शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

कॉरपोरेट कल्चर में रंगना चाहते हैं माननीय

सुविधाओं की भरमार फिर भी सांसदों का दिल मांगे मोर
भोपाल। सुविधाभोगी हो चुके देश के माननीय कॉरपोरेट कल्चर में रंगते हुए वह तमाम सुविधाएं चाहते हैं,जो उन्हें सबसे अलग दर्शाए। इसका खुलासा सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा जुटाई गई जानकारियों में सामने आया है। हालांकि भारतीय सांसदों से हमेशा ही खास तरह का व्यवहार किया जाता रहा है, जिसे हम वीआईपी कल्चर के नाम से भी जानते हैं। उन्हें हर जगह विशेष सुविधाएं मिलती रही हैं। हाल ही में सांसदों ने मांग की है कि उनके साथ हवाई अड्डों पर भी विशेष व्यवहार हो। कानून बनाने वाले कुछ लोग निजी एयरलाइन द्वारा उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार से नाखुश हैं और चाहते हैं कि वह एयर इंडिया द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करें। लेकिन आम जनता के वोट से जीत कर संसद भवन पहुंचने वाले माननीय उनकी समस्याओं को भूल जाते हैं। अकेले मप्र में सांसदों की लापरवाही ने प्रदेश के विकास को चूना लगाया है। प्रदेश के हिस्से में लोकसभा और राज्यसभा का कुल मिलाकर करीब 954 करोड़ रूपए का हिस्सा बनता है, लेकिन सांसदों की ढील-पोल के चलते रिलीज हो पाया सिर्फ 380 करोड़। यानी सीधे-सीधे छह सौ करोड़ का चूना लग गया।
आरटीआई से भी हो चुका है खुलासा
सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा जुटाई गई जानकारियों से सांसदों को मिलने वाली कई विशेष सुविधाओं का पता चलता है। इसके तहत लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुखों द्वारा विवेकाधीन कोटा में की गई नियुक्तियों का भी खुलासा हुआ है। आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार इस तरह की 70 नियुक्तियां की गईं। कई मामलों में सांसद बिजली, पानी और टेलीफोन जैसी सुविधाओं का अधिकतम उपयोग सीमा से ज्यादा इस्तेमाल करते रहे हैं लेकिन उसके लिए उन्होंने कोई भुगतान नहीं किया। बिल का भुगतान नहीं करने पर आम आदमी का कनेक्शन तो काट दिया जाता है लेकिन सांसदों के साथ ऐसा व्यवहार कम ही देखने को मिलता है।
भारतीय सांसदों के वेतन और भत्ते मासिक वेतन 50,000 रुपए दैनिक भत्ता 2,000 रुपए (संसद या समिति की बैठक में शामिल होने के लिए) चुनाव क्षेत्र भत्ता 45,000 रुपए प्रतिमाह कार्यालयीन व्यय 45,000 रुपए प्रतिमाह (इनमें से 30,000 रुपए कर्मचारियों के वेतन के लिए) धुलाई भत्ता (सोफा कवर और परदों के लिए) तीन महीने में एक बार फर्नीचर भत्ता 75,000 रुपए वार्षिक ड्यूरेबल फर्नीचर के लिए और 15,000 रुपए वार्षिक नॉन ड्यूरेबल फर्नीचर के लिए पेंशन और अन्य सुविधाएं मासिक पेंशन 20,000 पेंशन हर अतिरिक्त वर्ष के लिए 1,500 वाहनों के लिए ब्याज मुक्त कर्ज 4,00,000 वाहनों के लिए रोड माइलेज रेट 16 प्रति किमी 1,50,000 मुफ्त टेलीफोन कॉल वार्षिक दिल्ली के लुटियन जोन में रहने के लिए बंगला 4,000 किलो लीटर पानी प्रतिवर्ष 50,000 यूनिट बिजली प्रतिवर्ष किचन और बाथरूम में टाइल्स की मरम्मत का खर्च 34जे क्लास के हवाई टिकट प्रतिवर्ष हवाई अड्डे से घर तक का यात्रा भत्ता (न्यूनतम 320 रुपए) प्रतिवर्ष चार संसद सत्रों के दौरान हवाई यात्रा के आठ टिकट (दिल्ली से या दिल्ली तक) सांसद के पति/पत्नी को भी आठ हवाई टिकट पाने का अधिकार संसद सदस्यों को रेलगाड़ी में वातानुकूलित प्रथम श्रेणी का पास और उनके पति/पत्नी को सांसद के साथ रेल पास पर असीमित यात्रा सांसद के साथ जाने वाले व्यक्ति (पति/पत्नी के अलावा) को यात्रा के लिए वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी का पास
दूसरे देशों के सांसदों के वेतन और भत्ता
ब्रिटिश सांसद वार्षिक वेतन 66,396 पाउंड (68,62,711 रुपए) आवास व्यय (लंदन के लिए) 20,100 पाउंड (20,77,849 रुपए) कार्यालयीन व्यय (लंदन के लिए) 25,350 पाउंड (26,20,321 रुपए)
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य वार्षिक वेतन 1,74,000 डॉलर (1,09,12,894 रुपए सदस्यों के प्रतिनिधित्व का वार्षिक भत्ता 12,43,560 डॉलर (7,79,83,087 रुपए)
लापरवाह सांसदों ने गंवाएं छह सौ करोड़...
