गुरुवार, 18 नवंबर 2010

गरीबों की राजनीति भाई युवराजों को

गरीब केवल वोट बैंक माना जाता है वह राजनीति का हिस्सा कभी भी नहीं रहा है लेकिन जब से कांगे्रस के युवराज ने अपने आप को गरीबों का मसिहा बनाने का अभिनय शुरू किया है राजनीति की परिभाषा ही बदलने लगी है। फिर क्या भाजपा के नए युवराज और गांधी परिवार से बहिष्कृत, वरुण गांधी भी अपने आप को गरीबों का मसिहा सिद्व करने में लग गए हैं। हालांकि अपने विवादास्पद बयान के कारण वरूण ने अपनी एक अलग छवि बना ली है।
भाजपा के युवा सांसद और राष्ट्रीय सचिव वरुण गांधी खुद को उम्र में 10 साल बड़े चचेरे भाई एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी की पीढ़ी का नहीं मानते, मगर दोनों राजनीति की एक ही रेसिपी तैयार करते दिखाई पड़ रहे है।भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता वरुण गांधी ने हरदोई में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि उनकी नजऱ में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी अब युवा नहीं हैं। उम्र का तकाजा तो यही कहता है कि वरुण से दस साल बड़े राहुल अब वाकई में युवा नहीं हैं, लेकिन सही मायने में राजनीतिक प्लेटफॉर्म पर चलने के लिए आज खुद युवा होने से ज्यादा युवा जैसी सोच की जरूरत होती है और इस पैमाने पर राहुल एकदम खरे उतरते हैं। भाजपा के यूथ आइकन कहे जाने वाले वरुण गांधी ने हाल ही में लोगों के बीच जाना शुरू किया, जैसा कि राहुल गांधी हमेशा से करते आ रहे हैं। यह बात वरुण जानते थे, इसीलिए उन्होंने सफाई दी कि वो राहुल की नकल नहीं कर रहे हैं, उनका मकसद अलग है। जबकि सही मायने में देखा जाए तो कांग्रेस की बड़ी-बड़ी रैलियों में राहुल उन्हीं रैलियों को संबोधित करते हैं, जिनमें युवाओं की संख्या ज्यादा हो।
राहुल साल भर में कई विश्वविद्यालयों का दौरा भी करते हैं। यही नहीं छात्रों से मुखातिब होते वक्त राहुल गांधी उन्हीं के स्तर पर सोचते हैं और उनके अंदर गहराई से झांक कर देखते हैं। राहुल गांधी की युवा सोच ही है, जो उन्होंने युवक कांग्रेस का नाम बदलकर युवा कांग्रेस कर दिया। यानी पार्टी की यह इकाई सिर्फ 20 से 30 वर्ष की आयु के लोगों की नहीं, बल्कि उन सभी की है, जो युवा सोच रखते हैं।

