बुधवार, 8 जून 2011

शिवराज भाजपा के मुख्यमंत्री नंबर वन

विनोद उपाध्याय

बीते साल जून में जब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लेकर सुराज सम्मेलन का आयोजन किया गया था तो सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श के बाद यह बहस शुरू हुआ था कि अब कौन है भाजपा का मुख्यमंत्री नंबर वन? हालांकि पार्टी नेतृत्व ने इस सवाल पर कन्नी काटने में ही भलाई समझी। उस एक साल पहले शरू हुई बहस का जवाब मिला है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में। जहां पार्टी पदाधिकारियों ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी योजनाओं की भरपूर प्रशंसा कर इस बात का संकेत दे दिया की वे ही भाजपा के मुख्यमंत्री नंबर वन हैं।
वर्तमान समय में गुजरात (मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी),उत्तराखण्ड (मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक),मध्यप्रदेश (मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान), छत्तीसगढ़ (मुख्यमंत्री रमन सिंह),झारखण्ड (मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा),कर्नाटक (मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा),हिमांचल प्रदेश (मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल)और बिहार (उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ) में भाजपा या उसकी समर्थित सरकार है। लेकिन जिस प्रकार मप्र की योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर मान,सम्मान मिला और अनुसरण हुआ उतना और किसी राज्य की योजनाओं को नहीं मिला। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व मानता है कि मप्र भाजपा ने हमेशा देश को दिशा दी है। मध्यप्रदेश में शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व से प्रदेश की तस्वीर बदली है। मप्र में भय,भूख,भ्रष्टाचार से मुक्ति की सबसे पहले पहल हुई। सत्ता और संगठन का जितना बेहतर तालमेल यहां है वह और किसी राज्य में नजर नहीं आ रहा है।
उल्लेखनीय है कि भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नितिन गडकरी ने बीते साल जून में जब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लेकर सुराज सम्मेलन का आयोजन किया तो उसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य वक्ता बनाए गए। मोदी ने भाजपा के कई शीर्ष केंद्रीय नेताओं की मौजूदगी में भाजपा के मुख्यमंत्रियों को सुराज और सुशासन का पाठ पढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे भाजपा को नंबर वन मुख्यमंत्री मिल गया। गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद हुए मुख्यमंत्रियों के इस सम्मेलन से पहले और बाद में देश के कई नामचीन उद्योगपतियों से लेकर बॉलीवुड के बादशाह अमिताभ बच्चन तक ने मोदी के नेतृत्व और शासन का बखान करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। अनेक लोगों को मोदी में भविष्य का प्रधानमंत्री बनने की क्षमता नजर आई। लेकिन गुजरात में लगातार भाजपा की जीत के नायक रहे मोदी पर गोधरा कांड का ऐसा दाग लगा है जिससे उनका उबर पाना मुश्किल है। भाजपा आलाकमान जानता है कि गठबंधन राजनीति के इस दौर में मोदी की कट्टरवादी छवि दिल्ली की कुर्सी तक ले जाने में बाधा खड़ी करेगी इसलिए उसने शिवराज की विकासवादी छवि को अपने एजेंडे में शामिल किया है।
इसका पहला नजारा मिला गडकरी के भाजपा अध्यक्ष बनने के साल भर बाद ही पिछले दिनों जब दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्रियों का दूसरा सम्मेलन हुआ। वहां मु़बई अधिवेशन की अपेक्षा बहुुत कुछ बदला-बदला सा था। मोदी सम्मेलन में न तो मुख्य वक्ता थे और न ही उनका पहले जैसे एकछत्र जलवा ही था। सम्मेलन की खास बात यह भी रही कि इसमें विकास, सुराज और सुशासन जैसे शब्दों के लिए केवल गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का ही नाम नहीं लिया गया बल्कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तो सबसे अधिक सराहना मिली। ऐसे में यह सवाल उठना भी लाजिमी था कि क्या विकास के नाम पर नरेंद्र मोदी के मुकाबले में भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्रियों को खड़ा किया जा रहा है? हालांकि इस सवाल पर भाजपा का कोई भी नेता ऐसा कुछ नहीं बोला जो पार्टी के मुख्यमंत्रियों के बीच कलह का कारण बनता। पार्टी के प्रवक्ताओं से जब यह पूछा गया कि क्या इस बार भी नरेंद्र मोदी सम्मेलन में छाए रहे? तो उत्तर मिला-भाजपा के सभी मुख्यमंत्री अच्छा काम कर रहे हैं। इसलिए भाजपा के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में जिस प्रकार की प्रशंसा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हुई है उससे तो यही लगता है कि राट्रीय स्तर पर भाजपा का चेहरा बनने से पहले मोदी को भाजपा के भीतर ही कड़ी चुनौती मिल मिल रही है। और लखनऊ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में तो लगभग इस बात का संकेत भी मिल गया है कि अब भाजपा को वह चेहरा मिल गया है जिसे आगे कर वह आगे की रणनीति बना सकती है। दरअसल, भाजपा का लक्ष्य 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अपना लक्ष्य तय करना है। पार्टी को अटल-आडवाणी के बाद एक ऐसे व्यक्ति की तलाश है जो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का चेहरा बन सके। जिसके नाम जनता वोट दे और जो अपने काम और नाम से जनता को भाजपा को वोट देने के लिए प्रेरित कर सके।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का तो कहना है कि भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए मध्य प्रदेश सरकार की योजनाओं का दूसरे राज्यों को भी अनुकरण करना चाहिए। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का कहना है कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में पार्टी संगठन और राज्य सरकार के बीच बेहतर तालमेल सराहनीय है अन्य भाजपा शासित राज्यों को भी इसका अनुकरण करना चाहिए। गडकरी बड़े विश्वास के साथ कहते हैं कि मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों पर विजयी होकर लाल किला का रास्ता यही से तैयार करना है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि मप्र भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर मचे घमासान के बीच एक बार पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने लिखा था, मत चूको चौहान। छह माह के भीतर ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होकर शिवराज सिंह चौहान ने अपने राजनैतिक गुरू की वाणी को सही साबित किया। तब से प्रदेश की राजनीति की पटरी पर आई शिवराज एक्सप्रेस धीरज के साथ बढ़ती ही जा रही है। भारी झंझावात के बीच जब उन्होंने कुर्सी संभाली थी तो कयास लग रहे थे कि शिवराज की राह में प्रशासनिक अनुभवहीनता आड़े आएगी। यह कयास गलत निकले। धीरे ही सही लेकिन उन्होंने प्रदेश में विकास और सुशासन की ऐसी लहर पैदा की केवल भाजपा शासित राज्य ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आगे निकलकर राजनैतिक बिसात पर भी बाजी मार ली।

मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है, जिसने लोक सेवाओं में भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए ठोस कदम उठाए हैं। सरकार ने न केवल विकास, बल्कि भ्रष्टाचार समाप्त करने पर भी खासा जोर दिया। इसके लिए विधानसभा में लोकसेवा प्रदाय की गारंटी अधिनियम, 2010 तथा मध्य प्रदेश विशेष न्यायालय अधिनियम, 2011 पारित किया। लोकसेवा प्रदाय की गारंटी अधिनियम के जरिये सरकारी कर्मचारियों, अधिकारी की जवाबदेही निश्चित की गई है। इसके अंतर्गत कर्मचारी या अधिकारी, यदि निश्चित समय पर अपना कार्य पूरा नहीं करते हैं तो उस पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। इसी तरह, विशेष न्यायालय अधिनियम में लोक सेवकों द्वारा भ्रष्ट तरीके से हासिल की गई सम्पत्ति जब्त करने का प्रावधान है।

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