शुक्रवार, 15 मई 2015

काम नहीं करने वाले मंत्रियों कीे होगी छुट्टी!

संघ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को बनाया जाएगा आधार
भोपाल। मप्र विधानसभा के अगले सत्र से पहले शिवराज सिंह चौहान सरकार का कैबिनेट विस्तार हो सकता है। सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट में नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है। साथ ही जो मंत्री सही काम नहीं कर रहे हैं, उनकी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। बताया जाता है की अभी कुछ माह पहले संघ ने मंत्रियों की जो परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार की थी उसी के आधार पर मंत्रिमंडल को नया स्वरूप दिया जाएगा। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उन मंत्रियों को सख्त संदेश देना चाहते हैं जो ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। वहीं, जो मंत्री अच्छा काम कर रहे हैं, उनकी तरक्की हो सकती है। इसके लिए शाह शिवराज सिंह चौहान को फ्री हैंड दे सकते हैं। संघ का आरोप है कि मप्र में भले ही भाजपा सभी चुनाव जीतती आ रही है, लेकिन मंत्री ऐसे हैं जो अपने विभाग की कार्यप्रणाली को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। यही नहीं प्रदेश के 23 में से 13 मंत्री तो ऐसे हैं जो संघ और संगठन के पैमाने पर खरे नहीं उतर सकें हैं। इनमें से कुछ मंत्री अधिकारियों के भरोसे विभाग चला रहे हैं तो कुछ को विभागीय अधिकारी तव्वजों नहीं दे रहे हैं। वहीं कई मंत्री और उनका विभाग ऐसा है कि वे सरकार और संगठन की गाइड लाइन के अनुसार काम ही नहीं कर पा रहे हैं। उल्लेखनीय है की संघ और भाजपा संगठन ने केंद्र और भाजपा शासित राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे अपनी-अपनी सरकार और मंत्रियों की परफॉर्मेंस की लगातार मॉनिटरिंग करें। साथ संघ और संगठन ने अपने स्तर पर भी मंत्रियों और उनके विभाग की मॉनिटरिंग करवाई है। जिसमें विजन डाक्यूमेंट 2018 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किस स्तर पर प्रयास किया गया,आम जनता में मंत्री की छवि,कार्यकर्ताओं से उनका संपर्क, विभागीय योजनाओं की जानकारी और विभाग में मंत्री की पकड़,मंत्रियों के ओएसडी, निज सहायकों की छवि और मंत्री की उन पर निर्भरता,अब तक की कैबिनेट की बैठकों में मंत्रियों द्वारा अपने विभाग के कितने प्रजेंटेशन दिए गए,मंत्रियों के निर्णय और फाइलों का निराकरण सहित मंत्रालय में बैठकर काम-काज करना,मंत्री के काम-काज से पार्टी की छवि पर कैसा असर,मंत्री बनने के बाद कितने दौरे किए, कितने लोगों से मिले, मैदानी योजनाओं की हकीकत जानने और उसमें सुधार के लिए कितने प्रयास किए आदि को आधार बनाया गया है। इसके साथ ही इंटेलीजेंस से भी रिपोर्ट तैयार करवाई गई है। इन रिपोर्टो के अनुसार प्रदेश के 13 मंत्री अपने दस माह के कार्यकाल में असफल साबित हुए हैं। इनमें गौरीशंकर शेजवार, सरताज सिंह, कुंवर विजय शाह, गौरीशंकर बिसेन, कुसुम महदेले, पारसचंद्र जैन, अंतर सिंह आर्य, रामपाल सिंह, ज्ञान सिंह, भूपेन्द्र सिंह शरद जैन,सुरेन्द्र पटवा और दीपक जोशी का नाम शामिल है। तीन माह से हो रही थी मॉनिटरिंग संघ के एक वरिष्ठ नेता का कहना है की इस साल जुलाई मध्य में जब भोपाल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पांच दिनी चिंतन शिविर आयोजित किया गया था, तभी से प्रदेश सरकार के कामकाज और मंत्रियों की कार्य प्रणाली का आंकलन किया जा रहा था। इसके तहत संघ परस्त नौकरशाहों को जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसमें कुछ सचिव स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं। ये नौकरशाह सरकार के काम और मंत्रियों के क्रियाकलापों की रिपोर्ट तैयार करके हर माह संघ मुख्यालय पहुंचा रहे है। कामकाज के आधार पर मंत्रियों रेटिंग की जा रही है। मंत्रियों की रेटिंग, विभागी समीक्षाएं सरकारी ढर्रा सुधारने की एक कड़ी है, इसके विपरीत अफसर अपने ही तरीके से काम कर रहे हैं। यानी अफसरों पर मंत्रियों की पकड़ मजबूत नहीं हुई है। शिव राज के ये हैं मजबुत हाथ संघ की रिपोर्ट के आधार पर 10 मंत्रियों का कार्य सराहनीय रहा है। इनमें गृह एवं जेल मंत्री बाबूलाल गौर, वित्त एवं वाणिज्यिक कर मंत्री जयंत कुमार मलैया, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मंत्री गोपाल भार्गव, नगरीय प्रशासन एवं आवास पर्यावरण मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री नरोत्तम मिश्र, तकनीकी एवं उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता, ऊर्जा, खनिज साधन एवं जनसम्पर्क मंत्री राजेन्द्र शुक्ल, महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया और राज्य मंत्री सामान्य प्रशासन लाल सिंह आर्य को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार का मजबुत आधार माना गया है। बाबूलाल गौर: पिछले कार्यकाल में नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री के रूप में अच्छा काम करने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता को इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गृह मंत्री की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। अपने अभी तक के लगभग 10 माह के कार्यकाल में लगातार सक्रियता दिखाकर गौर ने अपनी कार्यक्षमता सं सभी को प्रभावित किया है। गौर प्रदेश के एक मात्र ऐसे मंत्री रहे हैं जिन्होंने बिना ब्रेक लगातार बैठके की हैं। प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाए रखने और पुलिस व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने के लिए सक्रिय रहे हैं। गौर की तो दस बार विधानसभा का चुनाव जीतना ही अपने-आप में एक दक्षता है। उसमें वे जब-जब मंत्री रहे तब-तब उनके कार्यों से प्रदेश में भाजपा को मजबूती मिली है। यही कारण है कि नगरीय प्रशासन गौर का पसंदीदा विभाग भी रहा है। प्रदेश की राजधानी में हमेशा सुधार के लिये प्रयासरत रहे बाबूलाल गौर राजधानी से ही पूरे प्रदेश में भाजपा के प्रति सकारात्मक संदेश देते है। एक मंत्री के रूप में गौर का परफॉर्मेंस हमेशा बेस्ट रहा है। यही नहीं पार्टी गाइड लाइन का गौर हमेशा ख्याल रखते हैं। इसलिए संघ और संगठन हमेशा इन्हें महत्व देता रहता है। इन सबके इतर अपने प्रभार वाले जिले रायसेन में उनकी सक्रियता कम रही है। जयंत मलैया: जयंत मलैया सत्ता और संगठन में तालमेल बिठाकर काम करने में माहिर हैं। वे हमेशा लो प्रोफाइल पॉलिटिक्स करते हैं। लोधी बाहुल्य दमोह सीट पर ऐन-केन प्रकरण सीट जीत ही लेते हैं। वे विभागीय कार्यों में पूरी शिद्दत और दक्षता के साथ निपटाते हैं। यही कारण है कि राघवजी के हटाने के बाद वित्त विभाग का चार्ज दिया गया था और अपने इस कार्यकाल में भी वे वित्त मंत्री की जिम्मेदारी बखुबी निभा रहे हैं। अपने विभागों की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही वे अपने प्रभार वाले जिले ग्वालियर और बालाघाट में भी सक्रिय रहते हैं। हालांकि संघ की रिपोर्ट में इनके अब तक के कामकाज को मध्यम दर्जे का ही माना गया है। गोपाल भार्गव: पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मंत्री गोपाल भार्गव अपने विभाग के अफसरों के साथ मिलकर काम करने के लिए जाने जाते हैं। भार्गव को हमेशा पार्टी ने चुनौतीपूर्ण विभाग दिए हैं। सबसे पहले कृषि एवं सहकारिता का विभाग दिया गया है तब भार्गव ने अपनी काबिलियत दिखाते हुए मप्र के सहकारिता क्षेत्र से कांग्रेस के धाकड़ नेताओं को बाहर कर दिया है। लगातार दूसरी बार सामाजिक न्याय एवं पंचायत व ग्रामीण विकास मंत्री बनाए गए गोपाल भार्गव अपनी पुरानी योजनाओं को गति दे रहे हैं। भार्गव द्वारा शुरू की गई पंच परमेश्वर योजना के कारण ही भाजपा का गांवों में ग्राफ बढ़ा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री सड़क योजना एवं मुख्यमंत्री आवास योजना चलाकर उन्होंने जनता के बीच भाजपा की पैठ बनाई। इसके अलावा भी भार्गव ने सामाजिक न्याय मंत्री रहते हुए कन्यादान योजना, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना, बेटी बचाओं अभियान एवं वृद्धों एवं नि:शक्तजनों की योजनाओं को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। संघ के आंकल के अनुसार,भार्गव में वह क्षमता है कि वे विधानसभा के अंदर या बाहर कभी भी राजनैतिक परिदृश्य को बदलने की दृष्टि रखते हैं। भार्गव की सबसे बड़ी कमी यही है कि वे न तो दिल्ली का दौरा कर राष्ट्रीय नेताओं से संबंध बनाते है और न ही प्रदेशव्यापी दौरा कर प्रदेश के नेता बनने का प्रयास करते हैं। हालांकि अपने विधानसभा क्षेत्र और प्रभार वाले जिलों भोपाल, गुना, अशोक नगर में लगातार सक्रिय रहते हैं। कैलाश विजयवर्गीय: विजयवर्गीय केवल मंत्री के रूप में ही नहीं बल्कि मालवा क्षेत्र में भाजपा को मजबुत करने में भी सफल साबित हुए हैं। वहीं सदन के अंदर भी वे सरकार के संकट मोचक के रूप में हमेशा काम आए हैं। वर्तमान कार्यकाल में वे नगरीय प्रशासन और विकास विभाग का काम बखुबी संभाल रहे हैं। विजयवर्गीय का जहां राष्ट्रीय नेताओं से भी मधुर संबंध हैं वहीं प्रदेश में भाजपा के अनेकों कार्यकर्ताओं से भी सीधा संवाद रखते हैं। उद्योगमंत्री रहते हुए देश और विदेश के उद्योगपतियों से भी उनके अच्छे संबंध स्थापित हो गए जो आज की राजनीति की महती आवश्यकता है। विजयवर्गीय का उनके प्रभार वाले जिलों उज्जैन, खंडवा और बुरहानपुर में भी अच्छा होल्ड है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की जीत का शिल्पकार कैलाश को माना जाता है। चुनावी राजनीति के चतुर सुजान माने जाने वाले विजयवर्गीय पिछले दो माह की कठिन मेहनत के बाद हरियाणा में पार्टी को नाजुक दौर से निकाल कर मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है। दो महीने पहले जब विजयवर्गीय को हरियाणा विधानसभा चुनाव का कमान सौंपा गया था तब की स्थितियां बिलकुल भिन्न थीं। इस हालत में यह चुनाव भाजपा के लिए किसी कड़ी चुनौती से कम नहीं थीं,लेकिन एक सुनियोजित रणनीति के तहत दो माह में विजयवर्गीय ने न केवल संगठनात्मक रूप से पार्टी को मजबूत किया बल्कि चुनावी बयार का रुख पलटने में भी कामयाब रहे। टिकट वितरण में अपनी कौशल के बदौलत सभी को खुश कर संतुलन बनाकर कैलाश ने बड़ी ही चतुरता से काम को सफलता से अंजाम दिया। यही कारण है कि संगठन और संघ की नजर में विजयवर्गीय सबसे लाड़ले नेता बने हुए हैं। नरोत्तम मिश्रा: मंत्री के रूप में नरोत्तम मिश्रा का काम साधारण रहा है, लेकिन सदन के भीतर व बाहर पार्टी विरोधियों को करारा जवाब देने और तालमेल बिठाने में माहिर होने के कारण वे सरकार की आंखों का नूर बने हुए हैं। मिश्रा मुख्यमंत्री के निकट और