शुक्रवार, 15 मई 2015

काम नहीं करने वाले मंत्रियों कीे होगी छुट्टी!

संघ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को बनाया जाएगा आधार
भोपाल। मप्र विधानसभा के अगले सत्र से पहले शिवराज सिंह चौहान सरकार का कैबिनेट विस्तार हो सकता है। सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट में नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है। साथ ही जो मंत्री सही काम नहीं कर रहे हैं, उनकी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। बताया जाता है की अभी कुछ माह पहले संघ ने मंत्रियों की जो परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार की थी उसी के आधार पर मंत्रिमंडल को नया स्वरूप दिया जाएगा। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उन मंत्रियों को सख्त संदेश देना चाहते हैं जो ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। वहीं, जो मंत्री अच्छा काम कर रहे हैं, उनकी तरक्की हो सकती है। इसके लिए शाह शिवराज सिंह चौहान को फ्री हैंड दे सकते हैं। संघ का आरोप है कि मप्र में भले ही भाजपा सभी चुनाव जीतती आ रही है, लेकिन मंत्री ऐसे हैं जो अपने विभाग की कार्यप्रणाली को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। यही नहीं प्रदेश के 23 में से 13 मंत्री तो ऐसे हैं जो संघ और संगठन के पैमाने पर खरे नहीं उतर सकें हैं। इनमें से कुछ मंत्री अधिकारियों के भरोसे विभाग चला रहे हैं तो कुछ को विभागीय अधिकारी तव्वजों नहीं दे रहे हैं। वहीं कई मंत्री और उनका विभाग ऐसा है कि वे सरकार और संगठन की गाइड लाइन के अनुसार काम ही नहीं कर पा रहे हैं। उल्लेखनीय है की संघ और भाजपा संगठन ने केंद्र और भाजपा शासित राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे अपनी-अपनी सरकार और मंत्रियों की परफॉर्मेंस की लगातार मॉनिटरिंग करें। साथ संघ और संगठन ने अपने स्तर पर भी मंत्रियों और उनके विभाग की मॉनिटरिंग करवाई है। जिसमें विजन डाक्यूमेंट 2018 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किस स्तर पर प्रयास किया गया,आम जनता में मंत्री की छवि,कार्यकर्ताओं से उनका संपर्क, विभागीय योजनाओं की जानकारी और विभाग में मंत्री की पकड़,मंत्रियों के ओएसडी, निज सहायकों की छवि और मंत्री की उन पर निर्भरता,अब तक की कैबिनेट की बैठकों में मंत्रियों द्वारा अपने विभाग के कितने प्रजेंटेशन दिए गए,मंत्रियों के निर्णय और फाइलों का निराकरण सहित मंत्रालय में बैठकर काम-काज करना,मंत्री के काम-काज से पार्टी की छवि पर कैसा असर,मंत्री बनने के बाद कितने दौरे किए, कितने लोगों से मिले, मैदानी योजनाओं की हकीकत जानने और उसमें सुधार के लिए कितने प्रयास किए आदि को आधार बनाया गया है। इसके साथ ही इंटेलीजेंस से भी रिपोर्ट तैयार करवाई गई है। इन रिपोर्टो के अनुसार प्रदेश के 13 मंत्री अपने दस माह के कार्यकाल में असफल साबित हुए हैं। इनमें गौरीशंकर शेजवार, सरताज सिंह, कुंवर विजय शाह, गौरीशंकर बिसेन, कुसुम महदेले, पारसचंद्र जैन, अंतर सिंह आर्य, रामपाल सिंह, ज्ञान सिंह, भूपेन्द्र सिंह शरद जैन,सुरेन्द्र पटवा और दीपक जोशी का नाम शामिल है। तीन माह से हो रही थी मॉनिटरिंग संघ के एक वरिष्ठ नेता का कहना है की इस साल जुलाई मध्य में जब भोपाल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पांच दिनी चिंतन शिविर आयोजित किया गया था, तभी से प्रदेश सरकार के कामकाज और मंत्रियों की कार्य प्रणाली का आंकलन किया जा रहा था। इसके तहत संघ परस्त