बुधवार, 11 मई 2011

115 करोड़ के घोटाले की फांस में शिव राज

जुलाई में मप्र की भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस बोलेगी हल्लाबोल
मछली तालाब से कितना पानी पीती है क्या आप इसका पता लगा सकते हैं....? बिल्कु ल इसी तरह ये पता लगाना भी मुश्किल है कि सरकारी अमला खजाने से कितना धन लूटता है। इसी उधेड़बुन में मध्यप्रदेश के अधिकारी और नेता मिलकर लूट-खसोट में जुटे हुए हैं। खुद को किसान पुत्र कहने वाले शिवराज के राज में किसान भी इस लूट से अछूते नहीं हैं। एक साल पहले प्रदेश के 36 जिलों में कर्ज माफी के नाम पर 115 करोड़ की हेराफेरी का मामला सामने आया था। राज्य की सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया था। इस घपले में जिला सहकारी बैंकों के 299 अधिकारी, 395 कर्मचारी एवं प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी दोषी पाए गए हैं किन्तु राज्य सरकार ने अभी तक केवल 10 कर्मचारियों को ही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की है। अब इस मामले को लेकर कांग्रेस सीबीआई जांच कराने की मांग की रही है तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी शिकायत कर चुकी है। सूत्र बताते हैं कि इस रीण माफी घोटाले को भुनाने के लिए कांगे्रस ने कमर कस ली है और जुलाई में मप्र की भाजपा सरकार के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की रणनीति तैयार की जा रही है। इस अभियान की जिम्मेदारी संभाली है नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने।
उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने मप्र के गरीब एवं बैंकों का कर्ज न पटा सकने वाले किसानों के ऋण माफ करने एवं उन्हें ऋण चुकाने में राहत देने की योजना के तहत राज्य सरकार को 914 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उन किसानों के ऋण पूरी तरह माफ करने थे जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है तथा वे 1997 से 2007 के बीच अपना कर्ज अदा नहीं कर सके हैं, इसके अलावा पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले ऐसे किसानों के लिए भी केन्द्र सरकार ने ऋण राहत योजना प्रारंभ की थी जो पिछले दस वर्षों तक बैंकों का ऋण नहीं चुका सके थे। जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार किसानों की ऋण माफी एवं ऋण राहत करना थी। ऋण राहत योजना में 5 एकड़ से बड़े किसानों को एकमुश्त राशि जमा करने पर 25 प्रतिशत ऋण से मुक्ति देने की योजना थी। लेकिन यह जानते हुए कि सहकारी बैंकों में बैठे नेता और दलाल घपले से बाज नहीं आएंगे, राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि सभी जिलों सहकारी बैंकों को भेज दी। सहकारी बैंको ने भी बेहद लापरवाही का परिचय दिया और ऋण राहत एवं ऋण माफी के प्रकरण प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से तैयार कराए। इन समितियों में स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होती। जिला सहकारी बैंकों के कर्मचारियों, अधिकारियों एवं समितियों ने सदस्यों ने मनमाने ढंग से जिस किसान का ले देकर कर्ज माफ कर दिया। केन्द्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि केवल कृषि ऋण ही माफ किया जाएगा, लेकिन बैंकों एवं सहकारी समितियों ने मकान, मोटर सायकिल, चार पहिया वाहनों के ऋण भी माफ कर दिए।
