शनिवार, 31 मई 2014

रामनरेश यादव की हो सकती है विदाई

केंद्र में भाजपा की सरकार के आते ही दांव पर लगा कई राज्यपालों का भविष्य भोपाल। केंद्र में भाजपा सरकार आने के साथ ही करीब दर्जनभर राज्यों में राज्यपालों को बदलने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इनमें मप्र के राज्यपाल रामनरेश यादव का नाम भी शामिल है। हालांकि, यादव का प्रदेश सरकार से तालमेल अच्छा रहा है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार यह नहीं चाहेगी कि भाजपा शासित राज्यों में कोई कांगे्रसी राज्यपाल रहे। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नई व्यवस्था में नए लोगों को ही बैठाया जाएगा। हालांकि, कांग्रेस की इस परंपरा के पार जाकर भी कोई फैसला हो सकता है। उल्लेखनीय है कि अपनी आक्रामक छवि के लिए जाने जाने वाले रामनरेश यादव को कांग्रेस ने बड़ी उम्मीदों के साथ मप्र का राज्यपाल बनाया था। प्रदेश में आते ही उन्होंने अपनी आक्रामकता का प्रदर्शन भी किया था, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के सौहार्दपूर्ण व्यवहार के कारण वे आगे अधिक आक्रामक नहीं हो सके। उन्होंने अपने कार्यकाल में सरकार के साथ मिलकर काम किया। यही कारण है कि जहां कांग्रेस संगठन उनके कार्यकाल से संतुष्ट नजर नहीं आया, वहीं भाजपा सरकार में उनकी हर जगह पूछ-परख होती रही। राज्यपाल ने भी अपने व्यवहार से सरकार के साथ हमेशा समन्वय बनाकर रखा। उन्होंने कभी भी संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग नहीं किया। इसलिए प्रदेश भाजपा सरकार तो नहीं चाहेगी कि असमय ही उन्हें बदला जाए। हालांकि जो संकेत मिल रहे हैं, उससे उम्मीद है कि राज्यपाल को बदला जा सकता है। संभावना जताई जा रही है कि आज कार्यभार संभाल रही नरेंद्र मोदी सरकार बड़े पैमाने पर राज्यपालों को शायद ही हटाएगी, लेकिन इस तरह की पूरी संभावना है कि उनमें से कुछ को शालीनता से अपना इस्तीफा देने के लिए कहा जा सकता है, जिससे कि नयी नियुक्तियों का रास्ता साफ हो। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि यह सामान्य चीज है कि नई सरकार राजभवन में जमे कुछ राज्यपालों से इस्तीफा देने को कहे, क्योंकि हो सकता है कि शायद उनके खाके में वे फिट नहीं होते हों। उल्लेखनीय है कि कुछ राज्यपालों का कार्यकाल तीन-चार महिना तो कुछ का आठ महिना है। ऐसे में केंद्र सरकार शायद की इन्हें हटाने की कोशिश करे। राज्यपालों में भारद्वाज (कर्नाटक), जगन्नाथ पहाडिय़ा (हरियाणा), देवानंद कुंअर (त्रिपुरा) और मारग्रेट आल्वा (राजस्थान) के पांच साल का कार्यकाल अगले तीन-चार महीने में पूरा होगा। अगले छह से आठ महीने में जिनका कार्यकाल पूरा होगा, उनमें कमला बेनीवाल (गुजरात), एमके नारायणन (पश्चिम बंगाल), जेबी पटनायक (असम), पाटिल (पंजाब) और उर्मिला सिंह (हिमाचल प्रदेश) का नाम है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की नियुक्ति इस साल मार्च में केरल के राज्यपाल के तौर पर हुई। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा को अप्रैल 2013 में दूसरा कार्यकाल दिया गया। पूर्व गृह सचिव वीके दुग्गल को दिसंबर 2013 में मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। नयी राजग सरकार की समीक्षा के दायरे में अन्य जो राज्यपाल आ सकते हैं उनमें बीएल जोशी (उत्तर प्रदेश) अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं, बीवी वांचू (गोवा), के. शंकरनारायणन (महाराष्ट्र में अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे हैं), के रोसैया (तमिलनाडु),डीवाई पाटिल (बिहार), श्रीनिवास दादासाहेब पाटिल (सिक्किम), अजीज कुरैशी (उत्तराखंड), वकोम पुरूषोत्तम (मिजोरम) और सैयद अहमद (झारखंड) का नाम है। छत्तीसगढ के राज्यपाल शेखर दत्त, अरुणाचल प्रदेश के लेफ्टिनेंट जनरल (अवकाशप्राप्त) निर्भय शर्मा, नगालैंड के अश्विनी कुमार और मेघालय के केके पॉल भी नयी सरकार की समीक्षा के दायरे में आ सकते हैं।

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