राहुल गांधी ने युवा कांग्रेस के पदाधिकारियों के चयन के लिए टैलेंट हंट किया, और गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संगठन के चुनाव लोकतांत्रिक ढंग से कराये। वरुण की टिप्?पणी को अगर हास्यासपद ढंग से लिया जाए, तो अगर आमिर खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, सैफ अली खान और सलमान खान 40 के पार होने के बाद भी युवा हैं, तो राहुल क्यों नहीं। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा, कि युवा बने रहने से ज्यादा जरूरी है युवा सोच विकसित करना।
राहुल जहां एक ओर गरीबों को देश की असली शक्ति बता रहे हैं, वहीं वरुण आम जनता से संवाद और सम्पर्क बढ़ा कर गरीब केन्द्रित राजनीति की राह पर चलने पर जोर दे रहे हैं।
वरुण गांधी का कहना है कि मेरी एक सोच है, वह सोच यह है कि राजनीति चुनाव केन्द्रित नहीं होनी चाहिए बल्कि गरीब केन्द्रित होनी चाहिए। उन्होंने कहा-राजनीति गरीब केन्द्रित होनी चाहिए। हालांकि आज कोई गरीब भी अपने को गरीब नहीं कहलाना चाहता कारण कि लोगों में आत्मगौरव और सम्मान की भावना बढ़ी है, जो कि अच्छी बात है। वरुण ने कहा कि पार्टी के सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं को चाहिए कि वे जमीनी राजनीति करें और समाज के हर तबके का विश्वास जीतें, सभी को चाहिए कि वे दीवाली के दिन किसी बाढ़ पीडित गांव में जाकर वहां दिया जलाएं। यह पूछे जाने पर कि कहीं आप भी वही तो नहीं कर रहे जो राहुल गांधी कर रहे है, वरुण ने कहा, जितने लोग घूम रहे हैं -सभी सीख रहे हैं -राहुल जी मुझसे उम्र में 10 साल बड़े हैं -मैं उन्हें अपनी पीढ़ी का नहीं मानता। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में सामान्य लोगों को अधिक विश्वसनीय बताते हुए वरुण ने कहा, सामान्य आदमी का रिश्ता दल से नहीं दिल से है -राजनीतिक लोगों के मन में मैल हो सकता है, क्योंकि उनमें महत्वाकांक्षा होती है। उत्तार प्रदेश में कम से कम एक करोड़ लोगों के नदियों के बाढ़ सीमा क्षेत्र में रहने के बावजूद बाढ़ से बचाव के लिये कोई खास प्रभावी योजना का अभाव होने का दावा करते हुए वरुण ने कहा कि उनकी योजना है कि भविष्य में वह उत्तार प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर दो-तीन दिन रुकेंगे ताकि आम जनता से मिलने और उनकी समस्याएं समझने का पूरा अवसर मिले। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव वरुण ने दोहराया कि पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को दीवाली के दिन किसी बाढ़ पीडित परिवार में जाकर वहां दिया जलाना चाहिए और यह काम किसी राजनीतिक अभियान के रूप में नहीं बल्कि कर्तव्य भावना से करना चाहिए।
सांसदों में अपने वेतन-भत्तो बढ़वाने में सांसदों में बड़ी एकता दिखाई देने के सवाल पर वरुण ने कहा कि राजनीति में अनेक लोग आर्थिक दृष्टि से साधारण परिवारों से आते हैं और उनके लिए तो यह जरुरी हो सकता है,मगर हम बहुत से लोग खुश किस्मत है, हमें कोई आर्थिक संकट नहीं है और हम संसद में वेतन के लिए नहीं जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वह सांसद होने के नाते उन्हें मिलने वाले सभी वेतन भत्तो जनता और जरुरतमंद लोगों की सहायता में खर्च करते हैं, यह उनका संकल्प है।

वरुण सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। भले ही उनकी उम्र कम है लेकिन राजनीति के कीड़े उन्हें विरासत में मिले हैं, वे जानते हें कि गांधी परिवार से लतियाए और दुरियाए जाने के बाद वे जिस आतंकवादी जमात में शामिल हुए हैं वहां जो जितना बड़ा बतोलेबाज और असभ्य होगा उतना ही जल्दी तरक्की पाएगा। सो वरुण ने कुछ गलत थोड़े ही न कहा, अपनी जगह पक्की की है!
वरुण भले ही अपने नाम के आगे गांधी लिखते हैं लेकिन हैं वे गोडसे की जमात में। चेहरे मोहरे से भी उनके नाक नक्श कहीं से भी किसी गांधी से नहीं मिलते हैं, और गांधी परिवार से तमाम असहमतियों के बावजूद यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि वरुण की भाषा और संस्कार भी गांधी परिवार के नहीं हैं, बल्कि जो भाषा वे प्रयोग कर रहे हैं, उस भाषा पर तो बापू के हत्यारों का कॉपीराइट है या वरुण के एक चाचा ( उनके पिता और मां के परम मित्र अकबर अहमद डम्पी) का। जब हिन्दुत्व और डम्पीत्व का संगम होता है तो वरुण गांधी बनता है।
भाजपा के गांधी युवराज की भाषा सुनकर अचानक जेहन में डम्पी साहब कौंध गए। याद आया कि 90 के दशक में डम्पी ने किसी चुनावी सभा में अपने कुर्ते के बटन खोलकर कहा था कि अडवाणी मुसलमानों को हिन्दुस्तान से बाहर निकालने की बात करते हैं, पहले मुझे ( डम्पी) को निकालकर दिखाएं। ठीक उसी अंदाज में वरुण अपने खोल से बाहर आए हैं।
हालांकि वरुण के स्वर्गीय पिता भी अल्पसंख्यकों के जानी दुश्मन थे और संघ से उनकी लड़ाई भी हिंदू उग्रवाद पर वर्चस्व को लेकर थी। इसीलिए आपातकाल के दौरान चुनचुनकर मुस्लिम आबादी वाली बस्तियों में बुल्डोजर चलवाए गए थे और नसबंदी के लिए मुख्य निशाना अल्पसंख्यक और दलित ही बनाए गए थे। यह संजय गांधी ही थे जिन्होंने देश भर के गुंडों को यूथ कांग्रेस के बैनर तले एकत्र किया था और राजनीति के अपराधीकरण की शुरुआत की थी। इसलिए वरुण के ताजा वक्तव्य पर चौंकने की नहीं बल्कि उनका सही विश्लेशण करने की आवश्यकता है।

