शनिवार, 31 मई 2014

झा प्रदेश अध्यक्ष तो बीडी को बनाया जा सकता है महामंत्री

तोमर के केंद्र में मंत्री बनते ही शुरू हुई़ अटकलें भाजपा। आज मोदी सरकार के गठन के साथ ही अब भाजपा अपने संगठन में भी फेरबदल की तैयारी में जुट जाएगी। केंद्रीय संगठन के साथ ही प्रदेश संगठन में भी बदलाव किया जाएगा। केंद्र में मप्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्रसिंह तोमर को मंत्री बनाए जाने के साथ ही नए प्रदेशाध्यक्ष के रूप में प्रभात झा का नाम सामने आ गया है। वहीं अब संगठन महामंत्री अरविंद मेनन को भी बदला जाएगा। मेनन को केंद्रीय संगठन में या फिर किसी अन्य प्रांत में जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। संभवत: विष्णु दत्त शर्मा(वीडी शर्मा) को मप्र भाजपा का नया संगठन मंत्री बनाया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो मप्र में झा और वीडी पर नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का जीता कर कांग्रेस का प्रदेश से पूरी तरह सफाया करने की जिम्मेदारी होगी। उल्लेखनीय है कि झा ने अपने पूर्व कालकाल में प्रदेश संगठन को इतना मजबुत और सक्रिय कर दिया था कि विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में पार्टी को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। उन्होंने प्रदेश भाजपा कार्यालय से लेकर ब्लॉक स्तर तक के पदाधिकारियों को एक सूत्र में पिरोया। यही नहीं उन्होंने आदिवासी और अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में खुद डेरा डाल कर उन्हें भाजपा से जोड़ा। झा के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में की गई मेहनत और अनुभव को देखते हुए पार्टी आलाकमान उन्हें पुन: प्रदेशाध्यक्ष बना सकता है। वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के रास्ते भाजपा में आए विष्णु दत्त शर्मा अब नए ठौर की तलाश में हैं। पांच महीने पहले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनकी सेवाएं भाजपा को सौंपी थीं। देश में चुनाव की प्रक्रिया संपन्न होते ही संघ और भाजपा इस बारे में अहम् फैसला करने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा में आने के बाद वीडी शर्मा को पार्टी ने पहला टारगेट झारखंड जाकर चुनावी मैनेजमेंट संभालने का दिया था। वहां पार्टी को मिली जीत के बाद संगठन शर्मा को बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहता है। अगले पखवाड़े तक इनकी भाजपा में नई भूमिका तय होने की संभावना है। भाजपा की दिल्ली में संपन्न राष्ट्रीय परिषद के दौरान संघ ने मप्र के वीडी शर्मा की सेवाएं भाजपा को सौंपने का फैसला किया था। शुरुआती कुछ दिन शर्मा को छत्तीसगढ़ के संगठन महामंत्री रामप्रताप के साथ सहयोगी की भूमिका में रखा गया। इसके बाद उनकी तैनाती लोकसभा चुनाव में झारखंड कर दी गई। उन्हें झारखंड में बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की जमावट और चुनावी रणनीति बनाकर राज्य की 15 सीटों में से अधिक से अधिक सीटों पर कमल खिलाने की चुनौती दी गई थी। शर्मा ने संगठन के अन्य पदाधिकारियों के साथ मिलकर भाजपा को 12 सीटों पर जीत दिलाई है। अब बेहतर चुनावी नतीजों से उनके नए कार्यक्षेत्र का रास्ता प्रशस्त होगा। संघ और संगठन अब वीडी शर्मा की नई जवाबदारी के बारे में निर्णय करेगा। लंबे समय तक अभाविप में क्षेत्रीय संगठन मंत्री के बतौर कार्यरत रहे शर्मा के नए ठौर का फैसला संघ की ओर से भाजपा का काम देख रहे सह सर कार्यवाह भैयाजी जोशी एवं सुरेश सोनी की सलाह पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और संगठन महामंत्री रामलाल करेंगे। जिन राज्यों के संगठन महामंत्रियों की भूमिकाओं में बदलाव की संभावना है उनमें उप्र, बिहार, राजस्थान, झारखंड, दिल्ली और मप्र का भी जिक्र किया जा रहा है। हालांकि मप्र में अरविंद मेनन को संगठन महामंत्री बने करीब साढ़े तीन साल हो चुके हैं। उनका परफार्मेंस भी काफी सराहा जा चुका है। मेनन 2008 के विधानसभा एवं 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन संगठन महामंत्री माखन सिंह के साथ बतौर सह संगठन महामंत्री के रूप में कार्यरत थे। उनके अलावा भगवत शरण माथुर भी सह संगठन महामंत्री के रूप में यहां तैनात थे। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मप्र में 165 और लोकसभा चुनाव में 27 सीटें जीत कर सभी को चौंका दिया। इस उपलब्धि में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और अरविंद मेनन की प्रमुख भूमिका मानी जा रही है। अब भाजपा को केंद्रीय नेतृत्व चाहता है की मेनन की सेवाएं मुख्य संगठन में लिया जाए। ऐसे में मप्र की राजनीति को भलीभंाति समझने वाले शर्मा को प्रदेश संगठन महामंत्री बनाया जा सकता है। नए प्रदेश प्रभारी की भी तलाश संगठन में बदलाव के साथ ही भाजपा मप्र में प्रदेश प्रभारी भी बदलने की तैयारी कर रही है। क्योंकि मप्र के प्रभारी महासचिव अनंत कुमार को भी मंत्री बना दिया गया है। आठ साल से मप्र के प्रभारी महासचिव अनंत कुमार बैंगलुरू दक्षिण सीट से पांचवी बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। इस बार उनकी जीत काफी अहम रही क्योंकि उन्होंने नंदन नीलेकणि को पराजित किया है,जो कांगे्रस की ओर से प्रधानमंत्री पद के रूप में एक चर्चित चेहरे के तौर पर कहे जा रहे थे। आडवाणी कैम्प के करीबी कहलाने वाले अनंत कुमार की नजदीकियां मोदी से बहुत गहरी तो नहीं हैं,लेकिन संघ की सिफारिश पर उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया है। अब इस सूरत में प्रदेश भाजपा के लिए नए प्रभारी की जरूरत है। इसके लिए संगठन कुछ पूर्व प्रदेश प्रभारियों के साथ ही नए नामों पर भी विचार करेगा।

बुजुर्ग लीडर बनाए जाएंगे राज्यपाल

पटवा, जोशी,वर्मा और सारंग का हो सकता है कि पुर्नवास
कांग्रेस नेतृत्व की कृपा के कारण राजभवन में पदस्थ आधा दर्जन से ज्यादा राज्यपालों को जाना पड़ सकता है। उनके स्थान पर भाजपा के कुछ बुजुर्ग नेताओं के साथ-साथ पुराने नौकरशाहों को जगह मिल सकती है। ऐसे मोदी लहर में किनारे कर दिए गए कई बुजुर्ग नेताओं को भी अपनी सरकार बनने का फायदा मिलने की उम्मीद है। इसमें मप्र के दो पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी और सुन्दरलाल पटवा का नाम सबसे ऊपर है इनके अलावा कैलाश सारंग,विक्रम वर्मा और लक्ष्मीनारायण पांडे का नाम चर्चा में है। वहीं अन्य राज्यों से कल्याण सिंह, विजय कुमार मल्होत्रा, यशवंत सिन्हा, लालजी टंडन समेत कई अन्य नेता शामिल हो सकते हैं। सरकार में परिवर्तन के साथ यूं तो अलग-अलग राज्यों के राजभवन में भी बदलाव होता रहा है। इस बार भी कई राज्यपाल पहले से ही इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के लिए उन्हें हटाने की जहमत नहीं उठानी होगी। खबर है कि लगभग आठ राज्यपाल जल्द ही बदले जा सकते हैं। जिन राज्यों के राज्यपाल बदले जाएंगे पार्टी वहां अपने नेताओं को एडजस्ट करेगी। सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा के कुछ बुजुर्ग नेता राज्यसभा में जाने का मन बनाए हुए हैं। जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां इस बार एक ही सीट खाली है। और उसके लिए दर्जन भर नेता लॉबिंग कर रहे हैं। इसलिए पार्टी बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल बनाकर उनको सम्मान देना चाहती है। सूत्रों के अनुसार कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज, केरल में नवनियुक्त शीला दीक्षित, राजस्थान में लंबे समय से पदस्थ मार्गेट अल्वा और उत्तराखंड के अजीज कुरैशी ने तो कांग्रेस आलाकमान से पहले ही पद से हटने की इच्छा जता दी है। यूं तो इस्तीफा राष्ट्रपति को भेजा जाता है, बताते हैं कि इन राज्यपालों ने कांग्रेस नेतृत्व से इस बाबत बात की है। माना जा रहा है कि इनके अलावा बिहार, पंजाब, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, गुजरात में भी बदलाव हो सकता है। गौरतलब है कि शीला दीक्षित को हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद केरल में राज्यपाल नियुक्त किया गया था। भाजपा की ओर से आरोप लगता रहा है कि कामनवेल्थ घोटाला मामले में शीला को जांच से बचाने के लिए ही उन्हें राज्यपाल बनाया गया था। हंसराज भारद्वाज की भाजपा की पुरानी राज्य सरकार से ठनी रहा करती थी। उनकी शिकायत भाजपा राष्ट्रपति तक से कर चुकी थी। पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल ने गृहमंत्री रहते एक साथ चार राज्यपालों को इस आरोप के साथ हटाया था कि वह संघ की विचारधारा से प्रेरित हैं। गुजरात में कमला बेनीवाल और खुद मोदी सरकार के बीच कई विवाद रहे हैं। भाजपा इन राज्यपालों के कामकाज और दखलअंदाजी को लेकर सवाल उठाती रही है। अब बदलाव की तैयारी है। शुरुआत में करीब आठ राज्यपाल बदले जाएंगे। सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा के दिग्गज व वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह, मल्होत्रा, टंडन समेत, हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं में से किसी एक को राज्यपाल बनाने की बात हो रही है। वैसे कल्याण का मन राज्यसभा में आने का है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह राजभवन जाएंगे। उत्तर प्रदेश से ही आने वाले भाजपा के केंद्रीय स्तर के एक वरिष्ठ नेता को भी राज्यपाल बनाए जाने का संकेत है। अगर ऐसा होता है तो टंडन का नाम रुक सकता है। इसके अलावा पुराने नौकरशाहों व पुलिस अधिकारियों के भी नाम खंगाले जा रहे हैं। उन्हें उनके कद के मुताबिक राज्य दिए जाएंगे।