विश्वसनीय भी कहे जाते हैं। संसदीय कार्यमंत्री रहते सदन के अंदर तालमेल बिठाने का काम बड़ी चतुराई से करते हैं। स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए भी नरोत्तम मिश्रा ने जननी सुरक्षा योजना, जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं का प्रदेश में बेहतर क्रियान्वयन किया है। हालांकि अपने प्रभार वाले जिलों सागर, धार और छतरपुर में इनकी सक्रियता कम रही है, फिर भी संघ इनकी कार्य कुशलता पर फिदा है। उमाशंकर गुप्ता: देश के सबसे बड़े और विवादित घोटाले के बाद तकनीकी एवं उच्च शिक्षा विभाग की कमान संभाल रहे गुप्ता ने अपनी सुझबुझ और खामोशी से किसी को जाहिर नहीं होने दिया है की उनके विभाग में कभी कुछ ऐसा हुआ है। जब प्रदेश में व्यापमं घोटाला तहलका मचा रहा था उस समय शिक्षा क्षेत्र में विकास की बात करते हुए गुप्ता ने सभी का ध्यान घोटाले की तरफ से मोड़ दिया। यही नहीं गृहमंत्री रहते हुए उमाशंकर गुप्ता ने पुलिस विभाग में सुधार के अनेकों उल्लेखनीय प्रयास किए। गुप्ता अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ ही अपने प्रभार वाले जिलों शहडोल और उमरिया में भी निरंतर सक्रिय रहे हैं। राजेन्द्र शुक्ल: प्रदेश में हर घर में 24 घंटे बिजली देने की योजना के सुत्रधार रहे राजेन्द्र शुक्ल के पास इस बार भी ऊर्जा और खनिज साधन विभाग की जिम्मेदारी है। साथ ही सरकार के कार्यों का प्रचार-प्रसार करने वाले जनसम्पर्क विभाग का जिम्मा भी इन्होंने संभाल रखा है। जब देश के कई राज्यों में बिजली का संकट पसर रहा था, उस दौरान प्रदेश में बिजली व्यवस्था सुदृढ़ रखने के लिए शुक्ल ने जिस तरह अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया वह सराहनीय रहा। शुक्ल अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ ही प्रभार वाले जिले सतना, सिंगरौली और कटनी में भी लगातार सक्रिय रहे हैं। हालांकि कटनी जिले की दो सीटों पर हुए उपचुनाव में से एक सीट बहोरीबंद पर मिली हार से इनकी सक्रियता पर सवाल भी उठे हैं। माया सिंह: पहली बार मंत्री बनी माया सिंह के पास महिला एवं बाल विकास जैसा महत्वपूर्ण विभाग है। हालांकि अभी तक के कार्यकाल में उन्होंने कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है,लेकिन जिस तरह वह सक्रिय हैं उससे भाजपा संगठन और संघ फिलहाल उनसे संतुष्ट नजर आ रहा है। बताया जाता है की अपनी कुछ छापामार कार्रवाई के कारण माया सिंह ने रिपोर्ट बनाने वालों को प्रभावित किया है। माया सिंह प्रभारी मंत्री के तौर पर भिंड और दतिया का लगातार दौरा करती रहती हैं। यशोधरा राजे सिंधिया: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के इस कार्यकाल की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है इंदौर इंवेस्टर्स समिट। हालांकि समिट की सफलता का श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जाता है, लेकिन जिस तरह उन्होंने मुख्यमंत्री का साथ साए की तरह दिया है उससे प्रदेश में इस बार समिट ऐतिहासिक रही। देश से लेकर विदेश तक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यशोधरा तीन माह तक लगातार काम करती रहीं। इसके अलाव अपने पिछले कार्यकाल में भी इन्होंने पर्यटन एवं खेल मंत्री के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाई थी। हालांकि वे प्रभारी मंत्री के तौर पर राजगढ़ और होशंगाबाद कम ही गई हैं। लालसिंह आर्य: राज्य मंत्री लालसिंह आर्य के पास करने के लिए वैसे तो कोई विशेष काम नहीं है, लेकिन जिस तरह वे सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री के तौर पर वे सक्रिय रहे हैं उसे भरपुर सराहना मिली है। वे अपने प्रभार वाले जिलों मुरैना और श्योपुर में लगातार दौरे करते हैं। बेस्ट परफॅार्मर ही बने रहेंगे मंत्री संघ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र हो या फिर राज्य बेस्ट परफॉर्मेेस करने वाले मंत्रियों को ही सरकार में रखा जाए। इसको देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र सरकार तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मप्र सरकार के मंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट जांचेंगे। इससे पहले अधिकारियों द्वारा पिछले मंत्रीमंडल के मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड खगाला जाने लगा है। ऐसे मंत्रियों को छांट कर अलग किया जा रहा है जिनकी परफॉर्मेंस परफैक्ट रही है। ऐसे मंत्री जो विधानसभा के अंदर भी और बाहर भी सरकार की हमेशा अलग-अलग ढंग न केवल सबल प्रदान करते हैं, बल्कि अपने विभाग में मजबूत पकड़ रखते हुए सकारात्मक परिणाम भी देते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सत्ता की हैट्रिक और केंद्र में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद संघ और भाजपा संगठन हाथ आए मौके को गंवाना नहीं चाहता है और वह चाहता है कि कम से कम प्रदेश में और 10 साल तथा केंद्र में 15 साल भाजपा की सरकार बनी रहे। इसके लिए वह किसी भी मंत्री की कोताही बर्दास्त करने के मूड में नहीं है। तैयार हो रहा मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड जहां तक प्रदेश की बात है तो अभी मंत्रिमंडल में 11 और मंत्री बनाने की गुंजाइश है। साथ ही भाजपा के पास 165 विधायकों की लंबी फौज है। ऐसे में किसी के दबाव में आने का सवाल ही नहीं उठता।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक-एक विधायक और उसकी क्षमता को जानते हैं और उन्हें पता है कि कौन बेहतर प्रर्दशन कर सरकार की छवि बना सकता है। इसलिए संघ की रिपोर्ट आने के बाद वे जल्द ही अपने स्तर पर मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करवा रहे हैं। इसकी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसरों को सौंपी गईहै। मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड मुख्यत: 10 बिंदुओं के आधार पर तैयार किया जाएगा। जल्द ही होने वाले मंत्रिमंडल के फेरबदल में मंत्रियों के विभाग का फैसला उनकी रेटिंग के अनुसार किया जाएगा। इस आधार पर कुछ मंत्रियों को बड़े विभागों की जिम्मेदारी दी जाएगी तो कुछ के विभाग बदले जा सकते हैं, वहीं खराब परफॉरमेंस वालों को मंत्रिमंडल से बाहर कर उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड बनाने के लिए इंटेलीजेंस से मंत्रियों की रिपोर्ट मंगवाई है। इसमें यह भी देखा जा रहा है कि कितने मंत्रियों ने पिछले एक साल में विभाग के काम-काज पर कितना ध्यान दिया है। यहां से तैयार रिपोर्ट कार्ड की मंत्रिमण्डल विस्तार में अहम भूमिका रहने वाली है। विभाग के काम की रेटिंग दो प्रकार से हो रही है। एक तो मंत्रियों की विभागों में कितनी पकड़ है, दूसरी यह कि वे अपने विभाग में कितना समय दे रहे हैं। मंत्रियों के मामले में यह शिकायतें रहीं कि वे मंत्रालय में कम समय देते हैं। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2009 में मंत्रियों की योग्यता जानने उनकी परीक्षा कराई थी। इसमें विशेषज्ञों की मदद से 11 पेपर तैयार किए गए थे। 15 नंबर का एक पेपर था। इसमें भावनात्मक अभिव्यक्ति, अन्य व्यक्ति की भावनात्मक चेतना, इच्छा, दूसरों के साथ संबंध, रचनात्मक असंतोष, दया, दृष्टिकोण, बोध, विश्वास, नियंत्रण और ईमानदारी शामिल थे। इस परीक्षा में मात्र चार मंत्री ही सारे टेस्टों में 9 से अधिक अंक ला पाए थे। अधिकांश मंत्रियों को विश्वास के मामले में 2 से 5 नंबर मिले वहीं ईमानदारी के मामले में भी कई मंत्री 6 से 9 नंबर ही ला पाए। हालांकि सरकार ने मंत्रियों के नाम नहीं बताए। सूचना के अधिकार में भी केवल मंत्रियों के कोडिंग वाला रिजल्ट दिया गया। विस्तार की सुगबुगाहट संघ की रिपोर्ट और मुख्यमंत्री द्वारा तैयार करवाई जा रही मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड से मंत्रिमंडल विस्तार के कयास लगाए जा रहे हैं। वैसे पिछले माह सितम्बर माह में विस्तार की तैयारी थी, लेकिन इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। जिन मंत्रियों का कामकाज अच्छा नहीं होगा, उनकी कुर्सी जा सकती है। अभी कैबिनेट में 11 मंत्रियों की जगह बाकी है। इनमें आधा दर्जन पद भरे जा सकते हैं। ऐसे में पूर्व मंत्रियों में अर्चना चिटनीस, महेंद्र हार्डिया, रूस्तम सिंह, तुकोजीराव पंवार लाल बत्ती पाने की उम्मीद लगाए हैं। भंवर सिंह शेखावत, सुदर्शन गुप्ता, मालिनी गौड़, यशपाल सिंह सिसौदिया, रणजीत सिंह गुणवान, हितेन्द्र सिंह सोलंकी भी क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर आस लगाए हैं। मप्र के परिणामों से तुलना कर रही भाजपा रायपुर(नवभारत)। मध्यप्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा का डंका बजा है। खबर है कि भाजपा संगठन उक्त परिणामों की छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों की समीक्षा कर रहा है। आने वाले दिनों में इसे लेकर भारी उथल-पुथल के आसार दिख रहे हैं। मध्यप्रदेश के लगभग सभी प्रमुख शहरों में भाजपा ने जीत दर्ज की है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में राजधानी रायपुर, जगदलपुर, कोरबा, चिरमिरी, अंबिकापुर और रायगढ़ में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। भाजपा इस नुकसान की भरपाई पंचायत चुनाव में करने प्रयासरत है। पार्टी 27 जिला पंचायतों में से अधिकांश पर काबिज होने की रणनीति पर काम कर रही है, लेकिन ये भी आसान नहीं है, क्योंकि आधा दर्जन से अधिक जिलों में विरोधी दल के समर्थित प्रत्याशी जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए हैं। पार्टी में सत्ता से नाराज चल रहे नेताओं की सक्रियता एक बार फिर से बढ़ी है। वे निकायों और पंचायतों में पार्टी की हार की वजह सत्ता व संगठन में तालमेल का अभाव बता रहे हैं। पंचायत चुनाव गैरदलीय होने के कारण भाजपा के कार्यकर्ता बेलगाम हो गए। पार्टी के मना करने के बावजूद कई स्थानों पर बगावत हो गई और पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। प्रदेश में भाजपा के कार्यकर्ताओं में पहले जैसा उत्साह नजर नहीं आ रहा है। तीसरी बार सरकार बने सवा साल बीतने को है, लेकिन अभी तक निगम व मंडलों में नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। लाल-पीली बत्ती मिलने की आस में बैठे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में निराशा है। वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। राज्य शासन के दो दर्जन से अधिक निगमों व मंडलों में ढेरों पद खाली हैं। दूसरी तरफ पार्टी संगठन अपनी सरकार के मंत्रियों पर भी लगाम नहीं कस सका है। मंत्रियों के पास न तो पार्टी के लिए समय है और न ही कार्यकर्ताओं के लिए। स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम पार्टी के