शुक्रवार, 15 मई 2015

रेत के खेल में रोजाना हो रही 2 की मौत

रेत माफिया ने ले ली एक और सिपाही की जान
अकेले मुरैना में दर्जनभर से अधिक बार पुलिस पर हमला कर चुके हैं माफिया
भोपाल। मप्र में एक बार फिर से रेत माफिया ने एक पुलिसकर्मी को मौत के घाट सुला दिया है। पिछले 4 साल में माफिया ने अकेले मुरैना जिले में ही एक दर्जन से अधिक बार पुलिस पर हमला बोला है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में रेत माफिया के हौसले बुलंद हैं। माफियाओं को सरकार का खुला संरक्षण है। उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर आरोप लगाए कि उनके क्षेत्र में ही रेत का अवैध उत्खनन हो रहा है जिनमें उनके नजदीकी लोग शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि 5 अप्रैल को मुरैना जिले में रेत माफिया ने नूराबाद के करह आश्रम रोड पर धानेला गांव के सामने रेत से भरे डंपर को पलटाकर आरक्षक को कुचल दिया। घटना तड़के पौने सात बजे की है। डंपर को पलटाने के बाद आरोपी ड्रायवर कांच तोड़कर भाग निकला। घटना की सूचना मिलते ही मौके पर पुलिस के सभी वरिष्ठ अफसर पहुंच गए। डंपर को क्रेन से उठवाकर सिपाही के शव को निकाला। इसके बाद नूराबाद अस्पताल में शव का पीएम कराया गया और पूरे सम्मान के साथ शहीद सिपाही का अंतिम संस्कार ग्वालियर में किया गया। एसआईटी करेगी मुरैना मामले की जांच मुरैना में सिपाही की हत्या का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले पर गंभीर प्रदेश सरकार ने इसकी जांच एसआईटी के हवाले कर दी है। इसके अलावा सिपाही के परिजनों को 11 लाख रुपये मुआवजा देने का भी ऐलान किया गया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिपाही की हत्या पर गहरा शोक जताया है। मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार ने आपात बैठक बुलाई। बैठक में गहन चर्चा के बाद सीएम ने इसमें पुलिस की लापरवाही बताया और मामले की जांच एसआईटी को सौंप दी। इस दौरान सीएम शिवराज ने शहीद सिपाही धर्मेंद्र के पूरे सेवा काल का वेतन उनके परिवार को देने का ऐलान किया। सीएम ने कहा कि उनके परिवार को 10 लाख रुपये और पुलिस शहीद फंड की ओर से भी उन्हें एक लाख रुपये दिया जाएगा। आइपीएस नरेंद्र की भी ऐसे ही हुई थी मौत मालूम हो कि आठ मार्च, 2011 को मुरैना के बानमोर में आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार पर पत्थर के अवैध खनन से जुड़े माफिया ने पत्थर की ट्रॉली चढ़ाकर मार दिया था। वह घटना भी कुछ इसी तरह से हुई थी। बेखौफ खनन माफिया अभी तक आइपीएस से लेकर आरक्षक तक को अपना शिकार बना चुका है। खनन माफिया के वाहन कई लोगों को भी कुचल चुके हैं। लेकिन प्रशासन हरकत में तभी आता है जब खनन माफिया पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मियों पर हमला करता है। माफिया के दवाब से हटी एसएएफ की कंपनियां अप्रैल 2014 में खनन माफिया खासतौर से रेत माफिया पर अंकुश लगाने व रेत के अवैध उत्खनन को रोकने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश पर शासन से एसएएफ की 10 कपंनियां आईं थी। माफिया ने राजनेताओं पर दवाब डाल कर इन कंपनियों को हटवा दिया। इसके बाद पत्थर व रेत का लगातार अवैध उत्खनन हो रहा है। अजय सिंह ने आरोप लगाया कि आज प्रदेश अपराधियों की शरणस्थली बन चुकी है। कई अपराधी भाजपा के पदाधिकारी बने बैठे हैं। उन्होंने हाल ही में अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई द्वारा अंतरराष्ट्रीय अपराधी शिवराज सिंह डाबी का नाम लेते हुए कहा कि वह न केवल बीजेपी के आईटी प्रकोष्ठ में पदाधिकारी था बल्कि राज्य सरकार का सलाहकार भी था। मप्र में रेत का कारोबार कितना कलंकित है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है की प्रदेश में रेत के खेल में रोजाना 2 लोगों की मौत हो रही है। जहां वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान प्रदेश में रेत माफिया की आपसी रंजिश, पुलिस मुठभेड़, ग्रामीणों से झगड़ा आदि में करीब 715 लोगों ने अपनी जान गवांई वहीं वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान 31 दिसंबर तक 547 लोग रेत के खेल में जान गवां चुके हैं। वैसे तो प्रदेश में सभी छोटी-बड़ी नदियों में अवैध रेत और पत्थर का उत्खनन हो रहा है,लेकिन ग्वालियर-चंबल संभाग में माफिया सबसे अधिक वारदात को अंजाम देते हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में तो रेत माफिया इस कदर हावी हो गया है कि उसके अभियान में कोई बाधा डालता है, तो उस पर वे सीधा हमला करते हैं। इस इलाके में डिप्टी कलेक्टर से लेकर नायब तहसीलदार पर हमला हो चुका है। पुलिस थानों पर हमला करके जप्त ट्रक और ट्रालिया छुड़ाना तो यहां आम बात हो गई है। प्रदेश में ग्वालियर-चंबल डिवीजन के अलावा मालवा, महाकौशल और विंध्य खनन माफिया का गढ़ बन गया है। विंध्य क्षेत्र में रीवा-सतना का ऐसा ही क्षेत्र है, जहां खनिज माफिया के खौफ से अधिकारी कर्मचारी परेशान हैं। प्रदेश में माफिया तंत्र के रसूख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बड़वानी जिले के गठन के 18 साल के अंदर अभी तक 19 कलेक्टर हटाए जा चुके हैं। यानी यहां कलेक्टरों का औसत कार्यकाल एक वर्ष से ही कम रहा। अवैध उत्खनन से अरबों का लगता है चूना प्रदेश के जिलों में लंबे समय से जमे जिला खनिज अधिकारियों के संरक्षण में माफिया के साथ मिलीभगत से रेत के अवैध उत्खनन का कारोबार चल रहा है। इससे सरकार को हर साल अरबों रूपए का चूना लग रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग में डबरा के पास स्थित सिंध नदी के चांदपुर घाट और रायपुर घाट पर रेत माफिया द्वारा नाव डालकर रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है। खनिज विभाग के अधिकारी इसे बढ़ावा देकर वसूली कर रहे हैं। पनडुब्बी से 70-80 फुट गहराई से रेत पाइप डालकर निकाली जाती है। कई बार लाखों रूपए की लागत से उत्तर प्रदेश से बनकर आईं पनडुब्बियां पकड़ी गई हैं। परंतु रेत के काम में इतना मुनाफा है कि रेत माफिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रदेश सरकार ने यहां रेत खदान के ठेके निरस्त कर दिए हैं, लेकिन रेत माफिया ने अधिकारियों से सांठगांठ कर करोड़ों की राजस्व चोरी कर हैं। खादी और खाकी का संरक्षण होने के कारण सिंध नदी के चांदपुर घाट, अरूसी, रायपुर, कैथोदा, बेलगढ़ा, गजापुर, लांच, चूनाघाट, विजकपुर, भैंसनारी घाट पर जमकर अवैध उत्खनन हो रहा है। राजस्थान के रेत माफिया सिंध नदी के 10-12 घाटों पर करोड़ों रूपए की बोली स्थानीय नेताओं को अघोषित पार्टनर बनाकर लगाते हैं, जहां से ठेके लेकर अरबों रूपए की रेत निकालकर दिन-रात बेची जाती है। ठेके खत्म होने के बाद अब जो रेत निकल रही है, उसकी राजस्व वसूली रॉयल्टी के रूप में खनिज विभाग के अधिकारी दिखावे के रूप में कर रहे हैं। कई बार रेत माफिया में बर्चस्व को लेकर गोली चली है। संकट में नर्मदा की सहायक