मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

ईमानदार होने की सजा



ईमानदार होने की कीमत जब-तब देश और समाज को चुकानी ही पड़ती है। एक बार फिर एक आइपीएस अधिकारी को अपनी जान देकर ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ी है। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में पुलिस अनुमंडल अधिकारी यानी एसडीपीओ के पद पर तैनात 2009 बैच के आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह को बामौर में अवैध खनन से जुड़े माफियाओं ने मार डाला। बताया जा रहा है कि उन्होंने बामौर में जाकर अवैध खनन को रोकने की हिम्मत दिखाई तो ट्रैक्टर चालक गाड़ी लेकर भागने लगा। जब उन्होंने ट्रैक्टर चालक को बीच रास्ते में रोकने की कोशिश की तो उसने नरेंद्र कुमार पर ट्रैक्टर चढ़ा दिया। अस्पताल में नरेंद्र की मौत हो गई। यह हृदयविदारक घटना इस बात की तस्दीक करती है कि देश में अवैध खनन से जुड़े माफिया की ताकत चरम पर है और सरकारें उनके आगे लाचार और पंगु हैं। यह घटना चाक-चौबंद कानून-व्यवस्था की मुनादी पीटने वाली मध्य प्रदेश सरकार के माथे पर कलंक है। अभी तक मध्य प्रदेश में काली कमाई करने वालों का ही भंडाफोड़ हो रहा था, लेकिन आइपीएस अधिकारी की हत्या ने राज्य की डांवाडोल होती कानून-व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। राज्य सरकार ने हत्याकांड की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन विपक्ष सीबीआइ जांच की मांग पर अड़ा हुआ है। सरकार दावा कर रही है कि वह खनन माफिया के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करेगी और अवैध खनन के खेल पर रोक लगाएगी, लेकिन सरकार के दावे पर यकीन करना कठिन है। इसलिए कि खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई की मांग लंबे अरसे से की जा रही है, लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी है। इसी का दुष्परिणाम है कि आज खनन माफिया के हौसले बुलंद हैं और ईमानदार लोग मारे जा रहे हैं, लेकिन त्रासदी का यह खेल मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में भी अवैध खनन का काला कारोबार जारी है और संबंधित राज्य सरकारों ने मौन धारण किया हुआ है। राजनीतिक संरक्षण दरअसल, अवैध खनन के इस खेल में वही लोग शामिल हैं, जिनके पांव सत्ता के गलियारे तक जाते हैं। अमूमन अवैध खनन के खेल में सत्ता से जुड़े मंत्रियों, सांसदों और विधायकों का नाम सुना जाता है। कर्नाटक में रेड्डी बंधुओं की कारस्तानी जगजाहिर है। कर्नाटक सरकार पर उन्हें संरक्षण देने का आरोप भी लगता रहा है। मतलब साफ है, अवैध खनन से जुड़े माफियाओं को न केवल सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, बल्कि सत्ता में उनकी सीधी भागीदारी है। अन्यथा, क्या मजाल कि अवैध खनन से जुड़े माफिया दिन-दहाड़े एक आइपीएस अधिकारी को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डालते और सरकार शोक व्यक्त करती रह जाती। इस तरह की घटनाएं आए दिन मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से सुनने को मिलती रहती हैं। खनन माफिया द्वारा सरकारी मुलाजिमों, आमजन और आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या आम बात हो गई है। अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में पहाड़ धंसने से दर्जनों लोगों की जानें चली गई। इस घटना के लिए भी कसूरवार खनन माफिया ही बताए जा रहे हैं। सोनभद्र की यह घटना भी सत्ता पोषित भ्रष्टाचार का ही नतीजा है। हजारों एकड़ सुरक्षित वन भूमि को दुस्साहसिक ढंग से उत्तर प्रदेश सरकार की भूमि घोषित कर उसे मनचाहे पट्टेदारों को अलॉट कर दिया गया है और उस पर अवैध खनन जोरों पर है। दुर्भाग्य यह है कि दर्जनों लोगों के मारे जाने के बाद अब भी खनन का खेल जारी है। हाल ही में कर्नाटक में एक खनन माफिया के समर्थकों ने पत्रकारों पर हमला बोल दिया। दरअसल, ये हमले उन लोगों द्वारा किए और कराए जा रहे हैं, जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। वे नहीं चाहते कि प्रशासन, आमजन, मीडिया या आरटीआइ कार्यकर्ता उनकी काली करतूतों पर से पर्दा हटाएं। व्यवस्था को अराजकता में बदल चुके इन लोगों के लिए सरकारी मुलाजिम और आरटीआइ कार्यकर्ता राह के रोड़े नजर आते हैं। वे उन्हें रास्ते से हटाने के लिए हत्या तक पर उतारू हैं। सच तो यह है कि देश में भ्रष्ट