विपरीत आने की यही मूल वजह मानी जा रही है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के आला नेताओं को भी इसकी पूरी खबर है। जल्दी ही इस माामले में सत्ता और संगठन के प्रमुखों को तलब किया जा सकता है। राज्य मंत्रिमंडल में विस्तार और निगम-मंडलों में नियुक्तियां विधानसभा के बजट सत्र के बाद ही होने की संभावना है। जिलाध्यक्ष बदलेगी भाजपा भाजपा की प्रदेश इकाई घोषित होने के बाद अब जिलाध्यक्ष बदलने की सुगबुआहट तेज हो गई है। जहां तक राजधानी का सवाल है तो यहां आलोक शर्मा के महापौर बनने के बाद अब नए जिलाध्यक्ष की तलाश की जा रही है। साथ ही कई अन्य जिलों के अध्यक्ष भी बदले जाने हैं। ग्वालियर जिलाध्यक्ष अभय चौधरी के बदलने की उम्मीद है। दरअसल तीसरी बार जिले की कमान संभाल रहे अभय चौधरी को लेकर अब बीजेपी में लाल-पीली बत्ती से नवाजने की तैयारियां कर रही है। चौधरी को किसी निगम, मंडल या प्राधिकरण में भेजने की तैयारियों के चलते पार्टी में नए अध्यक्ष के लिए भी तलाश तेज होने के आसार हैं। इन हालातों में खाली पड़े तमाम प्रशासनिक ओहदों के साथ भाजपा की जिलाध्यक्षी के लिए भी नए सिरे से सियासत गरमाने वाली है। करीब साल भर से खाली पड़े प्रदेश के तमाम निगम मंडलों में सेट होने की बाट जोह रहे भाजपा नेताओं की उम्मीदों को एक बार फिर से पंख लगते दिख रहे हैं। इनमें दर्जन भर से ज्यादा राज्यस्तरीय ओहदों से लेकर स्थानीय स्तर के भी तीन प्राधिकरण शामिल हैं, जिन पर लंबे समय से प्रशासनिक अफसर काबिज हैं। दरअसल पहले विधानसभा से लेकर लोकसभा फिर नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों के चलते टलते रहे सियासी नियुक्तियों के मामले में अब जल्द फैसला होने के आसार बनते दिख रहे हैं। दरअसल सूबे के विभिन्न निगम, मंडल, प्राधिकरण व आयोगों की कमान एक साल से भी ज्यादा समय से ब्यूरोक्रेसी के हाथ में हैं। दरअसल बीते साल विधानसभा चुनावों से पहले इनमें से राजनेताओं की विदाई हो गई थी। वहीं कुछ आयोग वगैरह के औहदेदारों का निधन होने तो किसी का कार्यकाल पूरा होने से खाली हुए पदों पर नए सिरे से नियुक्तियां होना हैं। इसको लेकर ग्वालियर चंबल समेत पूरे सूबे के भाजपाई लंबे समय से आस लगाए बैठे हैं। वहीं तमाम चुनावों में टिकिट वितरण से साइट ट्रेक हुए नेता भी इसके लिए ऐढ़ी चोटी का जोर लगाकर गोटियां बिठाने में लगे हैं। बार-बार अटकता रहा है रोड़ा काफी समय से लाल, पीली बत्तियों के लिए जारी रेस में तमाम स्पीड ब्रेकर भी आते रहे हैं। इनमें प्रदेश की सियासत को लगातार गरमाता रहा व्यापंम घोटाला भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। दरअसल इसको लेकर कभी विपक्ष के हमलों से बचाव की रणनीति और कभी काउंटर अटैक की तैयारियों को लेकर भी भाजपा के बड़े नेता उलझे रहे हैं। वहीं विधानसभा के बाद लोकसभा से लेकर पंचायत चुनावों तक बार-बार लगती आचार संहिता भी इसकी एक बड़ी वजह रही है। प्रदेश स्तर पर यहां भी टिकी नजर लघु उद्योग विकास निगम म.प्र. पाठ्य पुस्तक निगम म.प्र.पिछड़ा वर्ग आयोग अनुसूचित जाति आयोग म.प्र.अल्पसंख्यक आयोग मध्यप्रदेश गौ संवर्धन बोर्ड खनिज विकास निगम मप्र कृषि विकास निगम मप्र बीज विकास निगम । 9999999999

रेत के खेल में रोजाना हो रही 2 की मौत

रेत माफिया ने ले ली एक और सिपाही की जान
अकेले मुरैना में दर्जनभर से अधिक बार पुलिस पर हमला कर चुके हैं माफिया
भोपाल। मप्र में एक बार फिर से रेत माफिया ने एक पुलिसकर्मी को मौत के घाट सुला दिया है। पिछले 4 साल में माफिया ने अकेले मुरैना जिले में ही एक दर्जन से अधिक बार पुलिस पर हमला बोला है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में रेत माफिया के हौसले बुलंद हैं। माफियाओं को सरकार का खुला संरक्षण है। उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर आरोप लगाए कि उनके क्षेत्र में ही रेत का अवैध उत्खनन हो रहा है जिनमें उनके नजदीकी लोग शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि 5 अप्रैल को मुरैना जिले में रेत माफिया ने नूराबाद के करह आश्रम रोड पर धानेला गांव के सामने रेत से भरे डंपर को पलटाकर आरक्षक को कुचल दिया। घटना तड़के पौने सात बजे की है। डंपर को पलटाने के बाद आरोपी ड्रायवर कांच तोड़कर भाग निकला। घटना की सूचना मिलते ही मौके पर पुलिस के सभी वरिष्ठ अफसर पहुंच गए। डंपर को क्रेन से उठवाकर सिपाही के शव को निकाला। इसके बाद नूराबाद अस्पताल में शव का पीएम कराया गया और पूरे सम्मान के साथ शहीद सिपाही का अंतिम संस्कार ग्वालियर में किया गया। एसआईटी करेगी मुरैना मामले की जांच मुरैना में सिपाही की हत्या का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले पर गंभीर प्रदेश सरकार ने इसकी जांच एसआईटी के हवाले कर दी है। इसके अलावा सिपाही के परिजनों को 11 लाख रुपये मुआवजा देने का भी ऐलान किया गया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिपाही की हत्या पर गहरा शोक जताया है। मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार ने आपात बैठक बुलाई। बैठक में गहन चर्चा के बाद सीएम ने इसमें पुलिस की लापरवाही बताया और मामले की जांच एसआईटी को सौंप दी। इस दौरान सीएम शिवराज ने शहीद सिपाही धर्मेंद्र के पूरे सेवा काल का वेतन उनके परिवार को देने का ऐलान किया। सीएम ने कहा कि उनके परिवार को 10 लाख रुपये और पुलिस शहीद फंड की ओर से भी उन्हें एक लाख रुपये दिया जाएगा। आइपीएस नरेंद्र की भी ऐसे ही हुई थी मौत मालूम हो कि आठ मार्च, 2011 को मुरैना के बानमोर में आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार पर पत्थर के अवैध खनन से जुड़े माफिया ने पत्थर की ट्रॉली चढ़ाकर मार दिया था। वह घटना भी कुछ इसी तरह से हुई थी। बेखौफ खनन माफिया अभी तक आइपीएस से लेकर आरक्षक तक को अपना शिकार बना चुका है। खनन माफिया के वाहन कई लोगों को भी कुचल चुके हैं। लेकिन प्रशासन हरकत में तभी आता है जब खनन माफिया पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मियों पर हमला करता है। माफिया के दवाब से हटी एसएएफ की कंपनियां अप्रैल 2014 में खनन माफिया खासतौर से रेत माफिया पर अंकुश लगाने व रेत के अवैध उत्खनन को रोकने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश पर शासन से एसएएफ की 10 कपंनियां आईं थी। माफिया ने राजनेताओं पर दवाब डाल कर इन कंपनियों को हटवा दिया। इसके बाद पत्थर व रेत का लगातार अवैध उत्खनन हो रहा है। अजय सिंह ने आरोप लगाया कि आज प्रदेश अपराधियों की शरणस्थली बन चुकी है। कई अपराधी भाजपा के पदाधिकारी बने बैठे हैं। उन्होंने हाल ही में अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई द्वारा अंतरराष्ट्रीय अपराधी शिवराज सिंह डाबी का नाम लेते हुए कहा कि वह न केवल बीजेपी के आईटी प्रकोष्ठ में पदाधिकारी था बल्कि राज्य सरकार का सलाहकार भी था। मप्र में रेत का कारोबार कितना कलंकित है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है की प्रदेश में रेत के खेल में रोजाना 2 लोगों की मौत हो रही है। जहां वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान प्रदेश में रेत माफिया की आपसी रंजिश, पुलिस मुठभेड़, ग्रामीणों से झगड़ा आदि में करीब 715 लोगों ने अपनी जान गवांई वहीं वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान 31 दिसंबर तक 547 लोग रेत के खेल में जान गवां चुके हैं। वैसे तो प्रदेश में सभी छोटी-बड़ी नदियों में अवैध रेत और पत्थर का उत्खनन हो रहा है,लेकिन ग्वालियर-चंबल संभाग में माफिया सबसे अधिक वारदात को अंजाम देते हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में तो रेत माफिया इस कदर हावी हो गया है कि उसके अभियान में कोई बाधा डालता है, तो उस पर वे सीधा हमला करते हैं। इस इलाके में डिप्टी कलेक्टर से लेकर नायब तहसीलदार पर हमला हो चुका है। पुलिस थानों पर हमला करके जप्त ट्रक और ट्रालिया छुड़ाना तो यहां आम बात हो गई है। प्रदेश में ग्वालियर-चंबल डिवीजन के अलावा मालवा, महाकौशल और विंध्य खनन माफिया का गढ़ बन गया है। विंध्य क्षेत्र में रीवा-सतना का ऐसा ही क्षेत्र है, जहां खनिज माफिया के खौफ से अधिकारी कर्मचारी परेशान हैं। प्रदेश में माफिया तंत्र के रसूख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बड़वानी जिले के गठन के 18 साल के अंदर अभी तक 19 कलेक्टर हटाए जा चुके हैं। यानी यहां कलेक्टरों का औसत कार्यकाल एक वर्ष से ही कम रहा। अवैध उत्खनन से अरबों का लगता है चूना प्रदेश के जिलों में लंबे समय से जमे जिला खनिज अधिकारियों के संरक्षण में माफिया के साथ मिलीभगत से रेत के अवैध उत्खनन का कारोबार चल रहा है। इससे सरकार को हर साल अरबों रूपए का चूना लग रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग में डबरा के पास स्थित सिंध नदी के चांदपुर घाट और रायपुर घाट पर रेत माफिया द्वारा नाव डालकर रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है। खनिज विभाग के अधिकारी इसे बढ़ावा देकर वसूली कर रहे हैं। पनडुब्बी से 70-80 फुट गहराई से रेत पाइप डालकर निकाली जाती है। कई बार लाखों रूपए की लागत से उत्तर प्रदेश से बनकर आईं पनडुब्बियां पकड़ी गई हैं। परंतु रेत के काम में इतना मुनाफा है कि रेत माफिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रदेश सरकार ने यहां रेत खदान के ठेके निरस्त कर दिए हैं, लेकिन रेत माफिया ने अधिकारियों से सांठगांठ कर करोड़ों की राजस्व चोरी कर हैं। खादी और खाकी का संरक्षण होने के कारण सिंध नदी के चांदपुर घाट, अरूसी, रायपुर, कैथोदा, बेलगढ़ा, गजापुर, लांच, चूनाघाट, विजकपुर, भैंसनारी घाट पर जमकर अवैध उत्खनन हो रहा है। राजस्थान के रेत माफिया सिंध नदी के 10-12 घाटों पर करोड़ों रूपए की बोली स्थानीय नेताओं को अघोषित पार्टनर बनाकर लगाते हैं, जहां से ठेके लेकर अरबों रूपए की रेत निकालकर दिन-रात बेची जाती है। ठेके खत्म होने के बाद अब जो रेत निकल रही है, उसकी राजस्व वसूली रॉयल्टी के रूप में खनिज विभाग के अधिकारी दिखावे के रूप में कर रहे हैं। कई बार रेत माफिया में बर्चस्व को लेकर गोली चली है। संकट में नर्मदा की सहायक नदियां मप्र की जीवनरेखा नर्मदा और उसकी लगभग एक दर्जन सहायक नदियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। नरसिंहपुर जिले की प्रमुख नदियों शक्कर, शेढ़, सीतारेवा, दूधी, ऊमर, बारूरेवा, पांडाझिर, माछा, हिरन आदि नदियों में से कई नदियों को रेत माफिया लगभग मौत के घाट उतार चुका है। बारूरेवा, माछा, पांडाझिर, सीतारेवा, ऊमर नदी तो ऐंसी नदियां हैं कि जहां माफिया ने रेत का अंधाधुंध खनन नदी के अंदर से किया, जिससे नदी की सतह पर पानी थामने वाली कपायुक्त त्रिस्तरीय तलहटी (लेयर) पूरी तरह