कमर लोकसभा चुनाव में कालेधन की आवाजाही रोकने आयकर विभाग ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में व्यापक स्तर पर तैयारी की है। दोनों राज्यों के प्रमुख नगरों और सीमावर्ती जिलों में अफसरों की टीम तैनात की गई है। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और रायपुर से हवाला कारोबारियों के अहम सुराग मिले हैं। इनमें इंदौर व रायपुर ज्यादा संवेदनशील माने गए हैं, यहां नकदी का सर्वाधिक फ्लो बताया गया है। बड़े लेन-देन की जानकारियां भी विभिन्न एजेंसियों के जरिए मंगाई जा रही है।
हवाला करोबारी हैं निशाने पर
चुनाव के मद्देनजर आयकर विभाग ने विभिन्न जांच एजेंसियों की मदद से हवाला कारोबारियों को निशाने पर लिया है। हाल ही में अफसरों की टीम ने ग्वालियर और छत्तीसगढ़ में दो-तीन ऐसे मामलों का खुलासा किया है जो हवाला कारोबार से संबद्ध बताए जा रहे हैं। दोनों ही राज्यों की कुल 40 लोकसभा सीटों पर विभाग की टीमें उम्मीदवारों द्वारा किए जा रहे खर्च का ब्यौरा एकत्र करने के साथ ही कालेधन की आवाजाही पर भी नजर रखे हुए है।
जुटाई जा रही जानकारियां
विभाग ने खर्च के लिहाज से ऐसी सीटें भी चिह्नित की हैं जहां पैसा पानी की तरह बहने की संभावना है इसलिए हवाला कारोबारियों के बारे में जानकारियां जुटाई जा रही हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि चुनाव के दौरान बड़ी मात्रा में कालाधन यहां से वहां भेजा जाता है। यह पैसा प्राय: हवाला कारोबारी ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते हैं। इसमें पैसे को यहां से वहां नहीं ले जाया जाता बल्कि हवाला कारोबारी अपने संपर्क के जरिए कमीशन लेकर देश के किसी भी कोने में पैसा भेज देते हैं।
मप्र में 240 करोड़ का खेल
मप्र में वैसे तो हर सीट पर ब्लैकमनी लगाई जा रही है,जो करीब 240 करोड़ हो सकती है। लेकिन चुनाव आयोग ने 29 में से 10 सीटों पर कालेधन के सर्वाधिक इस्तेमाल की आशंका जताई है। प्रदेश में इंदौर,गुना,सागर,खजुराहो,सतना,जबलपुर,छिंदवाड़ा,विदिशा,मंदसौर और रतलाम संसदीय सीट पर सर्वाधिक ब्लैकमनी लगाई जाएगी। इसमें इन क्षेत्रों के व्यापारी,उद्योगपति,माफिया नेताओं का सहयोग कर रहे हैं। वहीं 11 सीटों पर बाहुबल से चुनाव प्रभावित किए जाने की खबर है। प्रदेश में बालाघाट के साथ भिंड, मुरैना और ग्वालियर सीटों को चुनाव आयोग ने कानून व्यवस्था के नजरिए से अति संवेदनशील माना है, लेकिन पुलिस प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में 11 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर बाहुबलियों, नक्सलियों और डकैतों का प्रभाव है। इनमें से अधिकांश सीटें उत्तरप्रदेश की सीमा से लगी हुई हैं, जहां उत्तरप्रदेश से होने वाली घुसपैठ के कारण बाहुबल से चुनाव लडऩे की परंपरा बन गई है।उत्तरप्रदेश और मप्र के सीमावर्ती जिलों में लोगों की आपस में रिश्तेदारियां हैं। ऐसे में चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की मदद के लिए लोगों की आवाजाही होती है। इस कारण सीधी, सतना, रीवा, टीकमगढ़, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, शहडोल में उत्तरप्रदेश के बाहुबल और डकैतों का असर पड़ता है। वहीं मंडला, बालाघाट में नक्सलियों का और इंदौर में स्थानीय बाहुबलियों का प्रभाव दिखाई देता है।
अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव के अनुसार, मप्र के लिए उप्र संवेदनशील तो है। इसी के चलते कलेक्टरों को बॉर्डर सील करने के लिए कहा गया है। साथ ही विशेष चौकसी बरतने के भी निर्देश दिए गए हैं। चुनाव आयोग के लिए उत्तरप्रदेश की सीमा से सटी मप्र की लोकसभा सीटों पर बाहुबलियों से निपटना सिरदर्द बन गया है। इसकी वजह दोनों राज्यों में चुनाव की तारीखें अलग-अलग होना हैं। ऐसे में आशंका बनी हुई है कि यूपी से बाहुबली घुसपैठ कर प्रदेश में चुनाव प्रभावित कर सकते हैं। प्रदेश की 11 संसदीय सीटों पर 10 और 17 अप्रैल को मतदान होना है, वहीं प्रदेश से लगी यूपी की लोकसभा सीटों पर 24 और 30 अप्रैल को चुनाव हैं। इन हालात में प्रदेश के पहले और दूसरे चरण में होने वाले मतदान में बाहुबलियों की घुसपैठ की आशंका बनी हुई है। वहीं मंदसौर लोकसभा सीट पर धन-बल के उपयोग की आशंका है।
20 कंपनियां करेंगी नक्सलियों से सुरक्षा
लोकसभा चुनाव से पूर्व जिले में 20 सशस्त्र सुरक्षा कंपनी ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र के जंगलों में सर्चिंग शुरू कर दी है। सीआरपीएफ, हार्क फोर्स, बीएसएफ, सीआईएसएफ सहित अन्य सुरक्षा कंपनी जंगल के चप्पे-चप्पे की खाक छानने में लगेंगी। बालाघाट के एसपी गौरव तिवारी के अनुसार वर्तमान समय में भी सर्चिंग आपरेशन चलाए जा रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में यह रूटीन वर्क की तरह होता है।
छग-महाराष्ट्र की सीमा सील