नौकरशाहों को जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसमें कुछ सचिव स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं। ये नौकरशाह सरकार के काम और मंत्रियों के क्रियाकलापों की रिपोर्ट तैयार करके हर माह संघ मुख्यालय पहुंचा रहे है। कामकाज के आधार पर मंत्रियों रेटिंग की जा रही है। मंत्रियों की रेटिंग, विभागी समीक्षाएं सरकारी ढर्रा सुधारने की एक कड़ी है, इसके विपरीत अफसर अपने ही तरीके से काम कर रहे हैं। यानी अफसरों पर मंत्रियों की पकड़ मजबूत नहीं हुई है। शिव राज के ये हैं मजबुत हाथ संघ की रिपोर्ट के आधार पर 10 मंत्रियों का कार्य सराहनीय रहा है। इनमें गृह एवं जेल मंत्री बाबूलाल गौर, वित्त एवं वाणिज्यिक कर मंत्री जयंत कुमार मलैया, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मंत्री गोपाल भार्गव, नगरीय प्रशासन एवं आवास पर्यावरण मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री नरोत्तम मिश्र, तकनीकी एवं उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता, ऊर्जा, खनिज साधन एवं जनसम्पर्क मंत्री राजेन्द्र शुक्ल, महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया और राज्य मंत्री सामान्य प्रशासन लाल सिंह आर्य को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार का मजबुत आधार माना गया है। बाबूलाल गौर: पिछले कार्यकाल में नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री के रूप में अच्छा काम करने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता को इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गृह मंत्री की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। अपने अभी तक के लगभग 10 माह के कार्यकाल में लगातार सक्रियता दिखाकर गौर ने अपनी कार्यक्षमता सं सभी को प्रभावित किया है। गौर प्रदेश के एक मात्र ऐसे मंत्री रहे हैं जिन्होंने बिना ब्रेक लगातार बैठके की हैं। प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाए रखने और पुलिस व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने के लिए सक्रिय रहे हैं। गौर की तो दस बार विधानसभा का चुनाव जीतना ही अपने-आप में एक दक्षता है। उसमें वे जब-जब मंत्री रहे तब-तब उनके कार्यों से प्रदेश में भाजपा को मजबूती मिली है। यही कारण है कि नगरीय प्रशासन गौर का पसंदीदा विभाग भी रहा है। प्रदेश की राजधानी में हमेशा सुधार के लिये प्रयासरत रहे बाबूलाल गौर राजधानी से ही पूरे प्रदेश में भाजपा के प्रति सकारात्मक संदेश देते है। एक मंत्री के रूप में गौर का परफॉर्मेंस हमेशा बेस्ट रहा है। यही नहीं पार्टी गाइड लाइन का गौर हमेशा ख्याल रखते हैं। इसलिए संघ और संगठन हमेशा इन्हें महत्व देता रहता है। इन सबके इतर अपने प्रभार वाले जिले रायसेन में उनकी सक्रियता कम रही है। जयंत मलैया: जयंत मलैया सत्ता और संगठन में तालमेल बिठाकर काम करने में माहिर हैं। वे हमेशा लो प्रोफाइल पॉलिटिक्स करते हैं। लोधी बाहुल्य दमोह सीट पर ऐन-केन प्रकरण सीट जीत ही लेते हैं। वे विभागीय कार्यों में पूरी शिद्दत और दक्षता के साथ निपटाते हैं। यही कारण है कि राघवजी के हटाने के बाद वित्त विभाग का चार्ज दिया गया था और अपने इस कार्यकाल में भी वे वित्त मंत्री की जिम्मेदारी बखुबी निभा रहे हैं। अपने विभागों की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही वे अपने प्रभार वाले जिले ग्वालियर और बालाघाट में भी सक्रिय रहते हैं। हालांकि संघ की रिपोर्ट में इनके अब तक के कामकाज