उजड़ गई है। नर्मदा का हाल यह है कि उसका सीना लगातार छलनी किया जा रहा है। इससे नर्मदा के दोनों तटों पर रेत की बजाय अब कीचड़ है, नदी के अंदर से पोकलेंड मशीन के जरिए रेत निकालकर वही कार्य किया जा रहा है। शक्कर और शेढ़ नदी के हाल बुरे हैं। कभी इन नदियों के किनारे खरबूज-तरबूज की खेती लहलहाती थी, आज वहां उजड़ा चमन है। शक्कर अस्तित्व से जूझ रही है, वहीं शेढ़ को भी संकट का सामना करना पड़ रहा है। अवैध खदानों से हर साल 20,000 करोड़ का धंधा मध्य प्रदेश में नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन और बेनगंगा आदि बड़ी नदियों के साथ ही अन्य नदियों में जितनी रेत खदानें हैं,वह सभी अवैध हैं। इन खदानों के संचालन में न तो एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल)के नियमों का पालन हो रहा है और न ही प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के मापदंडों का पालन हो रहा है। नियमों को दरकिनार नदियों का कलेजा चीर कर माफिया सालाना 20,000 करोड़ का अवैध धंधा कर रहा है जबकि सरकार को मासिक केवल 76 करोड़ की आय हो रही है। मध्यप्रदेश में रेत खदानें सोना उगलती हैं। इसलिए इस कारोबार में माफिया सबसे अधिक सक्रिय है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि रेत खनन का वैध तरीके से कम अवैध रूप से अधिक चल रहा है। किसी के पास वैधानिक मंजूरी नहीं है। जो खदान चल रहीं हैं उनके पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। प्रशासन अनजान बन रहा है और अवैध उत्खनन खुलेआम जारी है। जबकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय दिसंबर माह में ही माइनिंग के लिए नई गाइडलाइन जारी कर चुका है। मप्र प्रदूषण बोर्ड का दावा है कि प्रदेश में जितनी भी रेत खदान चल रही है उनमें से अधिकांश के पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। बिना मंजूरी के सभी खदान अवैध हैं। प्रशासन को भी खदान आवंटन से पहले पर्यावरण मंजूरी की जानकारी लेना चाहिए था। रेत के अवैध उत्खनन, अबैध भण्डारण व ओव्हरलोड परिवहन के कारण नदियों की सभी स्वीकृत रेत खदानों का 90 प्रतिशत रेत पूरी तरह समाप्त हो चुका है। खनन माफिया ऐसे स्थानों से रेत का उत्खनन कर रहे है, जहां खदान स्वीकृत नहीं है। इससे नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन,बेनगंगा आदि नदियों के हालात खनन के कारण गंभीर हैं। 10 सालों में तेजी से बढ़ा कारोबार मध्यप्रदेश में खनन कारोबार का पिछले दस सालों में इस कदर विस्तार हुआ है कि राज्य के हर हिस्से में खदानों का खनन हो रहा था जिसके चलते अवैध उत्खनन का ग्राफ बढ़ गया है। माफिया ने अपने पैर फैला लिए है। अवैध उत्खनन की बार-बार बढऩे की शिकायतें के बाद अब केंद्र सरकार ने खदानों की अनुमति लेने की शर्त केंद्र से अनिवार्य कर दी है। इसके चलते खनन कारोबारी घबरा गए हैं। मप्र का खनिज विभाग भी विचलित है। 28 जिलों में है माफिया का एकछत्र राज प्रदेश में करीब 28 जिलों में तो खनन माफिया का एकछत्र राज है। इन पर न तो सरकार हाथ डाल पा रही है और न ही जिम्मेदार अधिकारी। खनिज विभाग के अफसर तो इनकी जानकारी देना तो दूर किसी प्रकार मुंह खोलने को भी तैयार नहीं होते। यही वजह है कि कई जिलों में अवैध उत्खनन के मामले में खनन माफिया पर लगाए गए अर्थदंड के अरबों रूपए वसूल नहीं हो पा रहे हैं। अकेले मंडला एवं सीहोर जिले में ही 1300 करोड़ रूपए का अर्थदंड खनन माफिया से वसूलने में प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। हालत यह है कि प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में 50 से 100 प्रकरण लंबित हैं, जिसमें खनन माफिया पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। छतरपुर, रीवा, ग्वालियर में 100 से अधिक प्रकरण लंबित हैं, जबकि जबलपुर, बालाघाट, डिंडोरी, पन्ना, टीकमगढ़, सतना, सीहोर, रायसेन और देवास जिले में करीब 50 से 100 के बीच अवैध उत्खनन के प्रकरण लंबित हैं। वहीं अन्य जिलों में पचास से कम हैं। मजबूरी में वर्ष 2012 में राज्य सरकार को प्रदेश के सभी कलेक्टरों को सख्त पत्र लिखकर जुर्माने की वसूली एवं प्रकरण दर्ज करने के आदेश जारी करने पड़े, लेकिन खनिज संसाधन विभाग के मंत्रालय द्वारा जारी प्रमुख सचिव के पत्र का भी इन अफसरों पर खास असर नहीं हुआ है। प्रदेश की नई रेत खनन नीति के कारण प्रदेश में रेत खदानें खनिज विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गई हैं। वहीं केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ ) के आदेश ने मध्य प्रदेश सरकार को रेत खनन के मोर्चे पर बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। इसमें पांच हैक्टेयर से छोटी रेत खदानों को पर्यावरण स्वीकृति के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इसके चलते प्रदेश की पांच हैक्टेयर से छोटी करीब 1600 रेत खदानों को बंद करने की तैयारी की जा रही है। मध्य प्रदेश में बड़ी-छोटी सभी मिलाकर कुल 17,72 रेत खदानें है। इसमें 1,600 रेत खदानें पांच हैक्टेयर से छोटी है। इसमें से करीब 6,00 खदानें तो मध्य प्रदेश स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन की हैं। कॉरपोरेशन को सबसे बड़ी आमदनी रेत खदानों के माध्यम से होती है। छोटी खदानें बंद होने से उसकी आमदनी पर विपरीत असर भी पड़ेगा। निगम की खदानों पर रेत उत्खनन करने पर ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी रोक लगा रखी है। इन खदानों को निगम नीलाम कर रहा है, लेकिन उत्खनन की अनुमति नहीं देगा। निगम की एक शर्त के मुताबिक ठेकेदार को ग्रीन ट्रिब्यूनल से उत्खनन करने की अनुमति लेनी होगी। ठेकेदार को ट्रिब्यूनल से अनुमति नहीं मिलती है तो उसकी जिम्मेदारी निगम की नहीं होगी। मप्र में माफिया खुद बांट लेते हैं रेत की खदानें प्रदेश सरकार की नई रेत खनन नीति पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव का कहना है कि इससे प्रदेश को कोई फायदा नहीं होने वाला है। वह कहते हैं कि रेत से मिलने वाली रायल्टी भी मप्र सरकार की सालाना आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है, लेकिन जब से प्रदेश में भाजपा राज आया है, सरकार ने रेत खदानों से रेत निकालने की अपने चहेते माफिया को खुली छूट दे दी है। नतीजन पूरे प्रदेश में ये माफिया हर साल अवैध रूप से अरबों की रेत निकालकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और सरकार है कि अपने कामकाज को चलाने के लिए लगातार बाहर से कर्ज ले रही है। अब तो राज्य सरकार की प्रशासनिक कमजोरियों का यह आलम है कि रेत के उत्खनन के लिए ये माफिया, सरकार की रत्ती भर परवाह नहीं कर रहे हैं और खुद ही तय कर लेते हैं कि किस खदान का दोहन कौन माफिया करेगा। जहां इस बारे में फैसला नहीं हो पाता, वहां अब खूनी संघर्ष की नौबत भी आने लगी है। आश्चर्य है कि रेत तो सरकारी है, और उस पर माफिया इस तरह अपना हक जता रहे हैं जैसे उस पर उनका संपूर्ण अधिकार है। इससे यह साबित होता है कि भाजपा सरकार ने प्रदेश की खनिज संपदा को पूरी तरह माफिया के हवाले कर दिया है। वह कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान का प्रशासन तंत्र कभी-कभार दिखावे के लिए कुछ रेत के ट्रक पकड़ता है और यह प्रचारित करता है कि अवैध रेत उत्खनन को रोकने के प्रति वह सचेत और सक्रिय है परन्तु हाल ही के दिनों में रेत के अवैध उत्खनन से संबंधित जो मामले सामने आए हैं, वे साबित करते हैं कि सरकार ने विधानसभा चुनाव के बाद तो रेत खदानें माफिया को सौंप दी हैं और वे हजारों जेसीबी और फाकलेन मशीनों से रात दिन अवैध रेत उत्खनन में लगे हुए हैं। इससे प्रदेश की कई नदियों के प्राकृतिक स्वरूप को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। कहीं-कहीं तो नदी का बहाव बदल जाने की स्थिति भी बन रही है। रेत के मामले में शिवराज की सरकार किस कदर मौन साधे बैठी है, उसका प्रमाण यह है कि पहले रेत के ठेके तीन साल के लिए दिए जाते थे, किंतु सरकार ने रेत माफियाओं के दबाव में आकर अब 10 साल के लिए रेत खदानें आवंटित की जाने लगी हैं। स्पष्ट है कि इस नई व्यवस्था के कारण सरकार के खजाने को हर साल करोड़ों की हानि होगी। दूसरी तरफ रेत माफिया के सामने प्रशासन को निरीह बनाकर रख दिया गया है। पिछले महीने नर्मदा किनारे शाहगंज के पास बिसाखेड़ी गांव में अवैध उत्खनन करने वाले माफिया को अधिकारियों ने ललकारा तो माफिया ने उन पर जानलेवा हमला कर दिया था। मुरैना, सीहोर आदि कुछ जिलों में तो आए दिन माफिया द्वारा अधिकारियों पर ऐसे हमले हो रहे हैं, लेकिन उनका कुछ भी नहीं बिगड़ रहा। दरअसल अवैध रेत उत्खनन में सत्तारूढ़ भाजपा के रसूखदार लोग लगे हुए हैं। हाल ही में विदिशा जिले की गुजरी बैस नदी से एक भाजपा नेता ने 10 हजार ट्राली रेत निकालकर तीन करोड़ की काली कमाई कर ली है। इस प्रकार के काले कारोबार के द्वारा हजारों भाजपा नेता एवं कार्यकर्ता सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। प्रदेश में रेत माफिया इतने ताकतवर हो गए है कि वह नर्मदा, चंबल, बेतवा, केल, बेनगंगा आदि नदियों में डायइनामाइट लगाकर धमाका करने लगे हैं। इन धमाकों से नदियों के आस-पास की चट्टाने दरक रही हैं, लेकिन प्रशासन के कानों तक यह आवाज नहीं पहुंच पाती। यही कारण है प्रतिदिन दर्जनों ट्रैक्टर ट्रॉली पत्थर नदियों से निकाला जा रहा है। नदियों में पत्थर निकालने के कारण नदियों के आस-पास ही हरियाली भी गायब हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि पत्थर तुड़ाई करने से पहले पत्थर की चट्टानों के आस-पास या नीचे आग चलाकर उन्हें गर्म किया जाता है। ऐसा करने से पत्थर की नमी कम हो जाती है और गर्म होने के कारण आसानी से टूट जाता है। पत्थर को गर्म करने के लिए मजदूर नदी किनारे के पेड़ों को काट रहे हैं। जिन नदियों के किनारे हरियाली व बड़े पेड़ थे वह भी गायब हो गए। सीधे-सीधे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, लेकिन प्रशासन ने इस ओर कभी सोचा ही नहीं। मध्य प्रदेश का पन्ना तथा छतरपुर प्रशासन ने जिले में रेत की खुदाई पर रोक लगा दी है लेकिन इससे अवैध उत्खनन रूकने वाला नहीं है क्योंकि यहां की कानून व्यवस्था ही माफिया के हाथों में गिरवी पड़ी है। अब प्रदेश में माफिया का दु:साहस इतना बढ़ गया है कि अगर कोई भी इनकी राह में बाधा बनेगा उसे मौत के घाट उतारने में इन्हें देर नहीं लगेगी। माफिया के कारण विंध्य क्षेत्र की सोन नदी के तट पर बने घडिय़ाल अभ्यारण्य का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। प्रदेश में विलुप्ति की कगार पर जा रहे घडिय़ाल, मगरमच्छों की दुर्लभ जलीय प्रजातियों के संरक्षण के लिए इस केंद्र की स्थापना की गई थी। इस अभ्यारण्य