नौकरशाहों, राजनेताओं और स्थानीय स्तर के भ्रष्ट कर्मचारियों, बिल्डरों, भू-खनन माफियाओं का एक ऐसा नेटवर्क तैयार हो गया है, जिसका मकसद अवैध तरीके से अकूत संपदा इक_ा करना है। दुर्भाग्य यह है कि सरकार उनके तंत्र को तोडऩे में नाकाम साबित हो रही है। जब तक इन भ्रष्टमंडलियों को छिन्न-भिन्न नहीं किया जाएगा, खनन माफिया और अराजक किस्म के धंधों से जुड़े लोग सरकारी मुलाजिमों और आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या करते रहेंगे। दुर्भाग्य यह है कि खनन माफिया के खिलाफ जो सरकारी अधिकारी-कर्मचारी अभियान छेड़े हुए हैं, उन्हें सरकार सुरक्षा दे पाने में भी असमर्थ है। लिहाजा, उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ रही है। लूट तंत्र के शिकार हुए कई जांबाज याद होगा, महाराष्ट्र में मालेगांव के अपर जिलाधिकारी यशवंत सोनवाने को तेल माफिया ने दिनदहाड़े जिंदा जला दिया था। जब उन्होंने तेल के काले धंधे से जुड़े लोगों को रंगे हाथ पकडऩा चाहा तो मौके पर ही तेल माफिया के गुर्गो ने उन्हें जलाकर मार डाला। राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी (एनएचएआइ) के परियोजना निदेशक सत्येंद्र दुबे की बिहार में गया के निकट गोली मारकर हत्या कर दी गई। सत्येंद्र दुबे अपनी ईमानदारी के लिए विख्यात थे। उन्होंने एनएचएआइ में बरती जा रही अनियमितताओं के संबंध में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिखा था। इसी तरह इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर शणमुगम मंजूनाथ को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में गोली मारकर खत्म कर दिया गया। शणमुगम ने तेल ईधन में मिलावट करने वाले तेल माफिया का पर्दाफाश किया था। इसी तर्ज पर देश में आरटीआइ कार्यकर्ताओं की भी हत्या की जा रही है। आरटीआइ कार्यकर्ता भी निशाने पर महज एक साल के दौरान ही एक दर्जन से अधिक आरटीआइ कार्यकर्ताओं की जानें ली जा चुकी हैं। अहमदाबाद के आरटीआइ कार्यकर्ता अमित जेठवा की इसलिए हत्या कर दी गई कि उन्होंने गीर के जंगलों में अवैध खनन का पर्दाफाश किया था। कई रसूखदार लोगों का चेहरा सामने आना तय था, लेकिन उससे पहले ही जेठवा की जान ले ली गई। हत्यारों ने गुजरात हाईकोर्ट के सामने ही उन्हें गोली मार दी। महाराष्ट्र के दत्ता पाटिल आरटीआइ का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए थे। उनकी कोशिश की बदौलत ही एक भ्रष्ट पुलिस उपाधीक्षक और एक वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। उनकी पहल पर ही नगर निगम के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई थी, लेकिन सच और ईमानदारी की लड़ाई लडऩे की कीमत उन्हें भी जान देकर चुकानी पड़ी। इसी तरह महाराष्ट्र के आरटीआइ कार्यकर्ता वि_ल गीते, अरुण सावंत तथा आंध्र प्रदेश के सोला रंगाराव और बिहार के शशिधर मिश्रा को अपनी जान गंवानी पड़ी। जम्मू-कश्मीर के मुजफ्फर बट, मुंबई के अशोक कुमार शिंदे, अभय पाटिल तथा पर्यावरणवादी सुमेर अब्दुलाली पर भी जानलेवा हमला किया गया। देश के पहले केंद्रीय सूचना आयुक्त रह चुके वजाहत हबीबुल्ला की मानें तो कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले यह पुख्ता करते हैं कि आरटीआइ एक्ट देश में प्रभावी रूप ले रहा है, लेकिन क्या यह दिल दहलाने वाली बात नहीं है कि इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है? आज मौंजू सवाल यह है कि सरकारी मुलाजिमों और आरटीआइ कार्यकर्ताओं पर होने वाले हमले कब बंद होंगे? सरकार उन्हें सुरक्षा कब मुहैया कराएगी? सच तो यह है कि सरकार की लापरवाही से ही ईमानदार अधिकारी और आरटीआइ कार्यकर्ताओं की जान सांसत में है। आज जरूरत इस बात की है कि केंद्र और राज्य सरकारें अवैध खनन रोकने के लिए सख्त कानून बनाएं और उस पर अमल भी करें। अन्यथा, खनन माफिया पर अंकुश लगाना कठिन हो जाएगा और ईमानदार लोगों की जान जाती रहेगी।