नदियां मप्र की जीवनरेखा नर्मदा और उसकी लगभग एक दर्जन सहायक नदियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। नरसिंहपुर जिले की प्रमुख नदियों शक्कर, शेढ़, सीतारेवा, दूधी, ऊमर, बारूरेवा, पांडाझिर, माछा, हिरन आदि नदियों में से कई नदियों को रेत माफिया लगभग मौत के घाट उतार चुका है। बारूरेवा, माछा, पांडाझिर, सीतारेवा, ऊमर नदी तो ऐंसी नदियां हैं कि जहां माफिया ने रेत का अंधाधुंध खनन नदी के अंदर से किया, जिससे नदी की सतह पर पानी थामने वाली कपायुक्त त्रिस्तरीय तलहटी (लेयर) पूरी तरह उजड़ गई है। नर्मदा का हाल यह है कि उसका सीना लगातार छलनी किया जा रहा है। इससे नर्मदा के दोनों तटों पर रेत की बजाय अब कीचड़ है, नदी के अंदर से पोकलेंड मशीन के जरिए रेत निकालकर वही कार्य किया जा रहा है। शक्कर और शेढ़ नदी के हाल बुरे हैं। कभी इन नदियों के किनारे खरबूज-तरबूज की खेती लहलहाती थी, आज वहां उजड़ा चमन है। शक्कर अस्तित्व से जूझ रही है, वहीं शेढ़ को भी संकट का सामना करना पड़ रहा है। अवैध खदानों से हर साल 20,000 करोड़ का धंधा मध्य प्रदेश में नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन और बेनगंगा आदि बड़ी नदियों के साथ ही अन्य नदियों में जितनी रेत खदानें हैं,वह सभी अवैध हैं। इन खदानों के संचालन में न तो एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल)के नियमों का पालन हो रहा है और न ही प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के मापदंडों का पालन हो रहा है। नियमों को दरकिनार नदियों का कलेजा चीर कर माफिया सालाना 20,000 करोड़ का अवैध धंधा कर रहा है जबकि सरकार को मासिक केवल 76 करोड़ की आय हो रही है। मध्यप्रदेश में रेत खदानें सोना उगलती हैं। इसलिए इस कारोबार में माफिया सबसे अधिक सक्रिय है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि रेत खनन का वैध तरीके से कम अवैध रूप से अधिक चल रहा है। किसी के पास वैधानिक मंजूरी नहीं है। जो खदान चल रहीं हैं उनके पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। प्रशासन अनजान बन रहा है और अवैध उत्खनन खुलेआम जारी है। जबकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय दिसंबर माह में ही माइनिंग के लिए नई गाइडलाइन जारी कर चुका है। मप्र प्रदूषण बोर्ड का दावा है कि प्रदेश में जितनी भी रेत खदान चल रही है उनमें से अधिकांश के पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। बिना मंजूरी के सभी खदान अवैध हैं। प्रशासन को भी खदान आवंटन से पहले पर्यावरण मंजूरी की जानकारी लेना चाहिए था। रेत के अवैध उत्खनन, अबैध भण्डारण व ओव्हरलोड परिवहन के कारण नदियों की सभी स्वीकृत रेत खदानों का 90 प्रतिशत रेत पूरी तरह समाप्त हो चुका है। खनन माफिया ऐसे स्थानों से रेत का उत्खनन कर रहे है, जहां खदान स्वीकृत नहीं है। इससे नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन,बेनगंगा आदि नदियों के हालात खनन के कारण गंभीर हैं। 10 सालों में तेजी से बढ़ा कारोबार मध्यप्रदेश में खनन कारोबार का पिछले दस सालों में इस कदर विस्तार हुआ है कि राज्य के हर हिस्से में खदानों का खनन हो रहा था जिसके चलते अवैध उत्खनन का ग्राफ बढ़ गया है। माफिया ने अपने पैर फैला लिए है। अवैध उत्खनन की बार-बार बढऩे की शिकायतें के बाद अब केंद्र सरकार ने खदानों की अनुमति लेने की शर्त केंद्र से अनिवार्य कर दी है। इसके चलते खनन कारोबारी घबरा गए हैं। मप्र का खनिज विभाग भी विचलित है। 