प्रदेश के हिस्से में लोकसभा और राज्यसभा का कुल मिलाकर करीब 954 करोड़ रूपए का हिस्सा बनता है, लेकिन सांसदों की ढील-पोल के चलते रिलीज हो पाया सिर्फ 380 करोड़। यानी सीधे-सीधे छह सौ करोड़ का चूना लग गया। किस्मत मेहरबान थी, तभी दूसरे मदों से करीब 132 करोड़ रूपया और मिल गया, लेकिन यहां भी ढील-पोल जारी रही और कुल मिलाकर मिले 512 करोड़ रूपए में 213 करोड़ बिना खर्च हुए वापस सरकार के खजाने में चले गए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद अरूण यादव सबसे ज्यादा कंजूस निकले, वह अपने हिस्से के करीब 40 करोड़ रूपए खर्च ही नहीं कर पाए।
फिसड्डियों में अरूण यादव सबसे आगे
इसमें सबसे आगे सांसद अरूण यादव रहे। उन्हें खर्च करने के लिए चार साल में कुल 42.37 करोड़ रूपए मिले। लेकिन वह सिर्फ 2.9 करोड़ रूपए खर्च कर पाए और बाकी के 39.63 करोड़ रूपए लौट गए। यही हाल दूसरे सांसदों का भी रहा। इंदौर सांसद सुमित्रा महाजन करीब 7 करोड़ रूपए खर्च नहीं कर पाईं। वहीं राजेश नंदनी और गणेश सिंह आठ-आठ करोड़ रूपए खर्च नहीं कर पाए। राज्यसभा सांसद कप्तान सिंह सोलंकी और अनिल माधव दवे भी फिसड्डियों में शुमार हैं यह क्रमश: 17 करोड़ और 11 करोड़ रूपया खर्च नहीं कर पाए। जबकि नारायण सिंह केसरी आठ करोड़ और माया सिंह सात करोड़ रूपया खर्च नहीं कर पाई।
प्रदेश में किस सांसद ने कितना खर्च किया
लोकसभा सांसद - बची राशि सुषमा स्वराज - 1.39 प्रेमचंद गुड्डू - 4.36 गोविंदप्रसाद मिश्र - 6.35 कांतिलाल भूरिया - 5.33 सज्जन सिंह वर्मा - 1.41 राजेश नंदिनी सिंह - 8.09 गणेश सिंह - 8.11 भूपेंद्र सिंह - 3.87 देवराज सिंह पटेल - 1.00 नारायण सिंह - 1.82 नरेंद्रसिंह तोमर - 1.00 मीनाक्षी नटराजन - 4.93 बसोरीसिंह मसराम - 1.00 माखनसिंह सोलंकी - 7.52 अरूण यादव - 39.46 जितेंद्र सिंह बुंदेला - 3.44 वीरेंद्र कुमार - 1.00 राकेश सिंह - 6.09 सुमित्रा महाजन - 7.31 उदयप्रताप सिंह - 1.00 यशोधराराजे सिंधिया - 1.00 ज्योतिरादित्य सिंधिया - 2.09 गजेंद्र सिंह - 1.00 शिवराजसिंह लोधी - 2.09 कमलनाथ - 1.00 कैलाश जोशी - 0.00360 अशोक अर्गल - 1.00 ज्योति धुर्वे - 5.87 केडी देशमुख - 7.00
राज्यसभा सांसद - राशि
सत्यव्रत चतुर्वेदी - 0.00 नजमा हेपतुल्ला - 5.93 फग्गनसिंह कुलस्ते - 0.00 थावरचंद गेहलोद - 4.07 मेघराज जैन - 1.00 विजयलक्ष्मी साधौ - 6.56 चंदन मित्रा - 2.93 कप्तानसिंह सोलंकी - 18.17 अनिल माधव दवे - 12.55 रघुनंदन शर्मा - 5.81 प्रभात झा - 0.00 अनुसुइया उइके - 0.80 नारायणसिंह केसरी - 10.49 मायासिंह - 8.58 विक्रम वर्मा - 0.67
कॉरपोरेट जगत की तर्ज पर वेतन का सुझाव
इंसोफिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति का सुझाव है कि नेताओं को कॉरपोरेट जगत की तर्ज पर मोटा वेतन दिया जाए तो भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है। मूर्ति के मुताबिक, हम नेताओं से बेहद कड़े परिश्रम की मांग करते हैं, लेकिन उन्हें उतना वेतन या भत्ते नहीं देते, जिसकी जरूरत उन्हें होती है। इस तरह हम अनजाने में उन्हें गलत तरह से पैसे अर्जित करने की दिशा में धकेल देते हैं। मूर्ति ने यह प्रस्ताव भी दिया कि उनकी कंपनी मैसूर में युवा नेताओं को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार है। नेताओं को वहां आधुनिक सॉफ्टवेयर की मदद से अर्थशास्त्र की मूलभूत बातों, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों-व्यापार की जानकारी के अलावा बहुत ही चीजें सिखाई जाएंगी।