के लिए राज्य सरकार प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए का बजट आवंटित करती है। प्रतिबंधित क्षेत्र में रेत माफिया द्वारा लगातार किया जा रहा अवैध उत्खनन राज्य शासन के स्थानीय अधिकारियों के लिए चिंता का विषय नहीं है। राजनीति-माफिया गठजोड़ से होता है 100 करोड़ प्रति माह का रेत के अवैध खनन का कारोबार । चंबल नदी में मुरैना से इटावा तक राष्ट्रीय घडिय़ाल सेंक्चुरी है। लिहाजा उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत चंबल नदी के आसपास रेत के उत्खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है। इसके बावजूद अकेले मुरैना जिले में चंबल के घाटों से प्रतिदिन करीब 20-25 लाख घनफुट रेत डंपर व ट्रकों से अवैध रूप से निकाली जा रही है। आईपीएस नरेंद्र कुमार के बलिदान और सैकड़ों बार इस काले कारोबार को रोकने गए अमलों पर हुए हमलों के बादजूद ये कोराबर जारी है। माना जाता है कि दूसरे कारणों के अलावा सबसे खास वजह इस कारोबार में राजनीतिक रसूखदारों और माफिया के बीच के गठबंधन है। चंबल नदी से रेत का अवैध उत्खनन करने वाला माफिया बेखौफ होकर अपने काम को अंजाम दे रहा है। जिले में 200 से भी ज्यादा घाटों से प्रतिदिन सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्रॉली रेत निकाली जा रही है। आईपीएस नरेंद्र कुमार की मौत के हादसे और उसके बाद भी अवैध रेत खनन रोके जाने के दौरान सरकारी अमलों पर हुए हमलों के मद्देनजऱ मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश पर रेत का अवैध उत्खनन रोकने एसएएफ की कंपनी भी तैनात की गई है। लेकिन अवैध उत्खनन फिर भी नहीं रुका। संगठित माफिया कराता है अवैध रेत खनन चंबल में रेत माफिया सुबह होने से पहले ही चंबल राजघाट सहित अन्य घाटों से माफिया सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में रेत भर लाते हैं। इसके बाद फिर एक-एक दर्जन के समूह में ट्रक, ट्रैक्टर व डंपरों को नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे सहित शहर की सड़कों पर दौड़ाते हुए ले जाते हैं। इस दौरान रास्ते में आने वाली बाधा को रोकने के लिए माफिया के कारिंदे गोलियां चलाने से भी नहीं चूकते। रेत से भरे ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को निकालने के लिए माफिया के लोग 10-10 बाइकों पर बंदूकों से लैस होकर आगे-आगे चलते हैं। हाईवे से ट्रैक्टर-ट्रॉलियां शहर में पहुंच जाती हैं तो गली-मोहल्लों में भी उनकी रफ्तार पर लगाम नहीं लगती। इस वजह से हुए हादसे भी सैकड़ों जाने ले चुके हैं। वन विभाग, पुलिस और प्रशासन में तालमेल नहीं चंबल नदी से रेत के अवैध उत्खनन को रोकने में नाकामी की प्रमुख वजह जिला प्रशासन, वन विभाग व पुलिस में तालमेल का अभाव है। वन विभाग जब कार्रवाई करना चाहता है तो उसे फोर्स नहीं मिलता। स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि हाईवे पर बने पुलिस थानों पर तैनात पुलिसकर्मी रिश्वत लेकर इन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों व डंपरों को निकलवाते हैं। जब भी दबाव आया तो टास्क फोर्स एक-दो दिन अभियान चलाकर शांत हो जाता है। राजनीतिक गठजोड़ बनता है रेत माफिया की ढाल आईपीएस नरेंद्र कुमार की शहादत के बाद पुलिस और प्रशासन थोड़ी सख्त हुई तो राजनीतिक रसूखदारों के संकेत पर प्रशासन भी लाचार हो गया। जब-जब रेत के अवैध खनन के खिलाफ सख्ती की गई चोटी के राजनीतिज्ञों के संकेत ने इन अभियानों को मोंथरा कर दिया। माना जाता है अंचल में हो रहे इस अवैध कारोबार में दोनों ही पार्टियों के शीर्ष राजनेताओं के अप्रत्यक्ष आर्थिक हित जुड़े हुए हैं, इसी लिए खनन माफिया को इनका संरक्षण मिल जाता है। सीधे नदी की कोख में डूब कर पनडुब्बियां निकालती हैं रेत चंबल के अलावा ग्वालियर, भिंड व दतिया में भी रेत का माफिया कारोबार जारी है। इस क्षेत्र में तो रेत माफिया सीधे नदी के बीचों-बीच से रेत खनन कर रहा है। अपने इस काले मंसूबे के लिए माफिया ने इसके लिए खनन की जुगाड़ पनडुब्बी को बना लिया है। पनडुब्बी इसे इसलिये कहा जाता है, क्योकि यह नदी के किनारे से नही, बल्कि बीच धार में डूब कर नदी की गहराई से रेत निकालती है। खनन के लिये बनी इस जुगाड़ में इंजन को पाइपों के जरिए पीपे से दिखने वाले अवशोषकों के जोड़ा जाता है। छोटी सी नाव मे रखे ताकतवर इंजन से नदी के तल तक डूबे अवशोषक रेत को खींचते हैं। इस रेत को इंजन के दूसरे सिरे से जुड़े पाइप के ज़रिए नदी के किनारे पर इक_ा कर मालवाहक डंपर-ट्रक-ट्रॉलियों में भर दिया जाता है। पनडुब्बियों की करतूत जारी रही तो खत्म हो जाएगी नदी की धारा रेत के अवैध उत्खनन से सिंध नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। अवैध उत्खनन से नदी में गहरे-गहरे गड्ढे हो गए हैं। सोमवार को अवैध खनन के बाद छोड़े गए गड्ढे से अनजान दो युवक नदी पार करते समय इनमे डूब जिंदगी गंवा बैठे थे। लागातार हो रहे हादसों के जरिए प्रकृति भविष्य में किसी बड़ी अनहोनी के संकेत दे रही है, लेकिन प्रशासन की अनदेखी माफिया का साहस बढ़ा रही है। नतीजतन बार-बार कार्रवाइयों के बावजूद पनडुब्बियों के ज़रिए नदी की गहराई से रेत खनन लगातार जारी है। क्या है नदी की कोख से रेत उत्खनन का गणित इमारती निर्माण में दो तरह के रेत का उपयोग किया जाता है। मोटा रेत दीवारों की चिनाई जैसे दूसरे सामान्य निर्माणों के लिए काम में लाया जाता है। जबकि बारीक रेत प्लास्टर जैसे फिनिशिंग कार्यों के लिए अच्छा माना जाता है। अंचल में रेत साधारण रेत की कीमत करीब 2,800 रुपए प्रति एक हजार घनफुट है, जबकि बारीक रेत करीब 2,900 रुपए प्रति एक हजार घनफुट की दर पर उपलब्ध होता है। पनडुब्बी से सीधे नदी के बीचोंबीच जाकर तल से खींचा गया बारीक रेत खननकर्ता को तो बराबर लागत पर ही मिल जाता है, लेकिन इस पर वह प्रति एक हजार घनफुट करीब एक हजार रुपए तक अतिरिक्त मुनाफा कमा लेता है। इतने मामूली लालच के लिए ही नदी के अस्तित्व को खतरे में डाला जा रहा है।

10 साल में 1200 करोड़ डूब गया सहकारिता के नाम

घोटालों का गढ़ बना सहकारिता विभाग
मप्र के कई सहकारी बैंक हो गए कंगाल
भोपाल। एक तरफ सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में सहकारी बैंकों के माध्यम से 18,000 करोड़ रूपए किसानों को वितरित करने का प्रावधान रखा है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में कृषि ऋणमाफी, किसानों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने जैसी लोक लुभावन राजनीतिक घोषणाओं के कारण राज्य की मजबूत सहकारी कृषि ऋण व्यवस्था जर्जर और बदहाल हो गई हैं। अब तो राज्य के कई जिला सहकारी बैंकों के खजाने खाली हो गए हैं। जिससे कई बैंक कंगाली की कगार पर आ गए हैं। यही नहीं पिछले 10 साल में प्रदेश के प्रदेश के अपेक्स बैंक समेत 38 जिला सहकारी बैंक की 852 शाखाओं के हिसाब से 1200 करोड़ रूपए गायब हो गए हैं। इस घपले की जांच करने की जगह इसे किसी न किसी मद में खर्च दिखाकर हिसाब बराबर किया जा रहा है। मध्य प्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के लगभग 761 करोड़ रुपए वसूली न होने के कारण डूब चुके हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित कृषि ऋणमाफी योजना के मानदण्डों के अनुसार काम करने पर जिला सहकारी बैंकों ने 861.37 करोड़ रुपयों की सकल वसूली की तुलना में केवल 98.44 करोड़ रुपए ही वसूल किए हैं। बैंक ने वसूली की उम्मीद भी छोड़ दी है और इसीलिए जमीनी कर्मचारियों ने भी वसूली के काम में कोई रुचि नहीं ली है। घपले और घोटाले भी हैं किसान ऋण राहत योजना के क्रियान्वयन में सहकारी बैंकों के कामकाज में घपले, घोटालों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार भी मानती है कि गड़बडिय़ां जरूर हुई हैं। सरकार ने शिकायतें मिलने पर गुपचुप तरीके से 3 नवंबर 2009 को राज्य के सभी जिला सहकारी बैंकों के ऋणमाफी प्रकरणों की जांच के निर्देश दिए थे। जानकारी के मुताबिक 38 जिला बैंकों में से 32 जिला बैंकों की जांच की गई जिनमें 16 बैंकों में विभिन्न प्रकार की गड़बडिय़ां होने के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 115 करोड़ रुपयों की गड़बड़ी या हेराफेरी हुई है। उसके बाद से अभी तक लगातार गड़बडिय़ां हो रही हैं और यह आंकड़ा 320 करोड़ रूपए के ऊपर पहुंच गया है। अभी तक की जांच में जो तथ्य निकलकर सामने आया हैउसके अनुसार, सहकारिता विभाग घोटालों का गढ़ बन गया है। इस विभाग में कोई न कोई गड़बडिय़ां आए दिन उजागर हो रही हैं। विभाग की पूरी कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। सहकारिता विभाग और अनियमितताएं एक दूसरे के पर्याय बन गई है। इस विभाग में हर महीने कोई न कोई घोटाला सामने आ रहा है। सहकारी बैंकों में ऋणों की वसूली नहीं हो रही है, उस पर ऐसे व्यक्तियों को ऋण बांटा जा रहा है जिन्हें ऋण की कोई आवश्यकता नहीं है। आलम यह है की कई सहकारी बैंक हो गए कंगाल हो गए हैं। नौ सहकारी बैंकों की एनपीए 800 करोड़ पहुंचा किसानों को शॉर्ट टर्म लोन देने वाले जिला सहकारी बैंकों की माली हालत गड़बड़ाने लगी है। कुछ बैंक सी कैटेगरी में भी पहुंच चुके हैं। करीब नौ बैंकों में तो खतरे की घंटी बज गई है। इनका एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग असेट) पौने आठ सौ करोड़ को पार गया है। अपेक्स बैंक सहित अन्य संस्थाओं की देनदारी इन बैंकों पर बढ़ती जा रही है। हालत नहीं सुधरी तो बैंक आर्थिक आपातकाल (धारा 11) की स्थिति में पहुंच जाएंगे यानी इनके कार्य व्यवहार पर भारतीय रिजर्व बैंक रोक लगा देगा। यही नहीं, नाबार्ड इन्हें दिए जाने वाले लोन में कटौती कर देगा। ऐसे हालात 1997-98 से लेकर 2003-04 में बने थे। तब करीब 18 बैंक धारा 11 में आ गए थे। बैंकों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई थी। अब फिर सरकार और बैंक के स्तर पर समीक्षा और कड़े कदम उठाने का दौर शुरू हो गया है। उल्लेखनीय है कि अपेक्स बैंक द्वारा की गई समीक्षा में जब सहकारी बैंकों की खस्ताहालत होने का मामला सामने आया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभागीय मंत्री गोपाल भार्गव सहित आला अफसरों के साथ हुई बैठक में कड़े कदम उठाने के निर्देष दिए और इसके लिए उन्हें फ्री-हैंड भी दे दिया है। ज्ञातव्य है कि 2006-07 में बैंकों की आर्थिक हालात सुधारने के लिए वैद्यनाथन पैकेज में मिले 1200 करोड़ रुपए की वजह से बैंक पटरी पर आ गए थे लेकिन दोबारा वही हालात बनने लगे हैं। सीधी में तो 1100 ट्रैक्टर फाइनेंस के मामले में बड़ा घोटाला सामने आ गया है। करीब 114 ट्रेक्टर जिन्हें फाइनेंस करना बैंक ने दस्तावेजों में बताया है, वे किसी और के नाम पर पंजीकृत हैं। अपेक्स बैंक द्वारा की गई समीक्षा के