28 जिलों में है माफिया का एकछत्र राज प्रदेश में करीब 28 जिलों में तो खनन माफिया का एकछत्र राज है। इन पर न तो सरकार हाथ डाल पा रही है और न ही जिम्मेदार अधिकारी। खनिज विभाग के अफसर तो इनकी जानकारी देना तो दूर किसी प्रकार मुंह खोलने को भी तैयार नहीं होते। यही वजह है कि कई जिलों में अवैध उत्खनन के मामले में खनन माफिया पर लगाए गए अर्थदंड के अरबों रूपए वसूल नहीं हो पा रहे हैं। अकेले मंडला एवं सीहोर जिले में ही 1300 करोड़ रूपए का अर्थदंड खनन माफिया से वसूलने में प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। हालत यह है कि प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में 50 से 100 प्रकरण लंबित हैं, जिसमें खनन माफिया पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। छतरपुर, रीवा, ग्वालियर में 100 से अधिक प्रकरण लंबित हैं, जबकि जबलपुर, बालाघाट, डिंडोरी, पन्ना, टीकमगढ़, सतना, सीहोर, रायसेन और देवास जिले में करीब 50 से 100 के बीच अवैध उत्खनन के प्रकरण लंबित हैं। वहीं अन्य जिलों में पचास से कम हैं। मजबूरी में वर्ष 2012 में राज्य सरकार को प्रदेश के सभी कलेक्टरों को सख्त पत्र लिखकर जुर्माने की वसूली एवं प्रकरण दर्ज करने के आदेश जारी करने पड़े, लेकिन खनिज संसाधन विभाग के मंत्रालय द्वारा जारी प्रमुख सचिव के पत्र का भी इन अफसरों पर खास असर नहीं हुआ है। प्रदेश की नई रेत खनन नीति के कारण प्रदेश में रेत खदानें खनिज विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गई हैं। वहीं केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ ) के आदेश ने मध्य प्रदेश सरकार को रेत खनन के मोर्चे पर बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है। इसमें पांच हैक्टेयर से छोटी रेत खदानों को पर्यावरण स्वीकृति के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इसके चलते प्रदेश की पांच हैक्टेयर से छोटी करीब 1600 रेत खदानों को बंद करने की तैयारी की जा रही है। मध्य प्रदेश में बड़ी-छोटी सभी मिलाकर कुल 17,72 रेत खदानें है। इसमें 1,600 रेत खदानें पांच हैक्टेयर से छोटी है। इसमें से करीब 6,00 खदानें तो मध्य प्रदेश स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन की हैं। कॉरपोरेशन को सबसे बड़ी आमदनी रेत खदानों के माध्यम से होती है। छोटी खदानें बंद होने से उसकी आमदनी पर विपरीत असर भी पड़ेगा। निगम की खदानों पर रेत उत्खनन करने पर ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी रोक लगा रखी है। इन खदानों को निगम नीलाम कर रहा है, लेकिन उत्खनन की अनुमति नहीं देगा। निगम की एक शर्त के मुताबिक ठेकेदार को ग्रीन ट्रिब्यूनल से उत्खनन करने की अनुमति लेनी होगी। ठेकेदार को ट्रिब्यूनल से अनुमति नहीं मिलती है तो उसकी जिम्मेदारी निगम की नहीं होगी। मप्र में माफिया खुद बांट लेते हैं रेत की खदानें प्रदेश सरकार की नई रेत खनन नीति पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव का कहना है कि इससे प्रदेश को कोई फायदा नहीं होने वाला है। वह कहते हैं कि रेत से मिलने वाली रायल्टी भी मप्र सरकार की सालाना आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है, लेकिन जब से प्रदेश में भाजपा राज आया है, सरकार ने रेत खदानों से रेत निकालने की अपने चहेते माफिया को खुली छूट दे दी है। नतीजन पूरे प्रदेश में ये माफिया हर साल अवैध रूप से अरबों की रेत निकालकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और सरकार है कि अपने कामकाज को चलाने के लिए लगातार बाहर से कर्ज ले रही है। अब तो राज्य सरकार की प्रशासनिक कमजोरियों का यह आलम है कि रेत के उत्खनन के लिए ये माफिया, सरकार की रत्ती भर परवाह नहीं कर रहे हैं और खुद ही तय कर लेते हैं कि किस खदान का दोहन कौन माफिया करेगा। जहां इस बारे में फैसला नहीं हो पाता, वहां अब खूनी संघर्ष की नौबत भी आने लगी है। आश्चर्य है कि रेत तो सरकारी है, और उस पर माफिया इस तरह अपना हक जता रहे हैं जैसे उस पर उनका संपूर्ण अधिकार है। इससे यह साबित होता है कि भाजपा सरकार ने प्रदेश की खनिज संपदा को पूरी तरह माफिया के हवाले कर दिया है। वह कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान का प्रशासन तंत्र कभी-कभार दिखावे के लिए कुछ रेत के ट्रक पकड़ता है और यह प्रचारित करता है कि अवैध रेत उत्खनन को रोकने के प्रति वह सचेत और सक्रिय है परन्तु हाल ही के दिनों में रेत के अवैध उत्खनन से संबंधित जो मामले सामने आए हैं, वे साबित करते हैं कि सरकार ने विधानसभा चुनाव के बाद तो रेत खदानें माफिया को सौंप दी हैं और वे हजारों जेसीबी और फाकलेन मशीनों से रात दिन अवैध रेत उत्खनन में लगे हुए हैं। इससे प्रदेश की कई नदियों के प्राकृतिक स्वरूप को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। कहीं-कहीं तो नदी का बहाव बदल जाने की स्थिति भी बन रही है। रेत के मामले में शिवराज की सरकार किस कदर मौन साधे बैठी है, उसका प्रमाण यह है कि पहले रेत के ठेके तीन साल के लिए दिए जाते थे, किंतु सरकार ने रेत माफियाओं के दबाव में आकर अब 10 साल के लिए रेत खदानें आवंटित की जाने लगी हैं। स्पष्ट है कि इस नई व्यवस्था के कारण सरकार के खजाने को हर साल करोड़ों की हानि होगी। दूसरी तरफ रेत माफिया के सामने प्रशासन को निरीह बनाकर रख दिया गया है। पिछले महीने नर्मदा किनारे शाहगंज के पास बिसाखेड़ी गांव में अवैध उत्खनन करने वाले माफिया को अधिकारियों ने ललकारा तो माफिया ने उन पर जानलेवा हमला कर दिया था। मुरैना, सीहोर आदि कुछ जिलों में तो आए दिन माफिया द्वारा अधिकारियों पर ऐसे हमले हो रहे हैं, लेकिन उनका कुछ भी नहीं बिगड़ रहा। दरअसल अवैध रेत उत्खनन में सत्तारूढ़ भाजपा के रसूखदार लोग लगे हुए हैं। हाल ही में विदिशा जिले की गुजरी बैस नदी से एक भाजपा नेता ने 10 हजार ट्राली रेत निकालकर तीन करोड़ की काली कमाई कर ली है। इस प्रकार के काले कारोबार के द्वारा हजारों भाजपा नेता एवं कार्यकर्ता सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। प्रदेश में रेत माफिया इतने ताकतवर हो गए है कि वह नर्मदा, चंबल, बेतवा, केल, बेनगंगा आदि नदियों में डायइनामाइट लगाकर धमाका करने लगे हैं। इन धमाकों से नदियों के आस-पास की चट्टाने दरक रही हैं, लेकिन प्रशासन के कानों तक यह आवाज नहीं पहुंच पाती। यही कारण है प्रतिदिन दर्जनों ट्रैक्टर ट्रॉली पत्थर नदियों से निकाला जा रहा है। नदियों में पत्थर निकालने के कारण नदियों के आस-पास ही हरियाली भी गायब हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि पत्थर तुड़ाई करने से पहले पत्थर की चट्टानों के आस-पास या नीचे आग चलाकर उन्हें गर्म किया जाता है। ऐसा करने से पत्थर की नमी कम हो जाती है और गर्म होने के कारण आसानी से टूट जाता है। पत्थर को गर्म करने के लिए मजदूर नदी किनारे के पेड़ों को काट रहे हैं। जिन नदियों के