शुक्रवार, 14 मार्च 2014

चोरों की दुनिया में भी कमीशन और प्रमोशन

कमाई में कमीशन का इंतजाम सिर्फ साहबों और ठेकेदारों में ही नहीं होता है। चोरों की दुनिया में भी कमीशन का अलिखित नियम है। प्रमोशन भी सिर्फ सरकारी और कारपारेट वर्ल्ड में नहीं होते, बल्कि इन चोरों को भी वक्त-वक्त पर इनकी परफारमेंस के हिसाब से प्रमोशन होते रहता है। मामूली वर्कर यानी कि सामान्य चोर चोरी करते-करते कभी ठेकेदार बन सकता है और परफारमेंस ज्यादा अच्छी और लगातार रही, तो उसे चोरों का मुखिया भी बनाया जा सकता है।
पिछले दिनों गोरखपुर जीआरपी ने सात चोरों को गिरफ्तार किया था। ये सभी ट्रेनों में अटैची और पर्स जैसी चीजों की चोरी करते थे। जीआरपी ने इनके पास से 47 हजार रुपये नगद और करीब ढाई लाख रुपये का सामान बरामद किया। महराजगंज जिले का जयप्रकाश, बिहार के सीवान का मोहन, बिहार के ही पिंकू, रंजित कुमार, विजय कुमार, चंद्रभान प्रसाद और कमबेभ को चोरी के आरोप में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया। उस वक्त तक तो ये सामान्य सी जानकारी मिली कि ये चोर किन-किन वारदातों में शामिल रहे और इनका रेकॉर्ड कैसा रहा है, लेकिन जब इनसे अलग-अलग बात की गई तो ट्रेनों में चोरी करने वालों की दुनिया का सच सामने आ गया। इनकी बातों से पता चला कि ट्रेनों में चोरी करने वाले तो बस कठपुतली भर हैं। इनकी डोर किन्हीं और हाथों में हैं। हर एक चोर को कुल कमाई में से बमुश्किल 10 फीसदी ही मिल पाता है।
टारगेट पूरा किया तो प्रमोशन
चोरी के इस धंधे में प्रमोशन भी होता है। यदि किसी ठेकेदार ने लगातार बिना किसी बाधा के टारगेट को पूरा कराया तो उसे मुखिया भी बना दिया जाता है। यदि किसी चोर ने लगातार अच्छा काम किया तो उसे ठेकेदार भी बनाया जा सकता है।
चोरी माल का 60% हिस्सा ‘वर्करों’ को
ट्रेन में चोरी, अटैची लिफ्टिंग करने वाले चोरों को वर्कर कहा जाता है। ठेकेदार जब किसी मुखिया को टारगेट के बारे में बताता है तो मुखिया उस टारगेट से चोरी करने अपने वर्करों यानी कि चोरों को भेजता है। किसी भी दशा में सात से ज्यादा वर्कर एक वारदात में नहीं होते हैं। काम यानी कि चोरी होने के बाद कुल माल का 60 फीसदी हिस्सा वर्करों में बांट दिया जाता है। इस तरह से हर वर्कर के हिस्से में करीब 10 प्रतिशत रकम आती है।
ठेकेदार को मिलता है पांच प्रतिशत
मुखिया के बाद होता है ठेकेदार। यह किसी गैंग का नहीं होता है। ठेकेदार का काम सिर्फ इतना है कि वह किसी गैंग के मुखिया को ट्रेन में सवार टारगेट के बारे में जानकारी देता है। ठेकेदार बताता है कि फलां व्यक्ति के पास मोटा माल है। वह चोरी की वारदात के समय तक ट्रेन में टारगेट को वाच करता रहता है। इसके बदले में उसे कुल चोरी के माल का पांच फीसदी हिस्सा दिया जाता है।
मुखिया की इजाजत के बिना चोरी नहीं :
ट्रेनों में चोरी करने वालों के अलग-अलग गैंग हैं। हर गैंग का एक मुखिया होता है और हर मुखिया का अपना रेल रूट है। दूसरे गैंग का मुखिया उस रेल रूट पर चोरी नहीं कराता है। गैंग का मुखिया अपने गैंग के चोरों को पुलिस से बचाता है। उनके खाने पीने और उनकी दिक्कतों में उन्हें मदद देता है। उसका गैंग जब कोई चोरी करता है, तो उसमें से 30 फीसदी हिस्सा मुखिया को मिलता है।

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