माननीयों की नई चाह हाल ही में सांसदों के लिए हवाई अड्डों पर उड़ान में देरी की पूर्व सूचना, चेक-इन में प्राथमिकता, बोर्डिंग, कॉम्प्लीमेंट्री लाउंज, प्रोटोकॉल अधिकारी और सुरक्षा में सुविधा व अतिरिक्त नाश्ते जैसी सुविधाएं चाही गई हैं। यह सुविधाएं एयर इंडिया द्वारा पहले से ही दी जा रही हैं। हालांकि जनभावना का ध्यान रखते हुए और वीआईपी संस्कृति पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के मद्देनजर केंद्र सरकार ने विशेष सुविधा की मांग को अस्वीकार कर दिया है।
विशेष सुविधाओं पर एतराज राजनीतिक तंत्र में सुधार की कोशिश करने वाले समाजसेवियों का कहना है कि सांसदों को उतनी सुविधाएं ही मिलनी चाहिए जितनी कानून बनाने के उनके काम के लिए जरूरी हो। इन लोगों का कहना है कि अतिरिक्त चाय और नाश्ते से सांसदों की कानून बनाने की क्षमता में कोई सुधार नहीं आ सकता। ऐसे में यह सारी सुविधाएं दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता।
वेतन में हो गई थी तीन गुना बढ़ोतरी
2010 में मुद्रास्फीर्ति ऊंचे स्तर पर थी और सरकार उसे कम करने की कवायद कर रही थी। तब भी सांसदों ने अपने वेतन और अन्य सुविधाओं को बढ़ा लिया था। तब वेतन में तीन गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी करते हुए उसे 16,000 रुपए से 50,000 रुपए कर दिया गया था। चुनाव क्षेत्र के खर्च को भी दोगुना करते हुए 45,000 कर दिया गया था।
इस मामले में भाजपा नेता और राज्यसभा सदस्य अनंत कुमार का कहना है कि जनप्रतिनिधियों को सिर्फ उतनी सुविधाएं मिलनी चाहिए जितनी उनके काम के अनुसार जरूरी हों। हालांकि कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित का कहना है कि हमारे वेतन में 5 वर्ष में एक बार बढ़ोतरी होती है। जबकि निजी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों का वेतन हर वर्ष बढ़ता है। ऐसे में मुझे समझ नहीं आता कि सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं को लोग विशेष व्यवहार क्यों कहते हैं।
फंड से नए प्रोजेक्ट बन सकते हैं, रिपेयर वर्क नहीं
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सांसद के फड से कौन कौन से काम हो सकते हैं, कहां वे अपना फंड इस्तेमाल कर सकते हैं या कहां नहीं कर सकते। अधिकतर वोटरों की इसकी जानकारी नहीं है। कई बार फंड को लेकर भी लोगों में बड़ा कंफ्यूजन रहता है। फंड को लेकर केंद्र सरकार की ओर से गाइड लाइंस भी जारी की गई हैं। सांसद अपने एरिया में किसी भी एजेंसी से कोई भी नया काम करा सकता है, लेकिन मेनटेनेंस और रिपेयर का काम सांसद के फंड से नहीं किया जा सकता है। केवल नए काम ही सांसद के फंड से कराए जा सकते हैं। सांसद फंड अवैध कॉलोनियों में नहीं लगाया जा सकता।