रामनरेश यादव की हो सकती है विदाई

केंद्र में भाजपा की सरकार के आते ही दांव पर लगा कई राज्यपालों का भविष्य भोपाल। केंद्र में भाजपा सरकार आने के साथ ही करीब दर्जनभर राज्यों में राज्यपालों को बदलने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इनमें मप्र के राज्यपाल रामनरेश यादव का नाम भी शामिल है। हालांकि, यादव का प्रदेश सरकार से तालमेल अच्छा रहा है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार यह नहीं चाहेगी कि भाजपा शासित राज्यों में कोई कांगे्रसी राज्यपाल रहे। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नई व्यवस्था में नए लोगों को ही बैठाया जाएगा। हालांकि, कांग्रेस की इस परंपरा के पार जाकर भी कोई फैसला हो सकता है। उल्लेखनीय है कि अपनी आक्रामक छवि के लिए जाने जाने वाले रामनरेश यादव को कांग्रेस ने बड़ी उम्मीदों के साथ मप्र का राज्यपाल बनाया था। प्रदेश में आते ही उन्होंने अपनी आक्रामकता का प्रदर्शन भी किया था, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के सौहार्दपूर्ण व्यवहार के कारण वे आगे अधिक आक्रामक नहीं हो सके। उन्होंने अपने कार्यकाल में सरकार के साथ मिलकर काम किया। यही कारण है कि जहां कांग्रेस संगठन उनके कार्यकाल से संतुष्ट नजर नहीं आया, वहीं भाजपा सरकार में उनकी हर जगह पूछ-परख होती रही। राज्यपाल ने भी अपने व्यवहार से सरकार के साथ हमेशा समन्वय बनाकर रखा। उन्होंने कभी भी संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग नहीं किया। इसलिए प्रदेश भाजपा सरकार तो नहीं चाहेगी कि असमय ही उन्हें बदला जाए। हालांकि जो संकेत मिल रहे हैं, उससे उम्मीद है कि राज्यपाल को बदला जा सकता है। संभावना जताई जा रही है कि आज कार्यभार संभाल रही नरेंद्र मोदी सरकार बड़े पैमाने पर राज्यपालों को शायद ही हटाएगी, लेकिन इस तरह की पूरी संभावना है कि उनमें से कुछ को शालीनता से अपना इस्तीफा देने के लिए कहा जा सकता है, जिससे कि नयी नियुक्तियों का रास्ता साफ हो। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि यह सामान्य चीज है कि नई सरकार राजभवन में जमे कुछ राज्यपालों से इस्तीफा देने को कहे, क्योंकि हो सकता है कि शायद उनके खाके में वे फिट नहीं होते हों। उल्लेखनीय है कि कुछ राज्यपालों का कार्यकाल तीन-चार महिना तो कुछ का आठ महिना है। ऐसे में केंद्र सरकार शायद की इन्हें हटाने की कोशिश करे। राज्यपालों में भारद्वाज (कर्नाटक), जगन्नाथ पहाडिय़ा (हरियाणा), देवानंद कुंअर (त्रिपुरा) और मारग्रेट आल्वा (राजस्थान) के पांच साल का कार्यकाल अगले तीन-चार महीने में पूरा होगा। अगले छह से आठ महीने में जिनका कार्यकाल पूरा होगा, उनमें कमला बेनीवाल (गुजरात), एमके नारायणन (पश्चिम बंगाल), जेबी पटनायक (असम), पाटिल (पंजाब) और उर्मिला सिंह (हिमाचल प्रदेश) का नाम है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की नियुक्ति इस साल मार्च में केरल के राज्यपाल के तौर पर हुई। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा को अप्रैल 2013 में दूसरा कार्यकाल दिया गया। पूर्व गृह सचिव वीके दुग्गल को दिसंबर 2013 में मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। नयी राजग सरकार की समीक्षा के दायरे में अन्य जो राज्यपाल आ सकते हैं उनमें बीएल जोशी (उत्तर प्रदेश) अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं, बीवी वांचू (गोवा), के. शंकरनारायणन (महाराष्ट्र में अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं), के रोसैया (तमिलनाडु),डीवाई पाटिल (बिहार), श्रीनिवास दादासाहेब पाटिल (सिक्किम), अजीज कुरैशी (उत्तराखंड), वकोम पुरूषोत्तम (मिजोरम) और सैयद अहमद (झारखंड) का नाम है। छत्तीसगढ के राज्यपाल शेखर दत्त, अरुणाचल प्रदेश के लेफ्टिनेंट जनरल (अवकाशप्राप्त) निर्भय शर्मा, नगालैंड के अश्विनी कुमार और मेघालय के केके पॉल भी नयी सरकार की समीक्षा के दायरे में आ सकते हैं।

हार के लिए युवा कांग्रेस-एनएसयूआई भी जिम्मेदार !

प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी को भेजा पत्र
भोपाल। प्रदेश में कांग्रेस की करारी हार के लिए युवा कांग्रेस और एनएसयूआई को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कुछ पदाधिकारियों का कहना है कि जब से दोनों संगठनों में चुनाव की प्रक्रिया लागू हुई है तब से कांग्रेस को कोई फायदा मिला हो ऐसा नजर नहीं आया। पहले इन संगठनों में मनोनयन के आधार पर नियुक्तियां होती थी जो उचित थी, लेकिन अब चुनाव की वजह से ऐसे नेता चुनकर आने लगे जिनका जमीनी आधार कमजोर है। इसलिए पार्टी के कुछ नेताओं ने दोनों संगठन में चुनाव के संबंध में वे अपनी आपत्ति कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के समक्ष पत्र लिखकर दर्ज कराया है। वैसे तो किसी भी चुनाव में जीत और हार के कई कारण शामिल रहते हैं, लेकिन जब कोई पराजित होता है तो पार्टीजनों के सहयोग न मिलने व भितरघात को एक प्रमुख कारण मानता ही है, लेकिन पार्टी के कुछ नेता विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस की पराजय की एक वजह एनएसयूआई और युकां के चुनाव को भी मानते हैं। नेताओं का कहना है कि दो साल पहले जब चुनाव हुए थे तब यह लगा था कि जो नेता चुनकर आए हैं वे कुछ कर दिखाएंगे लेकिन गांव और ब्लाक स्तर पर पैठ जमाने के दावे हवा हो गए। धीरे-धीरे यह भी साफ हो गया कि लोगों को सदस्य बनाकर चुनाव लडऩे वाले नेता जमीनी नहीं थे। फिलहाल इन दोनों संगठनों में चुनाव की हलचल तेज हो गई है। दिल्ली में युकां और एनएसयूआई की बैठकों का दौर चल रहा है। एनएसयूआई के चुनाव तो नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव से ही पहले ही हो जाने थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के हो जाने के बाद भी चुनाव नहीं हो पाए हैं। फिलहाल दोनों संगठनों के नेता चुनाव संबंधी गतिविधियों के चलते कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। युकां नेताओं में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मंशा चुनाव कराने की ही है, लेकिन प्रदेश में चुनाव के विरोध को देखते हुए युकां व एनएसयूआई का चुनाव होगा या नहीं इसे लेकर गतिरोध कायम हो सकता है। मनोनयन होना चाहिए कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि एक बार राहुल गांधी के समक्ष युकां और एनएसयूआई चुनाव को लेकर कुछ नेताओं ने अपनी आपत्ति जताई थी। उनका कहना है कि जो साधन-संपन्न है वे चुनाव जीतकर नेता तो बन जाते हैं लेकिन असली नेता वही होता है जो जनता के बीच से चुना जाता है। अब तक नहीं दिखा फायदा चुनाव में जीतकर आने वाले नेताओं से पार्टी को कोई फायदा मिला हो ऐसा अब तक तो नजर नहीं आया है। पहले युवा कांग्रेस और एनएसयूआई से जुड़े लोग जनहित से जुड़ी समस्याओं को लेकर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करते थे तो विसंगतियों के खिलाफ एक माहौल तैयार हो जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता। जो लोग अपने प्रबंधन से चुनाव जीतकर नेता बनते हैं उनमें संघर्ष का माद्दा ही कमजोर होता है। इनका कहना है -युकां के चुनाव होने से जमीनी और मेहनती कार्यकर्ता को अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला है। प्रदेश में युकां ने हर स्तर पर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करके सरकार के खिलाफ अभियान चलाया है। कुणाल चौधरी,प्रदेशाध्यक्ष युकां -चुनाव होने से संगठन में ताकत आई है। एनएसयूआई ने अपने स्तर पर खुब काम किया है। विपिन वानखेड़े,प्रदेशाध्यक्ष भाराछासं