मप्र विधानसभा में कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने 28 जुलाई 2009 को यह मामला विधानसभा में उठाया। इसके बाद 23 जुलाइ्र 2009 को विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर ध्यानाकर्षण सूचना के तहत सरकार का ध्यान इस घपले की ओर आकर्षित किया। तब सहकरिता मंत्री ने घपले को स्वीकार करते हुए 31 दिसम्बर तक इसकी जांच कराने एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन इस घपले की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है।
10 मार्च 2010 को कांग्रेस के डा. गोविन्द सिंह ने प्रश्र के माध्यम से फिर से इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सहकारिता मंत्री बिसेन ने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने सदन में स्वीकार किया कि इस योजना में अभी तक की जांच में 114.81 करोड़ की अनियमितता हो चुकी है। उसके बाद इस वर्ष बजट सत्र के दौरान भी कांग्रेस ने इस मुददे को लेकर कई बार हंगामा किया लेकिन परिणाम सिफर रहा।
कांग्रेस का आरोप है कि केन्द्र की कर्ज माफी योजना के जरिए किसानों को मिलने वाली 200 करोड़ की राहत का किसानों के नाम पर अपहरण हो गया और इसकी भनक किसानों को लगी भी नहीं और प्रदेश के नेता और अफसर तो किसानों के कर्ज से मालामाल हो रहे हैं। यूपीए सरकार ने जब कर्ज माफी का ऐलान किया तो हरदा जिले के बघवार गांव में रहने वाले किसान गरीबदास को लगा पैसा ना सही कर्जे से मुक्ति ही सही कुछ तो फायदा होगा। आठ एकड़ जमीन के मालिक गरीबदास को सहकारी बैंक के पचास हजार रुपये चुकाने थे। कर्जा जस का तस है। ये अलग बात है कि कर्जा माफी की लिस्ट में गरीबदास के नाम से 32,090 रुपए माफ हो चुके हैं।
किसानों के कर्ज माफी की लिस्ट की तरह बैंक के गोलमाल की लिस्ट भी लंबी है। कमल सिंह पांच एकड़ के किसान हैं। नियम कायदे से इनका पूरा कर्जा माफ होना था। बेचारे दो साल में पच्चीस हजार रुपए बैंक में जमा कर चुके हैं। इनके नाम पर भी लिस्ट में 22,162 रुपए की माफ हुई। लेकिन फायदा कमल को नहीं मिला। दिलावर खान की कहानी चौंकाने वाली है। इनके वालिद का नाम नेक आलम है लेकिन लिस्ट में दिलावर का धर्म ही बदल गया। इनकी वल्दियत में रामसिंह का नाम लिखा है। जबकि दिलावर रामसिंह नाम का कोई शख्स हरदा जिले की टिमरनी तहसील के करताना गांव में रहता ही नहीं। इस नाम पर लिस्ट में 11,400 रुपए माफ कर दिए गए। कर्ज माफी के इस अपहरण से जुड़े दस्तावेज साबित करते हैं कि होशंगाबाद और हरदा जिलों में ही 13 करोड़ से ज्यादा के फर्जी कर्ज माफी क्लेम बनाए गए हैं। जब दो जिलों का ये हाल है तो पचास जिलों में क्या हुआ होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं। गोंदा गांव में रहने वाले रामनारायण के तीन खाते हैं। इन खातों में दो लाख से ज्यादा की कर्ज माफी हो गई। लेकिन हरदा जिले के इस गरीब किसान को कर्ज माफी की भनक तक नहीं लगी। सहकारी बैंक से लगातार जल्दी ही कुछ करने का भरोसा दिलाया जा रहा है। गोंदा गांव के ही रेवाराम ने पिछले साल साठ हजार रुपए बैंक का कर्ज चुकाने के लिए जमा किए। इसके बाद भी इनके दो खातों पर डेढ़ लाख रुपए का कर्ज माफ हो गया। बगैर पढ़े-लिखे किसान सहकारी बैंकों के गोलमाल में फंसकर रह गए।
ज्यादातर मामलों में बैंकों ने ऐसे कर्जे भी माफ कर दिए जो खेती के लिए नहीं लिए गए थे। कई जगह तो खेती की आड़ में मोटर साइकिल, जीप और घरों के कर्ज माफ हो गए। सरकार ने विधानसभा में भी माना है कि 36 जिलों में हेराफेरी हुई। सींधी और सिंगरौली जिलों में तो बैंक के रिकॉर्ड ही गायब हो गए। भिंड जिले में गोलमाल के ही रिकॉर्ड मिले। जाहिर है कि सहकारी बैंक के मैनेजरों की जानकारी के बगैर ये हेराफेरी नामुमकिन है। बीजेपी के राज में ज्यादातर बैंकों में बीजेपी के ही नेता अध्यक्ष बनकर बैठे हैं। सबकी आंखे बंद थीं या फिर बंद होने का नाटक कर रही हैं।