को मध्यम दर्जे का ही माना गया है। गोपाल भार्गव: पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मंत्री गोपाल भार्गव अपने विभाग के अफसरों के साथ मिलकर काम करने के लिए जाने जाते हैं। भार्गव को हमेशा पार्टी ने चुनौतीपूर्ण विभाग दिए हैं। सबसे पहले कृषि एवं सहकारिता का विभाग दिया गया है तब भार्गव ने अपनी काबिलियत दिखाते हुए मप्र के सहकारिता क्षेत्र से कांग्रेस के धाकड़ नेताओं को बाहर कर दिया है। लगातार दूसरी बार सामाजिक न्याय एवं पंचायत व ग्रामीण विकास मंत्री बनाए गए गोपाल भार्गव अपनी पुरानी योजनाओं को गति दे रहे हैं। भार्गव द्वारा शुरू की गई पंच परमेश्वर योजना के कारण ही भाजपा का गांवों में ग्राफ बढ़ा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री सड़क योजना एवं मुख्यमंत्री आवास योजना चलाकर उन्होंने जनता के बीच भाजपा की पैठ बनाई। इसके अलावा भी भार्गव ने सामाजिक न्याय मंत्री रहते हुए कन्यादान योजना, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना, बेटी बचाओं अभियान एवं वृद्धों एवं नि:शक्तजनों की योजनाओं को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। संघ के आंकल के अनुसार,भार्गव में वह क्षमता है कि वे विधानसभा के अंदर या बाहर कभी भी राजनैतिक परिदृश्य को बदलने की दृष्टि रखते हैं। भार्गव की सबसे बड़ी कमी यही है कि वे न तो दिल्ली का दौरा कर राष्ट्रीय नेताओं से संबंध बनाते है और न ही प्रदेशव्यापी दौरा कर प्रदेश के नेता बनने का प्रयास करते हैं। हालांकि अपने विधानसभा क्षेत्र और प्रभार वाले जिलों भोपाल, गुना, अशोक नगर में लगातार सक्रिय रहते हैं। कैलाश विजयवर्गीय: विजयवर्गीय केवल मंत्री के रूप में ही नहीं बल्कि मालवा क्षेत्र में भाजपा को मजबुत करने में भी सफल साबित हुए हैं। वहीं सदन के अंदर भी वे सरकार के संकट मोचक के रूप में हमेशा काम आए हैं। वर्तमान कार्यकाल में वे नगरीय प्रशासन और विकास विभाग का काम बखुबी संभाल रहे हैं। विजयवर्गीय का जहां राष्ट्रीय नेताओं से भी मधुर संबंध हैं वहीं प्रदेश में भाजपा के अनेकों कार्यकर्ताओं से भी सीधा संवाद रखते हैं। उद्योगमंत्री रहते हुए देश और विदेश के उद्योगपतियों से भी उनके अच्छे संबंध स्थापित हो गए जो आज की राजनीति की महती आवश्यकता है। विजयवर्गीय का उनके प्रभार वाले जिलों उज्जैन, खंडवा और बुरहानपुर में भी अच्छा होल्ड है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की जीत का शिल्पकार कैलाश को माना जाता है। चुनावी राजनीति के चतुर सुजान माने जाने वाले विजयवर्गीय पिछले दो माह की कठिन मेहनत के बाद हरियाणा में पार्टी को नाजुक दौर से निकाल कर मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है। दो महीने पहले जब विजयवर्गीय को हरियाणा विधानसभा चुनाव का कमान सौंपा गया था तब की स्थितियां बिलकुल भिन्न थीं। इस हालत में यह चुनाव भाजपा के लिए किसी कड़ी चुनौती से कम नहीं थीं,लेकिन एक सुनियोजित रणनीति के तहत दो माह में विजयवर्गीय ने न केवल संगठनात्मक रूप से पार्टी को मजबूत किया बल्कि चुनावी बयार का रुख पलटने में भी कामयाब रहे। टिकट वितरण में अपनी कौशल के बदौलत सभी को खुश कर संतुलन बनाकर कैलाश ने बड़ी ही चतुरता से काम को सफलता से अंजाम दिया। यही कारण है कि संगठन और संघ की नजर में विजयवर्गीय सबसे लाड़ले नेता बने हुए हैं। नरोत्तम मिश्रा: मंत्री के रूप में नरोत्तम मिश्रा का काम साधारण रहा है, लेकिन सदन के भीतर व बाहर पार्टी विरोधियों को करारा जवाब देने और तालमेल