किनारे हरियाली व बड़े पेड़ थे वह भी गायब हो गए। सीधे-सीधे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, लेकिन प्रशासन ने इस ओर कभी सोचा ही नहीं। मध्य प्रदेश का पन्ना तथा छतरपुर प्रशासन ने जिले में रेत की खुदाई पर रोक लगा दी है लेकिन इससे अवैध उत्खनन रूकने वाला नहीं है क्योंकि यहां की कानून व्यवस्था ही माफिया के हाथों में गिरवी पड़ी है। अब प्रदेश में माफिया का दु:साहस इतना बढ़ गया है कि अगर कोई भी इनकी राह में बाधा बनेगा उसे मौत के घाट उतारने में इन्हें देर नहीं लगेगी। माफिया के कारण विंध्य क्षेत्र की सोन नदी के तट पर बने घडिय़ाल अभ्यारण्य का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। प्रदेश में विलुप्ति की कगार पर जा रहे घडिय़ाल, मगरमच्छों की दुर्लभ जलीय प्रजातियों के संरक्षण के लिए इस केंद्र की स्थापना की गई थी। इस अभ्यारण्य के लिए राज्य सरकार प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए का बजट आवंटित करती है। प्रतिबंधित क्षेत्र में रेत माफिया द्वारा लगातार किया जा रहा अवैध उत्खनन राज्य शासन के स्थानीय अधिकारियों के लिए चिंता का विषय नहीं है। राजनीति-माफिया गठजोड़ से होता है 100 करोड़ प्रति माह का रेत के अवैध खनन का कारोबार । चंबल नदी में मुरैना से इटावा तक राष्ट्रीय घडिय़ाल सेंक्चुरी है। लिहाजा उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत चंबल नदी के आसपास रेत के उत्खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है। इसके बावजूद अकेले मुरैना जिले में चंबल के घाटों से प्रतिदिन करीब 20-25 लाख घनफुट रेत डंपर व ट्रकों से अवैध रूप से निकाली जा रही है। आईपीएस नरेंद्र कुमार के बलिदान और सैकड़ों बार इस काले कारोबार को रोकने गए अमलों पर हुए हमलों के बादजूद ये कोराबर जारी है। माना जाता है कि दूसरे कारणों के अलावा सबसे खास वजह इस कारोबार में राजनीतिक रसूखदारों और माफिया के बीच के गठबंधन है। चंबल नदी से रेत का अवैध उत्खनन करने वाला माफिया बेखौफ होकर अपने काम को अंजाम दे रहा है। जिले में 200 से भी ज्यादा घाटों से प्रतिदिन सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्रॉली रेत निकाली जा रही है। आईपीएस नरेंद्र कुमार की मौत के हादसे और उसके बाद भी अवैध रेत खनन रोके जाने के दौरान सरकारी अमलों पर हुए हमलों के मद्देनजऱ मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश पर रेत का अवैध उत्खनन रोकने एसएएफ की कंपनी भी तैनात की गई है। लेकिन अवैध उत्खनन फिर भी नहीं रुका। संगठित माफिया कराता है अवैध रेत खनन चंबल में रेत माफिया सुबह होने से पहले ही चंबल राजघाट सहित अन्य घाटों से माफिया सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में रेत भर लाते हैं। इसके बाद फिर एक-एक दर्जन के समूह में ट्रक, ट्रैक्टर व डंपरों को नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे सहित शहर की सड़कों पर दौड़ाते हुए ले जाते हैं। इस दौरान रास्ते में आने वाली बाधा को रोकने के लिए माफिया के कारिंदे गोलियां चलाने से भी नहीं चूकते। रेत से भरे ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को निकालने के लिए माफिया के लोग 10-10 बाइकों पर बंदूकों से लैस होकर आगे-आगे चलते हैं। हाईवे से ट्रैक्टर-ट्रॉलियां शहर में पहुंच जाती हैं तो गली-मोहल्लों में भी उनकी रफ्तार पर लगाम नहीं लगती। इस वजह से हुए हादसे भी सैकड़ों जाने ले चुके हैं। वन