युवा और तेजतरार्र आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की निर्मम हत्या ने यह साबित कर दिया है कि इस देश में ईमानदार अधिकारियों के लिए काम कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। इसके साथ ही भ्रष्ट और बेईमान लोगों के लिए अपना काला धंधा चलाना कितना आसान है। यह पहली घटना नहीं है, जब किसी ईमानदार पुलिस अधिकारी ने फर्ज की खातिर अपनी जान की बाजी लगाई है। आइपीएस नरेंद्र कुमार की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में खनन माफिया ने वहां तैनात एक एसडीएम और एसडीपीओ पर जानलेवा हमला कर दिया। राज्य में हो रही ऐसी घटनाएं शिवराज सिंह चौहान सरकार की नाकामी जाहिर करने के लिए काफी है। फर्ज की राह में शहीद होने वाले ऐसे ईमानदार और निडर अधिकारियों की फेहरिस्त काफी लंबी है। वर्षो पहले बिहार के सहरसा-खगडिय़ा जिले के दियारा में दस्यु गिरोह का मुकाबला करते हुए डीएसपी सतपाल सिंह ने भी अपनी शहादत दी थी। हालांकि सतपाल सिंह की मौत के बाद यह बात चर्चा में रही कि स्थानीय जिला प्रशासन अगर समय रहते पर्याप्त पुलिस बल मौके पर भेजता तो शायद उनकी जान बचाई जा सकती थी। इसके बाद बिहार के बहुचर्चित गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया हत्याकांड का मामला सामने आया, जिसके नामजद अभियुक्त बाहुबली नेता आनंद मोहन फिलहाल उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। ऐसी ही एक और घटना झारखंड के चतरा जिले में कुछ साल पहले हुई थी, जिसमें वन माफिया और नक्सलियों ने मिलकर एक डीएफओ की निर्मम हत्या कर दी। ईमानदार पुलिस अधिकारियों की हत्या का सिलसिला यही नहीं थमा, बल्कि साल दर साल बीतने पर इसमें और इजाफा हुआ। पिछले साल महाराष्ट्र में तेल माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने पर एक एसडीएम को जिंदा आग के हवाले कर दिया गया। दिनदहाड़े ऐसी घटनाएं होने के बावजूद संबंधित राज्य सरकारें उन लोगों पर कार्रवाई नहीं करती। सरकार की इस अनदेखी की सबसे बड़ी वजह कुछ और नहीं, बल्कि कहीं न कहीं इस काले धंधे में उनके लोगों और नाते-रिश्तेदारों की भागीदारी है। बीते कुछ वर्षो से देश के कई हिस्सों में अवैध खनन का कारोबार बेरोक-टोक चल रहा है। हिंदुस्तान के लगभग उन सभी राज्यों में जहां पहाड़ मौजूद हैं, वहां खनन माफिया सक्रिय हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि धन की इस धार में राजनीतिक दलों के नेता पूरी तरह शामिल हैं या इस तरह कहें कि राज्य सरकारें ऐसे खनन माफियाओं को पूरी तरह अपना संरक्षण दे रही है। कर्नाटक, गोवा में भाजपा और कांग्रेस की सरकार इस मामले में पूरी तरह बेनकाब भी हो चुकी है। आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की जिस बेरहमी के साथ हत्या की गई, उससे कई सवाल पैदा हो रहे हैं। जिस मुरैना में उनकी हत्या हुई, उस जिले में अवैध खनन का धंधा कई वर्षो से चल रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कथित सुशासन में यह धंधा थमने की बजाय बढ़ता ही चला गया। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि जिस संसद भवन को देखकर हम उसकी वास्तुकला पर खुशी से इठलाते हैं, असल में उसे बनाने की प्रेरणा मुरैना स्थित मितावली चौंसठ योगिनी मंदिर से ली गई थी। यह मंदिर आठवीं सदी में बनाया गया था। इसे देखने के बाद हर कोई इसे नई दिल्ली स्थित संसद भवन का प्रतिरूप कहे बिना नहीं रह सकता। हालांकि ऊंची पहाडिय़ों पर स्थित इस ऐतिहासिक धरोहर का वजूद अवैध खनन के चलते खतरे में पड़ गया है। इस अवैध खनन में कोई और नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश में सरकार चला रही भाजपा के कई माननीय विधायक और नेता शामिल हैं। बोली और गोली के लिए मशहूर मुरैना में इन दिनों अवैध खनन का धंधा भ्रष्ट नेताओं और उनके गुर्गो के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है। एक तरफ वन एवं पर्यावरण मंत्रालय व प्राकृतिक संसाधन विभाग जंगल और पहाड़ों के रक्षार्थ नित्य नए उपाय तलाशने में जुटा है, वहीं संबंधित राज्य सरकारों में मौजूद लोग बिना किसी भय के अपना गोरखधंधा चला रहे हैं। भारत में जो हालात पैदा हो रहे हैं, उसके प्रति संसद और विधानसभा में बैठे लोगों को आज नहीं तो कल सोचना ही पड़ेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार से बेहाल और एक अदद रोटी के लिए जद्दोजहद करने वाले करोड़ों लोग आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर अपने जन प्रतिनिधियों का गला काटेंगे। आइपीएस नरेंद्र कुमार और अभियंता सत्येंद्र दुबे जैसे ईमानदार अफसरों की कुर्बानी कभी बेकार नहीं जाने वाली। ऐसी घटना उन भ्रष्ट अधिकारियों के लिए भी एक सबक है, जो अपने ईमान का सौदा कर रहे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें