शनिवार, 3 मई 2014

कसौटी पर मोदी-शिवराज फैक्टर

मप्र के चुनावी घमासान में कई दिग्गजों का राजनीतिक कैरियर दाव पर
भोपाल। मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटों पर तीन चरण में मतदान हो चुका है और सभी 378 प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम में बंद हो गया है। प्रदेश में सभी सीटों को जीतने का मिशन तथा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लेकर भाजपा ने युद्ध की तरह यह चुनाव लड़ा है। यह चुनाव भाजपा के लिए कितनी अहमियत रखता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 28 दिनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां धुंआधार 159 सभाएं की। वहीं मोदी ने करीब 14 संभाएं की। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि चुनाव पूरी तरह मोदी-शिवराज के इर्दगिर्द के घूमता नजर आया। इसलिए इस बार मोदी-शिवराज फैक्टर कसौटी पर है और अब सभी को मतगणना का यानी 16 मई का इंतजार है। संभवत: देश में यह पहला लोकसभा चुनाव है,जो आम जनता के सरोकारों से दूर पार्टी तथा नेताओं की चाल,चेहरा और चरित्र को केंद्रित कर लड़ा जा रहा है। भाजपा जहां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी,उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनके परिवार के चरित्र पर कीचड़ उछाल कर वाह-वाही लूटने में लगी हुई है,वहीं कांग्रेस भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के चेहरे और चरित्र पर प्रहार कर रही है। मप्र की 29 लोकसभा सीटों पर भी जितनी संभाएं हुई वहां भी यही नजारा दिखा। लेकिन इसके साथ ही मोदी के गुजरात और शिवराज के मप्र में कराए गए विकास कार्यो में देश के विकास की तस्वीर दिखाई गई। इसलिए लोकसभा चुनावों में भाजपा को गुजरात के बाद सबसे ज्यादा उम्मीद मध्य प्रदेश से है। नतीजों के मामले में मध्यप्रदेश गुजरात से आगे निकल सकता है। यहां मोदी लहर से ज्यादा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रभाव है। शिवराज सिंह चौहान की तीन जीतों के बाद भाजपा का गढ़ बन चुके मध्यप्रदेश में उनका जादू बरकरार है और यही कारण है कि यहां उत्तर प्रदेश के बाद पार्टी को सबसे ज्यादा सीटों की उम्मीद है। देश की 543 लोकसभा सीटों में 29 मध्यप्रदेश में हैं। जिनमें से 9 सीट आरक्षित है, जबकि 20 सामान्य। आरक्षित सीटों में अनुसूचित जाति के लिए 4 और अनुसूचित जनजाति के लिए 5 है। पिछली लोकसभा में प्रदेश में भाजपा को 16, कांग्रेस को 12 और बसपा का 1 सीट मिली थी। 16 वीं लोकसभा की सूची बहुत बदली हुई होगी। प्रदेश में भले ही मोदी और शिवराज फैक्टर हावी दिख रहा है,लेकिन भाजपा द्वारा सक्रिय और दमदार नेताओं को दरकिनार कर जिस तरह कुछ अंजान और बाहरी चेहरों को टिकट दिया गया उससे पार्टी में असंतोष दिखा। टिकट से वंचित नेता और उनके समर्थकों ने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ अंदरूनी तौर पर खुब काम किया है। इसी तरह कांग्रेस में भी काम हुआ है।
कांग्रेस को लगे कई झटके 29 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अंदरूनी कलह और गुटबाजी के चलते पूरे चुनाव के दौरान कमजोर नजर आई। हालांकि कांग्रेस कड़े मुकाबले का दावा जरूर कर रही है, लेकिन उसके नेता और कार्यकर्ता मनौवैज्ञानिक दबाव में हैं। विधानसभा की करारी हार से उनके लिए उबर पाना इतना आसान नहीं है। कांग्रेस के कई दिग्गज भाजपा के पाले में आ चुके हैं। कांग्रेसी नेताओं के पाला बदलने का जो सिलसिला विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष चैधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी से शुरू हुआ था वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। विधानसभा चुनाव के दिनों में ही होशंगाबाद के कांग्रेसी सांसद राव उदय प्रताप ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। वे होशंगाबाद से भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने पूर्व प्रशासनिक अधिकारी डा. भागीरथ प्रसाद को भिंड से टिकट दिया। वे पिछले चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार थे। लेकिन इस बार टिकट मिलने के एक दिन बाद ही वे भाजपा के सदस्य बन गये और आज वे भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस का नेतृत्व राजनीतिक सदमे से उबर पाता इसके पहले ही उसके दो और विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस में अविश्वास, परस्पर शंका और संदेह का माहौल है। कांग्रेस के दिग्गज हैरान हैं, परेशान हैं। कांग्रेस का कौन नेता पिछले दरवाजे से, कौन सामने के दरवाजे से और कौन खिड़की से भाजपा के दर पर चला जाएगा अनुमान लगाना कठिन है।
दिग्गजों का भविष्य दाव पर मध्यप्रदेश में 29 सीटों के लिए तीन चरणों में मतदान हुआ। बालाघाट, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, जबलपुर, मंडला, रीवा, सतना, शहडोल और सीधी में 10 अप्रैल को तो 17 अप्रैल को भिंड, भोपाल, दमोह, गुना, ग्वालियर, खजुराहो, मुरैना, राजगढ़, सागर और टीकमगढ़ में तथा 24 अप्रैल को वहीं बैतूल, देवास, धार, इंदौर, खंडवा, खरगोन और मंदसौर, रतलाम, उज्जैन, और विदिशा में मतदान हुआ। लेकिन बिना मुद्दे और आपसी कलह के बीच हुए इस चुनाव में कई दिग्गजों का भविष्य दाव पर है। मतदाताओं की चुप्पी अंत तक रही। इसलिए इस बार कोई भी नेता अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है। अगर राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सीटों की बात की जाय तो प्रथम चरण में होने वाले मतदान में जहां छिंदवाड़ा में कांग्रेस के दिग्गज केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के भविष्य का फैसला होना है, वहीं दूसरे चरण में दमोह से भाजपा के उम्मीदवार और पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, ग्वालियर में मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और गुना से केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर है। तीसरे चरण में हुए मतदान में इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन, खंडवा से मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरूण यादव, रतलाम से मध्यप्रदेश के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और विदिशा से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का राजनीतिक भविष्य दाव पर है। बहरहाल, चाहे चुनावी सर्वेक्षणों के आधार पर आंकलन करें या बीते चुनावी परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकालें, एक बात साफ है कि 16 मई को भाजपा लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगी। कांग्रेस दूसरे नंबर पर रहेगी। यही स्थिति मध्यप्रदेश में भी रहने वाला है। हालांकि भाजपा पर कमजोर उम्मीदवार देने का आरोप लग रहा है, लेकिन मतदान के वक्त मोदी लहर पर सवारी कर भाजपा 16 से अधिक सीटें जीतने कामयाब हो जाएगी यह भाजपा को भरोसा है। विधानसभा चुनाव में बसपा, सपा जैसे अन्य दलों को उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल पाई। राजनीतिक विश्लेषक आम आदमी पार्टी को कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे। आम आदमी पार्टी के उम्मदवारों में अधिकतर एनजीओ पृष्ठभूमि के ही हैं। मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी जितना भी वोट प्राप्त करेगी उससे कांग्रेस का ही नुकसान होने की संभावना है। टिकट तय करने में देरी। कुछके सांसदों को टिकट काटना और कुुछ सांसदों का क्षेत्र बदलना भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है। हालांकि इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खुलकर मैदान में होने का लाभ भाजपा को जरूर मिलेगा। संघ ने भले ही खुलकर किसी के पक्ष में प्रचार नहीं किया लेकिन अधिकतम मतदान के लिए चलाए गए अभियान का लाभ भी भाजपा उम्मीदवारों को ही मिलना है। स्थानीय भाजपा नेता मोदी फैक्टर के साथ ही शिवराज फैक्टर का भी हवाला दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा के अव्वल प्रदर्शन से भाजपा कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। विधानसभा चुनाव में प्राप्त मत और सीटों के आधार पर भाजपा 29 में से 20 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही है। कांग्रेस कोई बड़ी दावेदारी तो नहीं कर रही है, लेकिन उसके नेता यह मानकर चल रहे हैं कि लोकसभा में उनका प्रदर्शन विधानसभा से बेहतर होगा।
कांग्रेसी गुटबाजी भाजपा के लिए वरदान प्रदेश में कमजोर उम्मीदवारों को उतारकर बैकफूट पर आ गई भाजपा का रास्ता कांग्रेस के नेताओं ने ही आसान कर दिया। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नेताओं में आपसी तालमेल की भारी कमी रही। कार्यकत्र्ता और उम्मीदवार भी गुटों में विभाजित हैं जिसका बुरा असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ रहा है। कांग्रेसी गुटबाजी के अलावा केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा भी राज्य में पार्टी के लिए मददगार नहीं है। भिंड से कांग्रेस उम्मीदवार बनाये गए भागीरथ प्रसाद उम्मीदवारी की घोषणा के दूसरे ही दिन भाजपा में शामिल हो गए जिससे पार्टी को भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। इसके अलावा कई दूसरे नेता भी पार्टी छोड़ कर भाजपा या आप में शामिल हो रहे हैं। भाजपा की चुनौती के बावजूद छिंदवाड़ा से कमलनाथ और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता के चलते फिर से संसद पहुंच सकते हैं। मंदसौर से पार्टी की प्रत्याशी और राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन क्षेत्र में अपनी सक्रियता के बावजूद यूपीए सरकार की नाकामियों की शिकार बन सकती हैं।
आप और बसपा भी मैदान में आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में लाखों सदस्य बनाए हैं। इस पार्टी के प्रति लोगों में जिज्ञासा भी है, लेकिन पिछले दो महीने में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों के चलते यहां उसकी चुनावी संभावनाएं काफी धूमिल रही। पार्टी के सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल प्रचार के लिए नहीं आ पाए। इसके बावजूद कुछ जगहों पर आप की उपस्थिति कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही नुकसान पहुंचाएगी। बसपा राज्य में तीसरी ताकत के रूप में रही है। दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा ने लोकसभा में अपना खाता 1991 में मध्यप्रदेश की एक सामान्य सीट से ही खोला था। बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश की कुछ सीटों पर इस बार बसपा के उम्मीदवार अपना प्रभाव छोडऩे में कामयाब रहेंगे। दलित मतदाता पार्टी से तो प्रभावित हैं लेकिन बहुत असरदार प्रत्याशी के न होने से जीत की संभावना कम है।
अल्पसंख्यक मत बड़ा फैक्टर प्रदेश में कई सीटों पर अल्पसंख्यक मत भी परिणाम को प्रभावित करेंगे। इसमें मालवा निमाड़ की आठ सीट पर हार जीत का फैसला नए मतदाताओं व अल्पसंख्यक मतों के बीच से निकलता नजर आ रहा है। मतदान के बाद मोदी लहर, कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश और राहुल फैक्टर के बीच हार-जीत के समीकरण खंगाले जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव की तुलना में अल्पसंख्यकों का झुकाव इस बार भाजपा के प्रति कम दिखा पर इसकी पूर्ति नए मतदाताओं से होती दिख रही है। आप ने कांग्रेस व भाजपा दोनों के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई है। पहले दौर में कांग्रेस से आगे चल रही भाजपा बाद में अपने ही नेताओं के कारण पिछड़ गई। यहां संगठन का पूरा समय नेताओं के बीच तालमेल जमाने में निकल गया।
आखिर तक चुनाव रंगहीन हर बार की तरह इस चुनाव में भी मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच रहा। यहां चुनाव आखिर तक रंगहीन रहा। भाजपा उम्मीदवारों को संगठन के मजबूत नेटवर्क का फायदा मिला तो कांग्रेस प्रत्याशियों का पूरा चुनाव छिन्ना-भिन्न रहा। यहां का पूरा चुनाव मैनेजमेंट का रहा। जिसका मैनेजमेंट तगड़ा उसी की जीत मिलने की संभावना है। सभी पार्टियों ने चुनाव मैनेजमेंट पर ही जोर दिया और मीडिया के प्रभाव के चलते असल मुद्दों पर चर्चा कम ही हुई। स्थानीय मुद्दों से ज्यादा राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित चुनाव के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों का मुद्दा छाया रहा। मार्च के पहले पखवाड़े में हुई बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने राज्य के किसानों पर जमकर कहर बरपाया। इससे रबी की तैयार फसल बर्बाद हो गई। किसानों के इस दर्द पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मरहम लगाने की रस्मी कोशिश की। प्रदेश में भूख और कुपोषण जैसे मुद्दों को जहां कांग्रेस ने उठाने की कोशिश की, वहीं यूपीए सरकार के घपलों-घोटालों को भाजपा अपना हथियार बनाया। वैसे भ्रष्टाचार के दाग प्रदेश में भाजपा की अपनी सरकार पर भी हैं। इसलिए दोनों प्रमुख पार्टियां ने नेतृत्व के मुद्दे पर ही जोर दिया। शहरी मतदाताओं के बीच नरेंद्र मोदी, अरविन्द केजरीवाल, राहुल गांधी और शिवराज सिंह चौहान की नेतृत्व क्षमता को लेकर चर्चा रही।