अनुसार, टीकमगढ़ बैंक की एनपीए 110 करोड़ रूपए हो गई है। वहीं रायसेन बैंक की 90 करोड़ रूपए, मंडला बैंक की144 करोड़ रूपए दतिया बैंक 60 करोड़ रूपए, ग्वालियर बैंक 80, होशंगाबाद बैंक 131, छतरपुर बैंक 98, रीवा बैंक 62 और सीधी बैंक की एनएपी 39 करोड़ रूपए हो गई है। इसलिए बिगड़े हालात बताया जाता है सहकार बैंकों की खस्ता हालत के लिए की लोन वितरण में फर्जीवाड़ा सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा पीडीएस में घोटाले के चलते समितियों ने बैंकों को पैसा नहीं दिया जिसे बैंकों ने अपने रिजर्व फंड से चुकाया। तीन साल में कृषि ऋण की वसूली काफी कम रही। प्राकृतिक आपदा की वजह से सरकार ने वसूली स्थगित करवाई पर रकम समय पर नहीं दी, जिससे बैंकों पर ब्याज का बोझ बढ़ा। जीरो परसेंट ब्याज पर कर्ज देने से बैंकों का ध्यान इस पर ही लगा रहा। बैंक बिना इजाजत ही दस-दस शाखाएं खोल रहे हैं और भर्तियां भी की हैं। इस कारण अब आलम यह है कि राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (भूमि विकास बैंक प्रचलित नाम) बंद होने की कगार पर है। बैंक को 1 लाख 27 हजार किसानों से 13 सौ करोड़ से ज्यादा कर्ज वसूलना है। लेकिन, वसूली 5-6 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। बैंक ने किसानों को दीर्घावधि कर्ज देना 2010 से बंद कर दिया है। बैंक इस स्थिति में भी नहीं है कि नाबार्ड के 990 करोड़ लौटा सके, इसलिए सरकार अपनी गारंटी पर कर्ज अदायगी कर रही है। इसके बावजूद सरकार बैंक के भविष्य को लेकर संजीदा नहीं है। यही वजह है कि पिछले डेढ़ साल से एकमुश्त समझौता योजना का प्रस्ताव फाइल में कैद है। बैंक के लिए कोई कारगर बिजनेस मॉडल नजर नहीं आने पर मंत्रिमंडलीय समिति इसे बंद करने की सिफारिश तक कर चुकी है पर कोई फैसला अब तक नहीं हुआ है। नेताओं की चारागाह सहकारी बैंक नेताओं की चारागाह बन गए हैं। ये तय ही नहीं हो पा रहा है कि इन्हें सहकारिता में रखें या फिर बैंक बने रहने दें। ईमानदार सीईओ को बैंक अध्यक्ष रहने ही नहीं देते हैं। दोनों के बीच कभी बनती ही नहीं है। बैंकों का हर साल नाबार्ड की ओर से निरीक्षण होता है। वित्त सचिव के साथ जब भी बात होती है, गड़बडिय़ों की ओर ध्यान आकर्षित कराया जाता है पर इसका हल नहीं निकलता। नोटिस फॉर फ्यूचर कम्पलाइंस नोट भी दिया जाता है पर उसका पालन नहीं होता। नाबार्ड के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक केए मिश्रा कहते हैं कि एनपीए बढऩे और वसूली न होने से बैंकें सी और डी केटेगरी से होती हुई धारा 11 में पहुंच जाती हैं। इसके बाद या तो सरकार मदद करके इन्हें फिर खड़ा कर देती हैं या फिर वैद्यनाथन पैकेज जैसा कोई फंडा फिर आ जाता है और बैंक चल पड़ते हैं। लेकिन, कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। समस्या ये है कि बैंकों को लेकर सरकारें गंभीर नहीं हैं। इस स्थिति का नुकसान अंतत: किसानों को होगा क्योंकि किसी भी वाणिज्यिक बैंक की रूचि क्रॉप लेने-देने में नहीं है। प्रमुख सचिव सहकारिता अजीत केसरी कहते हैं कि बैंक विषम परिस्थितियों में न फसें, इसके लिए सरकार सक्रिय हुई है। मुख्यमंत्री स्वयं समीक्षा कर चुके हैं। नाबार्ड, सहकारिता विभाग और अपेक्स बैंक स्तर पर संयुक्त बैठक करके बैंकवार स्थितियों का आकलन किया गया है। अधिकारी घोटालों पर डाल देते हैं पर्दा अपैक्स बैंक में घोटाले जब-तब उजागर होते रहते हैं। अब सहकारी बैंकों के घोटाले सामने आ रहे हैं। अभी हाल ही में बुंदेलखंड इलाके के सहकारी बैंकों तीन करोड़ का घोटाला सामने आया है। सहकारी बैंक के अधिकारी उस पर पर्दा डाल रहे हैं। बुंदेलखंड के पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ के जिला केंद्रीय सहकारी बैंक तो 3 करोड़ के घोटाले में फंसे ही हैं। अब छतरपुर जिला सहकारी बैंक की राजनगर कस्बे की ब्रांच से तीन करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है। इसमें सहकारी पंजीयक ने 10 अप्रैल को ब्रांच मैंनेजर के खिलाफ एनआईआर दर्ज कराने के निर्देश संयुक्त पंजीयक को दिए हैं। प्रदेश में चल रही किसान क्रेडिट कार्ड योजना के क्या हाल हैं यह छतरपुर के सहकारी बैंक की राजनगर की ब्रांच में हुई करतूत से सामने आया है। ब्रांच मैंनेजर लक्ष्मी पटेल ने 183 किसानों को क्रेडिट कार्ड पर कर्ज देकर तीन करोड़ रूपए का घोटाला किया। प्रावधान है कि यह कर्ज प्राथमिक समितियों के माध्यम से दिया जाए और बैंक मुख्यालय से अनुमति ली जाए पर ऐसा नहीं हुआ। ब्रांच मैंनेजर ने न तो बैंक से अनुमति ली और न ही समितियों के माध्यम से किसानों को कर्ज दिया। सीधे ब्रांच से ही बांट दिया। सब्सिडी हड़प कर ली गई। इतना ही नहीं घोटाले की तीन करोड़ की रकम से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी करवा ली। राजनगर ब्रांच से मछली पालन के करीब पांच लाख रूपए का कर्ज दिया गया। जिन गांव के किसानों को कर्ज दिया गया वहां तालाब ही नहीं है। इसमें सब्सिडी हड़प ली गई। रिकार्ड तोड़ गया सीधी सहकारी बैंक घोटाला प्रदेश के तमाम जिलों में संचालित सहकारी बैंकों में हुए घोटालों के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए सीधी का सहकारी बैंक घोटाला अब प्रदेश में नंबर 1 पर आ गया है। इस एक बैंक से 1100 ट्रेक्टर फाइनेंस दिखा दिए गए, जबकि इतने तो पूरे प्रदेश में फाइनेंस नहीं हुए। इतना ही नहीं 167 कर्मचारियों की फर्जी भर्ती कर दी गई। इतना ही नहीं जीप व हाउसिंग फाइनेंस, पदोन्नित, शाखा भवनों के निर्माण में अनियमितता जैसे कई और मामले सामने आए हैं। अपेक्स बैंक स्तर की प्रारंभिक जांच में आरोप पहली नजर में प्रमाणित पाए गए और बैंक के तत्कालीन सीईओ आरकेएस चौहान निलंबित कर दिए गए, अब विस्तृत जांच हो रही है। सूत्रों के मुताबिक बीते तीन साल में सीधी जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक ने ताबड़तोड़ फाइनेंस किया। सहकारी क्षेत्र में सामान्यत: शार्ट टर्म फाइनेंस होता है, पर बैंक ने ट्रैक्टर, जीप और हाउसिंग फाइनेंस धड़ल्ले से किया। बैंक की जांच में पता चला कि कई ट्रैक्टरों के रजिस्ट्रेशन नंबर तक नहीं है। जिन हितग्राहियों के नाम ये फाइनेंस हुए उनमें से कुछ का अता-पता तक नहीं है। शार्ट टर्म फाइनेंस का पैसा इसमें लगा दिया गया। अब बैंक की हालत ये है कि अमानतदार पैसा वापस मांग रहे हैं और बैंक के पास देने को रकम नहीं है। वसूली भी यहां बेहद कम हो रही है। यही नहीं अपेक्स बैंक की प्रारंभिक जांच में 167 कर्मचारियों की नियुक्ति बाउचर पेमेंट पर करने की बात सामने आई है। इन लोगों को अलग-अलग शाखाओं में पदस्थ किया गया था। नियुक्ति के लिए शासन या अपेक्स बैंक से इजाजत तक नहीं ली गई। पदोन्नित में भी मनमर्जी चलाई गई। सात शाखाएं बिना अपेक्स बैंक की परमिशन खोल दी गईं। मामले की गंभीरता को देखते हुए सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव ने अपेक्स बैंक प्रबंधन को विस्तृत जांच कराने के निर्देश दिए हैं। वहीं, बैंक ने सहकारिता विभाग को प्रस्ताव दिया है कि सीधी बैंक का बीते चार साल का विशेष ऑडिट कराया जाए, ताकि अन्य गड़बडिय़ों के बारे में भी पता लग सके। अपेक्स बैंक के प्रबंध संचालक प्रदीप नीखरा ने बताया कि शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसके आधार पर जांच कराई गई। इसमें प्रथम दृृष्टया अनयिमितताएं सामने आई हैं। तत्कालीन सीईओ को निलंबित कर दिया है। मामले की जांच बैंक स्तर पर कराई जा रही है। मंदसौर में बांट दिया गया 12 करोड़ का फर्जी ऋण प्रदेश भर के जिला सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली को लेकर मुख्यमंत्री ने भोपाल में चिंता जाहिर कर सुधारने की ताकीद की है। सीएम की चिंता सही भी है अकेले मंदसौर के जिला सहकारी बैंक ने ही पिछले कुछ वर्षों में 12 करोड़ का फर्जी ऋण बांट दिया है, वहीं बैंक कर्मचारियों व सोसायटियों ने ही 1.25 करोड़ का गबन कर दिया। बैंक में बैठे अध्यक्ष ने पात्रता नहीं होने पर भी बैंक से ही परिजनों के नाम पर कर्जा ले लिया। बीते तीन सालों में बैंक अध्यक्ष व अधिकारियों की जुगलबंदी का नतीजा कहो या जिम्मेदारों की लापरवाही नीमच, जीरन व सावन के वेयर हाउस की फर्जी पर्चियों के आधार पर लगभग 12 करोड़ रुपए के ऋण दे दिए गए। जबकि वेयर हाउस में माल रखा ही नहीं गया था। सबसे बड़ी बात यह रही कि यह ऋण जिन शाखाओं से जारी हुआ उन्हें इस तरह के ऋण देने की पात्रता भी नहीं थी। इसके बाद भी मंदसौर मुख्यालय पर बैठे जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन लोगों को प्रश्रय देते रहे। अब स्थिति यह हो रही है वसूली करने जा रहे बैंक अधिकारियों को न तो वेयर हाउस मालिक मिल रहे हैं और न ही फर्जी पर्चियों पर ऋण लेने वाले। हाल ही में नाबार्ड के दल द्वारा की गई जांच में यह भी उजागर हुआ है कि तत्कालीन अध्यक्ष राजेंद्र सुराना ने भी बैंक की दलौदा शाखा से अपने परिजनों के नाम व उनके वेयर हाउस में रखे सामान की पर्ची पर लगभग 2 करोड़ रुपए तक के ऋण प्राप्त कर लिए थे। हालांकि बवाल उठने के बाद सभी राशि ब्याज सहित जमा भी कर दी गई। पर लंबे समय तक बैंक की राशि का इस्तेमाल किया गया जबकि सहकारिता के नियमों में पदाधिकारियों या उनके परिजनों द्वारा इस तरह कर्ज नहीं लिया जा सकता है। इस मामले में सरकार ने जांच ठंडे बस्ते में डाल दी थी। बाद में हाईकोर्ट के निर्देश पर संयुक्त पंजीयक सहकारिता उज्जैन वीपी मारन ने भी जांच की थी। पर मामला दबा दिया गया। रीवा में 16 करोड़ का घोटाला सहकारी बैंकों में लगातार घोटाले सामने आ रहे हैं। हाल ही में रीवा बैंक में भी करीब 16 करोड़ का घोटाला पकड़ा गया है। इस मामले में अभी जांच भी चल रही है। इसके अलावा रायसेन, होशंगाबाद, टीकमगढ़, छतरपुर सहित लगभग सभी बैंकों में घपले हुए हैं और अफसरों और जनप्रतिनिधियों ने मिलकर बैंक को करोड़ों रुपए की चपत लगाई है। इसी तरह हाल ही में हरदा के को-ऑपरेटिव बैंक में 2.77 करोड़ का घोटाला सामने आया था। इस मामले में आरोपी जेल में है। उधर,सिंगरौली जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित बैढऩ में लोन प्रक्रिया में करोड़ों का घोटाला हुआ है। गरीब जनता कलेक्टर से जांच की मांग कर रही है। घोटाले की निष्पक्ष जांच की जाए तो बड़ी मछलियां जाल में फंसेंगी। नीमच जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की तीन शाखाओं में किसानों का फर्जी माल वेयरहाउस में संग्रहित बताकर 9 करोड़ का घोटाला किया गया है। गौरतलब है कि नीमच सिटी बैंक शाखा में पोरवाल एग्रो फेसेलिटी वेयरहाउस के मयंक पोरवाल ने प्रबंधन से मिलीभगत कर 3.39 करोड़ रुपए का फर्जी ऋण हथिया लिया था। इसके लिए 34 किसानों की रसीदें प्रस्तुत कर माल वेयरहाउस में संग्रहित होना बताया