बिठाने में माहिर होने के कारण वे सरकार की आंखों का नूर बने हुए हैं। मिश्रा मुख्यमंत्री के निकट और विश्वसनीय भी कहे जाते हैं। संसदीय कार्यमंत्री रहते सदन के अंदर तालमेल बिठाने का काम बड़ी चतुराई से करते हैं। स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए भी नरोत्तम मिश्रा ने जननी सुरक्षा योजना, जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं का प्रदेश में बेहतर क्रियान्वयन किया है। हालांकि अपने प्रभार वाले जिलों सागर, धार और छतरपुर में इनकी सक्रियता कम रही है, फिर भी संघ इनकी कार्य कुशलता पर फिदा है। उमाशंकर गुप्ता: देश के सबसे बड़े और विवादित घोटाले के बाद तकनीकी एवं उच्च शिक्षा विभाग की कमान संभाल रहे गुप्ता ने अपनी सुझबुझ और खामोशी से किसी को जाहिर नहीं होने दिया है की उनके विभाग में कभी कुछ ऐसा हुआ है। जब प्रदेश में व्यापमं घोटाला तहलका मचा रहा था उस समय शिक्षा क्षेत्र में विकास की बात करते हुए गुप्ता ने सभी का ध्यान घोटाले की तरफ से मोड़ दिया। यही नहीं गृहमंत्री रहते हुए उमाशंकर गुप्ता ने पुलिस विभाग में सुधार के अनेकों उल्लेखनीय प्रयास किए। गुप्ता अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ ही अपने प्रभार वाले जिलों शहडोल और उमरिया में भी निरंतर सक्रिय रहे हैं। राजेन्द्र शुक्ल: प्रदेश में हर घर में 24 घंटे बिजली देने की योजना के सुत्रधार रहे राजेन्द्र शुक्ल के पास इस बार भी ऊर्जा और खनिज साधन विभाग की जिम्मेदारी है। साथ ही सरकार के कार्यों का प्रचार-प्रसार करने वाले जनसम्पर्क विभाग का जिम्मा भी इन्होंने संभाल रखा है। जब देश के कई राज्यों में बिजली का संकट पसर रहा था, उस दौरान प्रदेश में बिजली व्यवस्था सुदृढ़ रखने के लिए शुक्ल ने जिस तरह अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया वह सराहनीय रहा। शुक्ल अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ ही प्रभार वाले जिले सतना, सिंगरौली और कटनी में भी लगातार सक्रिय रहे हैं। हालांकि कटनी जिले की दो सीटों पर हुए उपचुनाव में से एक सीट बहोरीबंद पर मिली हार से इनकी सक्रियता पर सवाल भी उठे हैं। माया सिंह: पहली बार मंत्री बनी माया सिंह के पास महिला एवं बाल विकास जैसा महत्वपूर्ण विभाग है। हालांकि अभी तक के कार्यकाल में उन्होंने कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है,लेकिन जिस तरह वह सक्रिय हैं उससे भाजपा संगठन और संघ फिलहाल उनसे संतुष्ट नजर आ रहा है। बताया जाता है की अपनी कुछ छापामार कार्रवाई के कारण माया सिंह ने रिपोर्ट बनाने वालों को प्रभावित किया है। माया सिंह प्रभारी मंत्री के तौर पर भिंड और दतिया का लगातार दौरा करती रहती हैं। यशोधरा राजे सिंधिया: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के इस कार्यकाल की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है इंदौर इंवेस्टर्स समिट। हालांकि समिट की सफलता का श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जाता है, लेकिन जिस तरह उन्होंने मुख्यमंत्री का साथ साए की तरह दिया है उससे प्रदेश में इस बार समिट ऐतिहासिक रही। देश से लेकर विदेश तक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यशोधरा तीन माह तक लगातार काम करती रहीं। इसके अलाव अपने पिछले कार्यकाल में भी इन्होंने पर्यटन एवं खेल मंत्री के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाई थी। हालांकि वे प्रभारी मंत्री के तौर पर राजगढ़ और होशंगाबाद कम ही गई हैं। लालसिंह