लोकसभा चुनाव की तैयारी के तहत पड़ोसी राज्य छत्तीगसढ़ और महाराष्ट्र की सीमा को सील कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ की सीमा जिले के लंाजी, बैहर, बिरसा तहसील से लगी हुई है। पूर्व से ही मध्य प्रदेश को शरर्णीथली मनाने वाले नक्सली छग में चले सर्चिंग अभियान के दौरान नक्सलियों की भारी खेप जिले के सीमा के भीतर प्रवेश कर सकती है। ऐसे में चुनाव की तारीख नजदीक आने से पूर्व आपरेशन सर्चिग चलाए जाना शांति पूर्ण चुनाव करवाने की दुष्टि से बहुत अधिक महत्पूर्ण माना जा रहा है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में नक्सली गतिविधि और बालाघाट के सीमावर्ती होने और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए एसपी गौरव तिवारी ने पहले ही 50 कम्पनी (5 हजार जवान) और 2 हैलीकाप्टर की मांग चुनाव आयोग से की थी। इसी के तहत अब तक 20 कपंनी उपलब्ध हो चुकी हंै। चुनाव से 20 दिन पहले सुरक्षा की दृष्टि से इसे बेहतर माना जा रहा है।
नक्सलियों से बूथ केप्चरिंग का खतरा
लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान नक्सली समूह सीमावर्ती इलाकों के मतदान केंद्रों पर बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं। इसके लिए नए समूह बनाए जा रहे हैं जबकि बड़ी मात्रा में असलहा भी जुटाया जा चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ये सूचना मध्यप्रदेश शासन पुलिस मुख्यालय को भेजते हुए एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं।केंद्रीय खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा राज्य सरकारों से कहा गया है कि आम चुनाव के दौरान प्रभावित इलाकों में कई चरणों में सुरक्षा पुख्ता की जाए। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने अंदेशा जताया है कि चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने के लिए नक्सलियों ने बड़ी संख्या में असलहा जुटाया है और सघन जंगली इलाकों में ट्रेनिंग केंप चलाए जा रहे हैं। नक्सलियों का ऐसा ही एक केंप बालाघाट पुलिस ने हाल ही में ध्वस्त किया था। इस दौरान पुलिस ने बड़ी मात्रा में नक्सलियों का असलहा और बारूदी सुरंग बिछाने का सामान बरामद किया था।
रीवा,सतना और चंबल में सक्रिस हुए डकैत
मप्र के दस्यु प्रभावित क्षेत्रों के जंगलों में डकैतों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सुगबुगाहट का अंदाजा रीवा,सतना और चंबल क्षेत्र में डकैतों द्वारा कुछ दिनों से की जा रही घटनाओं से लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश से लगी सीमा मानिकपुर व मझगवां के बीच रह-रहकर बलखडिय़ा गिरोह की मूवमेंट न केवल देखने को मिल रही है बल्कि उनके द्वारा दहशत फैलाने की नीयत से विगत एक महीने के अंदर तीन से अधिक वारदात को अंजाम भी दिया जा चुका है। चुनाव में जहां वैलेट को सजातीय नेताओं के पक्ष में लाने के लिए बुलेट का इस्तेमाल गिरोह द्वारा किया जा सकता है। पुलिस एम्बुस लगाकर जंगल सर्चिंग करने की बात करती है। सर्चिंग सिवाय सड़कों के अलाव कहीं भी होती नहीं दिखाई देती है। तराई अंचल के 29 फीसदी मतों बुलट का साया पड़ता है। स्वदेश सिंह बलखडिय़ा पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 लाख एवं मप्र सरकार ने 1 लाख का दांव लगाया है। कहने के लिए तो उत्तर प्रदेश की एसटीएफ टीम उक्त डकैत के इनकाउण्टर के लिए मोर्चा सम्हाल रखी है।
उधर,रीवा रेंज के आईजी पवन श्रीवास्तव कहते हैं कि डकैत चुनाव को प्रभावित न करें इसके लिए दिशा-निर्देश दिए जा चुके हैं। सर्चिंग जारी है और लगातार तराई अंचल पर नजर बनी हुई है। मुखबिरों को और टटस करने का काम किया जा रहा है। अगर सटीक सूचना हाथ लगी तो इनकाउंटर से भी इंकार नहीं किया जा सकता। उधर,सदियों तक डकैतों के गढ़ रहे चंबल के बीहड़ों में चुनाव भी बस एक मौसम की मानिंद है। भिंड-मुरैना के बदनाम बीहड़ों में एक बार फिर डकैत सक्रिय हो गए हैं। हालांकि इन इलाकों में प्रशासन ऐसा मानता है डकैतों का वजूद अब नहीं है,लेकिन चंबल में बंदूकें अब भी गूंजती है। चुनाव आते ही छोटे-छोटे गिरोह सक्रिय हो जाते हैं और अपने सरपरस्त नेता को जिताने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। इन तमाम विषम परिस्थियों के बीच चुनाव आयोग निष्पक्ष और विवादरहित चुनाव संपन्न कराने के लिए रात-दिन तैयारी कर रहा है।

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

9 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस का गणित बिगाड़ेंगे वो

बसपा,सपा और आप के प्रत्याशियों ने रोचक बनाया मुकाबला
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में तीसरे मोर्चे की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है। पिछले 20 सालों में कोई भी ग़ैर कांग्रेस-ग़ैर भाजपा समूह मिलकर भी कभी भी प्रभावी जीत दर्ज नहीं कर सका है। हालांकि प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों पर नजऱ डालने पर यही लगता है कि बुंदेलखंड, ग्वालियर संभाग और विंध्य प्रदेश की कुछ सीटों पर सपा-बसपा के उम्मीदवार मुकाबले को रोचक बनाते रहे हैं। 16वीं लोकसभा के इस समर में मप्र की 29 लोकसभा सीटों में से 9 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों के सामने खड़ा तीसरा चेहरा खासा दमदार है। इन सीटों में से कुछ पर तीसरा उम्मीदवार तो इतना दमदार है कि वह भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई का गणित बिगाड़ सकता है।
मुरैना संसदीय क्षेत्र.......