था। बाद में ऋण जमा भी नहीं कराया गया। घोटाले में शामिल नीमच सिटी और सावन बैंक शाखा के मामले में तत्कालीन प्रबंधकों मंगलसिंह मोर्य और सुमित ओझा को गिरफ्तार किया जा चुका है। जबकि मुख्य आरोपी पुलिस गिरफ्त से बाहर है। हाल ही में पुलिस ने घोटाले में शामिल युसूफ मोहम्मद, हरिवल्लभ पाटीदार, देवीलाल किलोरिया को गिरफ्तार किया है। आरोपियों को न्यायालय ने जेल भेज दिया है। इन लोगों के नाम पर वेयरहाउस में धनिए का भंडारण बताया गया था। घोटाला होता रहा, अफसरों को नहीं लगी भनक हरदा, सीधी और रीवा के सहकारी बैंकों में करोड़ों के घोटाले होने के बाद भी सहकारिता विभाग के अफसरों की जिम्मेदारी अब तक तय नहीं की गई है। विभाग अफसरों पर कार्रवाई करने के लिए जांच रिपोर्टों का इंतजार कर रहा है। जबकि, घोटालों की पुष्टि अपेक्स बैंक की जांचों में हो चुकी है। इसी आधार पर तीनों जगह एफआईआर कराई गई हैं। सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने बताया कि शासन के प्रतिनिधि के तौर पर सहकारिता विभाग के अफसरों पर बैंक की गतिविधियों पर नजर रखने, मुख्यालय को सूचना देने के साथ पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी होती है। होशंगाबाद बैंक की हरदा ब्रांच में नियमों के विपरीत करोड़ों रुपए रखे जाते रहे पर उप या संयुक्त पंजीयक को पता नहीं लगा। सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव ने बताया कि बैंकों में आए दिन उजागर हो रहे घोटालों के मद्देनजर ही कलेक्टरों को प्रशासक बनाने का फैसला किया है। पांच बैंकों की जिम्मेदारी इन्हें सौंपकर कार्रवाई के लिए फ्री-हैण्ड भी दे दिया है। साथ ही ये हिदायत भी दी है कि जांच में किसी भी स्तर का अधिकारी दोषी पाया जाता है तो सीधे एफआईआर कराई जाए। 12 रिमांइडर, फिर भी रिकॉर्ड गायब ग्वालियर जिला सहकारी बैंक में हुई 30 करोड़ रूपए से अधिक की आर्थिक अनियमितताओं के खिलाफ जांच कर रही ईओडब्ल्यू शाखा को अभी तक मूल रिकॉर्ड नहीं मिला है। जबकि ईओडब्ल्यू ने 2013-14 में लगातार 12 से अधिक पत्र भेजे थे, इन पत्रों में फर्जी ऋण प्रकरणों की सूची भी लगाई थी, ताकि मूल रिकॉर्ड मिलने में आसानी रहे। हाईकोर्ट के आदेश पर हुई इस कार्यवाही के अंतर्गत पत्रों की प्रति डीआर, जेआर, एमडी अपैक्स बैंक और सहकारिता विभाग के आयुक्त को भेजी गई थी। वर्तमान में बैंक प्रशासक भी इस प्रकरण से संबंधित फाइलें ईओडब्ल्यू को नहीं सौंप रहे। अपराध क्रमांक 1-10 में अपना घर, ड्रिप ऋण योजना, उपभोक्ता ऋण सहित धारा 37 का उल्लंघन कर बैंक को 20 लाख रूपए की सीधी हानि पहुंचाने का उल्लेख हैं, इसके अलावा आईआरडीपी ऋण वितरण नियुक्ति पदोन्नतियों में अवैधानिक प्रक्रिया सहित अन्य कार्यों से सहकारी बैंक को करीब 30 करोड़ की चपत लगी थी।

परफार्मेंस की पटरी से उतरे मंत्रियों और पदाधिकारियों की होगी छुट्टी!

भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में संगठन की नेताओं की खरी-खरी
चाल-चरित्र के लिए सत्ता और संगठन में बदलेंगे चेहरे
भोपाल। भाजपा कार्यालय में 9 और 10 अप्रैल को आयोजित प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में ऊपरी तौर पर तो संगठन ने अपनी आगामी कार्यक्रमों पर चिंतन-मनन किया, लेकिन अंदरूनी खबर यह है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर उपस्थित केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने मप्र के नेताओं की जमकर क्लास ली और नसीहतों की घूंटी पिलाई। जेटली ने बैठक में इस बात पर चिंता जाहिर की कि यहां के अधिकांश नेताओं, खासकर पदाधिकारियों और मंत्रियों की परफार्मेंस खराब है। उन्होंने साफ लहजे में कह दिया की परफार्मेंस की पटरी से उतरे मंत्रियों और पदाधिकारियों की होगी छुट्टी लगभग तय है! जेटली के बाद संगठन महामंत्री रामलाल ने भी समझाइस दी की पद के पीछे भागने और लक्ष्मण रेखा लांघे वालों को कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाएगी। संगठन और संघ से मिली हिदायतों और नसीहतों के बाद मंत्री और पदाधिकारी सकते में हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में अरूण जेटली का शामिल होना ही मप्र भाजपा के नेताओं के लिए चिंता का विषय बना हुआ था। क्योंकि 2003 के विधानसभा चुनाव में उमा भारती के साथ मिलकर भाजपा को जीताने के बाद से ही जेटली मप्र के परिदृश्य से गायब से हो गए थे। फिर करीब 11 वर्ष बाद प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जेटली का शामिल होना इस बात का संकेत था कि वे कुछ गंभीर मसलों पर चर्चा करने वाले हैं। फीडबैक लेकर गए जेटली और रामलाल पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपनी टीम के पुनर्गठन पर विचार कर रहे हैं। शाह राज्यों से मिले फीडबैक की समीक्षा के बाद अपनी टीम नई सिरे से बनाएंगे। इसलिए मप्र से फीडबैक लेने के लिए उन्होंने अरूण जेटली और रामलाल को भेजा था। साथ ही इन दोनों नेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे केंद्रीय संगठन, संघ और सरकार की हिदायतों को भी मप्र के नेताओं को दे दें, ताकि पार्टी के चाल, चेहरा और चरित्र पर कोई आंच न आएं। उल्लेखनीय है कि भाजपा के केंद्रीय संगठन से कई पदाधिकारियों के मंत्री बन जाने के कारण पदाधिकारियों के एक तिहाई पदों पर नई नियुक्तियां की जानी हैं। पिछले महीने हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा की समन्वय समिति की बैठक में भाजपा संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर खाली पड़े पदों का मुद्दा भी चर्चा में आया था। सूत्रों के अनुसार संघ नेतृत्व को बताया गया था कि कार्यकारिणी की बैठक के बाद सभी पदाधिकारियों के तय कर लिए जाएंगे। लेकिन पार्टी नेतृत्व चाहता है कि वह राज्यों से इस बात का फीडबैक ले की संगठन में कैसे नेता होने चाहिए और इसके लिए कौन उपयुक्त है। इसलिए बैठक के दौरान जहां इन दोनों नेताओं ने पदाधिकारियों को पार्टी की गाइड लाइन के अनुसार काम करने को कहा, वहीं प्रदेश के कई नेताओं के बार में जानकारी भी ली। जेटली ने बैठक के दौरान जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जमकर तारीफ की और अन्य नेताओं को उनके जैसा बनने और कुछ करने को कहा, वहीं फिसड्डी नेताओं को जमकर कोसा भी। इस दौरान उन्होंने कहा कि केंद्रीय संगठन हो या फिर प्रादेशिक संगठन इनमें काम करने वाले जुझारू नेताओं को ही शामिल किया जाएगा। पिछली कार्यसमिति की बैठकों का लिया हिसाब भाजपा की दो दिनी प्रदेश कार्यसमिति में प्रदेश प्रभारी एवं वरिष्ठ नेताओं ने कार्यकर्ताओं को पार्टी लाइन, अनुशासन एवं आचार संहिता की नसीहतें तो दीं। लेकिन केंद्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने तो पदाधिकारियों से पिछली कार्यसमिति की बैठकों का लेखाजोखा मांग कर उन्हें हैरानी में डाल दिया। बताते हैं कि पिछली कार्यसमिति की बैठकों में पार्टी ने जो होमवर्क सौंपा था उस पर अब तक अमल नहीं हो पाया। कार्यसमिति की बैठक के बाद इन संकल्पों को पार्टी ने स्वयं ही भुला दिया, चाहे मंत्रियों के एक दिन पार्टी दफ्तर में बैठने का निर्णय हो या फिर होर्डिंग-फूल मालाओं पर रोक लगाने की बात। मंत्रिमंडल के सदस्यों को कहा गया था कि सप्ताह में एक दिन पार्टी दफ्तर में बैठकर कार्यकर्ताओं से मिलकर उनकी शिकायतों और समस्याओं की सुनवाई करें। इस मुद्दे की बाद में किसी ने सुध नहीं ली, न तो मंत्री दफ्तर में बैठने पहुंचे और न ही पार्टी ने उन्हें याद दिलाया। इसी तरह मंत्री, विधायक एवं पदाधिकारियों के परफार्मेंस का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने की बात जोर-शोर से उठी, लेकिन इसका पालन भी नहीं हो पाया, आचार संहिता के मुद्दे पर हर कार्यसमिति की बैठकों में चर्चा और चिंता जताई जाती है, लेकिन पार्टी ने कार्यकर्ताओं को अब तक आचार संहिता व नियमों का ब्यौरा नहीं सौंपा। इस पर रामलाल ने असंतोष जताया और कहा कि कार्यसमिति में जो भी निर्णय होते हैं वह संगठन को मजबूत और बेहतर बनाने के लिए होते हैं अत: उनका पालन होना चाहिए। सचेत रहें, कहीं जीत कमजोरी न बन जाएं! भाजपा कार्यसमिति में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सदस्यों को अपने कामकाज एवं बर्ताव को लेकर सतर्क रहने की नसीहत भी दी। खासतौर पर स्थानीय निकाय और पंचायतों में जीते प्रतिनिधियों के मूल्यांकन पर जोर दिया। उन्होंने चेताया कि सभी जगह भाजपा जीती है कहीं ऐसा न हो कि अगले चुनाव में यही हमारी कमजोरी बन जाएं। वह बोले कि अब हमारी चुनौतियां पहले से ज्यादा बढ़ गईं हैं। क्योंकि पार्षद, पंच, सरपंच से लेकर नगर निगमों में सभी जगह बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। पहले तो ओला-पाला की स्थिति में हम लोग केन्द्र के खिलाफ धरना देने बैठ जाते थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं, हम यह भी नहीं कर सकते। हर बात के लिए जिम्मेदारी भी हमारी ही रहेगी। इसलिए अपने काम काज पर ध्यान दें। कुछ मंत्रियों की होगी छुट्टी प्रदेश कार्यसमिति से निकलकर आ रही खबरों की मानें तो मप्र में मंत्रिमंडल का विस्तार अगले माह तक होने की उम्मीद की जा रही है। भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मंत्रिमंडल विस्तार और निगम-मंडल में अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर विचार-विमर्श किया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल का विस्तार परफार्मेंस के आधार पर करेंगे। ऐसे में परफार्मेंस की पटरी से उतरे मंत्रियों की छुट्टी के भी संकेत मिल रहे हैं। बताया जा रहा है कि अरूण जेटली, रामलाल और विनय सहस्त्रबुद्धे ने मुख्यमंत्री को मंत्रियों के लिए एक गाइड लाइन सौंपी है। इस गाइड लाइन के अनुसार ही मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाना है। इस गाइड लाइन में एक-एक मंत्री के परफार्मेंस की जानकारी दी गई है। इसके बाद से ही संकेत मिल रहे हैं कि कुछ मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक के बाद प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मंत्रिमंडल के विस्तार का संकेत पार्टी नेताओं को दिया है। मंत्रिमंडल में कुछ नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है। संगठन के सुझाव के साथ वे अगले कुछ दिनों में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से चर्चा करेंगे। उन्होंने बताया कि अप्रैल महीने के अंतिम सप्ताह तक राष्ट्रीय अध्यक्ष की सहमति मिलने के बाद विस्तार की घोषणा कर दी जाएगी। हालांकि, इस बार महज चार से पांच नए चेहरों को ही मौका मिल पाएगा, जिसके लिए अर्चना चिटनीस, हर्ष सिंह, चौधरी चंद्रभान सिंह, नीना वर्मा, निर्मला भूरिया, जयभान सिंह पवैया, ओपी सकलेचा, विश्वास सारंग, जसवंत