आर्य: राज्य मंत्री लालसिंह आर्य के पास करने के लिए वैसे तो कोई विशेष काम नहीं है, लेकिन जिस तरह वे सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री के तौर पर वे सक्रिय रहे हैं उसे भरपुर सराहना मिली है। वे अपने प्रभार वाले जिलों मुरैना और श्योपुर में लगातार दौरे करते हैं। बेस्ट परफॅार्मर ही बने रहेंगे मंत्री संघ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र हो या फिर राज्य बेस्ट परफॉर्मेेस करने वाले मंत्रियों को ही सरकार में रखा जाए। इसको देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र सरकार तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मप्र सरकार के मंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट जांचेंगे। इससे पहले अधिकारियों द्वारा पिछले मंत्रीमंडल के मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड खगाला जाने लगा है। ऐसे मंत्रियों को छांट कर अलग किया जा रहा है जिनकी परफॉर्मेंस परफैक्ट रही है। ऐसे मंत्री जो विधानसभा के अंदर भी और बाहर भी सरकार की हमेशा अलग-अलग ढंग न केवल सबल प्रदान करते हैं, बल्कि अपने विभाग में मजबूत पकड़ रखते हुए सकारात्मक परिणाम भी देते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सत्ता की हैट्रिक और केंद्र में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद संघ और भाजपा संगठन हाथ आए मौके को गंवाना नहीं चाहता है और वह चाहता है कि कम से कम प्रदेश में और 10 साल तथा केंद्र में 15 साल भाजपा की सरकार बनी रहे। इसके लिए वह किसी भी मंत्री की कोताही बर्दास्त करने के मूड में नहीं है। तैयार हो रहा मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड जहां तक प्रदेश की बात है तो अभी मंत्रिमंडल में 11 और मंत्री बनाने की गुंजाइश है। साथ ही भाजपा के पास 165 विधायकों की लंबी फौज है। ऐसे में किसी के दबाव में आने का सवाल ही नहीं उठता।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक-एक विधायक और उसकी क्षमता को जानते हैं और उन्हें पता है कि कौन बेहतर प्रर्दशन कर सरकार की छवि बना सकता है। इसलिए संघ की रिपोर्ट आने के बाद वे जल्द ही अपने स्तर पर मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करवा रहे हैं। इसकी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसरों को सौंपी गईहै। मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड मुख्यत: 10 बिंदुओं के आधार पर तैयार किया जाएगा। जल्द ही होने वाले मंत्रिमंडल के फेरबदल में मंत्रियों के विभाग का फैसला उनकी रेटिंग के अनुसार किया जाएगा। इस आधार पर कुछ मंत्रियों को बड़े विभागों की जिम्मेदारी दी जाएगी तो कुछ के विभाग बदले जा सकते हैं, वहीं खराब परफॉरमेंस वालों को मंत्रिमंडल से बाहर कर उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड बनाने के लिए इंटेलीजेंस से मंत्रियों की रिपोर्ट मंगवाई है। इसमें यह भी देखा जा रहा है कि कितने मंत्रियों ने पिछले एक साल में विभाग के काम-काज पर कितना ध्यान दिया है। यहां से तैयार रिपोर्ट कार्ड की मंत्रिमण्डल विस्तार में अहम भूमिका रहने वाली है। विभाग के काम की रेटिंग दो प्रकार से हो रही है। एक तो मंत्रियों की विभागों में कितनी पकड़ है, दूसरी यह कि वे अपने विभाग में कितना समय दे रहे हैं। मंत्रियों के मामले में यह शिकायतें रहीं कि वे मंत्रालय में कम समय देते हैं। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2009 में मंत्रियों की योग्यता जानने उनकी परीक्षा कराई थी। इसमें विशेषज्ञों की मदद से 11 पेपर तैयार किए गए थे। 