शनिवार, 3 मई 2014

इस बार किसी को बहुमत नहीं

सर्वे: सभी एजेंसियों के आखिरी सर्वे का औसत निकालकर कुछ यूं नजर आ रहा है पार्टियों का हाल
एनडीए 234 तो यूपीए को 112 सीटें मिलने का आसार
272 प्लस के लक्ष्य को साधे आगे बढ़ती भाजपा और कांग्रेस में मतगणना बाद मचेगी भगदड़
भोपाल। 16वीं लोकसभा का गणित पूर्व सर्वेक्षणों के नतीजे में बुरी तरह उलझता दिखाई दे रहा है। गुजरे महिने में सर्वे एजेंसियां कई बार मतदाताओं के मन की थाह लेने उनके दरवाजे पहुंची। अलग-अलग राउंड में नतीजे भी अलग-अलग निकले। मान लिया जाए की फाइनल राउंड में एजेंसियां वोटरों का मूड भापने में कामयाब रही है। तो भी इतना ही साफ होता है की 2014 के समर में भाजपा अपने सहयोगी दलो के साथ सबसे बड़ा गठबंधन बन कर उबरेगी। लेकिन उसके भी सरकार बनाने की बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती। विभिन्न सर्वे के नतीजे यही बताते हें कि कोई भी गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगा। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि चुनाव परिणाम सामने आने के बाद नेताओं के पाला बदलने का नया दौर फिर से शुरू होगा। जिसमें बाजी किसके हाथ लगेगी यह समय ही बतलाएगाा। नतीजे यह भी बताएंगे की सर्वे कितने सटिक हैं। अभी तक सभी एजेंसियों के सर्वे का औसत निकालने पर हम पाते हैं कि अपने-अपने गठबंधन के साथ भी न तो भाजपा और न ही कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में है। इस बार एनडीए को 234 तो यूपीए को 112 सीटें मिलती नजर आ रही हैं जबकि अन्य को 197।
भाजपा को 205...तो कांग्रेस को 95 ही लोकसभा के चुनाव परिणाम आने में अभी एक माह का समय बाकी है। ऐसे में मतदाताओं का मूड कब किस ओर पलट जाएगा,यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन अभी तक हुए सभी सर्वे का औसत निकाला जाए तो भाजपा को 205 और कांग्रेस को 95 सीटें मिलने की संभावना है। सर्वे में तृणमूल को 26 और वामदलों को 21 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। सर्वे में कहा गया है कि जयललिता की अन्नाद्रमुक 24 सीटों पर कब्जा कर सकती है। इसी तरह सपा 15,बसपा 16,बीजेडी 15,जदयू 5 और वाईएसआर को 13 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। लोकसभा चुनाव की तारिखों के ऐलान के बाद ताजा चुनावी सर्वे में साफ हो देश में भजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर है। चुनावी सर्वे में एनडीए की लहर साफ दिखाई दे रही हैं, पर सर्वेक्षण के अनुसार मोदी की लोकप्रियता घटी है। सर्वे में एनडीए बहुमत के आंकड़े के करीब पहुंचा दिखाया गया है। हलांकि ये बात भी साफ तौर पर बताई गई है कि भाजपा अकेले दम पर सरकार नहीं बना सकती है। सरकार बनाने के लिए एनडीए को क्षेत्रीय दलों की जरूरत पड़ेगी। दूसरी तरफ यूपीए 100 सीटों के आसपास ही सिमटती दिखाई दे रही हैं। अब तक सत्ता पर बैठी कांग्रेस को 100 सीटों का भारी नुकसान हो सकता है। 17 से 23 फरवरी के बीच देश के कुल छह राज्यों में सर्वे किया गया। कुल 138 लोकसभा क्षेत्र, 148 विधानसभा क्षेत्र और 512 पोलिंग स्टेशन में कुल 9104 लोगों से बातचीत की गई। सर्वे के नतीजों के मुताबिक भाजपा और साथियों को 212 से 232 सीट मिलने की उम्मीद है, जबकि यूपीए गठभंधन को 119 से 139 सीट मिलने के आसार हैं। आम आदमी पार्टी को भी 1 से 5 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं 20 से 28 सीट जीत कर टीएमसी सबसे बड़ा क्षेत्रीय दल बन सकता है। अभी के सर्वे के मुताबिक किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि एनडीए सरकार बनाने के सबसे करीब होगी। भाजपा ने लगभग दो वर्ष पूर्व से 272 प्लस पर कार्य प्रारंभ कर दिया था। जब तक कांग्रेस या उसके सहयोगी समझ पाते भाजपा काफी निकल चुकी थी। भारतीय राजनीति के जानकारों के अनुसार राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी की जिस दमदारी से धमाकेदार इंट्री हुई है उससे भाजपा का ग्राफ एकाएक बढ़ा है। मोदी की लोकप्रियता से एक बार फिर से भाजपा को केंद्र में सरकार बनाने की आस जगी है। इतिहास की ओर नजर डालें तो देश की लगभग तीन सैकड़ा के करीब लोकसभा की ऐसी सीटें हैं जिन पर भाजपा अपनी जीत का परचम कभी न कभी लहरा चुकी है। जाहिर सी बात है कि वहां पार्टी का जनाधार तो है और ऐसी सीटों को लक्ष्य मानकर उसने अपना कार्य प्रारंभ कर दिया है। सरकार बनाने के लिए 272 का आंकड़ा पाने के लिए नरेंद्र मोदी ने समस्त वर्गों तक पहुंचने के लिए 200 दिनों का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वे लगातार सभाएं कर रहे हैं। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर की माने तो भाजपा का लक्ष्य अकेले 272 से अधिक सीटें हासिल करने का है।
मोदी बने प्रधान मंत्री में पहली पसंद प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को देखने वालों की संख्या सबसे ज्यादा बतलाए जाते हैं। अगर सीधा चुनाव हो जाए तो मोदी को सर्वाधिक मत होंगे। 18 प्रदेशों में कराए गए नेशनल ट्रैकर सर्वे में प्रधानमंत्री के रूप में भी नरेंद्र मोदी लोगों की पहली पसंद हैं। आंकडों के अनुसार नरेंद्र मोदी 34 प्रतिशत जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी 15 प्रतिशत, सोनिया गांधी 5 प्रतिशत लोगों की पसंद हैं। उक्त सर्वे में भाजपा का गढ़ माने जाने वाले गुजरात में 26 में से 20 से 25 सीटें मिल रही हैं, कांग्रेस को 1 से 4 सीटें, जबकि अन्य के खाते में 2 सीटें जा सकती हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा को 23 से 27 सीटें और कांग्रेस को 2 से 5 सीटें मिल रही हैं। महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगियों को 25 से 33 सीटें मिल रही हैं, जबकि कांग्रेस को 12 से 20 सीटें और अन्य को 1 से 5 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है।