शिवराज ने की 159 चुनावी सभा! प्रदेश में सभी 29 सीटों को जीतने के संकल्प के साथ शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में तीनों चरणों में 159 सभाएं लेकर न सिर्फ विपक्ष; बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं को भी दांतों तले उंगली दबाने पर विवश कर दिया है। शिवराज सिंह ने तीनों चरणों में कुल 159 सभाएं लीं। इनमें सर्वाधिक विदिशा में यानी 17 हुईं। यहां से नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का मुकाबला लक्ष्मण सिंह से है। लक्ष्मण सिंह राजगढ़ संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद रहे हैं। शिवराज सिंह ने दूसरे नंबर पर छिंदवाड़ा में अपनी जादुई भाषा शैली का सबसे अधिक इस्तेमाल किया। यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ भाजपा प्रत्याशी चौधरी चंद्रभान सिंह के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। यहां शिवराज ने यहां 10 सभाएं लीं। शिवराज ने तीसरे क्रम पर ग्वालियर में ताकत झोंकी। यहां उन्होंने 8 सभाएं लीं। यहां से उनके सबसे करीबी और मप्र भाजपा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस ने यहां से अशोक सिंह को मैदान में उतारा था। चौथे क्रम पर शिवराज सिंह गुना में धड़ाधड़ बोले। यहां उन्होंने 7 सभाओं को संबोधित किया। यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया के लिए पहाड़ बने हुए हैं।
60 प्रत्याशी ही बचा सकेंगे जमानत मप्र की 29 लोकसभा सीटों पर तीन चरणों में मतदान संपन्न हो गया है। अब सभी की निगाह 16 मई को आने वाले चुनाव परिणाम की ओर है। इस बीच राजनीतिक समीक्षक प्रत्याशियों की हार-जीत के साथ ही इस बार चुनावी मैदान में उतरे 378 प्रत्याशियों के भाग्य का भी आंकलन कर रहे हैं। सभी 29 सीटों पर खड़े हुए प्रत्याशियों की सक्रियता,क्षेत्र में उनकी पकड़ और मतदाताओं के बीच उनकी पैठ के आंकलन पर एक बात सामने आई है कि इस बार मुश्किल से लगभग 60 प्रत्याशी ही अपनी जमानत बचाने में सफल होंगे। प्रदेश में 2009 में 29 लोकसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में विभिन्न राजनैतिक दलों की ओर से तथा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे 429 उम्मीदवारों में से 369 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इनमें सभी 214 निर्दलीय उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए। जबकि जमानत खोने वाले शेष प्रत्याशी विभिन्न राजनैतिक दलों के हैं। सबसे अधिक 28 उम्मीदवार छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में चुनाव मैदान में उतरे थे। जहां 26 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुईं, इनमें 20 निर्दलीय भी शामिल थे। यह संख्या अन्य संसदीय क्षेत्रों के मुकाबले सर्वाधिक थी। इस बार के लोकसभा चुनाव में कुल 378 प्रत्याशी मैदान में हैं। तीन चरणों में हुए मतदान के तहत 10 अप्रैल को 9 सीटों पर हुए मतदान के दौरान 118 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। दूसरे चरण में 10 सीटों पर 142 प्रत्याशी खड़े हुए थे और वहां 17 अप्रैल को मतदान हुआ और तीसरे चरण में 24 मई को 10 सीटों पर मतदान हुआ। इन सीटों पर 118 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। प्रदेश के करीब 4 करोड़ मतदाताओं ने मतदान कर इन सभी प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम में कैद कर दिया है। अब मतदाताओं के साथ ही प्रत्याशियों को 16 मई का इंतजार है जब मतगणना होगी।
2009 में जमानत जब्त होने वाले उम्मीदवारों की संख्या सीट प्रत्याशी जमानत जप्त मुरैना 24 21 भिण्ड 13 11 ग्वालियर 23 21 गुना 18 16 सागर 12 10 टीकमगढ़ 17 15 दमोह 21 19 खजुराहो 15 13 सतना 21 18 रीवा 15 12 सीधी 11 9 शहडोल 8 6 जबलपुर 11 9 मण्डला 14 12 बालाघाट 18 16 छिंदवाड़ा 28 26 होशंगाबाद 10 8 विदिशा 8 7 भोपाल 23 21 राजगढ़ 9 7 देवास 10 8 उज्जैन 9 7 मंदसौर 12 10 रतलाम 10 8 धार 11 9 इन्दौर 18 16 खरगौन 11 9 खण्डवा 13 11 बैतूल 16 14 योग 429 369

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