मुरैना में भाजपा ने पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा तो कांग्रेस ने अपने दबंग विधायक गोविंद सिंह को मैदान में उतारा है, लेकिन इन दोनों का गणित बसपा के वृंदावन सिंह सिकरवार बिगाड़ेंगे। यहां पर लहर काम नहीं आती है। इस सीट पर चुनाव जातिगत आधार पर होता है। ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, पिछड़ी व अनुसूचित जाति बहुल्य वाले इस क्षेत्र में मतदाता प्रत्याशी के समाज के आधार पर वोट डालते हैं, न कि पार्टी के आधार पर। कांग्रेस के लिए बड़ी आफत वृंदावन सिकरवार ने खड़ी कर दी है। वे पहले कांग्रेस में थे और कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. गोविंद सिंह के समकक्ष थे। भाजपा के तेज-तर्रार नेता अनूप मिश्रा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे हैं। वे पिछला विधानसभा चुनाव भितरवार से हार गए हैं। पार्टी ने अनूप मिश्रा को मुरैना से प्रत्याशी बनाकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक ओर मिश्रा की उम्मीदवारी से मुरैना में भाजपा की गुटबाजी का असर चुनाव पर नहीं पड़ेगा। दूसरी ओर अनूप के पास समर्थकों की बड़ी फौज के साथ-साथ चुनाव में खर्च करने की क्षमता भी अधिक है। मुरैना में ठाकुर मतदाताओं की संख्या अधिक है, इसलिए डॉ. गोविंद सिंह अपना पलड़ा भारी मान रहे हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी और भाजपा की लहर के सामने जातिगत समीकरण कितने चलेंगे, कहना मुश्किल है। डॉ.गोविंद सिंह मुरैना सीट पर वृंदावन सिकरवार को ही अपनी ताकत मानते थे। वृंदावन सिंह सिकरवार के बसपा के जाने से उनके समीकरण गड़बड़ा गए हैं। वहीं भाजपा उम्मीदवार अनूप मिश्रा भी ब्राह्मण वोट व नरेन्द्र सिंह के वोट बैंक के सहारे मुरैना में आए हैं। लेकिन चुनाव के जातिगत आधार पर होने से मुरैना में मुकाबला त्रिकोणीय और रोमांचक हो गया है। कांग्रेस ने डॉ. गोविंद सिंह को ठाकुर वोट बैंक के सहारे मुरैना संसदीय क्षेत्र में उतारा है। लेकिन बसपा ने मुरैना लोकसभा में ठाकुर प्रत्याशी वृंदावन सिंह सिकरवार को ही उतार दिया। वृंदावन सिंह ठाकुर वोट बैंक को बांटेंगे। वृंदावन सिंह न केवल ठाकुर वोट बैंक को बांटेगे, बल्कि बसपा के परंपरागत दलित वोट भी उन्हें मिलेगा। साथ ही पिछड़े वर्ग का मतदाता बंटा हुआ है। इस वजह से भी कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं।
भाजपा के लिए परेशानियां कम नहीं
भाजपा प्रत्याशी ब्राह्मण वोटों, भाजपा के परंपरागत वोट व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह के व्यक्तिगत वोट बैंक के सहारे मुरैना आए हैं। लेकिन भाजपा प्रत्याशी भी बाहरी हैं। भाजपा विधानसभा चुनाव से पहले तक अंबाह व दिमनी (तवंरघार) सुमावली व जौरा क्षेत्र में सबसे अधिक मजबूत थी। यहां पर ठाकुर (तोमर व सिकरवार) मतदाता भाजपा को वोट देते आए थे। लेकिन बदले हुए समीकरणों में ये वोट भाजपा में न जाकर बसपा प्रत्याशी के खाते में जा सकते हैं। इन्हीं क्षेत्रों में नरेन्द्र सिंह का भी प्रभाव था। यदि इन चारों विधानसभाओं के ठाकुर मतदाता मूव करते हैं तो भाजपा के लिए मुश्किल बढ़ जाएंगी।
भिंड संसदीय क्षेत्र.......