अब मोदी लहर और भाजपा लहर के बीच छिड़ी रार चुनावी जंग दिलचस्प मोड़ पर। लोकसभा चुनाव की जंग दिन प्रतिदिन दिलचस्प होती जा रही है। कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय दलों के बीच छिड़ी लड़ाई अब पार्टी के अंदर की लड़ाई में केंद्रित होती जा रही है। सरकार किसकी बनेगी अभी किसी को नहीं पता पर भाजपा में सत्ता के लिए जंग ठन गई है। भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर आगे किया तो चहुंओर मोदी लहर की चर्चा होने लगी। लेकिन जैसे ही चर्चा परवान पर चढ़ी भाजपा के अंदर से ही मोदी लहर की काट की आवाज आनी शुरू हो गई। पार्टी के वरिष्ठ नेता अब मोदी लहर की जगह भाजपा लहर की बात कहने लगे है। भाजपा में पहले तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर खींचतान मची। संघ के हस्तक्षेप के बाद जब मामला ठंढा हुआ तो मोदी को इसका दावेदार घोषित किया गया। हालांकि दबे स्वरों में मोदी का विरोध होता रहा। फिर भी मन मारकर मोदी के विरोध करने वाले नेता सत्ता में आने की प्रतीक्षा करने लगे। चार चरणों के चुनाव समाप्त होने के बाद कांग्रेस को बुरी तरह से पिछड़ता देख भाजपा में सत्ता की आस तेज पकड़ ली है। सत्ता की संभावना को देख पार्टी में फिर से जूतमपैजार आरंभ हो गई हैं। बनारस से उम्मीदवारी का दावा छोड़ कानपुर से चुनाव लड़ रहे मुरली मनोहर जोशी ने मौका देख चैका जड़ दिया है। जोशी ने कह दिया कि मोदी लहर नहीं बल्कि भाजपा की लहर चल रही है। मोदी इस लहर का ही एक भाग है। भाजपा की लहर की वजह से ही पार्टी की चर्चा चहुंओर हो रही हैं और उम्मीदवारों को इसका फायदा मिल रहा है। जोशी इतना पर ही नहीं रूके, उन्होंने गुजरात मॉडल को भी नकार दिया। उन्होंने कहा कि एनडीए मॉडल ही सर्वोपरि है।
बेटिंग मशीन एनडीए के फेवर में! सट्टेबाजों की मानें तो इस बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने जा रही है। जिस तरह की बेटिंग वे कर रहे हैं, उसके मुताबिक एनडीए को 230 के आसपास सीटें मिल सकती हैं। ज्यादातर चुनाव सर्वेक्षणों में भी एनडीए की संभावित सीटों की ऊपरी लिमिट इसी के करीब है। बुकीज के मुताबिक, दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल इस खेल में शाहिद अफरीदी सरीखे दिख रहे हैं यानी ऐसा प्लेयर जो हारी हुई बाजी को पलटने का दम रखता हो। केजरीवाल के पीएम बनने की संभावना पर अगर कोई 1 लाख रुपए का दांव लगाए और ऐसा हो जाए तो उसे 1 करोड़ रुपए मिलेंगे। वहीं, सांसद और पीएम बनने के मामले में मोदी बुकीज के फेवरिट दिख रहे हैं। उनके पीएम बनने पर एक लाख रुपए के दांव का रिटर्न 25,000 रुपए मिलेगा।
मप्र में भाजपा का झंडा बुलंद लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में भाजपा का झंडा बुलंद रहने की संभावना है। प्रदेश में शिवराज सरकार की हैट्रिक ने इस झंडे को ऊंचा रखा। सर्वेक्षण में पता चला है कि मध्यप्रदेश में भाजपा को 51 फीसदी वोट (7 फीसदी का फायदा), कांग्रेस को 34 (8 फीसदी का नुकसान) फीसदी वोट और बसपा को 5 फीसदी (1 फीसदी का नुकसान) वोट मिलेंगे। सर्वेक्षण में आश्चर्यजनक रूप से शिवराज सिंह चौहान भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से कहीं ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। चौहान को 76 फीसदी लोगों में लोकप्रिय नेता है जबकि मोदी 24 फीसदी लोगों की पसंद है। हंसा रिसर्च ग्रुप के सर्वे में पाया गया है कि मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 24 सीटें भाजपा को मिलने जा रही है जबकि कांग्रेस को 4 और बहुजन समाज पार्टी को 1 सीट मिलेगी। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटों के लिए किए गए सर्वेक्षण में 9 सीटों पर भाजपा और 2 सीटों पर कांग्रेस के काबिज होने की बात कही जा रही है।
क्या रहा था 2009 का चुनावी परिणाम- कुल सीटें 543 पार्टी का नाम लोकसभा में सीटें कांग्रेस 206 भाजपा 116 सपा 23 बसपा 21 तृणमूल 19 द्रमुक 18 जद (यू) 20 माकपा 16 बीजद 13 शिवसेना 11 अन्नाद्रमुक 9 एनसीपी 9 अकाली 4 अन्य 58 ......... 2009 में गठबंधन की स्थिति- गठबंधन सीटें यूपीए 262 एनडीए 160 अन्य 121 ............... विभिन्न सर्वे में 2014 में पार्टियों की स्थिति टाइम्स नॉउ और सी-वोटर अप्रैल 2013 जुलाई 2013 फरवरी 2014 एनडीए 184 156 227 यूपीए 113 136 101 अन्य 89 251 215 भाजपा 141 131 202 कांग्रेस 113 119 89 एसपी 35 33 20 बीएसपी 26 28 21 टीएमसी 27 22 24 ्रएआईडीएमके 27 29 27 लेफ्ट फ्रंट 26 33 23 बीजेडी 13 12 12 वाईएसआर कांग्रेस 12 14 13 ...... सीएनएन-आईबीएन-लोकनीति-सीएसयूएस जुलाई 2013 फरवरी 2013 मार्च 2014 एनडीए 172-180 212-232 234-246 यूपीए 149-157 119-139 111-123 अन्य 147-155 192-212 बीजेपी 156-164 193-213 206-218 कांग्रेस 131-139 94-110 94-106 एसपी 17-21 11-17 11-17 बीएसपी 15-19 8-14 10-16 टीएमसी 23-27 20-28 23-29 ्रएआईडीएमके 16-20 16-20 15-21 लेफ्ट फ्रंट 22-28 1-23 14-20 बीजेडी 12-15 10-16 10-16 वाईएसआर कांग्रेस 11-15 11-17 9-15 ................. एबीपी न्यूज-निलसन पोल जनवरी 2014 फरवरी 2014 मार्च 2014 एनडीए 226 236 233 यूपीए 101 92 119 अन्य 216 215 191 बीजेपी 210 217 209 कांग्रेस 81 73 91 एसपी - 14 12 बीएसपी - 13 17 टीएमसी - 29 28 ्रएआईडीएमके - 19 21 लेफ्ट - 29 15 बीजेडी - 16 17 वाईएसआर कांग्रेस - 17 - ......... एनडीटीवी फोर कास्ट जनवरी 2014 मार्च 2014 एनडीए 229 239 यूपीए 129 123 अन्य 185 161 बीजेपी 195 214 कांग्रेस 105 104 एसपी - 13 13 बीएसपी - 16 07 टीएमसी - 32 28 ्रएआईडीएमके - 27 25 लेफ्ट - 29 22 बीजेडी - 17 18 वाईएसआर कांग्रेस - 19 10 .............. इंडिया टुडे - जनवरी 2014 एनडीए 212 यूपीए 103 अन्य 228 बीजेपी 188 कांग्रेस 91 एसपी 20 बीएसपी 25 टीएमसी 23 ्रएआईएडीएमके 29 लेफ्ट फ्रंट 27 बीजेडी 13