आखिर को-ऑपरेटिव बैंक करोड़ों की हेराफेरी करते कैसे हैं। इसकी पड़ताल करने पर पता चला है कि किसानों को उनके खाते की न तो पासबुक दी जाती है, ना ही कर्जे के हिसाब-किताब के लिए ऋण पुस्तिका। नतीजा ये कि किसानों को न तो कर्ज का पता चलता है न कर्ज माफ का। लिस्ट में कई ऐसे फर्जी नाम भी हैं जिनका असल में कोई वजूद ही नहीं। गोंदा गांव में कर्ज माफी घोटाले की कहानी किसी का भी होश उड़ाने के लिए काफी है। हरदा जिले के इस गांव के किसानों को खबर ही नहीं लगी कि केन्द्र सरकार ने उनका कर्ज माफ किया। लिस्ट में तमाम नाम ऐसे हैं जो इस गांव में ढूंढ़े से भी नहीं मिले। लेकिन इनके नाम पर लिया कर्ज माफ हो चुका है।
हरिओम वल्द रामदास....माफ हुए....9707 रुपए
मंगलसिंह वल्द गुलाबसिंह....माफ हुए....5863 रुपए
विजय सिंह वल्द सूरत सिंह....माफ हुए...11017 रुपए
चमनसिंह वल्द गजराज सिंह....माफ हुए...37208 रुपए
देवीसिंह वल्द कल्लू सिंह....माफ हुए.....61687 रुपए
मंगल सिंह वल्द रामाधऱ....माफ हुए....57147 रुपए
अधार वल्द पूनाजी....माफ हुए....86593 रुपए
जगदीश वल्द बहादुर...माफ हुए...81051 रुपए
गोंदा के पड़ोस में सडोरा नाम का एक गांव ऐसा भी है जहां को ऑपरेटिव बैंक के एक भी खातेदार के पास पासबुक नहीं। गांव वाले बार-बार पासबुक मांगते हैं तो हर बार जवाब मिलता है बन रही हैं। जगदीश प्रसाद के खाते से कब 27,000 रुपए का लोन हो गया उसे पता ही नहीं चला। ना तो उसने कहीं दस्तखत किए ना ही कहीं अंगूठा लगाया। मगर जब नोटिस आया तो आंखें खुली रह गईं। गांव के ही किसान कमलकिशोर को भी एक अदद पासबुक की दरकार है जो अब तक नहीं मिली।
देर से ही सही कांग्रेस को भी केन्द्र की कर्जा माफी में हुआ घोटाला नजर आने लगा है। पार्टी में इस घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग चल रही है। कांगे्रस प्रदेश अध्यक्ष भूरिया का कहना है कि किसान ऋण-पुस्तिका लेकर घूम रहा है पर उसका कर्जा माफ नहीं हो रहा है। भारत सरकार ने किसानों के कर्जमाफी के लिए करोड़ों रुपये राज्य सरकार को दिए पर उसमें से 114 करोड़ रुपये भाजपा नेताओं की जेब में चले गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी कहते हैं कि 114 करोड़ रूपये के घोटाले की बात राज्य सरकार स्वयं विधानसभा में स्वीकार कर चुकी है। राज्य सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि यह राशि और बढ़ सकती है। पचौरी कहते हैं कि वे इस संबंध में प्रधानमंत्री से बात कर चुके हैं। उधर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहते हैं कि केन्द्र शासन द्वारा किसानों के हित में ऋण माफी की योजना प्रदेश में भ्रष्टाचार और घोटाले में फंस गई और पात्र एवं गरीब किसान ऋण माफी के लिए अभी से परेशान है। सरकार के संरक्षण में सहकारिता विभाग दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बचाने की कोशिश कर रहा है और इसी कारण अभी तक केवल पन्ना जिले का ही प्रकरण आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो को सौंपा जा सका है।
इस मामले का पर्दाफास करने वाले कांगे्रसी विधायक डा. गोविन्द सिंह कहते हैं कि यह मप्र के इतिहास में किसानों के नाम पर किया गया अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला है। राज्य सरकार द्वारा दोषी अधिकारियों कर्मचारियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, इससे उसकी नीयत पर भी शक हो रहा है।