फंड के लिए गाइड लाइंस
सांसद फंड का इस्तेमाल अपने लोकसभा क्षेत्र में कहीं भी कर सकता है, जबकि राज्य सभा और लोकसभा में मनोनीत सदस्य पूरे देश में कहीं भी काम करा सकते हैं। सांसद को फंड का 15 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जातियों के रिहायशी क्षेत्र और 7.5 फीसदी हिस्सा (37.5 लाख) अनुसूचित जनजाति इलाकों में खर्च करना जरूरी है।
5 करोड़ का फंड सांसद भी लोगों के बीच रहता है और उनकी समस्याओं को सुनता है, इसलिए 1993 और 1994 में सांसद फंड की शुरूआत हुई। तब सांसद फंड केवल 5 लाख रुपए था। 1995-96 में यह फंड बढ़ाकर 1 करोड़ कर दिया गया। 1999-98 में 2 करोड़ और 2011-12 से इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया गया। फंड के खर्च, निगरानी व विभागों के बीच तालमेल करने के लिए एक नोडल ऑफिसर की अपॉइंटमेंट की गई है।
पार्क से ब्रिज तक इंटरनैशनल बॉर्डर से 8 किलोमीटर के भीतर के दायरे में किसी भी नदी से सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण की स्कीम के लिए भी सांसद फंड का इस्तेमाल किया जा सकता है। रेलवे हॉल्ट, पार्क, बारातघर, रेलवे अंडर ब्रिज, नई सड़क, जैसे काम भी सांसद फंड से कराए जा सकते हैं।
सबके काम का फंड
एमपी फंड के इस्तेमाल के लिए मिनिमम राशि 1 लाख से कम नहीं होनी चाहिए। विकलांग व्यक्तियों की सहायता के लिए एमपी फंड से 10 लाख रुपये तक मिल सकते हैं, लेकिन यह फंड उनके लिए तीन पहियों की साइकल (बैटरी चलित या मैनुअल) या कृत्रिम अंगों के लिए ही खर्च की जा सकती है। स्कूल, कॉलेजों और लाइब्रेरी में किताबें खरीदने के लिए 22 लाख तक की राशि एमपी फंड से इस्तेमाल हो सकती है। सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त एजुकेशन इंस्टिट्यूटों के लिए भी एमपी फंड खर्च किया जा सकता है।
आरटीआई का साथ
सांसद द्वारा तय किया गया कोई भी काम उसकी सहमति के बिना नहीं बदला जाएगा। अगर नोडल ऑफिसर को लगता है कि यह काम नहीं हो सकता तो उसे सांसद, केंद्र सरकार और राज्य सरकार को प्रस्ताव की तारीख के 45 दिन के अंदर यह बात बतानी होगी। अगर तय प्रस्तावों से ज्यादा प्रस्ताव कामों के आ जाते हैं तो पहले आओ पहले पाओ के नियम के तहत काम किए जाएंगे। एमपी फंड के इस्तेमाल की जानकारी आरटीआई के जरिए भी मांगी जा सकती है।
डिजास्टर में हेल्प
अगर प्राकृतिक आपदा आ जाती है जैसे तूफान, बाढ़, बादल फटना, भूकंप, ओला, हिमस्खलन, कीट हमला, भूस्खलन, तूफान, फायर, रेडियालॉजी खतरा होने पर एमपी अपने फंड से हर साल 10 लाख रुपए तक दे सकता है। देश के किसी भी हिस्से में गंभीर आपदा आने पर सांसद फंड से अधिकतम 50 लाख रुपये तक दे सकता है। एमपी फंड को इस्तेमाल करने के लिए ग्रामीण इलाकों में पंचायती राज संस्थाएं, शहर में नगर निगम, नगर पालिका जैसी एजेंसियां काम करती हैं।
कब मिलता है फंड 3 महीने तक सांसद को कोई भी राशि नहीं मिलती है। 9 महीने तक सालाना आवंटन की 50 फीसदी राशि मिलती है। 9 महीने के बाद सालाना आवंटन की 100 फीसदी राशि जारी की जाती है

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