543 सीटों पर खर्च होगी 70 अरब की ब्लैक मनी!

मप्र की 10 सीटों पर कालाधन तो 11 पर बंदूक के बल पर होगा मतदान
रोजाना जब्त हो रहा है 6 करोड़ का कालाधन
29 दलों से जुड़े 2200 नेताओं के खातों की हो रही पड़ताल
भोपाल। लोकसभा चुनाव में ब्लैक मनी की रोकथाम में लगी फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट ( चुनाव आयोग के निर्देश पर ये फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट-एफआईयू-बनी है) की माने तो इस बार देश की 543 सीटों पर करीब 70 अरब रुपए का कालाधन इस्तेमाल होने वाला है। जहां देश में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 20 अरब तो मप्र में आयोग की तमाम सख्ती के बावजूद चुनाव में 240 करोड़ रुपए का कालाधन इस्तेमाल किए जाने की आशंका जताई गई है। एफआईयू के अनुसार,यह सारी रकम केवल प्रचार-प्रसार पर ही खर्च नहीं होगी बल्कि इनका इस्तेमाल प्रोपर्टी खरीदने में भी हो रहा है। उधर,मप्र की 10 सीटों पर जहां कालेधन से तो 11 सीटों पर बाहुबल से मतदान कराए जाने की आशंका व्यक्त की गई है। इसको देखते हुए जांच एजेंसियों से लेकर सुरक्षा एजेंसियों ने देशभर में अपना जाल बिछाया हुआ है और रोजाना करीब 6 करोड़ की ब्लैकमनी जब्त की जा रही है।
पिछले छह महीने के ट्रांजेक्शन का लेखाजोखा तैयार
चुनाव आयोग के निर्देश पर फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट यानि एफआईयू ने नेताओं के पिछले छह महीने के ट्रांजेक्शन का लेखा जोखा निकाल लिया है, जिसका आकलन करने के बाद कालेधन के इस्तेमाल की आशंका जताई गई है। एफआईयू ने पिछले साल सितंबर से फरवरी के दौरान बैंक खातों की लेन देन की सघन जांच की है। सूत्रों के मुताबिक जिन खातों की जांच की गई उनमें से अधिकतर विभिन्न दलों से जुड़े नेताओं के थे। इस जांच में कई हैरान कर देने वाली जानकारी मिली। एफआईयू की जांच में पता चला कि सितंबर 2013 से फरवरी 2014 तक मप्र में बड़ी संख्या में वाहन और संपत्ति की खरीद फरोख्त हुई। आमतौर पर प्रदेश में बैंकों से हर रोज 5 अरब की रकम निकाली जाती है और 4.50 अरब की रकम जमा की जाती है। लेकिन सितंबर 2013 से 28 फरवरी 2014 तक औसतन 7 अरब की रकम निकाली गई और 7.70 अरब रुपए की रकम जमा की गई। वहीं उतर प्रदेश में हर रोज 19 अरब निकाला जाता है और 10.50 अरब की रकम जमा की जाती है। लेकिन इस दौरान 24 अरब की रकम निकाली गई और 23.50 अरब रुपए की रकम जमा की गई। इसके बाद बैंको का कारोबार अचानक स्थिर हो गया। जब जांच हुई तो पता चला कि देश में 84.12 लाख लोगों के एक से अधिक खाते हैं। बैंकों के कारोबार में आए अचानक बदलाव के बारे में एफआईयू ने गहनता से जांच शुरू कर दी। ऐसे खातेदारों के नाम निकाले जाने लगे तो एक और हैरान कर देने वाली जानकारी सामने थी। जांच के दौरान 29 दलों से जुड़े करीब 2200 नेताओं के खातों से किए गए लेन देन संदेह पैदा कर रहे हैं। वजह ये कि इन खास खातों में सितंबर से फरवरी के बीच हुई लेन देन की जानकारी आयकर रिटर्न में नहीं दी गई थी। कई मामलों में तो खातों की ही जानकारी आयकर रिटर्न से गायब थी। एफआईयू के लिए ये चौंकाने वाली जानकारी थी जिसके बाद उसने अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग को दी। आयोग ने इस संबंध में आरबीआई को पत्र लिख कर ऐसे खातों के बारे में जानकारी मांगी है। संदिग्ध लोगों को जल्द ही आयकर का नोटिस भी मिल सकता है। रोजाना जब्त हो रहा है 6 करोड़ चुनाव आयोग के तलाशी दस्ते हर रोज तकरीबन 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का कालाधन जब्त कर रहे हैं। आयोग की तमाम सख्ती के बावजूद चुनाव में कालाधन इस्तेमाल किए जाने की आशंका जताई गई है। आयोग के आंकड़े के मुताबिक चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद से 25 मार्च तक तकरीबन 120 करोड़ रुपए जब्त किए गए हैं जिनका कोई हिसाब किताब नहीं मिला है। जांच एजेंसियों के मुताबिक शेयर बाजार के जरिए भारी मात्रा में चुनावों मे इस्तेमाल करने के लिए कालाधन भारत आ चुका है। इस साल अब तक भारत में 15,000 करोड़ रुपए तक कालाधन आया है। वहीं चुनाव खत्म होने तक 45,000 से 55,000 करोड़ रुपए तक का कालाधन भारत में आने की आशंका है। विदेशों से आ रहा यह कालाधन एफआईआई के पार्टिसिपेटरी नोट्स के जरिए भारत में लाया गया है। मप्र में पकड़ाया 15 करोड़ का कालाधन आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक मप्र में करीब 15 करोड़ रुपए की सामग्री और नकदी बरामद हो चुकी है। जिसमें विदेशी मुद्रा भी है। भोपाल के राजा भोज विमानतल पर तैनात आयकर इंटेलीजेंस यूनिट ने 6 अपै्रल को एयर कार्गो के जरिए आ रही 1 करोड़ 40 लाख रुपए मूल्य की विदेशी मुद्रा पकड़ी है। यह करेंसी इस व्यवसाय से जुड़े एक कारोबारी की बताई गई है जो कि एयर कार्गो के जरिए दिल्ली से भोपाल लाई गई थी। आयकर विभाग ने मामले की पड़ताल शुरू कर दी है मुद्रा कारोबारी का नाम अभी उजागर नहीं किया गया है। इसके अलावा एयर कार्गों से आ रहा 80 तोला सोना भी बरामद किया है। यह सोना बंगलुरु से दिल्ली के रास्ते भोपाल पहुंचाया गया है। 60,000 करोड़ रुपए के नकली नोट चुनाव में नकली नोटों का इस्तेमाल रोकने के लिए नेशनल इंवेस्टिगेटिव एजेंसी (एनआईए) ने अपनी निगरानी बढ़ा दी है। एनआईए के ताजा आंकड़ों के अनुसार, करीब 60,000 करोड़ रुपए के नकली नोट भारत आ चुके हैं। चुनाव में बड़े पैमाने पर नकली नोट का इस्तेमाल होने की आशंका है। वहीं पकड़े जाने के डर से 500 और 1000 के नकली नोट की आवक कम हो रही है, लेकिन 10, 20 और 50 के नकली नोट बाजार में लाए गए हैं। चुनाव पर खर्च होंगे 50 हजार करोड़ फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट शोध संस्था सीएमएस के अनुसार चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है। इस बार के लोकसभा चुनाव भी इससे अलग नहीं दिख रहे। इस बार चुनाव के दौरान होने वाले अनुमानित 50 हजार करोड़ रुपए खर्च की एक तिहाई से अधिक की राशि काला धन हो सकता है। 50 हजार करोड़ रुपए की यह राशि भारत में किसी भी चुनाव में सर्वाधिक है। शोध संस्था सीएमएस के अध्ययन के अनुसार विभिन्न राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों द्वारा लोकसभा चुनाव में 15 से 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान है। उम्मीदवार निजी रूप से 10 हजार से 15 हजार करोड़ रुपए खर्च कर सकते हैं। इन आंकड़ों में आधिकारिक और बिना लेखा के होने वाला खर्च शामिल है। अगर फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट और सीएमएस के आंकड़ों को मिलाएं तो करीब 69.50 अरब रूपए प्रोपर्टी और अन्य संसाधन खरीदने पर खर्च किए जाएंगे। इनमें से अधिकांश वह रकम होगी,जो विदेशों से भारत लाई जा रही है। प्रति मतदाता खर्च होंगे 400 रुपए सीएमएस के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने कहा कि चुनाव में खर्च होने वाली राशि में से करीब एक तिहाई काला धन है। इनमें से बड़ी राशि 'नोट के बदले वोटÓ में इस्तेमाल की जा सकती है। लोकसभा चुनाव में इस बार करीब 81.4 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 30 हजार करोड़ रुपए की राशि को खर्च करने पर यह प्रति मतदाता 400 रुपए आता है। अध्ययन में कहा गया है कि इसमें मीडिया अभियान का खर्च करीब 25 प्रतिशत है। सख्ती के बावजूद नहीं कर रहे परहेज चुनाव आयोग की सख्ती के बावजूद उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में कालेधन का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। हाल यह है कि चुनाव की घोषणा होने के बाद पहले बीस दिन में ही चुनाव आयोग ने रोजाना छह करोड़ रुपए से अधिक की राशि जब्त की है। आयकर विभाग ने कसी कमर लोकसभा चुनाव में कालेधन की आवाजाही रोकने आयकर विभाग ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में व्यापक स्तर पर तैयारी की है। दोनों राज्यों के प्रमुख नगरों और सीमावर्ती जिलों में अफसरों की टीम तैनात की गई है। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और रायपुर से हवाला कारोबारियों के अहम सुराग मिले हैं। इनमें इंदौर व रायपुर ज्यादा संवेदनशील माने गए हैं, यहां नकदी का सर्वाधिक फ्लो बताया गया है। बड़े लेन-देन की जानकारियां भी विभिन्न एजेंसियों के जरिए मंगाई जा रही है। हवाला करोबारी हैं निशाने पर चुनाव के मद्देनजर आयकर विभाग ने विभिन्न जांच एजेंसियों की मदद से हवाला कारोबारियों को निशाने पर लिया है। हाल ही में अफसरों की टीम ने ग्वालियर और छत्तीसगढ़ में दो-तीन ऐसे मामलों का खुलासा किया है जो हवाला कारोबार से संबद्ध बताए जा रहे हैं। दोनों ही राज्यों की कुल 40 लोकसभा सीटों पर विभाग की टीमें उम्मीदवारों द्वारा किए जा रहे खर्च का ब्यौरा एकत्र करने के साथ ही कालेधन की आवाजाही पर भी नजर रखे हुए है। जुटाई जा रही जानकारियां विभाग ने खर्च के लिहाज से ऐसी सीटें भी चिह्नित की हैं जहां पैसा पानी की तरह बहने की संभावना है इसलिए हवाला कारोबारियों के बारे में जानकारियां जुटाई जा रही हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि चुनाव के दौरान बड़ी मात्रा में कालाधन यहां से वहां भेजा जाता है। यह पैसा प्राय: हवाला कारोबारी ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते हैं। इसमें पैसे को यहां से वहां नहीं ले जाया जाता बल्कि हवाला कारोबारी अपने संपर्क के जरिए कमीशन लेकर देश के किसी भी कोने में पैसा भेज देते हैं। मप्र में 240 करोड़ का खेल मप्र में वैसे तो हर सीट पर ब्लैकमनी लगाई जा रही है,जो करीब 240 करोड़ हो सकती है। लेकिन चुनाव आयोग ने 29 में से 10 सीटों पर कालेधन के सर्वाधिक इस्तेमाल की आशंका जताई है। प्रदेश में इंदौर,गुना,सागर,खजुराहो,सतना,जबलपुर,छिंदवाड़ा,विदिशा,मंदसौर और रतलाम संसदीय सीट पर सर्वाधिक ब्लैकमनी लगाई जाएगी। इसमें इन क्षेत्रों के व्यापारी,उद्योगपति,माफिया नेताओं का सहयोग कर रहे हैं। वहीं 11 सीटों पर बाहुबल से चुनाव प्रभावित किए जाने की खबर है। प्रदेश में बालाघाट के साथ भिंड, मुरैना और ग्वालियर सीटों को चुनाव आयोग ने कानून व्यवस्था के नजरिए से अति संवेदनशील माना है, लेकिन पुलिस प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में 11 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर बाहुबलियों, नक्सलियों और डकैतों का प्रभाव है। इनमें से अधिकांश सीटें उत्तरप्रदेश की सीमा से लगी हुई हैं, जहां उत्तरप्रदेश से होने वाली घुसपैठ के कारण बाहुबल से चुनाव लडऩे की परंपरा बन गई है।उत्तरप्रदेश और मप्र के सीमावर्ती जिलों में लोगों की आपस में रिश्तेदारियां हैं। ऐसे में चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की मदद के लिए लोगों की आवाजाही होती है। इस कारण सीधी, सतना, रीवा, टीकमगढ़, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, शहडोल में उत्तरप्रदेश के बाहुबल और डकैतों का असर पड़ता है। वहीं मंडला, बालाघाट में नक्सलियों का और इंदौर में स्थानीय बाहुबलियों का प्रभाव दिखाई देता है। अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव के अनुसार, मप्र के लिए उप्र संवेदनशील तो है। इसी के चलते कलेक्टरों को बॉर्डर सील करने के लिए कहा गया है। साथ ही विशेष चौकसी बरतने के भी निर्देश दिए गए हैं। चुनाव आयोग के लिए उत्तरप्रदेश की सीमा से सटी मप्र की लोकसभा सीटों पर बाहुबलियों से निपटना सिरदर्द बन गया है। इसकी वजह दोनों राज्यों में चुनाव की तारीखें अलग-अलग होना हैं। ऐसे में आशंका बनी हुई है कि यूपी से बाहुबली घुसपैठ कर प्रदेश में चुनाव प्रभावित कर सकते हैं। प्रदेश की 11 संसदीय सीटों पर 10 और 17 अप्रैल को मतदान होना है, वहीं प्रदेश से लगी यूपी की लोकसभा सीटों पर 24 और 30 अप्रैल को चुनाव हैं। इन हालात में प्रदेश के पहले और दूसरे चरण में होने वाले मतदान में बाहुबलियों की घुसपैठ की आशंका बनी हुई है। वहीं मंदसौर लोकसभा सीट पर धन-बल के उपयोग की आशंका है। 20 कंपनियां करेंगी नक्सलियों से सुरक्षा लोकसभा चुनाव से पूर्व जिले में 20 सशस्त्र सुरक्षा कंपनी ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र के जंगलों में सर्चिंग शुरू कर दी है। सीआरपीएफ, हार्क फोर्स, बीएसएफ, सीआईएसएफ सहित अन्य सुरक्षा कंपनी जंगल के चप्पे-चप्पे की खाक छानने में लगेंगी। बालाघाट के एसपी गौरव तिवारी के अनुसार वर्तमान समय में भी सर्चिंग आपरेशन चलाए जा रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में यह रूटीन वर्क की तरह होता है। छग-महाराष्ट्र की सीमा सील लोकसभा चुनाव की तैयारी के तहत पड़ोसी राज्य छत्तीगसढ़ और महाराष्ट्र की सीमा को सील कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ की सीमा जिले के लंाजी, बैहर, बिरसा तहसील से लगी हुई है। पूर्व से ही मध्य प्रदेश को शरर्णीथली मनाने वाले नक्सली छग में चले सर्चिंग अभियान के दौरान नक्सलियों की भारी खेप जिले के सीमा के भीतर प्रवेश कर सकती है। ऐसे में चुनाव की तारीख नजदीक आने से पूर्व आपरेशन सर्चिग चलाए जाना शांति पूर्ण चुनाव करवाने की दुष्टि से बहुत अधिक महत्पूर्ण माना जा रहा है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में नक्सली गतिविधि और बालाघाट के सीमावर्ती होने और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए एसपी गौरव तिवारी ने पहले ही 50 कम्पनी (5 हजार जवान) और 2 हैलीकाप्टर की मांग चुनाव आयोग से की थी। इसी के तहत अब तक 20 कपंनी उपलब्ध हो चुकी हंै। चुनाव से 20 दिन पहले सुरक्षा की दृष्टि से इसे बेहतर माना जा रहा है। नक्सलियों से बूथ केप्चरिंग का खतरा लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान नक्सली समूह सीमावर्ती इलाकों के मतदान केंद्रों पर बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं। इसके लिए नए समूह बनाए जा रहे हैं जबकि बड़ी मात्रा में असलहा भी जुटाया जा चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ये सूचना मध्यप्रदेश शासन पुलिस मुख्यालय को भेजते हुए एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं।केंद्रीय खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा राज्य सरकारों से कहा गया है कि आम चुनाव के दौरान प्रभावित इलाकों में कई चरणों में सुरक्षा पुख्ता की जाए। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने अंदेशा जताया है कि चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने के लिए नक्सलियों ने बड़ी संख्या में असलहा जुटाया है और सघन जंगली इलाकों में ट्रेनिंग केंप चलाए जा रहे हैं। नक्सलियों का ऐसा ही एक केंप बालाघाट पुलिस ने हाल ही में ध्वस्त किया था। इस दौरान पुलिस ने बड़ी मात्रा में नक्सलियों का असलहा और बारूदी सुरंग बिछाने का सामान बरामद किया था। रीवा,सतना और चंबल में सक्रिस हुए डकैत मप्र के दस्यु प्रभावित क्षेत्रों के जंगलों में डकैतों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सुगबुगाहट का अंदाजा रीवा,सतना और चंबल क्षेत्र में डकैतों द्वारा कुछ दिनों से की जा रही घटनाओं से लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश से लगी सीमा मानिकपुर व मझगवां के बीच रह-रहकर बलखडिय़ा गिरोह की मूवमेंट न केवल देखने को मिल रही है बल्कि उनके द्वारा दहशत फैलाने की नीयत से विगत एक महीने के अंदर तीन से अधिक वारदात को अंजाम भी दिया जा चुका है। चुनाव में जहां वैलेट को सजातीय नेताओं के पक्ष में लाने के लिए बुलेट का इस्तेमाल गिरोह द्वारा किया जा सकता है। पुलिस एम्बुस लगाकर जंगल सर्चिंग करने की बात करती है। सर्चिंग सिवाय सड़कों के अलाव कहीं भी होती नहीं दिखाई देती है। तराई अंचल के 29 फीसदी मतों बुलट का साया पड़ता है। स्वदेश सिंह बलखडिय़ा पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 लाख एवं मप्र सरकार ने 1 लाख का दांव लगाया है। कहने के लिए तो उत्तर प्रदेश की एसटीएफ टीम उक्त डकैत के इनकाउण्टर के लिए मोर्चा सम्हाल रखी है। उधर,रीवा रेंज के आईजी पवन श्रीवास्तव कहते हैं कि डकैत चुनाव को प्रभावित न करें इसके लिए दिशा-निर्देश दिए जा चुके हैं। सर्चिंग जारी है और लगातार तराई अंचल पर नजर बनी हुई है। मुखबिरों को और टटस करने का काम किया जा रहा है। अगर सटीक सूचना हाथ लगी तो इनकाउंटर से भी इंकार नहीं किया जा सकता। उधर,सदियों तक डकैतों के गढ़ रहे चंबल के बीहड़ों में चुनाव भी बस एक मौसम की मानिंद है। भिंड-मुरैना के बदनाम बीहड़ों में एक बार फिर डकैत सक्रिय हो गए हैं। हालांकि इन इलाकों में प्रशासन ऐसा मानता है डकैतों का वजूद अब नहीं है,लेकिन चंबल में बंदूकें अब भी गूंजती है। चुनाव आते ही छोटे-छोटे गिरोह सक्रिय हो जाते हैं और अपने सरपरस्त नेता को जिताने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। इन तमाम विषम परिस्थियों के बीच चुनाव आयोग निष्पक्ष और विवादरहित चुनाव संपन्न कराने के लिए रात-दिन तैयारी कर रहा है। ----------------