विभाग, पुलिस और प्रशासन में तालमेल नहीं चंबल नदी से रेत के अवैध उत्खनन को रोकने में नाकामी की प्रमुख वजह जिला प्रशासन, वन विभाग व पुलिस में तालमेल का अभाव है। वन विभाग जब कार्रवाई करना चाहता है तो उसे फोर्स नहीं मिलता। स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि हाईवे पर बने पुलिस थानों पर तैनात पुलिसकर्मी रिश्वत लेकर इन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों व डंपरों को निकलवाते हैं। जब भी दबाव आया तो टास्क फोर्स एक-दो दिन अभियान चलाकर शांत हो जाता है। राजनीतिक गठजोड़ बनता है रेत माफिया की ढाल आईपीएस नरेंद्र कुमार की शहादत के बाद पुलिस और प्रशासन थोड़ी सख्त हुई तो राजनीतिक रसूखदारों के संकेत पर प्रशासन भी लाचार हो गया। जब-जब रेत के अवैध खनन के खिलाफ सख्ती की गई चोटी के राजनीतिज्ञों के संकेत ने इन अभियानों को मोंथरा कर दिया। माना जाता है अंचल में हो रहे इस अवैध कारोबार में दोनों ही पार्टियों के शीर्ष राजनेताओं के अप्रत्यक्ष आर्थिक हित जुड़े हुए हैं, इसी लिए खनन माफिया को इनका संरक्षण मिल जाता है। सीधे नदी की कोख में डूब कर पनडुब्बियां निकालती हैं रेत चंबल के अलावा ग्वालियर, भिंड व दतिया में भी रेत का माफिया कारोबार जारी है। इस क्षेत्र में तो रेत माफिया सीधे नदी के बीचों-बीच से रेत खनन कर रहा है। अपने इस काले मंसूबे के लिए माफिया ने इसके लिए खनन की जुगाड़ पनडुब्बी को बना लिया है। पनडुब्बी इसे इसलिये कहा जाता है, क्योकि यह नदी के किनारे से नही, बल्कि बीच धार में डूब कर नदी की गहराई से रेत निकालती है। खनन के लिये बनी इस जुगाड़ में इंजन को पाइपों के जरिए पीपे से दिखने वाले अवशोषकों के जोड़ा जाता है। छोटी सी नाव मे रखे ताकतवर इंजन से नदी के तल तक डूबे अवशोषक रेत को खींचते हैं। इस रेत को इंजन के दूसरे सिरे से जुड़े पाइप के ज़रिए नदी के किनारे पर इक_ा कर मालवाहक डंपर-ट्रक-ट्रॉलियों में भर दिया जाता है। पनडुब्बियों की करतूत जारी रही तो खत्म हो जाएगी नदी की धारा रेत के अवैध उत्खनन से सिंध नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। अवैध उत्खनन से नदी में गहरे-गहरे गड्ढे हो गए हैं। सोमवार को अवैध खनन के बाद छोड़े गए गड्ढे से अनजान दो युवक नदी पार करते समय इनमे डूब जिंदगी गंवा बैठे थे। लागातार हो रहे हादसों के जरिए प्रकृति भविष्य में किसी बड़ी अनहोनी के संकेत दे रही है, लेकिन प्रशासन की अनदेखी माफिया का साहस बढ़ा रही है। नतीजतन बार-बार कार्रवाइयों के बावजूद पनडुब्बियों के ज़रिए नदी की गहराई से रेत खनन लगातार जारी है। क्या है नदी की कोख से रेत उत्खनन का गणित इमारती निर्माण में दो तरह के रेत का उपयोग किया जाता है। मोटा रेत दीवारों की चिनाई जैसे दूसरे सामान्य निर्माणों के लिए काम में लाया जाता है। जबकि बारीक रेत प्लास्टर जैसे फिनिशिंग कार्यों के लिए अच्छा माना जाता है। अंचल में रेत साधारण रेत की कीमत करीब 2,800 रुपए प्रति एक हजार घनफुट है, जबकि बारीक रेत करीब 2,900 रुपए प्रति एक हजार घनफुट की दर पर उपलब्ध होता है। पनडुब्बी से सीधे नदी के बीचोंबीच जाकर तल से खींचा गया बारीक रेत खननकर्ता को तो बराबर लागत पर ही मिल जाता है, लेकिन इस पर वह प्रति एक हजार घनफुट करीब एक हजार रुपए तक अतिरिक्त मुनाफा कमा लेता है। इतने मामूली लालच के लिए ही नदी के अस्तित्व को खतरे में डाला जा रहा है।

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