भिंड में भाजपा के भागीरथ प्रसाद कांग्रेस की इमरती देवी और बसपा के मनीष कतरोलिया के बीच मुकाबला है। भिंड में कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी भागीरथ प्रसाद के अचानक भाजपा में जाने के बाद समीकरण एकदम बदल गए हैं। अशोक अर्गल का टिकट काटकर भागीरथ को टिकट दिए जाने से भाजपा खेमें में नाराजगी है। अर्गल से वैसे भी सब नाराज चल रहे हैं। शुरू में तो यह कहा जा रहा था कि 'कार्यकर्ता न करेंगे काम तो क्या कर लेंगे अर्गलÓ। इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा नेताओं, मंत्रियों, व्यापारियों तथा मतदाताओं को अर्गल ने निराश ही किया हैें। कांग्रेस के लिए यह स्थिति बेहद लाभकारी हो सकती थी लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक के चलते उसकी स्थिति काफी कमजोर बनी हुई हैं जिसके चलते कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिये इस संसदीय सीट से अपने उम्मीदवार का नाम इमरती देवी तय कर पाने में काफ ी समय तक असमंजस की स्थिति बनी रही। मजे की बात हंै कि इस संसदीय क्षेत्र से पार्टी के उम्मीदवार तय करने में कांग्रेसी नेताओं के मतभेद सतह पर आ गए हैं जो अभी तक ढके-छिपे हुए थे। इस सीट पर अब नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पार्टी नेतृत्व ने कटारे को भिंड में जिताऊ उम्मीदवार का नाम देने की जिम्मेदारी सौंपी है। बताया जाता है कि कटारे ने पूर्व गृह मंत्री महेन्द्र बौद्ध का नाम आगे बढ़ाया है। भिंड में कांग्रेस की जीत-हार से कटारे का भविष्य जुड़ा माना जा रहा है।उधर सपा ने बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे स्व पीपी चौधरी की पुत्र वधु अनीता चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया हैं। अनीता के पति हितेन्द्र की कुछ साल पहले जौरा में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। पति और सुसर की हत्या के पश्चात अनीता डेढ़ साल तक राजनीति से दूर रही मगर अब सक्रिय राजनीति में कूद पड़ी हैं। महिला मतदाता को अपनी और आकर्षित करने के मकसद से कांग्रेस ने ड़बरा विधायक इमरती देवी को इस संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया हैं। गिर इस बार कांग्रेस, सपा, आप ने अपना उम्मीदवार महिला को बनाया हैं।
ग्वालियर में तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर...
वहीं ग्वालियर में भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस के अशोक सिंह के लिए खतरे की घंटी हैं बसपा के आलोक शर्मा। नरेंद्र सिंह तोमर के ऊपर पूरे प्रदेश में प्रचार करने की जिम्मेदारी है। यही कारण है कि तोमर ने मुरैना के बजाए अपने गृह नगर ग्वालियर लोकसभा से लडऩे का निर्णय लिया है। ग्वालियर को तोमर के लिए सबसे सेफ सीट माना जा रहा है। कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार अशोक सिंह को उम्मीदवार बनाया है। अशोक सिंह दो बार यशोधरा राजे सिंधिया से चुनाव हार चुक हैं। ग्वालियर के धनाढ्य व व्यवसायी परिवार से जुड़े अशोक सिंह के लिए यह चुनाव अभी नहीं तो कभी नहीं वाला है। क्योंकि यदि वे लगातार तीसरी बार चुनाव हारे तो उनका राजनीतिक कैरियर समाप्त होने का खतरा है। यही कारण है कि अशोक सिंह इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा के लिए यह चुनाव नरेन्द्र सिंह तोमर का नहीं, प्रदेश अध्यक्ष की प्रतिष्ठा का चुनाव है। यही कारण है कि भाजपा भी पूरी ताकत से चुनाव में उतर रही है। उधर बसपा उम्मीदवार आलोक शर्मा की ताकत को सिर्फ एक बिरादरी विशेष का वोट काटने तक ही सीमित समझा जा रहा है, पर वे स्वयं इस बात को माननेे के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि- 'मैं जीतने के लिये ही ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से खड़ा हुआ हूं।Ó लेकिन उनकी पार्टी का चुनावी रिकार्ड उन्हें वोट काटने वाली ताकत से अधिक नहीं बताता। जहां तक कार्यकर्ताओं का सवाल है तो उनकी पहुंच हरिजन एवं ब्राम्हण वर्ग तक ही सीमित है। इन दो वर्गों की ताकत के बूते चुनाव तो लड़ा जा सकता है लेकिन दो वर्गों की ताकत ही चुनाव में विजय दिलाने के लिए काफी नहीं हैं। लेकिन यह निश्चित है कि बसपा प्रत्याशी का चुनाव लडऩा कांग्रेस के लिए परेशानी का कारण है क्योंकि बसपा हरिजनों के जिन मतों को खीचेंगे, वह कांग्रेस के परम्परागत मत समझे जाते हैं। राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए फिलहाल यह बता पाना मुश्किल है कि ग्वालियर में किसकी झोली भरेगी और कौन हाथ मलेगा?
बालाघाट संसदीय सीट...