15 नंबर का एक पेपर था। इसमें भावनात्मक अभिव्यक्ति, अन्य व्यक्ति की भावनात्मक चेतना, इच्छा, दूसरों के साथ संबंध, रचनात्मक असंतोष, दया, दृष्टिकोण, बोध, विश्वास, नियंत्रण और ईमानदारी शामिल थे। इस परीक्षा में मात्र चार मंत्री ही सारे टेस्टों में 9 से अधिक अंक ला पाए थे। अधिकांश मंत्रियों को विश्वास के मामले में 2 से 5 नंबर मिले वहीं ईमानदारी के मामले में भी कई मंत्री 6 से 9 नंबर ही ला पाए। हालांकि सरकार ने मंत्रियों के नाम नहीं बताए। सूचना के अधिकार में भी केवल मंत्रियों के कोडिंग वाला रिजल्ट दिया गया। विस्तार की सुगबुगाहट संघ की रिपोर्ट और मुख्यमंत्री द्वारा तैयार करवाई जा रही मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड से मंत्रिमंडल विस्तार के कयास लगाए जा रहे हैं। वैसे पिछले माह सितम्बर माह में विस्तार की तैयारी थी, लेकिन इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। जिन मंत्रियों का कामकाज अच्छा नहीं होगा, उनकी कुर्सी जा सकती है। अभी कैबिनेट में 11 मंत्रियों की जगह बाकी है। इनमें आधा दर्जन पद भरे जा सकते हैं। ऐसे में पूर्व मंत्रियों में अर्चना चिटनीस, महेंद्र हार्डिया, रूस्तम सिंह, तुकोजीराव पंवार लाल बत्ती पाने की उम्मीद लगाए हैं। भंवर सिंह शेखावत, सुदर्शन गुप्ता, मालिनी गौड़, यशपाल सिंह सिसौदिया, रणजीत सिंह गुणवान, हितेन्द्र सिंह सोलंकी भी क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर आस लगाए हैं। मप्र के परिणामों से तुलना कर रही भाजपा रायपुर(नवभारत)। मध्यप्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा का डंका बजा है। खबर है कि भाजपा संगठन उक्त परिणामों की छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों की समीक्षा कर रहा है। आने वाले दिनों में इसे लेकर भारी उथल-पुथल के आसार दिख रहे हैं। मध्यप्रदेश के लगभग सभी प्रमुख शहरों में भाजपा ने जीत दर्ज की है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में राजधानी रायपुर, जगदलपुर, कोरबा, चिरमिरी, अंबिकापुर और रायगढ़ में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। भाजपा इस नुकसान की भरपाई पंचायत चुनाव में करने प्रयासरत है। पार्टी 27 जिला पंचायतों में से अधिकांश पर काबिज होने की रणनीति पर काम कर रही है, लेकिन ये भी आसान नहीं है, क्योंकि आधा दर्जन से अधिक जिलों में विरोधी दल के समर्थित प्रत्याशी जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए हैं। पार्टी में सत्ता से नाराज चल रहे नेताओं की सक्रियता एक बार फिर से बढ़ी है। वे निकायों और पंचायतों में पार्टी की हार की वजह सत्ता व संगठन में तालमेल का अभाव बता रहे हैं। पंचायत चुनाव गैरदलीय होने के कारण भाजपा के कार्यकर्ता बेलगाम हो गए। पार्टी के मना करने के बावजूद कई स्थानों पर बगावत हो गई और पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। प्रदेश में भाजपा के कार्यकर्ताओं में पहले जैसा उत्साह नजर नहीं आ रहा है। तीसरी बार सरकार बने सवा साल बीतने को है, लेकिन अभी तक निगम व मंडलों में नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। लाल-पीली बत्ती मिलने की आस में बैठे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में निराशा है। वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। राज्य शासन के दो दर्जन से अधिक निगमों व मंडलों में ढेरों पद खाली हैं। दूसरी तरफ पार्टी संगठन अपनी सरकार के मंत्रियों पर भी लगाम नहीं कस सका है। मंत्रियों के पास न तो पार्टी के लिए समय है और न ही कार्यकर्ताओं के लिए। स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम पार्टी के विपरीत आने की यही मूल वजह मानी जा रही है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के आला नेताओं को भी इसकी पूरी खबर है। जल्दी ही इस माामले में सत्ता और संगठन के प्रमुखों को तलब किया जा सकता है। राज्य मंत्रिमंडल में विस्तार और निगम-मंडलों में नियुक्तियां विधानसभा के बजट सत्र के बाद ही होने की संभावना है। जिलाध्यक्ष बदलेगी भाजपा भाजपा की प्रदेश इकाई घोषित होने के बाद अब जिलाध्यक्ष बदलने की सुगबुआहट तेज हो गई है। जहां तक राजधानी का सवाल है तो यहां आलोक शर्मा के महापौर बनने के बाद अब नए जिलाध्यक्ष की तलाश की जा रही है। साथ ही कई अन्य जिलों के अध्यक्ष भी बदले जाने हैं। ग्वालियर जिलाध्यक्ष अभय चौधरी के बदलने की उम्मीद है। दरअसल तीसरी बार जिले की कमान संभाल रहे अभय चौधरी को लेकर अब बीजेपी में लाल-पीली बत्ती से नवाजने की तैयारियां कर रही है। चौधरी को किसी निगम, मंडल या प्राधिकरण में भेजने की तैयारियों के चलते पार्टी में नए अध्यक्ष के लिए भी तलाश तेज होने के आसार हैं। इन हालातों में खाली पड़े तमाम प्रशासनिक ओहदों के साथ भाजपा की जिलाध्यक्षी के लिए भी नए सिरे से सियासत गरमाने वाली है। करीब साल भर से खाली पड़े प्रदेश के तमाम निगम मंडलों में सेट होने की बाट जोह रहे भाजपा नेताओं की उम्मीदों को एक बार फिर से पंख लगते दिख रहे हैं। इनमें दर्जन भर से ज्यादा राज्यस्तरीय ओहदों से लेकर स्थानीय स्तर के भी तीन प्राधिकरण शामिल हैं, जिन पर लंबे समय से प्रशासनिक अफसर काबिज हैं। दरअसल पहले विधानसभा से लेकर लोकसभा फिर नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों के चलते टलते रहे सियासी नियुक्तियों के मामले में अब जल्द फैसला होने के आसार बनते दिख रहे हैं। दरअसल सूबे के विभिन्न निगम, मंडल, प्राधिकरण व आयोगों की कमान एक साल से भी ज्यादा समय से ब्यूरोक्रेसी के हाथ में हैं। दरअसल बीते साल विधानसभा चुनावों से पहले इनमें से राजनेताओं की विदाई हो गई थी। वहीं कुछ आयोग वगैरह के औहदेदारों का निधन होने तो किसी का कार्यकाल पूरा होने से खाली हुए पदों पर नए सिरे से नियुक्तियां होना हैं। इसको लेकर ग्वालियर चंबल समेत पूरे सूबे के भाजपाई लंबे समय से आस लगाए बैठे हैं। वहीं तमाम चुनावों में टिकिट वितरण से साइट ट्रेक हुए नेता भी इसके लिए ऐढ़ी चोटी का जोर लगाकर गोटियां बिठाने में लगे हैं। बार-बार अटकता रहा है रोड़ा काफी समय से लाल, पीली बत्तियों के लिए जारी रेस में तमाम स्पीड ब्रेकर भी आते रहे हैं। इनमें प्रदेश की सियासत को लगातार गरमाता रहा व्यापंम घोटाला भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। दरअसल इसको लेकर कभी विपक्ष के हमलों से बचाव की रणनीति और कभी काउंटर अटैक की तैयारियों को लेकर भी भाजपा के बड़े नेता उलझे रहे हैं। वहीं विधानसभा के बाद लोकसभा से लेकर पंचायत चुनावों तक बार-बार लगती आचार संहिता भी इसकी एक बड़ी वजह रही है। प्रदेश स्तर पर यहां भी टिकी नजर लघु उद्योग विकास निगम म.प्र. पाठ्य पुस्तक निगम म.प्र.पिछड़ा वर्ग आयोग अनुसूचित जाति आयोग म.प्र.अल्पसंख्यक आयोग मध्यप्रदेश गौ संवर्धन बोर्ड खनिज विकास निगम मप्र कृषि विकास निगम मप्र बीज विकास निगम । 9999999999

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