सिंह हाड़ा, केदारनाथ शुक्ला के नाम चर्चा में हैं। राज्यमंत्री दीपक जोशी व सुरेंद्र पटवा को कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। अर्चना चिटनिस पहले मंत्री रह चुकीं हैं तो जयभान सिंह को लोकसभा चुनावों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को तगडी टक्कर देने और चंद्रभान सिंह को कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ से टकराने का इनाम मिल सकता है। वहीं केदार शुक्ला को वरिष्ठता और विंध्य के जातीय समीकरणों के लिहाज से जगह दी जा सकती है। केदार शुक्ला का नाम विधानसभा अध्यक्ष के लिए भी दौड में शामिल रह चुका है। वहीं परफार्मेंस के आधार पर कई मंत्रियों के पर भी कतरे जा सकते हैं। लालबत्ती के लिए सीएम हाउस में मंथन बताया जाता है कि केंद्र से मिली नसीहतों के बाद मप्र के नेताओं ने निगम-मंडल, प्राधिकरणों और आयोगों में किन नेताओं को जिम्मेवारी दी जाए, इसे लेकर भाजपा के दिग्गज 9 अप्रैल को आधी रात तक मंथन करते रहे। मुख्यमंत्री निवास में आयोजित भोज के बाद लालबत्ती को लेकर शुरू हुई बैठक आधी रात तक चली। बैठक में करीब दो दर्जन से अधिक नामों पर विचार किया गया और कुछ नामों पर आम सहमति न बन पाने पर फैसला मुख्यमंत्री पर छोड़ दिया गया। भाजपा की रात आठ बजे तक चली प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, थावरचंद गेहलोत, प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे, संगठन महामंत्री रामलाल, प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन मुख्यमंत्री निवास पर इक_ा हुए। यहां आयोजित भोज के बाद संगठन के आला नेताओं ने लालबत्ती पर मंथन शुरू किया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान का कहना था कि पार्टी का स्वरूप अब बेहद व्यापक हो चुका है लिहाजा इस बार नए चेहरों को मौका मिलना चाहिए। उनकी इस बात से लगभग सभी वरिष्ठ नेता सहमत थे। सूत्रों की माने तो जिन नेताओं को निगम मंडल में एडजस्ट करना है, उनके नामों के साथ उनकी प्रोफाइल पर भी बात हुई। इस बात पर भी विचार किया गया कि वे किस निगम में बेहतर काम कर सकते हैं। संगठन के एक पदाधिकारी का कहना था कि इस मामले में विलंब से बेवजह का असंतोष फैल रहा है। लिहाजा जो भी होना है, उस बारे में निर्णय जल्द होना चाहिए। यह भी तय किया गया कि जिन नेताओं के नाम फायनल होते हैं उन्हें संगठन की तरफ से संदेश दे दिया जाएगा और उनसे विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट न मांगने की अंडरटेकिंग भी ले ली जाएगी। इसके बाद अगले दिन ही प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के समाप्त होने के बाद पत्रकारों से चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने संकेत दे दिए की निगम-मंडल में नियुक्तियां जल्द ही होंगी। शिव की समझाइश, तोमर के टिप्स और नंदु भैया की नसीहत भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जहां अरूण जेटली, रामलाल और विनय सहस्त्रबुद्धे के कड़वे बोल पदाधिकारियों को सुनने को मिले, वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने समझाइश, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने टिप्स और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने नसीहतें दीं। साथ ही प्रदेश कार्यसमिति के जरिए संगठन ने कार्यकर्ताओं को साल भर के कार्यक्रम सौंप दिए। इनमें तात्कालिक रूप से सबसे अहम सदस्यता अभियान पर जोर दिया गया। टॉरगेट पूरा करने में फिसड्डी रहे जिलों को समझाइश भी दी गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एवं प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने कार्यकर्ताओं से आगामी कार्यक्रमों के लिए अभी से जुट जाने का आह्वान किया। शिवराज की समझाइश...... -झाड़ू सफाई ही नहीं सामाजिक बदलाव का माध्यम बनेगी। सफाई हमारे स्वभाव में आना चाहिए। -भाजपा राजनीतिक दल ही नहीं वरन सामाजिक आंदोलन बनने की दिशा में। मोदी ने हमें दिशा दिखाई। -निकाय एवं पंचायत के प्रतिनिधियों को कामकाज संबंधी मिलेगी ट्रेनिंग। -हम जनता के विश्वास की कसौटी पर हम खरे उतरेंगे। -ओले से अन्न के दाने नहीं किसान की जिंदगी बिखरती है। -कांग्रेस के राज में किसान कभी एजेंडा में नहीं रहे। -पहले मुआवजा 500 रुपए प्रति हेक्टेयर था जो हमने 15 हजार रुपए कर दिया। तोमर के टिप्स.............. -भाजपा ऐसा दल जिसके कार्यकर्ता, नेता और सरकार के काम की बराबरी कोई राजनीतिक दल नहीं कर सकता। -सदस्यता अभियान में हमें ज्यादा से ज्यादा जन भागीदारी सुनिश्चित करना है। -कांग्रेस के पास नेता और नीयत की कमी, पूरे देश में वह समाप्ति की ओर अग्रसर। -कांग्रेस भ्रामक प्रचार और नकारात्मक बातें जनता के सामने रख सरकार की छबि धूमिल करने का प्रयास कर रही। -हमें कांग्रेस के हमलों का जवाब कठोरता से तथ्य और आंकड़ों के साथ देना है। नंदु भैया की नसीहतें.......... -सरकार के प्रयास और कार्यकर्ताओं के परिश्रम से पार्टी की विजय यात्रा और आगे बढ़ेगी। -कार्यसमिति के लक्ष्य और पार्टी के निर्धारित कार्यक्रम हमें मिलकर पूरा करना है। -पं.दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से हमें ऊर्जा मिलती है। शताब्दी वर्ष में उनके विचार घर-घर तक पहुंचाएं। -आंबेडकर जयंती वर्ष में कौन-कौन से प्रकल्प और कार्यक्रम हों उसके लिए समिति का गठन होगा। -सत्ता और संगठन की एकजुटता को और अधिक मजबूती देना है। एक्टिव फॉर्म में आई भाजपा बताते हैं कि प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मिले संकेतों के बाद से ही भाजपा में इन दिनों प्रदेश से लेकर दिल्ली तक खासी सक्रियता का आलम है। मौजूदा दौर में जहां स्थानीय स्तर पर पार्टी के नेता लालबत्ती की जुगाड़ में जुटे हुए हैं, वहीं विधायक मंत्री बनने के लिए गणेश परिक्रमा कर रहे हैं। इनके अलावा सबसे सकिय मंत्री नजर आ रहे हैं। इसके पीछे वजह है मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना। दरअसल, संगठन एक बार फिर से मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करवा रहा है। मंत्रियों के विभाग का फैसला उनकी रेटिंग के अनुसार किया जाएगा। इस आधार पर कुछ मंत्रियों को बड़े विभागों की जिम्मेदारी दी जाएगी तो कुछ के विभाग बदले जा सकते हैं, वहीं खराब परफॉरमेंस वालों को मंत्रिमंडल से बाहर कर उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड बनाने के लिए इंटेलीजेंस से मंत्रियों की रिपोर्ट मंगवाई है। इसमें यह भी देखा जा रहा है कि कितने मंत्रियों ने पिछले एक साल में विभाग के काम-काज पर कितना ध्यान दिया है। इसको लेकर मंत्री भी सजग हो गए हैं। उधर, प्रदेश इकाई में पदाधिकारियों की नियुक्ति के बाद अब करीब एक दर्जन जिलों में पार्टी की कमान नए नेताओं को सौंपने की कवायद शुरू हो गई है। इनमें कुछ जिलाध्यक्ष ऐसे भी हैं जो विधायक, महापौर या सांसद की भूमिका में आ गए हैं। बेंगलूरु में राष्ट्रीय कार्यसमिति के बाद पार्टी के संपर्क अभियान और अन्य कार्यक्रमों के संदर्भ में नए सक्रिय लोगों की तलाश शुरू हो गई है। प्रदेश में लगातार चुनावी माहौल के कारण पार्टी हाईकमान ने जिलों में बदलाव की प्रक्रिया कुछ महीनों के लिए आगे टाल दी थी लेकिन अब जिलों में पार्टी का कामकाज तेज करने नेतृत्व में बदलाव किए जाने के संभावना है। टारगेट पे टारगेट, बदले में लॉलीपॉप एक तरफ प्रदेश कार्यसमिति में वरिष्ठ नेताओं ने चाल, चेहरा और चरित्र की बात कर पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को दायरे में रहने का डोज दिया, वहीं इनका कहना है हमें हर बार टारगेट पर टारगेट दिया जा रहा है और बदले में आश्वासन का लॉलीपॉप थमा दिया जाता है। कभी चुनाव, कभी संगठन विस्तार, तो कभी आए दिन होने वाले पार्टी के कार्यक्रम, इन सब में भीड़ जुटाना और दीगर व्यवस्थाएं करना। लंबे समय से कुछ यही हाल चल रहा है भाजपा कार्यकर्ताओं का। दरअसल पार्टी के कार्यकर्ताओं को आए दिन संगठनात्मक दृष्टि से नए-नए टारगेट देकर खफाया तो जा रहा है, लेकिन बदले में उसको मिल रहा है केवल और केवल इंतजार। ऐसे में हर बार मिलने वाले 'लॉलीपॉपÓ से अब भाजपाईयों में मायूसी छाने लगी है। निरंतर संगठनात्मक गतिविधियों के चलते कभी प्रदेश तो केंद्र सरकार के खिलाफ जंग छेडऩे के लिए सड़कों पर संघर्ष करती रही भाजपा के लिए ऐसा मौका पहली बार आया है, जब नगरनिगम से लेकर केन्द्र तक सत्ता में भाजपा का बोलबाला है। ऐसे में पार्टी को दम देने वाले कार्यकर्ताओं में भी सत्तासुख की लालसा जागना स्वाभाविक है। उधर सरकार में नुमाइंदगी करने वाले नेताओं को तो पार्षद, महापौर, नगरीय निकायों में अध्यक्ष वगैरह समेत विधायक, सांसद और मंत्री पदों की सुविधाएं मयस्सर है, लेकिन जो इस कतार में पिछड़ गए उनकी सुध लेने का नाम ही नहीं लिया जा रहा। लिहाजा उनके भीतर अब निराशा घर करने लगी है। गौरतलब है कि करीब डेढ़ साल पहले प्रदेश में विधानसभा चुनावों की आचार संहिता लागू होने से तमाम निगम, मंडल व प्राधिकरणों में काबिज नेताओं की रवानगी हो गई थी। दरअसल विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी लोकसभा और निकाय चुनावों तक किसी तरह के असंतोष को हवा नहीं देना चाहती थी, लिहाजा इन नियुक्तियों को बार-बार टाला गया। इसी क्रम में भाजपा के महासदस्यता अभियान में सभी का भरपूर उपयोग करने की मंशा से फिर निगम मंडलों को टाल दिया गया, जो अब तक अधर में ही हैं। लाल, पीली बत्तियों के अलावा संगठन में खाली पड़े पदों के लिए दावेदारों को निरंतर मायूसी ही मिलती रही है। बता दें कि यहां लम्बे समय से भाजपा की जिला कार्यकारिणी का मामला भी अटका पड़ा है। वहीं पार्टी की यूथ विंग भाजयुमो की जिला इकाई की घोषणा की राह में भी बार-बार रोड़े अटकते जा रहे हैं। इसी तरह नगरनिगम में भी भाजपा पार्षद दल के पदाधिकारियों समेत 6 लोगों को एल्डरमैन (वरिष्ठ पार्षद) के रूप में मनोनीत किए जाने का भी इंतजार है। चुनाव जीतने से बदल गई है कई जिलाध्यक्षों की भूमिका सांसद: मंदसौर में सुधीर गुप्ता और रीवा में जनार्दन मिश्रा लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं। महापौर: भोपाल में आलोक शर्मा और खंडवा में सुभाष कोठारी महापौर बन गए। विधायक: ग्वालियर ग्रामीण में भरत सिंह कुशवाह विधायक बन गए हैं। बैंक अध्यक्ष: नरसिंहपुर में कैलाश सोनी जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष बन गए हैं। किसान मोर्चा की कमान:पार्टी के किसान मोर्चा अध्यक्ष बंशीलाल गुर्जर को पार्टी के महामंत्री का दायित्व सौंप दिया गया है इसलिए यह पद भी रिक्त हो गया है। अब पार्टी में किसान मोर्चा की कमान किसे सौंपी जाए इसके लिए भी विचार मंथन का दौर शुरू हो गया है। ------------------