बालाघाट सीट पर भाजपा के बोधसिंह भगत और कांग्रेस की हीना कांवरे के लिए सपा के अनुभा मुंजारे विलेन बनी हुए हैं। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे इस लोकसभा क्षेत्र में आदिवासी वोटों के अलावा लोधी और पवार जाति के वोट ही निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। भाजपा ने यहां से बोधासिंह भगत को प्रत्याशी बनाया है जो पवार जाति से हैं। पवार जाति से ही कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन भी हैं जो इस फैसले से पूरी तरह खुश नहीं हैं। उनके समर्थक भी नाराज हैं। जिसका खामियाजा भगत को उठाना पड़ेगा। दूसरी तरफ भाजपा से लोधी वर्ग के लोग नाराज हैं। इस वर्ग के प्रहलाद पटेल पहले यहां से सांसद भी रह चुके हैं। कांग्रेस ने यहां युवा और राहुल गांधी की टीम की सदस्य स्वर्गीय लिखीराम कांवरे की की बेटी हीना कांवरे को मैदान में उतारा है। इनका सिवनी व बरघाट नया कार्यक्षेत्र होने के कारण ज्यादा प्रभाव नहीं। जातिगत समीकरण के चलते वोटों का ध्रुवीकरण होना इनके लिए हानिकारक होगा। इन युवा व प्रौढ़ प्रतिद्वंद्वियों को सपा की अनुभा मुंजारे भी चिर-परिचित अंदाज में चुनौती दे रही हैं। जिससे ओबीसी वोटों के ध्रुवीकरण होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। ये वही अनुभा हैं जिन्होंने हालिया विधानसभा चुनाव में मंत्री गौरीशंकर बिसेन की जीत कठिन बना दी थी। इनके अलावा इस सीट के मिजाज के मुताबिक राष्ट्रीय व प्रादेशिक व क्षेत्रीय दलों सहित निर्दलीय रूप में दर्जन भर से अधिक प्रत्याशी चुनाव में खड़े हैं। और लगभग सभी की उम्मीदवारी के पीछे उनका अपना जातिगत समीकरण है। विधानसभा चुनाव में बालाघाट संसदीय सीट में आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा को बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी व बरघाट में जीत मिली, जबकि कांग्रेस ने बैहर, परसवाड़ा व लांजी सीट पर कब्जा किया था। सिवनी में निर्दलीय को जीत मिली। आजादी के बाद से हुए 10 लोकसभा चुनावों में लगातार भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। 1998 में गौरीशंकर बिसेन ने कांग्रेस सांसद विश्वेश्वर भगत को हराकर पहली बार भाजपा की जीत का खाता खोला। इसके बाद से यहां भाजपा ही जीतती आ रही है। यहां आप प्रत्याशी को भी अपनों से ही डर है। दरअसल, शुरुआत से जो लोग आम आदमी पार्टी का झंडा लिए और टोपी पहने घूमते थे, टिकट वितरण के बाद पार्टी प्रत्याशी उत्तमकांत चौधरी का सड़क पर विरोध जताकर उन्होंने खुद को अलग कर लिया है।
मंदसौर में भाजपा संकट में...
मंदसौर सीट पर कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन और भाजपा के सुधीर गुप्ता का चुनावी गणित आप के पारस सकलेचा बिगाड़ेंगे। लंबे समय ये भाजपा का गढ़ रही इस सीट से पार्टी ने सुधीर गुप्ता को अपना प्रत्याशी बनाया है। ब्राह्मण मतदाताओं के बाहुल्य वाली इस सीट से लक्ष्मीनारायण पाण्डे कई बार सांसद रहे हैं। पर इस बार रघुनंदन शर्मा को प्रत्याशी बनाए जाने की अटकलें लगाई जा रहीं थीं। अचानक गुप्ता को टिकट दिए जाने के पीछे भी पार्टी के नेता जातिगत समीकरण बता रहे हैं। सूत्रों की मानें तो वैश्य समाज को एडजस्ट करने के लिए मंदसौर का टिकट अनजान नेता गुप्ता को दिया गया। गुप्ता का नाम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से लाया गया था। पार्टी नेताओं की मानें तो वे इस सीट से जीत के प्रति भी पूरी तरह आश्वस्त हैं। उनका मानना है कि इस समय मोदी की आंधी और प्रदेश में शिवराज फैक्टर के कारण मंदसौर सीट जीतने में कोई परेशानी नहीं आएगी। इधर मंदसौर सीट के दूसरे दावेदार बंशीलाल गुर्जर को टिकट नहीं दिए ताने से वे भी नाराज हैं। प्रदेश की कई सीटों में गुर्जर मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा है पर भाजपा के नेता नहीं है। यहां से जब रघुनंदन शर्मा के भाजपा के टिकट पर मैदान में आने की खबर थी तब तक तो कांग्रेस को कुछ सूझ नहीं रहा था। अब सुधीर गुप्ता की उम्मीदवारी से कांग्रेस में राहत है। यहां का चुनाव अब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्रसिंह तोमर और प्रदेश कोषाध्यक्ष चैतन्य काश्यप के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। उधर,कांग्रेस की उम्मीदवार मीनाक्षी नटराजन के खिलाफ एंटीइंकंवेंसी है। लेकिन भाजपा का कमजोर प्रत्याशी उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन उनका सारा खेल आम आदमी पार्टी के पारस सकलेचा बिगाड़ सकते हैं। सकलेचा जमीनी नेता हैं और क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है। ये भाजपा और कांग्रेस दोनों के वोट पर चोट कर सकते हैं।
अरुण यादव की अध्यक्षी दांव पर
खंडवा में भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान और कांग्रेस के अरुण यादव के लिए आप के आलोक अग्रवाल खतरा बने हुए हैं। यहां से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का रास्ता रोकने के लिए भाजपा ने अभी से आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। कांग्रेस यहां संगठन पर कम और यादव की निजी टीम के भरोसे ज्यादा है। यहां भाजपा के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने जैसा तेवर दिखाया है उससे स्पष्ट है कि पार्टी अब किसी तरह की ढील देने के पक्ष में नहीं है। भाजपा यहां बूथ स्तर तक की जिम्मेदारी तय कर चुकी है। कहां, कब और क्या संसाधन लगेंगे, इसका आकलन हो गया है। जातिगत समीकरणों का भी पार्टी पूरा फायदा लेना चाहती है और इन जातियों पर प्रभाव रखने वाले पार्टी नेताओं को अभी से मोर्चे पर लगाया गया है। चूंकि यहां भाजपा के बड़े नेताओं में आपसी विवाद बहुत है, इसलिए पार्टी ने वजनदार नेताओं को साधने का काम विजयवर्गीय को सौंपा है। पिछला चुनाव भाजपा भारी गुटबाजी के चलते हारी थी। इन सब के बीच आम आदमी पार्टी के आलोक अग्रवाल दोनों दलों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। क्षेत्र में नर्मदा बचाओ आंदोलन और जागृत दलित आदिवासी संगठन की अपनी-अपनी जमीन और विचारधारा है। इनसे जुड़े लोगों की संख्या भी खासी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में आंदोलन और संगठन का गठबंधन निमाड़ में नया राजनीतिक समीकरण माना जा रहा है। क्षेत्र में नर्मदा बचाओ आंदोलन जहां डूब, पुनर्वास, विस्थापन आदि को लेकर लंबे समय से अपनी पैठ बनाए हुए है। वहीं जागृत आदिवासी दलित संगठन मनरेगा, मातृ एवं शिशु सुरक्षा व स्वास्थ्य, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि जैसे मुद्दों को लेकर काम कर रहा है। इन जनहितैषी मुद्दों के चलते इनका सीधा संपर्क अंतिम व्यक्ति तक है। दोनों ही जनआंदोलनों का नेतृत्व महिला शक्ति के हाथों में है। आंदोलन का जिम्मा मेधा पाटकर के पास है, तो संगठन की बागडोर माधुरी बहन ने संभाल रखी है।
सतना सीट पर दो सिंहों को ब्राह्मïण की चुनौती...
सतना सीट पर भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह राहुल के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, लेकिन बसपा ने ब्राह्मïण जाति के धर्मेंद्र तिवारी को मैदान में उतारकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही असंतोष नजर आ रहा है। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने अजय सिंह राहुल का विरोध करते हुए पार्टी से मुंह फेर लिया। प्रत्याशी की घोषणा के बाद युवक कांग्रेस लोकसभा अध्यक्ष सुभाष शर्मा डोली व युवक कांग्रेस शहर अध्यक्ष विजय तिवारी ने पार्टी छोड़ दी। वहीं पूर्व में सईद अहमद की दावेदारी प्रबल मानी जा रही थी, लेकिन अजय सिंह को टिकट मिलते ही इनकी भूमिका क्षेत्र में नजर नहीं आई, अभी तक इन्हें अजय सिंह के समर्थन में क्षेत्र में प्रचार करते नहीं देखा गया। वहीं भाजपा के गणेश सिंह के प्रति रामपुर बाघेलान से भाजपा विधायक हर्षप्रताप सिंह का विरोध जगजाहिर है। महापौर पुष्कर सिंह की भी भूमिका कुछ हद तक संदेहास्पद नजर आ रही है। पिछले दिनों क्षेत्र में आए सीएम शिवराज सिंह ने हर्षप्रताप सिंह व पुष्कर सिंह को बुलाकर पार्टी के पक्ष में काम करने की हिदायत दी थी। यहां बसपा ने ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रखकर धर्मेन्द्र तिवारी को मैदान में उतारा है। माना जाता है कि ब्राह्मण वोट यहां निर्णायक की भूमिका अदा करते हैं और वे दोनों की राष्ट्रीय दलों से नाराज चल रहे हैं। सपा ने यहां से नया चेहरा रामपाल यादव को मैदान में उतारा है इसलिए उसका दखल ज्यादा नहीं माना जा रहा है। नागौद निवासी पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह के खजुराहो से लडऩे का असर भी यहां के चुनाव पर दिख सकता है। उनके साथ यहां के भाजपा कार्यकर्ता भी खजुराहो इलाके में काम करेंगे।
रीवा में क्या बसपा बचा पाएगी सीट...?
रीवा में बसपा प्रत्याशी निवर्तमान सांसद देवराज पटेल, कांग्रेस प्रत्याशी सुंदरलाल तिवारी और भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा के बीच त्रिकोणीय मुकाबले के हालात बन रहे हैं। इस सीट पर भी ब्राह्मण मतदाताओं को निर्णायक बताया जाता है, लेकिन ये वोट कांग्रेस और भाजपा में विभाजित हो सकते हैं। हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी ने देवराज पटेल को टक्कर दी थी। भाजपा के पक्ष में यह है कि विधानसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। इस सीट पर सपा ने भैयालाल कोल को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन उनका दखल ज्यादा नहीं दिखता। हालांकि वे भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता रह चुके हैं। यहां भी कांग्रेस प्रत्याशी सुंदरलाल तिवारी और भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा के सामने पहली चुनौती अपनों से ही निपटने की है। कांग्रेस खेमे में अंतर्कलह सतह पर तो नहीं आया, लेकिन विंध्य के प्रमुख दो घरानों में से एक अमहिया घराने से प्रत्याशी होने को लेकर अंदर ही अंदर कार्यकर्ताओं में भी असंतोष की भावना है। लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी तीसरी बार उन्हें टिकट मिला है, इसका भी गुस्सा कार्यकर्ताओं में है। कांग्रेस में सुन्दरलाल को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद पूर्व कांग्रेसी नेता एवं रीवा महाराज पुष्पराज सिंह ने तो पार्टी ही छोड़ दी। भाजपा में अंतर्कलह इससे भी ज्यादा है। सेमरिया के पूर्व विधायक अभय मिश्रा नाराज चल ही रहे हैं। वहीं गुढ़ विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक नागेन्द्र सिंह हर हाल में उप चुनाव चाह रहे हैं। वहीं मौजूदा विधायक पर जातीय समीकरण को लेकर कांग्रेस के साथ जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। जातीय समीकरण भी दोनों दलों के नेताओं और पदाधिकारियों को विद्रोह करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
शहडोल में गोंगपा बनी बीच का कांटा...