कसौटी पर मोदी-शिवराज फैक्टर

मप्र के चुनावी घमासान में कई दिग्गजों का राजनीतिक कैरियर दाव पर
भोपाल। मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटों पर तीन चरण में मतदान हो चुका है और सभी 378 प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम में बंद हो गया है। प्रदेश में सभी सीटों को जीतने का मिशन तथा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लेकर भाजपा ने युद्ध की तरह यह चुनाव लड़ा है। यह चुनाव भाजपा के लिए कितनी अहमियत रखता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 28 दिनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां धुंआधार 159 सभाएं की। वहीं मोदी ने करीब 14 संभाएं की। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि चुनाव पूरी तरह मोदी-शिवराज के इर्दगिर्द के घूमता नजर आया। इसलिए इस बार मोदी-शिवराज फैक्टर कसौटी पर है और अब सभी को मतगणना का यानी 16 मई का इंतजार है। संभवत: देश में यह पहला लोकसभा चुनाव है,जो आम जनता के सरोकारों से दूर पार्टी तथा नेताओं की चाल,चेहरा और चरित्र को केंद्रित कर लड़ा जा रहा है। भाजपा जहां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी,उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनके परिवार के चरित्र पर कीचड़ उछाल कर वाह-वाही लूटने में लगी हुई है,वहीं कांग्रेस भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के चेहरे और चरित्र पर प्रहार कर रही है। मप्र की 29 लोकसभा सीटों पर भी जितनी संभाएं हुई वहां भी यही नजारा दिखा। लेकिन इसके साथ ही मोदी के गुजरात और शिवराज के मप्र में कराए गए विकास कार्यो में देश के विकास की तस्वीर दिखाई गई। इसलिए लोकसभा चुनावों में भाजपा को गुजरात के बाद सबसे ज्यादा उम्मीद मध्य प्रदेश से है। नतीजों के मामले में मध्यप्रदेश गुजरात से आगे निकल सकता है। यहां मोदी लहर से ज्यादा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रभाव है। शिवराज सिंह चौहान की तीन जीतों के बाद भाजपा का गढ़ बन चुके मध्यप्रदेश में उनका जादू बरकरार है और यही कारण है कि यहां उत्तर प्रदेश के बाद पार्टी को सबसे ज्यादा सीटों की उम्मीद है। देश की 543 लोकसभा सीटों में 29 मध्यप्रदेश में हैं। जिनमें से 9 सीट आरक्षित है, जबकि 20 सामान्य। आरक्षित सीटों में अनुसूचित जाति के लिए 4 और अनुसूचित जनजाति के लिए 5 है। पिछली लोकसभा में प्रदेश में भाजपा को 16, कांग्रेस को 12 और बसपा का 1 सीट मिली थी। 16 वीं लोकसभा की सूची बहुत बदली हुई होगी। प्रदेश में भले ही मोदी और शिवराज फैक्टर हावी दिख रहा है,लेकिन भाजपा द्वारा सक्रिय और दमदार नेताओं को दरकिनार कर जिस तरह कुछ अंजान और बाहरी चेहरों को टिकट दिया गया उससे पार्टी में असंतोष दिखा। टिकट से वंचित नेता और उनके समर्थकों ने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ अंदरूनी तौर पर खुब काम किया है। इसी तरह कांग्रेस में भी काम हुआ है।
कांग्रेस को लगे कई झटके 29 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अंदरूनी कलह और गुटबाजी के चलते पूरे चुनाव के दौरान कमजोर नजर आई। हालांकि कांग्रेस कड़े मुकाबले का दावा जरूर कर रही है, लेकिन उसके नेता और कार्यकर्ता मनौवैज्ञानिक दबाव में हैं। विधानसभा की करारी हार से उनके लिए उबर पाना इतना आसान नहीं है। कांग्रेस के कई दिग्गज भाजपा के पाले में आ चुके हैं। कांग्रेसी नेताओं के पाला बदलने का जो सिलसिला विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष चैधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी से शुरू हुआ था वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। विधानसभा चुनाव के दिनों में ही होशंगाबाद के कांग्रेसी सांसद राव उदय प्रताप ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। वे होशंगाबाद से भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने पूर्व प्रशासनिक अधिकारी डा. भागीरथ प्रसाद को भिंड से टिकट दिया। वे पिछले चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार थे। लेकिन इस बार टिकट मिलने के एक दिन बाद ही वे भाजपा के सदस्य बन गये और आज वे भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस का नेतृत्व राजनीतिक सदमे से उबर पाता इसके पहले ही उसके दो और विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस में अविश्वास, परस्पर शंका और संदेह का माहौल है। कांग्रेस के दिग्गज हैरान हैं, परेशान हैं। कांग्रेस का कौन नेता पिछले दरवाजे से, कौन सामने के दरवाजे से और कौन खिड़की से भाजपा के दर पर चला जाएगा अनुमान लगाना कठिन है।
दिग्गजों का भविष्य दाव पर मध्यप्रदेश में 29 सीटों के लिए तीन चरणों में मतदान हुआ। बालाघाट, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, जबलपुर, मंडला, रीवा, सतना, शहडोल और सीधी में 10 अप्रैल को तो 17 अप्रैल को भिंड, भोपाल, दमोह, गुना, ग्वालियर, खजुराहो, मुरैना, राजगढ़, सागर और टीकमगढ़ में तथा 24 अप्रैल को वहीं बैतूल, देवास, धार, इंदौर, खंडवा, खरगोन और मंदसौर, रतलाम, उज्जैन, और विदिशा में मतदान हुआ। लेकिन बिना मुद्दे और आपसी कलह के बीच हुए इस चुनाव में कई दिग्गजों का भविष्य दाव पर है। मतदाताओं की चुप्पी अंत तक रही। इसलिए इस बार कोई भी नेता अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है। अगर राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सीटों की बात की जाय तो प्रथम चरण में होने वाले मतदान में जहां छिंदवाड़ा में कांग्रेस के दिग्गज केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के भविष्य का फैसला होना है, वहीं दूसरे चरण में दमोह से भाजपा के उम्मीदवार और पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, ग्वालियर में मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और गुना से केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर है। तीसरे चरण में हुए मतदान में इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन, खंडवा से मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरूण यादव, रतलाम से मध्यप्रदेश के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और विदिशा से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का राजनीतिक भविष्य दाव पर है। बहरहाल, चाहे चुनावी सर्वेक्षणों के आधार पर आंकलन करें या बीते चुनावी परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकालें, एक बात साफ है कि 16 मई को भाजपा लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगी। कांग्रेस दूसरे नंबर पर रहेगी। यही स्थिति मध्यप्रदेश में भी रहने वाला है। हालांकि भाजपा पर कमजोर उम्मीदवार देने का आरोप लग रहा है, लेकिन मतदान के वक्त मोदी लहर पर सवारी कर भाजपा 16 से अधिक सीटें जीतने कामयाब हो जाएगी यह भाजपा को भरोसा है। विधानसभा चुनाव में बसपा, सपा जैसे अन्य दलों को उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल पाई। राजनीतिक विश्लेषक आम आदमी पार्टी को कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे। आम आदमी पार्टी के उम्मदवारों में अधिकतर एनजीओ पृष्ठभूमि के ही हैं। मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी जितना भी वोट प्राप्त करेगी उससे कांग्रेस का ही नुकसान होने की संभावना है। टिकट तय करने में देरी। कुछके सांसदों को टिकट काटना और कुुछ सांसदों का क्षेत्र बदलना भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है। हालांकि इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खुलकर मैदान में होने का लाभ भाजपा को जरूर मिलेगा। संघ ने भले ही खुलकर किसी के पक्ष में प्रचार नहीं किया लेकिन अधिकतम मतदान के लिए चलाए गए अभियान का लाभ भी भाजपा उम्मीदवारों को ही मिलना है। स्थानीय भाजपा नेता मोदी फैक्टर के साथ ही शिवराज फैक्टर का भी हवाला दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा के अव्वल प्रदर्शन से भाजपा कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। विधानसभा चुनाव में प्राप्त मत और सीटों के आधार पर भाजपा 29 में से 20 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही है। कांग्रेस कोई बड़ी दावेदारी तो नहीं कर रही है, लेकिन उसके नेता यह मानकर चल रहे हैं कि लोकसभा में उनका प्रदर्शन विधानसभा से बेहतर होगा।
