गुरुवार, 20 मार्च 2014

बाबूलाल गौर फिर जगी आस

भोपाल। गुजरात की स्थानीय इकाई ने गांधीनगर और अहमदाबाद ईस्ट से लालकृष्ण आडवाणी को प्रत्याशी बनाने की मांग उठाई थी। बुधवार को नई दिल्ली में दिनभर चले मंथन के बाद आडवाणी को गांधीनगर से टिकट दिया गया है। हालांकि आडवाणी भोपाल को लेकर अड़े हुए हैं। वे बदलते राजनीतिक परिदृश्य से आहत हैंं। कृष्ण भयभीत हैं कि इस राजनीतिक महाभारत में उन्हें पराजित कराने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। लिहाजा उन्होंने अपनी परंपरागत सीट गांधीनगर को छोड़कर राजा भोज की नगरी और शिव-राज के प्रभावशाली क्षेत्र भोपाल से चुनाव लडऩा मुनासिब समझा, लेकिन ऐसा फिलहाल संभव नहीं हो पाया। भोपाल से बाबूलाल गौर अपनी बहू कृष्णा गौर के लिए टिकट मांग रहे हैं। उनका कहना है कि, उन्हें पार्टी ने आश्वस्त किया है कि टिकट उनकी बहू को ही मिलेगा। हालांकि बाद में गौर ने बयान दिया है कि अगर भोपाल से आडवाणी चुनाव लड़े, तो वे कृष्णा गौर का नाम वापस ले लेंगे। उधर, जिला भाजपा अध्यक्ष आलोक शर्मा भी टिकट की आस लगाए बैठे थे। मोदी ने आडवाणी को खुद फोन करके गांधीनगर से ही चुनाव लडऩे का आग्रह किया था, लेकिन वे मौन रहे! ऐसा कहा जा रहा है कि आडवाणी के इस फैसले से मोदी भी आहत हुए थे। हालांकि आडवाणी को भोपाल से चुनाव लडऩे के लिए पहले से ही न्यौता दिया जा चुका था।
तो क्या फिर से कैलाश जोशी
यह लोकसभा चुनाव देश ही नहीं; मप्र की राजनीति में भी एक नया अध्याय लिखने जा रहा है। मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भोपाल से दो बार के सांसद कैलाश जोशी इस बार भी टिकट की आस में थे, लेकिन आडवाणी के लिए उन्हें राजनीतिक संन्यास पर विवश कर दिया गया। अब जबकि आडवाणी की भोपाल से चुनाव लडऩे की इच्छा अधूरी-सी दिखाई पड़ रही है, स्थानीय नेतृत्व द्वारा जोशी को फिर से मनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। गुरुवार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ आधे घंटे चर्चा की। ऐसा माना जा रहा है कि यदि आडवाणी को मना लिया गया, तो कैलाश जोशी को भोपाल से टिकट दिया जा सकता है।
आडवाणी के आने से मप्र भाजपा को नफा-नुकसान
भाजपा के नेताओं की मानें, तो यदि आडवाणी मप्र से अपनी राजनीति करते, तो यहां भाजपा के स्थानीय नेतृत्व में बड़ा बदलाव आता। इससे नफा-नुकसान दोनों होते। फायदा यह होता कि, मप्र का केंद्र की राजनीति में खासा दखल बढ़ जाता। वहीं नुकसान यह होता कि, मप्र से दो बड़े नेता होने यानी सुषमा स्वराज(विदिशा से उम्मीदवार और वर्तमान सांसद) और दूसरे आडवाणी, ऐसे में स्थानीय नेतृत्व को उतनी तवज्जो नहीं मिलती।
महाकुंभ से चल रहे मनाने के प्रयास...
25 सितंबर, 2013 को भोपाल में भाजपा ने राजनीतिक महाकुंभ का आयोजन किया था। इस आयोजन में लाखों कार्यकर्ताओं के बीच भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मौजूद था। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी। नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार तय किया जा चुका था, इसलिए आडवाणी रूखे मन से कार्यक्रम में पहुंचे। यहां भी मोदी ने आडवाणी के पैर छूकर उन्हें मनाने का प्रयास किया था। दरअसल, आडवाणी को उम्मीद थी कि अगर भाजपा की सरकार बनी, तो प्रधानमंत्री उन्हें ही बनाया जाएगा, लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा संभव होता नजर नहीं आया। अब फिर से आडवाणी को मनाने के प्रयास हो रहे हैं।

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