वहीं शहडोल में कांग्रेस प्रत्याशी राजेश नंदिनी सिंह और भाजपा प्रत्याशी दलपत सिंह परस्ते की जीत के बीच गोंगपा के रामरतन सिंह पावले कांटा बने हुए हैं। यहां कांग्रेस प्रत्याशी निवर्तमान सांसद राजेश नंदिनी सिंह और भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद दलपत सिंह परस्ते के बीच ही मुख्य मुकाबला है। इस सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी दखल है। गोंगपा से रामरतन सिंह पावले फिर मैदान में हैं। यहां आम आदमी पार्टी ने विजय कोल को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन उनका कोई खास असर नहीं बताया जा रहा है। यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला है। हालांकि दोनों दल अपने ही घर के अंतर्कलह से जूझ रहे हैं। भाजपा की स्थिति तो यहां तक पहुंच गई कि झंडा-बैनर लगाने का ठेका देना पड़ा। भाजपा में तीन खेमे बन गए हैं। लोकसभा प्रभारी, उप प्रभारी एवं प्रत्याशी का अलग-अलग खेमा बन गया है और व्यवस्थाओं को लेकर खींच-तान मची हुई है। कांग्रेस का एक बड़ा खेमा खामोश है। दोनों दलों में चुनाव प्रचार की व्यवस्था को लेकर अंतर्कलह पनप रहा है। दलपत सिंह का चुनाव प्रचार अपने गृह क्षेत्र अनूपपुर जिले तक ही सिमटा हुआ है। यदि शिवराज सिंह चौहान और नरेन्द्र मोदी का फैक्टर भाजपा का साथ नहीं दे पाया तो दलपत सिंह के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। भाजपा जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं का उत्साह भी कमजोर पड़ गया है। हालांकि प्रत्याशी घोषणा के बाद से ही युवा मोर्चा में विरोध के स्वर उभर आए थे जिसका असर प्रचार-प्रसार में दिख रहा है। चुनाव कार्य की जिम्मेदारी संभाल रहे पदाधिकारी इस बात को लेकर निश्चिंत है और वह यह मान बैठे है कि जब तक शिवराज सिंह व नरेन्द्र मोदी का नाम उनके साथ है तब तक उन्हें चिंता करने की बात नहीं है। कार्यकर्ता भले ही असंतुष्ट रहे, लेकिन मतदाता उनका साथ देगा ही। कांग्रेस प्रत्याशी राजेश नंदिनी सिंह ने अपनी बेटी हिमाद्री सिंह को चुनाव प्रचार में उतार दिया है। विधानसभा चुनाव में भी बेटी के प्रचार का फायदा कांग्रेस को मिला है और लोकसभा में भी मिलेगा ऐसा माना जा रहा है। कांग्रेस का एक बड़ा खेमा प्रचार-प्रसार से दूरी बनाए हुए है और अब तक व्यवस्था के इंतजार में है।
यहां भितरघात में उलझे समीकरण
इसके अलावा कई सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को भितरघात का डर भी सता रहा है। कहीं पार्टी के पदाधिकारी खुलकर विरोध कर रहे हैं, तो कहीं छिपकर विरोधी का प्रचार करने लगे हैं। ऐसे नेता अपने ही प्रत्याशी की रणनीति पर पानी फेरने का काम भी कर रहे हैं।
होशंगाबाद संसदीय सीट...