एक नजर में
- योजना का नाम : कृषि ऋण माफी एवं
ऋण राहत योजना 2008
- कुल आंवटित राशि : 916 करोड़ रुपए
- सरकार द्वारा स्वीकार घपला : 114.81 करोड़
- कुल घपला : लगभग 200 करोड़
- दोषी अधिकारी : 218
- दोषी कर्मचारी : 395 बैंक के
- दोषी कर्मचारी : 1507 प्राथमिक सहकारी समिति के
- देाषी कर्मचारी सेवा से पृथक : मात्र 10 प्राथमिक समितियों के

मप्र भाजपा में बढ़ता स्त्रीवाद

भारतीय जनता पार्टी की नाम राशि धनू है। इस राशि का स्वामी गुरु है लेकिन मध्य प्रदेश के संदर्भ में इनदिनों इस पार्टी में कन्या(राशि) का प्रभाव बढ़ा है। जहां पार्टी की कमान कन्या राशि वाले प्रभात झा के हाथ में है वहीं कई कदावर मंत्रियों और नेताओं की पत्नियों और बहुओं ने उनका संरक्षण पाकर अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाते हुए महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैं। इसमें सबसे तेजी से जो नाम उभर कर सामने आया है वह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह का। इसकी शुरूआत तब हुई जब महिला सम्मेलन में भाग लेने आईं भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष स्मृति ईरानी ने मीडिया के सामने ही साधना सिंह से कह दिया था कि भाभी, मैं आपको संगठन में खींच लूंगी, मुझे आपकी जरूरत है। यह सुनकर साधना सिंह के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थिरकी थी, उसे देखने के बाद इस बात में रंचमात्र भी संशय नहीं रह गया था कि साधना सिंह जल्दी ही सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाली हैं। 11 अक्टूबर 2010 को प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष नीता पटेरिया ने जब कार्यकारिणी घोषित करते हुए साधना सिंह को उपाध्यक्ष बनाया तो सक्रिय राजनीति में साधना सिंह का औपचारिक रूप से प्रवेश हो गया और इसके ठीक एक माह बाद साधना सिंह को होशंगाबाद जिले का प्रभारी बनाए जाने के साथ ही इन चर्चाओं ने भी जोर पकड़ लिया कि वे आगामी लोकसभा चुनावों में होशंगाबाद सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकती हैं।
वैसे साधना सिंह की राजनीतिक दिलचस्पी भी किसी से छुपी नहीं है। जब शिवराज विदिशा से सांसद थे तो कार्यकर्ताओं के बीच साधना सिंह पति के निर्वाचन क्षेत्र की चिंता करती थीं। मुख्यमंत्री बनने के बाद से की साधना सिंह का राजनीतिक ग्राफ लगातार ऊपर उठ रहा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शिवराज ने लोकसभा से इस्तीफा दिया तो उपचुनाव के लिए वरुण गांधी के साथ साधना सिंह का नाम भी उछला था लेकिन शिवराज सिंह ने अपने आलोचकों को ध्यान में रखते हुए अपने मित्र रामपाल सिंह को मौका दिया। जब 2009 में लोकसभा के आमचुनाव हुए तब भी कहा गया कि साधना सिंह को विदिशा से लोकसभा में भेजकर शिवराज अपना विकल्प सुरक्षित रखना चाहते हैं लेकिन इस बार लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज पहुंच गईं। अब श्रीमती इस सीट को छोडऩे के मूड में नहीं है। वह भारी व्यस्तता के बावजूद जिस तरह से विदिशा संसदीय क्षेत्र को वक्त दे रही हैं, उससे साफ है कि सुषमा जी आगे भी अपनी संसदीय पारी विदिशा से ही जारी रखना चाहेंगी। ऐसे में साधना सिंह की निगाह होशंगाबाद संसदीय सीट पर है। यह सीट पिछले चुनाव में भाजपा के हाथ से छिनकर कांग्रेस के खाते में जा चुकी है। इस साल जनवरी में मुख्यमंत्री ने अपने गृह ग्राम जैत में स्वामी अवधेशानंद जी के प्रवचन कराए थे। इस हाई प्रोफाइल प्रवचन में सबसे ज्यादा फोकस होशंगाबाद क्षेत्र को ही किया गया था।
मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के साथ ही यदि मंत्रियों की ओर निगाह दौड़ाई जाए तो उसमें सबसे ज्यादा प्रभावी जल संसाधन विकास मंत्री जयंत मलैया की पत्नी सुधा मलैया का नाम आता है। सुधा मलैया की सक्रियता राजनीति से लेकर पत्रकारिता और पुरातत्व प्रेम से लेकर इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालन तक कहीं भी देखी जा सकती है। भाजपा संगठन में कई ओहदों के साथ वह राष्टï्रीय महिला आयोग की भी सदस्य रह चुकी है। श्रीमती मलैया की इच्छा भी चुनाव लडऩे की रही है लेकिन जयंत मलैया की दमोह विधानसभा क्षेत्र में गहरी पैठ और लगातार चुनाव जीतने के कारण उन्हें अब तक मौका नहीं मिला है।
प्रदेश के तेजतर्रार नेता और उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय अपने-अपने पति के राजनीतिक काम में सीधे कोई दखल नहीं देती, लेकिन वह घर पर मोर्चा संभालते हुए श्री विजयवर्गीय के समर्थकों और कार्यकर्ताओं का खुद ध्यान रखती है। उन्होंने सीधे राजनीति में आने के बजाए एक स्वयं सेवी संस्था आशा फाउंडेशन एसोसिएशन आफ सेल्फ हेल्प एक्शन के जरिये समाज सेवा का बीड़ा जरूर उठा रखा है। यह संस्था इंदौर में गरीबों के लिए काम करने वाली संस्थाओं को मदद करती है। खासियत यह है कि इसने सरकार से मदद के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं ली, लेकिन जरूरतमंद बच्चों को कापी किताबों से लेकर गरीब लड़कियों के विवाह में मदद करने में आशा फाउंडेशन आगे है। जब इंदौर में भाजपा का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था तब हजारों लोगों के लिए मालवी भोज की जिम्मेदारी यानी कैटरिंग व्यवस्था उद्योगमंत्री की पत्नी आशा विजयवर्गीय ने बखूबी निभाई। मालवा के जायकेदार पकवान खा कर नेतागण उंगली चाटते दिखाई दए। दाल-बाफलों ने तो सबका मन हर लिया।
प्रदेश के आदिवासी कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह की पत्नी भावना शाह भी अपने पति के चुनाव क्षेत्र की देखभाल करते-करते खुद भी राजनीति में आ गई है। वह खंडवा की महापौर है और अपने पति से भी दो कदम आगे बढ़कर काम कर रही है। मध्यप्रदेश के खंडवा शहर की मेयर भावना शाह कुछ वर्ष पूर्व एक घरेलू महिला थीं। परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि ने उन्हें समाज सेवा की तरफ मोड़ दिया। सामाजिक कार्यो में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें मेयर का चुनाव लडऩे का मौका मिला। अब वह घर व शहर दोनों की जिम्मेदारी बड़े ही सलीके से संभाल रही है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पत्नी रेखा बिसेन की राजनीति में सक्रिय रह चुकी है। वह बालाघाट की जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी है। बिसेन जब लोकसभा में थे तब वह विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की दौड़ में भी रह चुकी है। अभी वह प्रदेश भाजपा महिला मोर्चे की कोषाध्यक्ष है।
बाबूलाल गौर की पत्नी और बेटे तो राजनीतिक फलक पर कभी सक्रिय नहीं दिखे लेकिन गौर के बेटे पुरुषोत्तम गौर की असामयिक मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कृष्णा गौर राजनीति में जरूर सक्रिय हुईं। गौर ने मुख्यमंत्री रहते हुए उनको राज्य पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर सबको चौंका दिया था पर विरोध के कारण उन्हें यह पद छोडऩा पड़ा। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने कृष्णा गौर को न सिर्फ भोपाल की महापौर का टिकट दिलाया बल्कि जिताया भी। आज कृष्ण गौर एक परिपक्व नेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं।