कांग्रेसी गुटबाजी भाजपा के लिए वरदान प्रदेश में कमजोर उम्मीदवारों को उतारकर बैकफूट पर आ गई भाजपा का रास्ता कांग्रेस के नेताओं ने ही आसान कर दिया। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नेताओं में आपसी तालमेल की भारी कमी रही। कार्यकत्र्ता और उम्मीदवार भी गुटों में विभाजित हैं जिसका बुरा असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ रहा है। कांग्रेसी गुटबाजी के अलावा केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा भी राज्य में पार्टी के लिए मददगार नहीं है। भिंड से कांग्रेस उम्मीदवार बनाये गए भागीरथ प्रसाद उम्मीदवारी की घोषणा के दूसरे ही दिन भाजपा में शामिल हो गए जिससे पार्टी को भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। इसके अलावा कई दूसरे नेता भी पार्टी छोड़ कर भाजपा या आप में शामिल हो रहे हैं। भाजपा की चुनौती के बावजूद छिंदवाड़ा से कमलनाथ और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता के चलते फिर से संसद पहुंच सकते हैं। मंदसौर से पार्टी की प्रत्याशी और राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन क्षेत्र में अपनी सक्रियता के बावजूद यूपीए सरकार की नाकामियों की शिकार बन सकती हैं।
आप और बसपा भी मैदान में आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में लाखों सदस्य बनाए हैं। इस पार्टी के प्रति लोगों में जिज्ञासा भी है, लेकिन पिछले दो महीने में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों के चलते यहां उसकी चुनावी संभावनाएं काफी धूमिल रही। पार्टी के सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल प्रचार के लिए नहीं आ पाए। इसके बावजूद कुछ जगहों पर आप की उपस्थिति कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही नुकसान पहुंचाएगी। बसपा राज्य में तीसरी ताकत के रूप में रही है। दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा ने लोकसभा में अपना खाता 1991 में मध्यप्रदेश की एक सामान्य सीट से ही खोला था। बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश की कुछ सीटों पर इस बार बसपा के उम्मीदवार अपना प्रभाव छोडऩे में कामयाब रहेंगे। दलित मतदाता पार्टी से तो प्रभावित हैं लेकिन बहुत असरदार प्रत्याशी के न होने से जीत की संभावना कम है।
अल्पसंख्यक मत बड़ा फैक्टर प्रदेश में कई सीटों पर अल्पसंख्यक मत भी परिणाम को प्रभावित करेंगे। इसमें मालवा निमाड़ की आठ सीट पर हार जीत का फैसला नए मतदाताओं व अल्पसंख्यक मतों के बीच से निकलता नजर आ रहा है। मतदान के बाद मोदी लहर, कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश और राहुल फैक्टर के बीच हार-जीत के समीकरण खंगाले जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव की तुलना में अल्पसंख्यकों का झुकाव इस बार भाजपा के प्रति कम दिखा पर इसकी पूर्ति नए मतदाताओं से होती दिख रही है। आप ने कांग्रेस व भाजपा दोनों के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई है। पहले दौर में कांग्रेस से आगे चल रही भाजपा बाद में अपने ही नेताओं के कारण पिछड़ गई। यहां संगठन का पूरा समय नेताओं के बीच तालमेल जमाने में निकल गया।
आखिर तक चुनाव रंगहीन हर बार की तरह इस चुनाव में भी मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच रहा। यहां चुनाव आखिर तक रंगहीन रहा। भाजपा उम्मीदवारों को संगठन के मजबूत नेटवर्क का फायदा मिला तो कांग्रेस प्रत्याशियों का पूरा चुनाव छिन्ना-भिन्न रहा। यहां का पूरा चुनाव मैनेजमेंट का रहा। जिसका मैनेजमेंट तगड़ा उसी की जीत मिलने की संभावना है। सभी पार्टियों ने चुनाव मैनेजमेंट पर ही जोर दिया और मीडिया के प्रभाव के चलते असल मुद्दों पर चर्चा कम ही हुई। स्थानीय मुद्दों से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित चुनाव के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों का मुद्दा छाया रहा। मार्च के पहले पखवाड़े में हुई बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने राज्य के किसानों पर जमकर कहर बरपाया। इससे रबी की तैयार फसल बर्बाद हो गई। किसानों के इस दर्द पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मरहम लगाने की रस्मी कोशिश की। प्रदेश में भूख और कुपोषण जैसे मुद्दों को जहां कांग्रेस ने उठाने की कोशिश की, वहीं यूपीए सरकार के घपलों-घोटालों को भाजपा अपना हथियार बनाया। वैसे भ्रष्टाचार के दाग प्रदेश में भाजपा की अपनी सरकार पर भी हैं। इसलिए दोनों प्रमुख पार्टियां ने नेतृत्व के मुद्दे पर ही जोर दिया। शहरी मतदाताओं के बीच नरेंद्र मोदी, अरविन्द केजरीवाल, राहुल गांधी और शिवराज सिंह चौहान की नेतृत्व क्षमता को लेकर चर्चा रही।
शिवराज ने की 159 चुनावी सभा! प्रदेश में सभी 29 सीटों को जीतने के संकल्प के साथ शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में तीनों चरणों में 159 सभाएं लेकर न सिर्फ विपक्ष; बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं को भी दांतों तले उंगली दबाने पर विवश कर दिया है। शिवराज सिंह ने तीनों चरणों में कुल 159 सभाएं लीं। इनमें सर्वाधिक विदिशा में यानी 17 हुईं। यहां से नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का मुकाबला लक्ष्मण सिंह से है। लक्ष्मण सिंह राजगढ़ संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद रहे हैं। शिवराज सिंह ने दूसरे नंबर पर छिंदवाड़ा में अपनी जादुई भाषा शैली का सबसे अधिक इस्तेमाल किया। यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ भाजपा प्रत्याशी चौधरी चंद्रभान सिंह के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। यहां शिवराज ने यहां 10 सभाएं लीं। शिवराज ने तीसरे क्रम पर ग्वालियर में ताकत झोंकी। यहां उन्होंने 8 सभाएं लीं। यहां से उनके सबसे करीबी और मप्र भाजपा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस ने यहां से अशोक सिंह को मैदान में उतारा था। चौथे क्रम पर शिवराज सिंह गुना में धड़ाधड़ बोले। यहां उन्होंने 7 सभाओं को संबोधित किया। यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया के लिए पहाड़ बने हुए हैं।
60 प्रत्याशी ही बचा सकेंगे जमानत मप्र की 29 लोकसभा सीटों पर तीन चरणों में मतदान संपन्न हो गया है। अब सभी की निगाह 16 मई को आने वाले चुनाव परिणाम की ओर है। इस बीच राजनीतिक समीक्षक प्रत्याशियों की हार-जीत के साथ ही इस बार चुनावी मैदान में उतरे 378 प्रत्याशियों के भाग्य का भी आंकलन कर रहे हैं। सभी 29 सीटों पर खड़े हुए प्रत्याशियों की सक्रियता,क्षेत्र में उनकी पकड़ और मतदाताओं के बीच उनकी पैठ के आंकलन पर एक बात सामने आई है कि इस बार मुश्किल से लगभग 60 प्रत्याशी ही अपनी जमानत बचाने में सफल होंगे। प्रदेश में 2009 में 29 लोकसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में विभिन्न राजनैतिक दलों की ओर से तथा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे 429 उम्मीदवारों में से 369 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इनमें सभी 214 निर्दलीय उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए। जबकि जमानत खोने वाले शेष प्रत्याशी विभिन्न राजनैतिक दलों के हैं। सबसे अधिक 28 उम्मीदवार छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में चुनाव मैदान में उतरे थे। जहां 26 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुईं, इनमें 20 निर्दलीय भी शामिल थे। यह संख्या अन्य संसदीय क्षेत्रों के मुकाबले सर्वाधिक थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में कुल 378 प्रत्याशी मैदान में हैं। तीन चरणों में हुए मतदान के तहत 10 अप्रैल को 9 सीटों पर हुए मतदान के दौरान 118 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। दूसरे चरण में 10 सीटों पर 142 प्रत्याशी खड़े हुए थे और वहां 17 अप्रैल को मतदान हुआ और तीसरे चरण में 24 मई को 10 सीटों पर मतदान हुआ। इन सीटों पर 118 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। प्रदेश के करीब 4 करोड़ मतदाताओं ने मतदान कर इन सभी प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम में कैद कर दिया है। अब मतदाताओं के साथ ही प्रत्याशियों को 16 मई का इंतजार है जब मतगणना होगी।
2009 में जमानत जब्त होने वाले उम्मीदवारों की संख्या सीट प्रत्याशी जमानत जप्त मुरैना 24 21 भिण्ड 13 11 ग्वालियर 23 21 गुना 18 16 सागर 12 10 टीकमगढ़ 17 15 दमोह 21 19 खजुराहो 15 13 सतना 21 18 रीवा 15 12 सीधी 11 9 शहडोल 8 6 जबलपुर 11 9 मण्डला 14 12 बालाघाट 18 16 छिंदवाड़ा 28 26 होशंगाबाद 10 8 विदिशा 8 7 भोपाल 23 21 राजगढ़ 9 7 देवास 10 8 उज्जैन 9 7 मंदसौर 12 10 रतलाम 10 8 धार 11 9 इन्दौर 18 16 खरगौन 11 9 खण्डवा 13 11 बैतूल 16 14 योग 429 369