राव उदयप्रताप सिंह को भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने से नरसिंहपुर जिले के कई वरिष्ठ नेता नाखुश हैं। कांग्रेस का आलम भी यही है। पार्टी के कई नेता पड़ोसी संसदीय क्षेत्रों में चले गए हैं। कांग्रेस के होशंगाबाद जिला उपाध्यक्ष पीयूष शर्मा को भाजपा प्रत्याशी राव उदयप्रताप सिंह ने अपनी एक सभा में माला पहनाकर भाजपा में शामिल कर लिया, लेकिन भाजपा जिला इकाई होशंगाबाद के अध्यक्ष और कार्यकारिणी को यह बात रास नहीं आई। उनके इस्तीफे की पेशकश और बढ़ते विरोध को देखकर अंतत: भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष का भाजपा में प्रवेश रोक दिया।ं के।
जबलपुर
इस सीट पर भी दलों को भितरघात का डर सता रहा है। पाटन से विधानसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व मंत्री अजय विश्नोई यहां से टिकट मांग रहे थे। टिकट नहीं मिलने से नाराज विश्नोई को चुनाव प्रबंधन का काम सौंपकर सतना भेज दिया गया है। माना जा रहा है कि भाजपा ने भितरघात के डर से ऐसा किया है। वहीं कांग्रेस ने भी सभी दावेदारों को दरकिनार कर विवेक तन्खा को टिकट दी है। इससे पार्टी के कई पुराने दिग्गज नेता नाराज बताए जा रहे हैं। हालांकि तन्खा का विरोध खुलकर किसी ने नहीं किया है, लेकिन कई नेता प्रचार में दिखाई नहीं दे रहे हैं।
छिंदवाड़ा
महाकोशल क्षेत्र की इस सीट पर दोनों हीं दलों में अब तक अंतर्कलह जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। बताया जाता है कि दोनों ही दलों के नेता पहले से ही मानकर चल रहे थे कि टिकट किसको मिलेगी। भाजपा में जरूर एक-दो नेता चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं दिख रहे हैं, लेकिन पार्टी इससे इनकार करती है।
मंडला
पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में टिकट मांग रहे पूर्व भाजपा विधायक शिवराज शाह चुनाव को लेकर उत्साहित नजर नहीं आ रहे। वे भाजपा प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते के प्रचार अभियान में भी दिखाई नहीं दे रहे। ऐसी ही स्थिति कांग्रेस प्रत्याशी ओंकार मरकाम के साथ है। डिंडौरी जिले के पार्टी पदाधिकारी खुलकर उनका विरोध कर चुके हैं। उन्होंने प्रत्याशी पर कई आरोप लगाते हुए सोनिया गांधी तक को पत्र लिखा है।
सीधी
यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों ही भितरघात से जूझ रही हैं। सीधी और सिंगरौली जिले के भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रचार करने से कन्नी काट रहे हैं। टिकट नहीं मिलने से निवर्तमान सांसद गोविन्द मिश्रा नाराज चल रहे हैं। उनके साथ टिकट के अन्य दावेदार भी रीति पाठक का प्रचार नहीं कर रहे हैं। बताया जाता है कि कुछ पार्टी नेता तो अपने ही उम्मीदवार को हराने के लिए जाल बिछा रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी इन्द्रजीत कुमार को भी पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इन्द्रजीत को टिकट मिलने के बाद कांग्रेस के पूर्व मंत्री वंशमणि वर्मा के साथ कई नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। अजय सिंह को यहां से टिकट नहीं मिलने के कारण उनके समर्थक भी नाराज हैं।
उज्जैन,देवास में नमो और संघ के सहारे
भगवा ब्रिगेड के पुरातन गढ़ मालवा की लोकसभा सीटों उज्जैन और देवास को बरसों बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने खोया था। लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के सहारे भाजपा इस बार यहां चुनावी नैया पार करने की तैयारी कर रही है।
उज्जैन संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने इस बार विक्रम विश्वविद्यालय की दर्शनशास्त्र अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ.चिंतामणि मालवीय को नए चेहरे के रूप में मैदान में उतार दिया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक यह प्रयोग जनता छोड़ पार्टी के ही कुछ नेताओं और कई कार्यकर्ताओं के गले अब तक नहीं उतर पाया है। देवास संसदीय सीट से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थावरचंद गेहलोत यहां से चुनाव लड़ते और जीतते आए। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सज्जनसिंह वर्मा से हारे और इस बार उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया। उनकी जगह आगर के विधायक और पूर्व मंत्री मनोहर ऊंटवाल को मैदान में उतारा गया है। रतलाम जिले की आलोट विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके ऊंटवाल की उम्मीदवारी को पार्टी का ही एक धड़ा अब तक नहीं पचा पाया है।
भाजपा के कई उम्मीदवार 55 पार भी
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में सबसे ज्यादा बुजुर्गों को मैदान में उतारा है। दिलीप सिंह भूरिया, सुमित्रा महाजन, लक्ष्मीनारायण यादव, दलपत सिंह परस्ते, नागेंद्र सिंह, भागीरथ प्रसाद ये ऐस चेहरे हैं, जो 70 की उम्र पार कर चुके हैं। इसके बाद 55 पार करने वाले एक दर्जन उम्मीदवार हैं। झाबुआ में 80 साल के दिलीप सिंह भूरिया का विकल्प दिया गया है। इंदौर में 70 साल की सुमित्रा महाजन हैं। सागर में 70 साल के ही लक्ष्मीनारायण यादव हैं। भिंड में इतनी ही उम्र के भागीरथ प्रसाद हैं। शहडोल में दलपत सिंह परस्ते, खजुराहो में नागेंद्र सिंह हैं। इसके बाद 55 और 60 की उम्र के नेताओं की बयार है। विदिशा से सुषमा स्वराज, ग्वालियर से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, मुरैना में अनूप मिश्रा, खंडवा में नंदकुमार सिंह चौहान, छिंदवाड़ा में चौधरी चंद्रभान सिंह, शिवपुरी में जयभान सिंह पवैया, होशंगाबाद में राव उदयप्रताप सिंह, जबलपुर में राकेश सिंह, दमोह में प्रहलाद पटेल, राजगढ़ में रोडमल नागर, रीवा में जनार्दन मिश्रा, मंदसौर में सुधीर गुप्ता हैं। भाजपा में 50 साल से कम उम्र के तीन ही प्रत्याशी हैं। भोपाल में आलोक संजर, सीधी में रीति पाठक और खरगौन में सुभाष पटेल।