लोक निर्माण मंत्री नागेन्द्र सिंह की पत्नी पद्यमावती सिंह राजनीति के सीधे तौर पर सक्रिय तो नहीं है लेकिन उनकी पुत्रवधु सिमरन सिंह नागौद नगर पंचायत अध्यक्ष है। ग्वालियर के वरिष्ठï भाजपा नेता नरेश गुप्ता अपने पुत्र को तो आगे नहीं बढ़ा सके लेकिन उन्होंने भी अपनी पुत्रवधु समीक्षा गुप्ता को ग्वालियर का महापौर बनवाया है। वित्त मंत्री राघवजी ने तमाम विरोध के बाद भी बेटी ज्योति शाह को नगरपालिका अध्यक्ष बनाने में सफल रहे।
प्रदेश भाजपा में पुरुष नेताओं से उलट ऐसी नेत्री भी रही हैं जिन्होंने अपने पति को या तो पीछे छोड़ा या उन्हें आगे बढ़ाया। भाजपा के पूर्व मंत्री ध्यानेंद्र सिंह की पत्नी माया सिंह तो अपने पति को भी राजनीति में पीछे छोड़ते हुए राज्यसभा के जरिए केंद्रीय राजनीति में पहुंच गईं जबकि पति पूर्व मंत्री से पूर्व विधायक की स्थिति में चले आए। इसके विपरीत पटवा काबीना में संसदीय सचिव रहीं रंजना बघेल ने शिवराज काबीना में महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री का ओहदा पाया। उन्होंने अपने पति मुकाम सिंह किराड़े को विधायक बनवाकर ही दम लिया। रंजना ने उन्हें धार से 2009 के लोकसभा का टिकट दिलाया था लेकिन वह हार गए तो जमुना देवी के निधन के बाद उन्हें विधानसभा उपचुनाव का टिकट मिला।
कुछ ऐसे मंत्री भी हैं जिन्होंने अपनी पत्नियों को राजनीति से बिल्कुल दूर रखा है। इनमें सबसे पहला नाम है गोपाल भार्गव। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल करवा चौथ पर सारे मंत्रियों को अपनी पत्नियों के साथ मुख्यमंत्री निवास पर भोजन के लिए बुलाया था तो भार्गव सहित कुछ मंत्री अकेले ही वहां पहुंच गए थे। शिवराज ने उनको तब इस बात पर चटखारे भी लिए थे लेकिन सच तो यही है कि पिछले सात सालों में केवल एक मौका ही ऐसा आया जब भार्गव की पत्नी गढ़ाकोटा से भोपाल आईं और उनके सरकारी बंगले में रुकीं। नरोत्तम मिश्रा, राजेंद्र शुक्ल और पारस जैन आदि भी ऐसे मंत्री हैं जो पत्नियों को राजनीति के चमक-दमक भरे माहौल से दूर रखते हैं।
बाक्स
मुख्यमंत्रियों की पत्नियों की राजनीतिक महत्वकांक्षा
मध्य प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्रियों की पत्नियों की राजनीतिक महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। इस प्रदेश का जो भी मुख्यमंत्री हुआ है यहां के राजनीतिक और प्रशासनीक वीथिका में उनकी पत्नी का प्रभावी हस्तक्षेप रहा है। मोतीलाल वोरा और दिग्विजय सिंह जरूर ऐसे अपवाद रहे हैं जिन्होंने अपनी पत्नी शांति वोरा और आशा सिंह को राजनीति के जंजाल से दूर रखा। जबकि श्यामाचरण शुक्ल के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी पत्नी पद्मिनी शुक्ल का दबदबा था। प्रकाशचंद्र सेठी के आने के बाद इस पर विराम लगा लेकिन अर्जुन सिंह के दौर में उनकी पत्नी सरोज सिंह का वजन होता था। एक ब्यूरोक्रेट ने तो उनके घरेलू नाम (बिट्टन) पर बाजार का नाम ही रख दिया था। बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि नए भोपाल का मशहूर बिट्टन मार्केट सरोज सिंह के नाम पर ही है। यह नामकरण भी देश के ईमानदार प्रशासकों में शुमार हासिल एमएन बुच ने किया था। सुंदरलाल पटवा की पत्नी फूलकुंअर पटवा तो गाहे-बगाहे ही अपने पति के साथ किसी राजनीतिक कार्यक्रम में दिखीं लेकिन कैलाश जोशी की पत्नी तारा जोशी ने पूरी शिद्दत के साथ भाजपा की राजनीति में शिरकत की थी।