स्व0 संजय गाधी की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी मेनका ने जिस परिवेश में वरुण की परवरिश की उसमें उन्हें गांधी परिवार के संस्कार नहीं मिलने थे। लोगों को याद होगा अमेठी के चुनाव में मेनका ने राजीव गांधी के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया था, उनका तात्पर्य था – इस गीदड़ ने दो-दो शेरों को मारा है। मेनका ने स्व0 इंदिरा गांधी से मोर्चा लेने के लिए जो संजय विचार मंच बनाया था उसके एक बड़े नेता अकबर अहमद डम्पी भी थे। जाहिर है कि वरुण को जो संस्कार मिले वे उनकी मां और डम्पी जैसे नेताओं से मिले, जिसका सदुपयोग उन्होंने सही मंच पर किया है। इसमें अचंभे वाली कोई बात नहीं है।
अपने चचेरे भाई बहन से खुन्नस पूरी करने के चक्कर में वरुण को यह याद भी नहीं रहा कि उनके पिता की मृत्यु आज भी एक रहस्य है। संजय की मृत्यु के समय यह चर्चा आम थी कि संजय जिस हेलीकॉप्टर में सवार होकर उड़े थे उसमें भाजपा नेत्री राजमाता विजयराजे सिंधिया के पुत्र और संजय के मित्र माधवराव सिंधिया भी सवार होने वाले थे, लेकिन ऐन वक्त पर माधवराव को हेलीकॉप्टर से उतार लिया गया था। बेहतर होता कि वरुण दूसरों के हाथ काटने की कसम खाने से पहले अपने पिता की असमय मृत्यु के लिए जिम्मेदार लोगों के चेहरे से नकाब उठाते।
वरुण अपने खोल से बाहर आते वक्त यह भूल गए कि वे सिर्फ मेनका गांधी के बेटे नहीं हैं, बल्कि इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के पौत्र भी हैं, और अगर उनके नाम के आगे गांधी न लगा होता तो आज उनकी हैसियत इतनी न होती। वरुण ने ऐसा करके अपने नाम के आगे लगे 'गांधीÓ शब्द का अपमान किया है। लेकिन ऐसा करते वक्त वे भूल गए कि वे आसमान पर थूक रहे हैं।

इतिहास बताता है कि जब पीढिय़ां अपने बुजुर्गों के खिलाफ जाना शुरु करती हैं तो बिंबसार के घर में अजातशत्रु पैदा होता है, स्टालिन की पौत्री सीआईए की एजेंट निकलती है, और इंदिरा गांधी के घर में वरुण निकलता है। लेकिन अच्छा होता कि वरुण ने आग उगलने से पहले कम से कम एक बार अपनी मां से ही पूछ लिया होता कि क्या करीमुल्लाह और मजरुल्लाह डरावने नाम होते हैं, क्या इन डरावने नामों में उस अकबर अहमद डम्पी का नाम भी शामिल है जिसने अपने जिगरी दोस्त की मौत के बाद उसके बच्चे को राजनीतिक प्रशिक्षण भी दिया और चाचा का प्यार भी?

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